Q. खिलाफत आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे? Show
Khilafat Andolan Ke Pramukh Neta TheGkExams on 12-05-2019 1919 ई. में मोहम्मद अली और शौकत अली (अली बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध), मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,हसरत मोहानी व कुछ अन्य के नेतृत्व में तुर्की के साथ हुए अन्याय के विरोध में खिलाफत आन्दोलन चलाया गया| सम्बन्धित प्रश्नComments Khilapt andolan ke pramukh on 18-09-2022 Ans plz Bharat ka case Ratnakar Kise Kaha jata hai on 01-12-2019 Dr Rajendra Prasad खिलाफत आंदोलन के नेता कौन थे on 29-11-2019 खिलाफत आंदोलन के नेता कौन थे Ramesh on 12-12-2018 Khilafat andolan ki viseshtayen Afreen khan on 15-10-2018 Kis neta n khilafat andolan m bhag nhi liya tha ya sehyog nhi Kiya tha [B] मोहम्मद अली और शौकत अली खिलाफत आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की के प्रति ब्रिटिश के दृष्टिकोण में बदलाव लाना था, और तुर्की के सुल्तान को पुनः उनके स्थान पर स्थापित करना था। इसके लिए अली बन्धु, मौलाना आजाद, हाकिम अजमल खान और हसरत मोहनी के नेतृत्व में खिलाफत समिति का गठन किया गया था। …अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिंक करे खिलाफत आन्दोलन (मार्च 1919-जनवरी 1921) मार्च 1919 में बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बन्धुओ के साथ-साथ अनेक मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्यवाही की सम्भावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी। सितम्बर 1920 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी भाग लिया। यह आंदोलन सन् 1919 में लखनऊ से शुरू हुआ था।. इतिहास[संपादित करें]सन् 1908 ई. में तुर्की में युवा तुर्क दल द्वारा शक्तिहीन ख़लीफ़ा के प्रभुत्व का उन्मूलन ख़लीफ़त (ख़लीफ़ा के पद) की समाप्ति का प्रथम चरण था। इसका भारतीय मुसलमान जनता पर नगण्य प्रभाव पड़ा। किन्तु, 1922 में तुर्की-इतालवी तथा बाल्कन युद्धों में, तुर्की के विपक्ष में, ब्रिटेन के योगदान को इस्लामी संस्कृति तथा सर्व इस्लामवाद पर प्रहार समझकर भारतीय मुसलमान ब्रिटेन के प्रति उत्तेजित हो उठे। यह विरोध भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रोषरूप में परिवर्तित हो गया। इस उत्तेजना को अबुलकलाम आज़ाद, ज़फ़र अली ख़ाँ तथा मोहम्मद अली ने अपने समाचारपत्रों अल-हिलाल, जमींदार तथा कामरेड और हमदर्द द्वारा बड़ा व्यापक रूप दिया। प्रथम महायुद्ध में तुर्की पर ब्रिटेन के आक्रमण ने असन्तोष को प्रज्वलित किया। सरकार की दमननीति ने इसे और भी उत्तेजित किया। राष्ट्रीय भावना तथा मुस्लिम धार्मिक असन्तोष का समन्वय आरम्भ हुआ। महायुद्ध की समाप्ति के बाद राजनीतिक स्वत्वों के बदले भारत को रौलट बिल, दमनचक्र, तथा जलियानवाला बाग हत्याकांड मिले, जिसने राष्ट्रीय भावना में आग में घी का काम किया। अखिल भारतीय ख़िलाफ़त कमेटी ने जमियतउल्-उलेमा के सहयोग से ख़िलाफ़त आन्दोलन का संगठन किया तथा मोहम्मद अली ने 1920 में ख़िलाफ़त घोषणापत्र प्रसारित किया। राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व गांधी जी ने ग्रहण किया। गांधी जी के प्रभाव से ख़िलाफ़त आन्दोलन तथा असहयोग आंदोलन एकरूप हो गए। मई, 1920 तक ख़िलाफ़त कमेटी ने महात्मा गांधी की अहिंसात्मक असहयोग योजना का समर्थन किया। सितम्बर में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ने असहयोग आन्दोलन के दो ध्येय घोषित किए - स्वराज्य तथा ख़िलाफ़त की माँगों की स्वीकृति। जब नवम्बर, 1922 में तुर्की में मुस्तफ़ा कमालपाशा ने सुल्तान ख़लीफ़ा महमद षष्ठ को पदच्युत कर अब्दुल मजीद आफ़न्दी को पदासीन किया और उसके समस्त राजनीतिक अधिकार अपहृत कर लिए तब ख़िलाफ़त कमेटी ने 1924 में विरोधप्रदर्शन के लिए एक प्रतिनिधिमण्डल तुर्की भेजा। राष्ट्रीयतावादी मुस्तफ़ा कमाल ने उसकी सर्वथा उपेक्षा की और 3 मार्च 1924 को उन्होंने ख़लीफ़ी का पद समाप्त कर ख़िलाफ़त का अन्त कर दिया। इस प्रकार, भारत का खिलाफ़त आन्दोलन भी अपने आप समाप्त हो गया। पृष्ठभूमि[संपादित करें]ओटोमन सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय (1842-1918) ने ओटोमन साम्राज्य को पश्चिमी हमले और विघटन से बचाने के लिए और घर पर लोकतान्त्रिक विरोध को कुचलने के लिए अपने पैन-इस्लामिक कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने 19 वीं शताब्दी के अन्त में एक दूत, जमालुद्दीन अफ़गानी को भारत भेजा। तुर्क सम्राट के कारण ने भारतीय मुसलमानों में पान्थिक जुनून और सहानुभूति पैदा की। खलीफ़ा होने के नाते, तुर्क सुल्तान दुनिया भर के सभी सुन्नी मुसलमानों के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता थे। हालाँकि, इस प्राधिकरण का उपयोग वास्तव में कभी नहीं किया गया था। भारतीय उपमहाद्वीप में खिलाफ़त आन्दोलन[संपादित करें]हालाँकि राजनीतिक गतिविधियों और खलीफ़ा की ओर से बहुत आक्रोश मुस्लिम दुनिया भर में उभरा किन्तु भारत में सबसे प्रमुख गतिविधियाँ हुईं। एक प्रमुख ऑक्सफ़ोर्ड शिक्षित मुस्लिम पत्रकार, मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने औपनिवेशिक सरकार के प्रतिरोध की वकालत करने और खलीफ़ा के समर्थन में चार वर्ष जेल में बिताए थे। तुर्की स्वतन्त्रता युद्ध की शुरुआत में, मुस्लिम पान्थिक नेताओं ने उस खिलाफत / खलीफ़ा की आशंका जताई थी, जिसकी रक्षा के लिए यूरोपीय शक्तियाँ अनिच्छुक थीं। भारत के कुछ मुसलमानों के लिए, तुर्की में साथी मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किए जाने की सम्भावना एक अनाथ / अभिशप्त थी।[1] अपने संस्थापकों और अनुयायियों के लिए, खिलाफत एक पान्थिक आन्दोलन नहीं था, बल्कि तुर्की में अपने मुस्लिम मुसलमानों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन था।[2] मोहम्मद अली और उनके भाई मौलाना शौकत अली अन्य मुस्लिम नेताओं जैसे पीर गुलाम मुजादिद सरहन्दी, शेख शौकत अली सिद्दीकी, डॉ। मुख्तार अहमद अंसारी, रईस-उल-मुअज्जीन बैरिस्टर जान मुहम्मद जुनेजो, हसरत मोहानी, सैयद अता उल्लाह शाह बुखारी व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और डॉ॰ हकीम अजमल खान के साथ शामिल हुए और ऑल इण्डिया खिलाफत कमेटी बनाई। यह संगठन लखनऊ, भारत में हैथ शौकत अली, जमींदार शौकत अली सिद्दीकी के परिसर में स्थित था। उन्होंने मुसलमानों के मध्य राजनीतिक एकता बनाने और खिलाफ़त / खलीफ़ा की रक्षा के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करने का लक्ष्य रखा। 1920 में, उन्होंने खिलाफ़त घोषणापत्र प्रकाशित किया, जिसमें अंग्रेजों को खिलाफ़त को सुरक्षित और भारतीय मुसलमानों को एकजुट होकर व ब्रिटिश को जवाबदेह होने चाहिए।[3] बंगाल में खिलाफ़त समिति में मुहम्मद अकरम खान, मनीरुज्जमाँ इस्लामाबादी, मुजीबुर रहमान खान और चित्तरंजन दास शामिल थे।[4] कांग्रेस नेता मोहनदास गांधी और खिलाफ़त नेताओं ने खिलाफ़त / खलीफ़ा और स्वराज के लिए एक साथ काम करने और लड़ने का वादा किया। औपनिवेशिक सरकार पर दबाव बढ़ाने का प्रयास करते हुए, खिलाफतवादी असहयोग आन्दोलन का एक बड़ा हिस्सा बन जाते हैं - जन, शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा का एक राष्ट्रव्यापी अभियान। कुछ लोग अमानुल्लाह खान के तहत उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त से अफ़गानिस्तान तक एक विरोध प्रदर्शन में भी शामिल हुए।[5] डॉ॰ अंसारी, मौलाना आज़ाद और हकीम अजमल खान जैसे खिलाफ़त नेता भी व्यक्तिगत रूप से गांधी के करीब बढ़ते गए। इन नेताओं ने 1920 में मुसलमानों के लिए स्वतन्त्र शिक्षा और सामाजिक कायाकल्प को बढ़ावा देने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की।[6]
कारण[संपादित करें]गांधी ने 1920-21 में खिलाफ़त आन्दोलन क्यों चलाया, इसके दो दृष्टिकोण हैं:-
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
भारत में खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे?खिलाफत आंदोलन 1919 में अली बंधुओं; मौलाना मुहम्मद अली और मौलाना शौकत अली, के नेतृत्व में शुरू हुआ।
खिलाफत आंदोलन की शुरुआत कब और किसने की?खिलाफत आन्दोलन (मार्च 1919-जनवरी 1921) मार्च 1919 में बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बन्धुओ के साथ-साथ अनेक मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्यवाही की सम्भावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी।
खिलाफत आंदोलन के संस्थापक कौन थे?खिलाफत आंदोलन (1920 ईस्वीं - 1922 ईस्वीं): अली बंधुओं-मोहम्मद अली और शौकत अली ने 1919 ईस्वीं में एक ब्रिटिश विरोधी आंदोलन चलाया। आंदोलन खिलाफत आंदोलन की बहाली के लिए था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भी आंदोलन का नेतृत्व किया।
खिलाफत आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?दिल्ली में 23 नवंबर, 1919 को 'अखिल भारतीय खिलाफत कांफ्रेंस' हुई जिसकी अध्यक्षता गांधी जी ने की थी। इन सम्मेलनों में आंदोलन विस्तार की योजना बनी जिसमें सरकार द्वारा दी गई उपाधियां लौटाने, सरकारी नौकरियों का बहिष्कार करने और टैक्स न देने का आह्वान किया गया।
|