खमा का मूल रूप क्या होगा? - khama ka mool roop kya hoga?

Show

गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया गौरेया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फुँदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे-मुलुक-मुल्क, खमा-क्षमा, मजूरी-मजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसे- टेम-टाइम टेसन/टिसन-स्टेशन।


बखत-वक्त, गाडी-गाड़ी, टूशॅन-टयूशॅन, घनी-बहुत, इस्कूल-स्कूल, कित को-किधर को, जा रो-जा रहे हो, मो को-मुझ को, फिलम-फिल्म।

467 Views


चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

स्वर और व्यंजन का मेल ऐसा मेल स्वर और व्यंजन का एक के समय जो सार्थक हो

Romanized Version

काल  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

  1. अनन्तकाल हो गया हमें कषाय मार्गणा में रहते हुए, अभी तक हम निष्कषाय नहीं हो पाये।
  2. यदि काल द्रव्य नहीं है तो घड़ी क्यों बाँधते हो।
  3. काल द्रव्य को विज्ञान ने समय के रूप में स्वीकारा है लेकिन निश्चय काल के बारे में विज्ञान मौन हो जाता है।
  4. कुछ लोग काल द्रव्य को नहीं मानते, लेकिन घड़ी हाथ में बाँधते हैं, यही तो काल द्रव्य को मानना हो गया।
  5. जीव और पुद्गल के माध्यम से काल की उत्पत्ति नहीं होती बल्कि काल की पहचान होती है।
  6. जो काल परिणाम, क्रिया, परत्व (निकट) अपरत्व (दूर) लक्षण वाला है, वह व्यवहार काल कहलाता है और जो वर्तना लक्षण वाला है, वह निश्चय काल कहलाता है।
  7. धर्म के क्षेत्र में काल पर आधारित रहकर चलना ठीक नहीं है, वरन् हम अपने आपको निर्दोषी मानने लगेंगे।
  8. आज दु:खमा काल में सुख नहीं मिल सकता, सुख प्राप्ति की भूमिका बन सकती है।
  9. अतीत के कथन करते समय वर्तमान की अनुभूति छूट जाती है।
  10. आस्था को मजबूत करने के लिए यह दु:खमा काल वरदान सिद्ध होता है। आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कहा करते थे कि यह कौन-सा काल है पंचमकाल, इसका नाम दु:खमा काल है तो सुख नहीं दु:ख ही मिलेगा ऐसा श्रद्धान रखो।
  11. जिस काल में कर्म को बीमारी आ जाती है, वह समाधिकाल, स्वकाल है, इसलिए काल को हेय कहा है।
  12. जीव और पुद्गल के अभाव में काल को पहचाना ही नहीं जा सकता है।
  13. स्थान से स्थानांतर जाने रूप क्रिया कालाणु में नहीं होती।
  14. कब, तब ये काल के संकेत करने वाले शब्द हैं।
  15. कार्य काल के द्वारा नहीं होता काल में भी नहीं होता बल्कि काल का सहयोग लेकर होता है, उसके अस्तित्व में होता है, लेकिन परिणमन कार्य में ही होता है, काल में नहीं।
  16. आगम ग्रन्थों में कर्म चेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना का वर्णन तो मिलता है, लेकिन काल चेतना का वर्णन नहीं मिलता, इससे सिद्ध होता है काल कर्ता नहीं हो सकता, वह तो मात्र परिणमन में सहयोगी होता है।
  17. काल द्रव्य के बिना शेष पाँच द्रव्य अस्तिकाय होते हैं।
  18. संसार में अशांति का कारण पर का कर्ता बनना है।
  19. आपकी क्रियाएँ आपकी रुचि को बता देती है।
  20. जितना परिग्रह कम रहेगा उतना ही कर्तृत्वपन से दूर होगा।

खमा का मूल शब्द क्या है?

"खमा " का मूल रूप होगा क्षमा। विकल्प ( ख)। गांव की बोली का उच्चारण कई शब्दो के लिए अलग होता है अर्थात बहुत से शब्दों का ग्रामीण उच्चारण अलग होता है।

खमा का शुद्ध रूप क्या है?

खमा पु संज्ञा स्त्री० [सं० क्षमा, प्रा०, खमा] दे० 'क्षमा' ।

खमा और मुलुक का शुद्ध रूप क्या है?

कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे-मुलुक-मुल्क, खमा-क्षमा, मजूरी-मजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि।

सखा शब्द का मूल रूप क्या होता है?

सखि शब्द (सखा / मित्र ): इकारांत पुल्लिंग संज्ञा, सभी इकारांत पुल्लिंग संज्ञापदों के शब्द रूप इसी प्रकार बनाते है जैसे – कवि, हरि, ऋषि, यति, विधि, जलधि, गिरि, रवि, अग्नि, आदि; परंतु पति का रूप अलग होगा।