अधिगम के अभिप्रेत का अर्थ क्या है? - adhigam ke abhipret ka arth kya hai?

Que : 9. अधिगम स्थानांतरण से क्या अभिप्राय है? अधिगम स्थानांतरण के विभिन्न सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए। शिक्षक को अधिकतम स्थानांतरण हेतु क्या करना चाहिए?

Answer: अधिगम का स्थानांतरण :

मानव विकास में सीखने का मुख्य स्थान है । हम हर नवीन कार्य को सीखने में अपने संचित ज्ञान की मदद लेते हैं । यह संचित ज्ञान हमारे सीखने को सरल बनाता है । बी.एड. शिक्षारत छात्र-छात्राएं पूर्व संचित गणित के ज्ञान को मस्तिष्क में जाग्रत करके सांख्यिकी को सीखने में मदद लेते हैं। इस तरह से सीखने में समय तथा शक्ति दोनों की बचत हो जाती है एवं संचित ज्ञान की पुनरावृत्ति भी। अतः जब पूर्व सीखे गये ज्ञान का नवीन सीखे जाने वाले ज्ञान पर प्रभाव पड़ता है, तो उसे सीखने का स्थानांतरण कहते हैं।

डीज ने लिखा है- “सीखने का स्थानांतरण तब होता है, जब एक कार्य का सीखना या निष्पादन दूसरे कार्य के सीखने या निष्पादन में लाभ या हानि पहुंचाता है।"

शिक्षा शब्दकोष के अनुसार- “जब कोई व्यक्ति किसी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया करता है, अधिगम अथवा सीखना शुरू हो जाता है। जब अधिगम के विशेष अनुभव व्यक्ति की योग्यता को प्रभावित करते हैं तथा उनका रूप भिन्न होता है, तो वह क्रिया अधिगम-स्थानांतरण के रूप में स्वीकारी जाती है।"

क्रो तथा क्रो के अनुसार- 'सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले ज्ञान अथवा कुशलताओं का चिंतन करके, अनुभव करने तथा कार्य करने की आदतों का सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना साधारणतः प्रशिक्षण का स्थानांतरण कहा जाता है।"

विश्लेषण :

उपर्युक्त का अगर हम विश्लेषण करें, तो निम्न विशेषताएं पाते हैं-

1. स्थायी सीखना :- अधिगम का स्थानांतरण सीखने के स्थायित्व पर निर्भर करता है। किसी कार्य को सीखने से मस्तिष्क में चिन्ह अंकित हो जाते हैं, जो समयानुसार जाग्रत होकर हमारे व्यवहार अथवा क्रिया को सरल बनाते हैं। अतः सीखना स्थायी होना स्थानांतरण हेतु जरूरी है।

2. स्थिति का चयन :- अधिगम में स्थानांतरण स्थिति चयन पर निर्भर करती है। थॉर्नडाइक ने अपने प्रयोगों से स्पष्ट कर दिया है कि जो व्यक्ति सही प्रतिचारों का चयन करके अभ्यास करते हैं, वे सीखने में जल्दी उन्नति करते हैं। यही स्थिति सीखने के स्थानांतरण में भी होती है। जब व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों में से सही को छाँट कर प्रयोग करता है, तो सीखने में स्थानांतरण होता है। इसी को स्थिति का चयन कहते हैं।

3. प्रभाव :- सीखने में स्थानांतरण उसी समय स्पष्ट होता है, जब सीखने में उन्नति होती । इस प्रभाव के अंतर्गत अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण तथा आदतों आदि के प्रभाव सम्मिलित हैं, जिससे सीखने में स्थानांतरण सकारात्मक अथवा नकारात्मक तरह से प्रतिपादित होता है।

अधिगम के स्थानांतरण की परिभाषाएं :

अधिगम अथवा शिक्षा के स्थानांतरण की कुछ परिभाषाएं इस तरह हैं-

कॉलसनिक के अनुसार- “शिक्षा के स्थानांतरण से तात्पर्य एक परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान, आदत, निपुणता, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।"

सोरेन्सन के अनुसार- ''शिक्षा के स्थानांतरण के द्वारा व्यक्ति उस सीमा तक सीखता है, जब तक एक परिस्थिति से प्राप्त योग्यताएं दूसरी में मदद करती हैं।"

क्रो एवं क्रो के अनुसार-“जब सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त विचार, अनुभव अथवा की आदत या निपुणता का प्रयोग दूसरी परिस्थिति में किया जाता है, तो वह अधिगम का अंतरण कहलाता है।"

शिक्षा शब्दकोष के अनुसार-“प्रत्यक्ष प्रशिक्षण के बगैर निश्चित अधिगम में विकास, वृद्धि, किसी संशोधन क्रिया के अभ्यास के द्वारा संबंधित क्रिया में आदान-प्रदानात्मक संशोधन ही शिक्षा का स्थानांतरण है।"

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार :

सीखने के स्थानांतरण में यह पाया गया है कि पूर्व ज्ञान कभी-कभी सीखने में सहायता देता है तथा कभी-कभी बाधाएं पैदा करता है। अतः हम स्थानांतरण को निम्न रूपों में पेश करते है-

1. धनात्मक स्थानांतरण :- जब एक परिस्थिति में सीखा गया ज्ञान अथवा क्रिया दूसरी परिस्थिति में ज्ञान अथवा क्रिया को अर्जित करने में मदद सिद्ध होता है, तो सकारात्मक अथवा धनात्मक स्थानांतरण होता है; जैसे-साइकिल का ज्ञान, मोटर साइकिल सीखने में सहायक होता है तथा गणित का ज्ञान, व्यापार में सहायक होता है ।

2. ऋणात्मक स्थानांतरण :- ऋणात्मक अथवा नकारात्मक स्थानांतरण तब होता है, जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन ज्ञान के सीखने में रुकावट पैदा करता है; जैसे-हिन्दी भाषा में गिनती सीखने पर हम अंग्रेजी भाषा की गिनती सीखते हैं, तो हिन्दी भाषा की बनावट हमें रुकावट पैदा करती है।

3. शून्य स्थानांतरण :- जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन सीखने में न मदद करते हैं तथा न रुकावट पैदा करते हैं, तब शून्य स्थानांतरण होता है। मानव मस्तिष्क में ऐसा बहुत-सा ज्ञान होता है जो किसी समय मानव के सीखने को प्रभावित नहीं करता है। इसलिए विद्वानों ने इसे स्थानांतरण नहीं माना है।

स्थानांतरण के सिद्धांत :

सीखने में स्थानांतरण के स्वरूप को स्थापित करने वाले सिद्धांतों को हम दो भागों में विभक्त करके पेश करते हैं-

1. स्थानांतरण के प्रचीन सिदान्त :- सीखने के स्थानांतरण के प्राचीन सिद्धांतों में 'मानसिक शक्तियों का सिद्धांत' तथा 'औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण' के सिद्धांत शामिल है। मानसिक शक्तियों के सिद्धांत के बारे में गेट्स तथा अन्य ने लिखा है-

"अवधान, स्मृति, कल्पना, तर्क, इच्छा, स्वभाव, कभी-कभी चरित्र तथा अन्य गुण मानसिक शक्तियों के रूप में होते हैं। यह सभी शक्तियाँ एक-दूसरे से स्वतंत्र होती हैं, इसलिए इनको स्वतंत्र रूप में सक्षम बनाया जा सकता है।"

उपर्युक्त विचार से यह निष्कर्ष निकलता है कि मानसिक प्रक्रियाएं अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं तथा वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में समर्थ हैं। अत: इनका प्रशिक्षण ही सीखने में स्थानांतरण को बढ़ावा देता है।

इसी तरह से औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण के सिद्धांत के बारे में गेट्स तथा अन्य ने लिखा है-“मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षण के द्वारा समान तथा समग्र रूप में किसी भी परिस्थिति में कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।"

उपर्युक्त विचार से यह निष्कर्ष निकलता है कि मानसिक प्रक्रियाएं अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं तथा वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में समर्थ हैं। अत: इनका प्रशिक्षण ही सीखने में स्थानांतरण को बढ़ावा देता है-

इसी तरह से औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण के सिद्धांत के बारे में गेट्स तथा अन्य ने लिखा है-"मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षण के द्वारा समान तथा समग्र रूप में किसी भी परिस्थिति में कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।"

उपर्युक्त विचार से स्पष्ट होता है कि अवधान, स्मृति आदि मानसिक शक्तियों को किसी भी क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया जाये, तो सीखने में स्थानांतरण होता है। आज इन प्राचीन सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि ये वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में आज निरीक्षण तथा परीक्षण का इतना प्रयोग बढ़ गया है कि हर सिद्धांत का वैज्ञानिक मापदंड बन चुका है।

2. स्थानांतरण के आधुनिक सिद्धांत :- सीखने के आधुनिक सिद्धांत विभिन्न प्रयोगों के आधारों पर गठित हैं। इनमें थॉर्नडाइक, जड तथा बागले आदि के सिद्धांत आते हैं। इन सिद्धांतों के महत्व को देखते हुए हम हर का विस्तार से वर्णन करेंगे-

I. थॉर्नडाइक का सिद्धांत :- थॉर्नडाइक महोदय ने सीखने महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। आपने स्थानांतरण के सिद्धांत को 'समरूप तत्वों का सिद्धांत' नाम दिया है। इस समरूप सिद्धांत का वर्णन हम निम्न तरह से करते हैं-

समरूप तत्वों के सिद्धांत का अर्थ-थॉर्नडाइक ने सीखने के प्रयोगों में पाया कि बिल्ली अपने पूर्व अनुभवों का प्रयोग सीखने में करती है। इसलिए जब व्यक्ति संचित अनुभवों में से नवीन सीखने हेतु समरूप तत्वों को छाँट लेता है तथा उनका प्रयोग करके नवीन कार्य को शीघ्र सीख लेता है, तो इसे समरूप तत्वों का सिद्धांत कहा जाता है। सरलीकरण के रूप में कहा जा सकता है कि नवीन कार्य तथा संचित अनुभवों में से समान तत्वों को छाँट लेना ही सीखने में उन्नति करता है; जैसे-दर्शनशास्त्र का ज्ञान मनोविज्ञान के सीखने में मदद देता है।

स्थानांतरण कैसे हो? थॉर्नहाइक ने स्थानांतरण को सीखने तथा बुद्धि पर निर्भर माना है। जब सीखना स्थायी होगा तथा बुद्धि के प्रयोग से हम समरूप तत्वों का चयन कर लेंगे, तो स्थानांतरण आसानी से होगा। अगर हम सीखने के ज्ञान को चयन करने में सफल नहीं होते हैं, तो उसका स्थानांतरण संभव नहीं हो सकता है। अतः शिक्षक को शिक्षा देते समय छात्रों के संचित ज्ञान को जाग्रत कर देना चाहिए, ताकि वे स्थानांतरण के द्वारा जल्दी सीख सकें।

II. सी.एच. जड का सिद्धांत :- आपने सीखने में स्थानांतरण पर प्रयोग किये तथा एक नवीन सिद्धांत को प्रतिपादित किया। इसको ‘सामान्यीकरण का सिद्धांत' कहा जाता है।

सामान्यीकरण का अर्थ- बालक अपने विकास के साथ-साथ विभिन्न अनुभव अर्जित करता है। यह अनुभव मिलकर एक निष्कर्ष निकालते हैं, जिसे नियम अथवा सिद्धांत का नाम दिया जाता है । भविष्य में वह इसका प्रयोग सामान्य जीवन की समस्याओं को सुलझाने में करता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को सामान्यीकरण कहते हैं, जैसा कि गेट्स तथा अन्य ने लिखा है-“विशिष्ट परिस्थितियों में समान विशेषताएं अथवा सिद्धांत या संबंध स्थापना की प्रक्रिया सामान्यीकरण होती है।

स्थानांतरण कैसे हो? व्यक्ति सीखते समय ज्ञान की क्रमबद्धता, आदतों तथा मनोवृत्तियों को धारण करता है। जब वह अन्य परिस्थितियों में सीखता है, तो वह इनका प्रयोग करके सीखने को सरल बना लेता है । यानी वह संचित ज्ञान,आदतों,मनोवृत्तियों आदि के आधार पर बनाये गये नियमों का व्यवहार में पालन करके नवीन कार्य को सीखता है। अतः जिस व्यक्ति के पास जितने ज्यादा सामान्य सिद्धांत होंगे वह उतना ही उनका स्थानांतरण नवीन सीखने में कर सकेगा। 'जड' महोदय ने 1908 में एक प्रयोग द्वारा इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। आपने दो दलों (लड़कों) को निशाना लगाने हेतु तैयार किया। जब वे एक विशेष गहराई पर निशाना लगाने में सफल हो गये, तब निशाने की गहराई को बदल दिया गया। जो लड़के 'किरण की वक्र रेखा' के नियमों को समझ गये थे, उन्होंने निशाने की गहराई को बदलने पर ही सही निशाना लगाया, पर जो इस नियम से परिचित नहीं थे, वे निशाना लगाने में असफल हुए । इससे 'जड़ महोदय ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्थानांतरण किसी कार्य के नियमों तथा सिद्धांतों को समझने से एवं उनका सामान्यीकरण करने से होता है। सी.एच. जड ने लिखा है-“एक शिक्षक जिसका दृष्टिकोण ज्ञान के क्षेत्र में व्यापक है तथा वह सिर्फ सूचना के माध्यम से एक सत्य का उद्घाटन नहीं करता, वरन् उन सभी संकेतों का ताना-बाना तैयार करता है जो शेष संसार का केन्द्रीभूत सत्य है।

III. बाग्ले का सिद्धांत :- डब्लू. सी बाग्ले ने सीखने में स्थानांतरण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना है। सामान्यीकरण के पीछे तथा समान तत्वों के पीछे आदर्श और मूल्य माने हैं, जो सीखने में स्थानांतरण को सफल बनाते हैं। अतः आपने अपने सिद्धांतों का नाम 'आदर्शों तथा मूल्यों' का सिद्धांत रखा है। बच्चों में विकास के साथ-साथ आदर्शों तथा मूल्यों का गठन होता रहता है । अतः वे जीवन भर उनका प्रयोग करते रहते हैं; उदाहरण के लिए-बच्चों में अगर स्वच्छता तथा सौंदर्यता का भाव विकसित करना है, तो उन्हें सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित किया जाये। भविष्य में वे स्वयं अपने इस आदर्श का पालन अपने जीवन में करते रहेंगे। अतः निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि शिक्षा के द्वारा बच्चों में आदर्शों तथा मूल्यों का गठन करना चाहिए, ताकि वे जीवन भर उनका स्थानांतरण करके लाभ उठा सकें।

सकारात्मक स्थानांतरण के उपाय :

दैनिक जीवन के अनुभवों से स्पष्ट होता है कि अधिगम अथवा सीखने की प्रक्रिया में सकारात्मक स्थानांतरण का बहुत ज्यादा महत्व है। इससे सीखने की प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है। संसार के प्रमुख व्यक्तियों में स्थानांतरण की शक्ति अत्यधिक पायी गयी है। इसलिए वे हर समस्या का हल स्वतः ही खोज लिया करते थे। अतः हम शिक्षा के क्षेत्र में उन बातों पर प्रकाश डालेंगे, जो बच्चों में सकारात्मक स्थानांतरण को प्रभावपूर्ण बनाती हैं।

1. सीखने वाले की तैयारी :- आज के सभी शिक्षाशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि कोई भी ज्ञान अथवा कर्म तभी सीखा जा सकता है जब सीखने वाला तैयार हो । सीखने वाले की रुचि, मनोवृत्ति, तत्परता, उद्देश्य की स्पष्टता तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य आदि का प्रभाव सीखने पर पड़ता है। जब सीखने की लगन होगी तो सीखने में स्थानांतरण स्वत: ही होगा। इसके लिए हमें बच्चों के विकास, गत्यात्मकता तथा जीवंतता का अध्ययन करना चाहिए । शिक्षक को बच्चे का व्यक्तित्व समग्र मानना चाहिए। साथ ही उस पर अचेतन मन के प्रभावों का भी ध्यान रखा जाये, ताकि बच्चों के व्यवहार को सामान्य बनाकर सीखने में सही स्थानांतरण हो सके।

2. सीखने की उपयुक्त विधियों का प्रयोग :- सीखने के क्षेत्र में आज विभिन्न विधियों का प्रतिपादन हो चुका है। हर विधि अलग-अलग ज्ञान तथा कार्य के लिए प्रयोग नहीं की जा सकती है। शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को विभिन्न विषयों के सीखने हेतु उत्तम विधि बतलाये, ताकि वे अन्य विधियों की अपेक्षा जल्दी सीख सकें। बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान अधिक से अधिक दिया जाये। विषयों में सह-संबंध स्थापित करके शिक्षा दी जाये । प्रयत्न तथा भूल, सूझ एवं अनुकरण की विधियों का प्रयोग सीखते समय करना चाहिए। जब किसी ज्ञान का स्मरण करना है, तो स्मरण की विभिन्न विधियों में से उपयुक्त विधि का प्रयोग करना चाहिए। इस तरह से बच्चे स्वतः ही सही विधि के द्वारा ज्ञान को सीख कर स्थानांतरण करने में सफलता पा लेते हैं।

3. सामान्यीकरण का प्रशिक्षण :- अध्यापकों को चाहिए कि वे बच्चों को बिखरे हुए तथ्यों के स्थान पर नियमों, सिद्धांतों के निर्माण करने पर प्रशिक्षण दें। बच्चों को अनुभवों तथा निष्कर्षों के आधार पर सामान्य नियमों का गठन करने हेतु प्रेरित करना चाहिए । उनको अनुभवों का सामान्यीकरण कैसे करना चाहिए, शिक्षण देना चाहिए। साथ ही बच्चों को अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करना चाहिए। इस तरह से शिक्षक के सहयोग से बच्चे सामान्यीकरण के द्वारा . स्थानांतरण करना सीख जायेंगे।

4. विषय का पूर्ण ज्ञान :- थॉर्नडाइक, जड तथा बागले ने अपने-अपने प्रयोगों से स्पष्ट कर दिया है कि स्थानांतरण तभी सही रूप से होता है जब बच्चों को विषय का सही तथा पूर्ण ज्ञान होता है। विषय के पूर्ण ज्ञान से अभिप्राय बच्चों को सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक पक्षों से परिचित करवाना, ताकि वे उसका स्थानांतरण के द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग कर सकें।

5. समान तत्वों का चयन :- थॉर्नडाइक महोदय के स्थानांतरण के सिद्धांत का प्रयोग बालक अधिक से अधिक करते हैं। यह सरल भी है। शिक्षक को चाहिए कि वे बच्चों को ऐसा प्रशिक्षण दें, ताकि बच्चे संचित ज्ञान तथा अर्जित ज्ञान दोनों के समान तत्वों को छाँट लें, फिर उसका स्थानांतरण करके क्रिया को जल्दी सीख लेते हैं। इसके लिए अनुभवों की अधिकता तथा बुद्धि का सही प्रयोग जरूरी है। जैसा कि सोरेन्सन ने लिखा है-"समान तत्वों के सिद्धांत के अनुसार, एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में उस सीमा तक स्थानांतरण हो जाता है, जबकि दोनों ही समान होते हैं।

6. स्थानांतरण का अभ्यास :- सीखने वाले को स्थानांतरण का प्रशिक्षण देने से अथवा अभ्यास कराने से स्थानांतरण में उन्नति होती है, उदाहरण के लिए अगर हम सीधे हाथ (दायें) से कार्य को न करके बायें हाथ से करना सीखते हैं, तो पूर्व ज्ञान का स्थानांतरण अभ्यास के द्वारा शीघ्र हो जाता है। इसमें हमें समान तत्वों का भी चुनाव करना पड़ता है तथा नियमों का सामान्यीकरण भी करना पड़ता है। अतः अभ्यास के द्वारा ही स्थानांतरण में कुशलता आती है। उपर्युक्त सकारात्मक स्थानांतरण के उपायों से स्पष्ट होता है कि छात्र को अध्यापक के द्वारा तैयारी करवानी चाहिए, ताकि वह विकास के साथ-साथ स्थानांतरण करने में कुशलता प्राप्त कर ले। अध्यापक की भूमिका के बारे में औरेटा ने लिखा है-

प्रथम- स्थानांतरण सामग्री का ज्ञान अध्यापक को होना चाहिए।

द्वितीय- स्थानांतरण के लिए शिक्षण पद्धति निश्चित करना।

तृतीय- बच्चों में स्थानांतरण को व्यावहारिक रूप से लागू करना चाहिए।

अधिगम के स्थानांतरण का महत्व :

छात्र की शिक्षा में अधिगम के अंतरण का विशेष महत्व है। अधिगम के अंतरण से वैज्ञानिक विज्ञान के अनुभवों के आधार पर नवीन समस्याओं का समाधान करते हैं। शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थक अधिगम के अंतरण का विशेष महत्व मानते हैं। शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थक कहते हैं कि-"मस्तिष्क की कोई भी शक्ति हर परिस्थिति में एक जैसा व्यवहार करती है। अगर किसी बालक की स्मरण-शक्ति अच्छी है, तो वह जीवन के हर क्षेत्र में सफल होगा।'

शक्ति-मनोविज्ञान के समर्थकों का विश्वास है कि जिस तरह व्यायाम के द्वारा शरीर को स्वस्थ बनाया जा सकता है, उसी तरह अध्ययन के द्वारा मानसिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अधिगम के अंतरण का महत्व इस तरह है-

“लैटिन भाषा के पढ़ने से तर्क, निरीक्षण, तुलना तथा संश्लेषण की शक्ति बढ़ती है। गणित का अध्ययन अवधान बढ़ाता है एवं तर्क शक्ति को विकसित करता है। इसी तरह चरित्र की संकल्प सक्ति को शक्तिशाली बनाने हेतु अध्ययन से श्रेष्ठ और कोई साधन नहीं है।"

अधिगम के अंतरण के पीछे अनुशासन कार्य करता है। अनुशासन का अर्थ मानसिक शक्तियों का उचित उपयोग है, जो किसी विशेष विधि से कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु होना चाहिए। मनोविज्ञान के जन्म से ही अधिगम उसका केन्द्र बिन्दु रहा है। अधिगम का अंतरण शिक्षण के कार्य को सरल बना देता है।

शिक्षक अधिगम के अंतरण के द्वारा ही बालक के भविष्य का निर्माण करता है।

अधिकतम अधिगम अंतरण के लिए शिक्षा व्यवस्था

अधिगम का अंतरण अधिकतम हो, इसके लिए शिक्षा व्यवस्था निम्न तरह से की जा सकती है :-

(1) बालक को ज्यादा से ज्यादा सामान्यीकरण करने को कहा जाये। अगर बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर सामान्य सिद्धांत निकाल लेता है, तो अपने अधिगम का अंतरण कर लेता है।

(2) अधिकतम अधिगम अंतरण हेतु बालक को अर्थपूर्ण तथ्य अधिक से अधिक सीखने चाहिए। स्थानांतरण समझने की योग्यता पर निर्भर करता है। थॉर्नडाइक का कथन है-"समझने में समान वंश का ज्ञान होता है । समानता अंतरण का मुख्य लक्षण है ।"

(3) बालक में उस ज्ञान को प्राप्त करने के प्रति मनोवृत्ति होनी चाहिए, जिसका अंतरण होना है। किसी विषय-वस्तु के प्रति स्थानांतरण हेतु उस विषय के प्रति अनुकूल मनोवृत्ति होनी आवश्यक है।

(4) शिक्षक को विषयों में समन्वय करके पढ़ाना चाहिए। इस तरह एक विषय के ज्ञान का अंतरण दूसरे विषय में हो जायेगा।

(5) अधिगम के अंतरण हेतु बालक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ।

(6) नवीन परिस्थितियों को पूर्व अनुभवों के संदर्भ में सीखा हुआ ज्ञान प्रयोग करने से संस्कारों का स्थानांतरण संभव होता है।

(7) अधिकतम अंतरण के लिए ज्यादा याद करना अधिगम के स्थानांतरण में मददगार होता है।

(8) स्थानांतरण होने वाले विषय के प्रति बालक में आत्म-विश्वास की मनोवृत्ति होनी चाहिए।

(9) क्रियात्मक अनुभव भी अधिगम के अंतरण को संभव बनाता है।

(10) उपर्युक्त शिक्षण पद्धति अधिकतम अधिगम के अंतरण में मदद करती है।

अधिगम से क्या अभिप्राय है?

सीखना या अधिगम (जर्मन: Gernen, अंग्रेज़ी: learning) एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है।

अधिगम में अभिप्रेरणा का क्या महत्व है?

अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया का एक सशक्त माध्यम हैअधिगम प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति जीवन के सामाजिक, प्राकृतिक एवं वैयक्तिक क्षेत्र में अभिप्रेरणा द्वारा ही सफलता की सीढ़ी तक पहुँच पाता है। यदि उसके लिये उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण नहीं हो पाता तो अभिप्रेरणा का उत्पन्न होना सन्देहप्रद रह जाता है

अधिगम के दो प्रकार कौन कौन से हैं?

अधिगम के प्रकार.
संज्ञान मूलक अधिगम मानसिक प्रत्यक्षात्मक और विचारात्मक अधिगम के नाम से जाने जाने वाले इस आधगम में व्यक्ति को केवल प्रत्यय का ज्ञान होता है। अर्थात् इसमें सिर्फ तथ्यों की जानकारी होती है। ... .
गत्यात्मक अधिगम इस अधिगम को क्रिया/कार्य द्वारा अधिगम करना भी कहा जाता है।.

अधिगम क्या है अधिगम के प्रकार का वर्णन कीजिए?

अधिगम की परिभाषा क्रो व क्रो के अनुसार: सीखना आदतों ज्ञान व अभिवृत्तिओं का अर्जन है। उदय पारीक के अनुसार: अधिगम व प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राणी किसी परिस्थिति में प्रक्रिया के कारण नए प्रकार के व्यवहार को ग्रहण करता है जो किसी सीमा तक प्राणी के व्यवहार में रूकावट एवं प्रभावित करता है।