हमारा नव वर्ष कौन सा है उसे हम कैसे मनाना चाहिए? - hamaara nav varsh kaun sa hai use ham kaise manaana chaahie?

नव वर्ष पूरे विश्व में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। विश्व में अलग-अगल स्थानों पर नव वर्ष की तिथि भी अलग-अगल होती है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भी भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।

भारत में भी नव वर्ष के तिथियों में भिन्नता है, अलग-अगल राज्यों में या ऐसा कहा जाये कि अलग-अलग समुदाय में नव वर्ष के तिथियों में भिन्नता है। उत्तर भारत के हिन्दू समुदाय में नव वर्ष चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष का उत्सव मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 22 मार्च 2023 के दिन है। हिन्दू धर्म में इस दिन को वर्ष का सबसे शुभ दिन माना जाता है। हिन्दू नव वर्ष एक उत्सव का दिन होता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :

हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा मनाते है इसके पिछले कई ऐतिहासिक महत्व है। यह त्योहार पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं।

हिन्दू नव वर्ष मनाने के कई ऐतिहासिक महत्व है जिनकों हम निम्नलिखित कारणों से जान सकते है, जो इस प्रकार हैं-

  • इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
  • सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
  • प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
  • शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
  • राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।
  • युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।

भारतीय नव वर्ष

भारत में अलग-अलग राज्यों में नव वर्ष की तिथियां भिन्न होती है और अलग अगल नाम से नव वर्ष का उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र में नव वर्ष को गुड़ी पांडव के रूप में जाना जाता है जो मार्च व अप्रैल में आता है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। गोवा में इस दिन को हिंदू समुदाय कोंकणी के नाम से मनाते है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्य में इस दिन को उगादी के नाम से मनाते है। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों इस दिन को नवरेह (19 मार्च) के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस अवसर को नबा बरसा के रूप में, असम में बिहू के रूप में, केरल में विशु के रूप में, तमिलनाडु में पुतुहांडु के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी में नव वर्ष दिवाली के दिन मनाते है। गुजरात में दिवाली के दूसरे दिन नव वर्ष होता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।

आज से 2074 वर्ष पूर्व भारत में एक बहुत ही पवित्र राजा हुए थे जिनका नाम महाराजा विक्रम था, महाराजा विक्रम के नाम पर ही भारतीय वर्ष का नाम विक्रम वर्ष रखा गया था। यह वर्ष विक्रम वर्ष 2074 है। महाराजा विक्रम से पूर्व वर्ष भगवान कृष्ण के नाम पर था; इस प्रकार से यह 5,118 वाँ वर्ष है।

भारत के नव वर्ष की प्रणाली

नव वर्ष की प्रणाली ब्रह्माण्ड पर आधारित होती है, यह तब शुरु होता है जब सूर्य या चंद्रमा मेष के पहले बिंदु में प्रवेश करते हैं। आज, चंद्रमा मेष राशि में प्रवेश कर चुका है और दिन बाद अर्थात 13 अप्रैल को सूरज मेष राशि के पहले बिंदु में प्रवेश करेगा, जिस दिन हम बैसाखी मनाते हैं, यह भी एक नए साल का दिन है।

इस प्रकार में भारत के आधे भाग में नव वर्ष चंद्रमा के आधार पर मनाया जाता है और आधे भाग में सूर्य के आधार परमनाया जाता है, इनमें कोई समानता नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनेअनुसार नव वर्ष मनाने के लिए स्वतंत्र है।पंजाब (ਵਿਸਾਖੀ - Vaisakhi), बंगाल ( পয়লা বৈশাখ - Poila/Pohela Baishakh) , उड़ीसा (Pana Sankranti), तमिलनाडु (புத்தாண்டு, Puthandu), असम (বিহু - Bihu) और केरल राज्यों में नव वर्ष सौर कैलेण्डर के अनुसार मनाया जाता है इस दिन बैसाखी होती है। कर्नाटक (ಯುಗಾದಿ - Yugadi), महाराष्ट्र (गुढीपाडवा - Gudi Padwa), आंध्र प्रदेश (ఉగాది -Ugadi) और कई अन्य भारतीय राज्यों में आज के दिन उत्सव मनाते हैं, अर्थात् चंद्र कैलेंडर के अनुसार। दी आर्ट ऑफ़ लिविंग में, हम हर दिन उत्सव मनाते हैं।

 

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प्राचीन काल में एक समय था जब पूरी दुनिया में हर व्यक्ति एक ही कैलेंडर मानता था; चंद्र कैलेंडर, आज भी, तुर्की और ईरान में, लोग चंद्र कैलेंडर ही मानते हैं; इसके अनुसार मार्च से नए वर्ष की शुरुआत होती है परंतु लंदन के राजा किंग जॉर्ज, जनवरी से नव वर्ष शुरू करना चाहते थे क्योंकि वह उस माह में पैदा हुए थे। यह उनका नव वर्ष था, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उसने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पर यह नव वर्ष लागू कर दिया ! यह घटना आठवीं या नौवीं शताब्दी में किसी समय हुई थी, लेकिन लोगों ने अप्रैल में नए साल का जश्न मनाना बंद नहीं किया तो किंग जॉर्ज ने इसे अप्रैल फुल डे कहा। उन्होंने कहा कि अप्रैल में नव वर्ष मनाने वाले लोग मूर्ख होते हैं, और इसी तरह अप्रैल 1 को फूल्स डे के रूप में जाना जाने लगा।

नीम के पत्ते और गुड़ का महत्व 

नए वर्ष के दिन, परंपरा के अनुसार थोड़ी नीम के पत्ते, जो बहुत कड़वे होते हैं और गुड़, जो मीठा है, को मिलाकर खाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जीवन कड़वा और मीठा दोनों प्रकार का है और आपको दोनों को ही स्वीकार करना होगा।

समय आपको कड़वे और मीठे दोनों प्रकार के अनुभव देता है। यह मत सोचो कि केवल दोस्त ही आपके जीवन में मिठास लाते हैं, दोस्त कड़वाहट भी ला सकते हैं। और यह भी मत सोचो कि दुश्मन हमेशा कड़वाहट लाते हैं, दुश्मन भी कुछ मिठास ला सकते हैं इसलिए, जीवन सभी विपरीत तथ्यों का मिश्रण है; जैसे यह यहां है, ठंड है और फिर भी अभी तक थोड़ी गर्मी है, है ना ? यहाँ चारों ओर बर्फ है, फिर भी यह सुखद है नव वर्ष ऐसे ही शुरू होता है।

क्या आप जानते हैं कि सभी महीनों और दिनों के नाम संस्कृत में हैं?

सप्ताह के दिनों को सात ग्रहों के नाम पर रखा गया था। जैसे कि आप कहते हैं

  • रविवार, तो यह सूर्य का दिन है सोमवार चंद्रमा का दिन है।
  • मंगलवार मंगल है,
  • बुधवार बुध है,
  • गुरूवार बृहस्पति होता है,
  • शुक्रवार शुक्र है और
  • शनिवार को शनि का दिन है।

ये सात ग्रह हैं जिनके नाम पर सप्ताह के दिनों के नाम दिए गए थे। दरअसल, यह सब संस्कृत में है। प्राचीन कैलेंडर, प्राचीन भारत में संस्कृत में बनाया गया था; वहां से यह कैलेण्डर मिस्र (Egypt) को गया।

बारह महीनों के नाम बारह राशि चिन्हों के नाम पर रखे गए थे, अर्थात् प्रत्येक नक्षत्र में सूर्य की स्थिति (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या; आदि इसी प्रकार से, महीनों के नामों की व्यवस्था की गई थी)। इस प्रकार, महीनों के नाम संस्कृत के शब्दों के अनुरूप हैं।

दशअंबर दिसंबर है; दश का अर्थ संस्कृत में दस होता है, अंबर का अर्थ है आकाश, दशंबर का तात्पर्य दसवें आकाश से है। नवअंबर नवंबर है, जिसका तात्पर्य है नौंवा आसमान। अक्तूबर अष्टमबर है, तात्पर्य आठवें आसमान से है। सितंबर का तात्पर्य सातवें आसमान से है। देखिए, यदि सिर्फ एक ही शब्द ऐसा हो तो इसे संयोग माना जा सकता है परंतु यदि सभी नाम इसी प्रकार से मिलते हैं तो यह संयोगवश नहीं हो सकता।

शष्ठ का अर्थ होता है छठवाँ, अर्थात्, अगस्त यह आठवाँ महीना नहीं है, अगस्त छठा महीना है (यदि आप मार्च से शुरू करते हैं)। यदि आप फरवरी में आते हैं, तो हम अक्सर कहते हैं कि साल का अंत खत्म होता है! फरवरी माह का आखिरी महीना है, बारहवाँ महीना। मार्च नए साल का पहला महीना है।

चंद्र नववर्ष और चंद्र कैलेंडर क्या है ?

आमतौर पर, चंद्र नववर्ष 20 मार्च को आता है, ऐसा तब होता है जब नया वर्ष शुरू होता है। हालाँकि यह सब एक ब्रिटिश राजा द्वारा विकृत कर दिया गया था, जिसने अमेरिका और कनाडा सहित लगभग आधा दुनिया पर कब्जा कर लिया और प्रभावित किया था। इसलिए, किंग जॉर्ज ने अपने जन्मदिन के अनुसार नया साल बदल दिया। यह हकीकत है। दुर्भाग्य से, भारत में, बहुत से लोग महीनों के पारंपरिक नाम व अर्थ भूल गए हैं। चंद्र कैलेंडर के अनुसार महीनों के नाम हैं: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। चंद्र कैलेंडर में हर महीने का नाम ब्रह्मांड में हमारी आकाश गंगा के 27 सितारों से मेल खाता है। दो और एक चौथाई सितारे से मिलकर एक नक्षत्र बनता है। इस संख्या को 12 से गुणा करने पर यह 27 सितारों के बराबर आती है।

जब पूर्णिमा का चांद स्पष्ट रूप से सितारों में से किसी एक सितारे के पास आ जाता है, तो उस महीने को उस तारे के नाम से जाना जाता है उदाहरण के लिए, चित्रा के नाम से एक तारा है। जब पूर्णिमा का चांद चित्रा के पास आता है, तो यह चंद्र कैलेंडर का पहला महीना है, अर्थात चैत्र अगला महीना वैशाख का होगा। आश्चर्यजनक है, कि चंद्रमा किस सितारे के नीचे आ रहा है यह देखने के लिए कितनी सटीक गणना की जाती थी, और महीनों की गणना भी कैसे की जाती है।

चंद्र कैलेंडर में, एक महीने में केवल 27 दिन होते हैं। इसलिए, हर 4 सालों में, एक लौंद का महीना होता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना। जैसे लौंद वर्ष में, आपको फरवरी में 29 दिन मिलते हैं; चंद्र कैलेंडर में, आपको लौंद का एक महीना मिलता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना।

सौर कैलेंडर में, अंग्रेज़ी कैलेंडर की तरह ही केवल एक दिन अतिरिक्त मिलता है। कभी-कभी, बैसाखी 13 अप्रैल को आती है, और कभी 14 अप्रैल को है। चार वर्षों में एक बार एक दिन का अंतर आता है।

हमारा नव वर्ष कौन सा है उसे हमें कैसे मनाना चाहिए?

हिन्दू धर्म में नववर्ष का आरंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी इसलिए इस दिन से नए साल का आरंभ भी होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को नया साल हिजरी शुरू होता है।

हिन्दू नव वर्ष कैसे मनाये?

सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ सफाई करने के बाद घर को तोरण, मांडना या रंगोली आदि से सजाया जाता है। इस दिन नव संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापना, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। प्रत्येक राज्य में इस पर्व को वहां की स्थानीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाते हैं।

हमारा नव वर्ष कौन सा है?

हिंदू नव वर्ष 2 अप्रैल 2022 से प्रारंभ हो रहे हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का भी शुभारंभ हो रहा है। गुड़ी पड़वा भी इसी दिन मनाया जाता है। हिंदू नव वर्ष को विक्रम नवसंवत्सर 2079 भी कहते हैं।

हिंदू नव वर्ष का क्या महत्व है?

मान्यता है कि नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी मानते हैं। 2 अप्रैल को शनिवार का दिन है इसलिए इस वर्ष के देवता शनि महाराज हैं। इसके साथ ही नवसंवत्सर का निवास कुम्हार का घर व समय का वाहन अश्व होगा। भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है।