अंतरिक्ष Show अंतरिक्ष एक वायु रहित खाली विस्तृत क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं सभी दिशाओं में अनन्त तक फैली हुई है। सौर मंडल, असंख्या तारे, तारकीय धूल और मंदाकिनियां सभी अंतरिक्ष के अवयव हैं। इसमें किसी प्रकार की हवा नहीं है, और न ही बादल है। दिन हो या रात, अंतरिक्ष सदा काला ही रहता है। अंतरिक्ष में कोई प्राणी नहीं रहता। निर्वात होने के कारण वहां कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है। अंतरिक्ष कहां से शुरू होता है, इस तथ्य की कोई जानकारी नहीं है। अंतरिक्ष हमें चारों ओर से घेरे हुए है। समझाने के लिए हम इतना ही कह सकते हैं कि अंतरिक्ष वहां से शुरू होता है जहां पृथ्वी का वायुमंडल समाप्त होता है। आज का मानव शक्तिशाली रेडियो दूरबीनों, रॉकेटो, उपग्रहों, अंतरिक्ष यानों और प्रोबों द्वारा अंतरिक्ष पिंडों के विषय में जानकारी प्राप्त करने में लगा हुआ है। नए अविष्कारों में अंतरिक्ष संबंधी नए तथ्य हमारे सामने आए हैं। ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की वैज्ञानिक परिकल्पनाएं
तारे शाम होते ही, अंधेरा घिरने लगता है और धीरे धीरे आसमान पर तारे दिखने लगते हैं। तारे चमकीले बिंदुओं की तरह नजर आते हैं, क्योंकि ये बहुत दूर है। सूर्य भी एक तारा है लेकिन यह दूसरे तारों जैसा नहीं लगता क्योंकि यह दूसरे तारों की तुलना में हमारे बहुत निकट है। यदि हम तारों के कुछ नजदीक पहुंच जाएं तो वे भी सूर्य की भांति दिखाई देंगे। तारे चमकती हुए गैस के विशाल पिंड है। इनमें से कुछ सूर्य से बहुत बड़े और चमकीले हैं, तथा दूसरे कुछ छोटे और धुंधले हैं। रीगल, नीले सफेद दानव का व्यास नीले सफेद दानव का व्यास सूर्य से 80 गुना अधिक है, इसकी चमक सूर्य की अपेक्षा 60,000 गुना अधिक है।
तारे सफेद दिखाई देते हैं, लेकिन सभी तारे सफेद नहीं होते, कुछ नारंगी, लाल या नीले रंग के भी होते हैं। अत्यधिक तप्त तारों का रंग नीला होता है और ठंडे तारों का लाल। सूर्य पीला तारा है। नीले तारों का तापमान 27,750°C तथा सूर्य का 6000°C से होता है। इसलिए कोई भी अंतरिक्ष यात्री कभी भी किसी भी तारे पर नहीं उतर सकता। अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक पहुंचने में तीन दिन का समय लगता है। सूर्य तक जाने में कई महीने चाहिए। अंतरिक्ष यान को सबसे नजदीकी तारे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लग सकते है। इतनी लंबी दूरी को कि.मी. में मापना एक कठिन समस्या है। इसलिए वैज्ञानिक तारों की दूरी मापने के लिए प्रकाश वर्ष और पारसेक इकाइयों का इस्तेमाल करते हैं। प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश तीन लाख कि.मी. प्रति सेकण्ड की रफ्तार से चलकर एक वर्ष में तय करता है- यानी 30.857×1012 किमी.। चन्द्रमा से आने वाले प्रकाश को हम तक पहुंचने में 1.3 सेंकड का समय लगता है। सूर्य से चलने वाला प्रकाश हम तक 8 मिनट 18 सेंकड में पहुंचता है। लेकिन सूर्य के बाद सबसे नजदीकी तारे प्रोक्सिमा सेंटोरी से आने वाले प्रकाश को हम तक पहुंचने में 4.2 प्रकाश वर्षों का समय चाहिए। हमारी मंदाकिनी में सबसे दूर के तारे की दूरी लगभग 63000 प्रकाश वर्ष (19.325Pc) है। सभी तारों का जन्म गैस और धूल के बादलों में हुआ है। सभी तारों में संगलन क्रियाओं से प्रकाश और गर्मी पैदा होती है। पल्सर, ब्लैक होल तथा क्वासर पल्सर पल्सर, घूर्णन करते हुए ऐसे तारे हैं, जिनसे नियमबद्ध रूप से विकिरण स्पंद आते रहते हैं। पल्सर शब्द पल्सेटिंग रेडियो स्टार के लिए प्रयुक्त होता है। जब किसी बड़े तारे में विस्फोट होता है तो उसका बाहरी भाग छिटककर नेबुला का रूप धारण कर लेता है और क्रोड घटकर छोटा सघन तारा बन जाता है जिसे न्यूट्रान तारा कहते है। इनमें न्यूट्रॉन बहुत ही पास पास होते हैं तथा इनका घनत्व भी बहुत अधिक होता है। ये बहुत छोटे और धुंधले होते है। एक न्यूट्रॉन तारे का औसत व्यास 10 किमी. होता है। न्यूट्रॉन तारे ही पल्सर कहलाते हैं। रेडियों दूरबीन पर पल्सर से आता किरणपुंज टिक जैसी आवाज पैदा करता है। तेजी से घूमते हुए ये न्यूट्रॉन तारे अंतरिक्ष में लाइट हाउसों की तरह है। साधारण पल्सरों की फ्लेश के बीच का अंतराल 1 या 1/2 सेकण्ड होता है। अति तीव्रता से स्पंदन करने वाला पल्सर एनपी 0532 है, जो क्रेब नेबुला में स्थित है। यह 1 सेकंड में 30 बार स्पंदन करता है। सबसे पुराना और मंद गति से घूर्णन करने वाला पल्सर एनपी 0527 है। जिनके स्पंदनों के बीच का अंतराल 3.7 सेकंड है। सभी पल्सर 0.03 सेकंड में 4 सेकंड की अवधिा में एक स्पंद पैदा करते हैं। सामान्यतः पल्सरों को प्रकाशीय दूरबीन से नहीं देखा जा सकता। इन्हें खोजने के लिए रेडियो दूरबीनों की आवश्यकता होती है। केवल दो पल्सर ऐसे हैं जिन्हें प्रकाशीय दूरबीनों से देखा जा सकता है। पहला एनपी 0532 क्रेब नेबुला में है और दूसरा पीएसआर 0833-45 गम नेबुला में है। अब तक वैज्ञानिक 100 से अधिक पल्सरों का पता लगा चुके हैं। ब्लैक होल सूर्य से भी तीन गुने विशाल तारों के समाप्त होने पर अंतरिक्ष के कुछ काले क्षेत्र बच जाते हैं जिन्हें ब्लैक होल कहते है। इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि कोई भी वस्तु जो ब्लैक होल में चली जाती है, बाहर नहीं आ सकती। यहां तक कि प्रकाश भी गुरूत्वाकर्षण के कारण बाहर नहीं आ पाता। सन् 1972 में सबसे पले ब्लैक होल की पहचान की गई थी। यह सिग्नल एक्स-1 के दुहरे तारे में था। यह दुहरा तारा एक्स किरणों का स्रोत है। यह उसका एक छोटा साथी है जो बिल्कुल काला है। यह न्यूट्रॉन तारा नहीं है, इसलिए इनको ब्लैक होल कहते हैं। सामान्यतः ब्लैक होल से एक्स किरणे और अवरक्त विकिरण निकलते हैं। इन्हीं विकिरणों के आधार पर अंतरिक्ष में ब्लैक होलों का पता लगाया जाता है। ब्लैक होलों का द्रव्यमान 10 करोड़ सूर्यो के बराबर तक हो सकता है। क्वासर क्वासर शब्द क्वासी स्टैलर रेडियो सोर्सेज का संक्षिप्त रूप है। क्वासर एक तारे की तरह दिखाई देते हैं। प्रकाशीय दूरबीन से ये साधारण धुंधले तारों जैसे लगते हैं, लेकिन रेडियों दूरबीन परीक्षणों से पता चला है कि ये रेडियों तरंगों के स्रोत हैं। मार्टेन श्मिट ने सन् 1962 में 3C-273 क्वासर का पता लगाया। इसमें अवरक्त विस्थापन Z का मान 0.158 था। यह तरंग गति का एक प्रभाव है, जो गतिशील वस्तुओं के साथ देखने को मिलता है। इसके पास आने वाले प्रकाश के स्रोत के स्पेक्ट्रम का विस्थापन बैंगनी रंग की तरफ और दूर जाने वाले प्रकाश स्रोत के स्पेक्ट्रम का विस्थापन लाल रंग की ओर होता है। अवरक्त विस्थापन, प्रकाश स्रोत के दूर जाने को दर्शाता है। क्वासर से हमें प्रकाश के साथ रेडियों तरंगे और एक्स किरणे भी मिलती हैं। एक क्वासर का आकार हमारी मंदाकिनी का 1/100,000वां हिस्सा होता है, लेकिन इसकी चमक 100-200 गुना अधिक होती है। अभी तक 1500 क्वासरों की खोज की जा चुकी है। रात को आकाश में प्रकाश की एक दूधिया नदी-सी दिखाई देती है जिसे मिल्की वे या आकाशगंगा कहते हैं। इटली के खगोलवेत्ता गैलीलियों ने सबसे पहले अपनी दूरबीन द्वारा इसको देखकर बताया था कि यह वास्तव में करोड़ों टिमटिमाते तारों का विशाल पुंज है। यह एक मंदाकिनी है। हमारा सौर परिवार इसी का एक सदस्य है। न जाने इसमें और कितने सौर मंडल हैं। सभी मंदाकिनी तारों के विशाल पुंज है। ये पुंज इतने विशाल हैं कि कुछ लोग हन्हें ब्रह्मांड के प्राद्वीप कहते हैं। समस्त ब्रह्मांड में मंदाकिनी फैली होती है। शक्तिशाली दूरबीनों से 100 करोड़ मंदाकिनी देखी जा सकती हैं, जिनकी दूरी 1000 प्रकाश वर्ष से एक करोड़ प्रकाश वर्ष तक है। अधिकांश मंदाकिनियां आकाश में बिखरी हुई दिखाई देती हैं। मंदाकिनी करोड़ों तारों, धूल और गैसों के समूह हैं। ऐसा अनुमान है कि जब पहली बार बह्मांड में विस्फोट हुआ तो पदार्थों के फैलने से गैस के विशाल समूह या प्रोटो गैलेक्सी अपनी ही गति विशेष से घूमने लगे। मंद और तेज गति से घूमने के कारण विभिन्न आकारों और रूपों में मंदाकिनी का निर्माण हुआ। अब तक की ज्ञात मंदाकिनियों के प्रमुख तीन रूप हैं- सर्पिल, दीर्घवृत्तीय और अनियमित। हमारी मंदाकिनी सर्पिल मंदाकिनी है। इसकी सर्पिल भुजाएं दूर-दूर तक फैली है, और इन्हीं भुजाओं में से एक में हमारा सौर मंडल स्थित है। मंदाकिनी व्यास में लगभग 100,000 प्रकाश वर्ष (30,600 PC) है। इसका केन्द्र तारकीय धूल कणों से ढका हुआ है। सूर्य से लगभग 32,000 प्रकाश वर्ष (9800PC) दूर हमारी मंदाकिनी का केन्द्र है। ऐसा अनुमान है कि यह 1200 करोड़ 1400 करोड़ वर्ष पुरानी है और इसमें लगभग 1500 हजार करोड़ तारे है। मंदाकिनी अपने अक्ष (axis) पर घूम रही है। किनारों की अपेक्षा यह अपने केन्द्र पर अधिक तेजी से घूमती है। मध्य क्षेत्र अपने अक्ष पर एक चक्कर लगभग 50,000 वर्षों में पूरा करता है। सूर्य और उसके पड़ोसी तारे एक गोलाकार कक्षा में 250 किमी. प्रति सेकंड की औसत गति से मंदाकिनी के केन्द्र के चारों और परिक्रमा करते हैं। एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को लगभग 22.5 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्मांड वर्ष कहलाती है। आकाश गंगा के अतिरिक्त ब्रह्मांड में हजारों लाखों मंदाकिनियां हैं। इन मंदाकिनियों का विस्तार हो रहा है। एक समय ऐसा भी आएगा जब ये फैलने के बजाए सिकुड़ने लगेंगी। यदि हम आकाश गंगा को गौर से देखें तो हमें चमकीले भाग में काले धब्बे भी दिखाई देते हैं। ये वे क्षेत्र हैं जिनमें तारे कम है। सूर्य सूर्य, आकाशगंगा का एक तारा है जो हमें अन्य तारों से बहुत बड़ा दिखाई देता है, क्योंकि यह पृथ्वी से अधिक निकट है। कुछ तारों की तुलना में यह बहुत छोटा है। बीटेल जूज तारा सूर्य से 800 गुना बड़ा है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है। इसका व्यास लगभग 1,400,000 किमी. है, यानी पृथ्वी के व्यास का 109 गुना। इसका गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की तुलना में 28 गुना अधिक है। आकाशगंगा के केन्द्र से सूर्य की दूरी आधुनिक अनुमान के आधार पर 32,000 प्रकाश वर्ष है। 250 किमी. प्रति सेकंड की औसत गति से केंद्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को 22.5 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्मांड वर्ष कहलाती है। सूर्य पृथ्वी की तरह अपने अक्ष पर भी घूमता है। सूर्य गैसों का बना है इसलिए विभिन्न अक्षांशों पर विभिन्न गति से घूम सकता है। ध्रुवों पर उसके घूमने की अवधि लगभग 24-26 दिन है और भूमध्य रेखा पर 34-37 दिन है। यह पृथ्वी से 300,000 गुना अधिक भारी है। सूर्य चमकती हुई गैसों का एक महापिंड है। इसको एक विशाल हाइड्रोजन बम कह सकते हैं, क्योंकि इसमें नाभिकीय संलयन द्वारा अत्यधिक ऊष्मा और प्रकाश पैदा होते हैं। इससे आने वाले प्रकाश और गर्मी से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। इसके प्रकाश को धरती तक पहुंचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगता है। सूर्य की दिखाई देने वाली बाहरी सतह को फोटोस्फियर कहते हैं, जिसका तापमान लगभग 6000°C सेल्सियस है, लेकिन केन्द्र का तापमान 15,000,000°C सेल्सियस है। सूर्य की सतह या फोटोस्फियर से चमकती हुई लपटें उठती रहती हैं, जिन्हें सौर ज्वालाएं कहते हैं। ये लगभग 1000,000 किमी. ऊँचाई तक पहुंचती हैं।
सूर्य की संरचना
सूर्य की सतह पर काले धब्बे भी दिखाई देते हैं। ये सूर्य की सतह के तापमान (6000°C सेल्सियस) से अपेक्षाकृत लगभग 1500°C सेल्सियस ठंडे होते हैं। इन धब्बों का जीवन काल कुछ घंटों से लेकर कई सप्ताह तक होता है। एक बड़े धब्बे का तापमान 4000-5000° सेल्सियस तक हो सकता है। धब्बे तो हमारी पृथ्वी से भी कई गुना बड़े होते हैं। सूर्य के धब्बे जब अधिक समय तक रहते हैं तो सौर-विस्फोट और सौर ज्वालाएं अधिक उठने लगती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि आयनमंडल में उथल-पुथल हो जाती है और पृथ्वी पर रेडियो संचारों में बाधाएं पड़ती हैं। सौर मंडल आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 30,000 से लेकर 33,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक कोने में हमारा सौर मंडल स्थित है। सौर मंडल का केन्द्र सूर्य में स्थित है। सूर्य आकाश गंगा की परिक्रमा करता है। यह 2250 लाख वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सूर्य अन्य तारों की तरह ही एक तारा है, अंतर केवल इतना है कि दूसरे तारों की तुलना मे यह हमारे अधिक निकट है। सूर्य का अपना परिवार है। सूर्य और इसके परिवार को सौर मंडल कहते हैं। सूर्य के परिवार में सूर्य नौ ग्रह, उनके उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएं तथा क्षुद्रग्रह या एस्टिरॉयड आते हैं। ग्रह ऐसे खगोल पिंड है जो हमारी पृथ्वी की भांति ही सूर्य के इर्दगिर्द चक्कर लगाते हैं, अर्थात् उसकी परिक्रमा करते हैं। सूर्य का प्रकाश ग्रहों पर पड़ता है, जिसके कारण वे चमकदार दिखते हैं। सौर परिवार का 99 प्रतिशत द्रव्यमान सूर्य के कारण ही है। सौर मंडल के सभी सदस्य सूर्य की परिक्रमा करते हैं। नौ ग्रह इस प्रकार हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून तथा प्लूटो। बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, तथा शनि को पृथ्वी से बिना दूरबीन के देखा जा सकता है। खगोलशास्त्री हजारों वर्ष पूर्व भी इनको जानते थे। अन्य तीन ग्रह यूरेनस, नेप्च्यून तथा प्लूटों की खोज दूरबीन के आविष्कार के बाद हुई। यूरेनस की खोज सन् 1781 में हुई, नेप्च्यून की सन् 1846 में और प्लूटों की सन् 1930 में।
पिछले कुछ वर्षों में खगोलशास्त्रियों ने अनेक परीक्षणों से दसवें ग्रह के अस्तित्व का अनुमान लगाया है। लेकिन अभी तक इसकी खोज नहीं हो पाई है। निकट भविष्य में खगोलविद् इसका पता लगा लेंगे। बुध सूर्य के सबसे पास का एक छोटा सा ग्रह है। यह इतना छोटा है कि कुछ ग्रहों के उपग्रह भी इससे बड़े हैं। बुध आकाश में बहुत नीचे है, इसलिए इसको देख पाना आसान नहीं है। इस ग्रह को सूर्यास्त के तुरंत बाद या सूर्योदय से पहले देखा जा सकता है। बुध अपनी धुरी पर 58.7 दिन में एक चक्कर लगाता है। सूर्य के चारों और चक्कर लगाने में इसे 88 दिन लगते हैं। यह सबसे तीव्र वेग से घूमने वाला ग्रह है।
यह एक ऐसा ग्रह है, जिसकी सूर्य से दूरी हमेशा समान नहीं रहती, क्योंकि इसका लंबा, पतला परिक्रमा पथ नीबू के आकार जैसा है। बुध बहुत धीरे घूमता है। वहां का एक दिन हमारी पृथ्वी के 59 दिनों के बराबर होता है। इस ग्रह का एक हिस्सा सूर्य के निकट काफी लंबे समय तक रहता है, इसलिए सूर्य की भीषण गर्मी के कारण वहां दिन का तापमान 350° सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है। इस तापमान पर टिन और लैड पिघल जाते हैं। ग्रह का दूसरा हिस्सा जिस पर रात होती है, अपेक्षाकृत बहुत ठंडा होता है। वहां का तापमान -170° सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सन् 1974 में स्पेस प्रोब मैरिनर 10 से प्राप्त चित्रों से पता चला कि यह ग्रह चंद्रमा जैसा है, जिस पर चट्टानें और खड्डें हैं। वहा जल का नामो-निशान नहीं है। बुध का कोई उपग्रह नहीं है और न वहां कोई वायुमंडलीय गैस है।
शुक्र संध्या के समय आपने आकाश में एक बहुत चमकीला तारा देखा होगा। यह तारा सुबह भी नजर आता है। इसे भोर का तारा कहते हैं। लेकिन यह तारा नहीं, बल्कि पृथ्वी का निकटतम ग्रह शुक्र है। दूरबीन से देखने पर शुक्र हमारे चंद्रमा की तरह लगता है। यह सबसे चमकीला ग्रह है।
स्पेस प्रोब्स द्वारा शुक्र के संबंध में अनेक नए तथ्य सामने आए हैं। शुक्र सबसे अधिक गर्म ग्रह है। भूमध्य रेखा पर इसका तापमान 480° सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस तापमान पर लैड, टिन और जिंक, सभी पिघल जाते हैं। हमारी पृथ्वी पर बादल अधिक-से-अधिक 15 किमी. ऊपर जाते हैं, लेकिन शुक्र के बादल 55 किमी. ऊचाई तक पहुंचते हैं। ऊपरी सतह पर शुक्र के बादलों का तापमान 35° सेल्सियस तक घट जाता है। यह लाल तपता हुआ ग्रह, बर्फ के बादलों से लिपटा हुआ है। शुक्र के वायुमंडल में 90-95 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड है। कुछ हाइड्रोजन और जल वाष्प भी है। इसका दाब पृथ्वी के वायुमंडल के दाब से 100 गुना अधिक है। अंतरिक्ष यात्री शुक्र की हवा में सांस लेकर जीवित नहीं रह सकता और न ही वहां की गर्मी को सहन कर सकता है। रेडियों तरंगों द्वारा ज्ञात हुआ है कि शुक्र पर पर्वत और घाटियां भी हैं। इसका कोई उपग्रह नहीं है। इस ग्रह पर सूर्य पश्चिम में उगता है तथा पूर्व में डूबता है।
पृथ्वी पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, सूर्य के परिवार का तीसरा ग्रह है। सौर मंडल का यही एक मात्र ग्रह है जिस पर जीवन का अस्तित्व है। अन्य ग्रहों की भांति यह भी सूर्य का चक्कर लगा रही है। पृथ्वी अपनी धुरी पर भी धूम रही है। इस धुरी का एक सिरा उत्तरी ध्रुव कहलाता है और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। पृथ्वी के आधे हिस्से पर जहां सूर्य का प्रकाश पड़ता है, वहां गर्मियों का मौसम रहता है और दूसरे हिस्से में इन दिनों सर्दी होती है। इस प्रकार पृथ्वी पर मौसम बदलते रहते हैं। पृथ्वी (नीला ग्रह)
सन् 1961 में सेवियत अंतरिक्ष यात्री, यूरी गगारिन ने अंतरिक्ष यान, वोस्तोव पर सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा की और अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखा। अंतरिक्ष या चंद्रमा से पृथ्वी को देखने पर हरा-भरा थल और महासागरों का नीला जल दिखता है, वैसे ही जैसे ग्लोब पर दिखाया जाता है। पृथ्वी के बहुत से भाग सफेद बादलों के नीचे छिपे होने के कारण अंतरिक्ष से दिखाई नहीं देते। पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है, जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है। वास्तव में सभी उपग्रह अपने अपने ग्रह की परिक्रमा करते हैं।
चन्द्रमा चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। खगोलशास्त्रियों, के अनुसार पृथ्वी और चन्द्रमा, दोनों का निर्माण अलग-अलग हुआ, लेकिन एक ही समय में हुआ, जो बाद में ठंडे होकर ग्रह और उपग्रह बने। चंद्रमा से अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लगाए गए चट्टानों और मिट्टी के नमूनों से ज्ञात हुआ कि चंद्रमा भी उतना ही पुराना है जितनी पृथ्वी और यह लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व बना था। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी 384,400 किमी. है। इसकी सतह का क्षेत्रफल 37940,000 वर्ग किमी. है। चंद्रमा की सतह पर छोटे-बड़े असंख्य गड्ढे हैं। ये गडढे उल्कापिंडों के गिरने के कारण बने हैं। चंद्रमा के पहाड़ ऊँचे हैं, लेकिन उनकी चढ़ाइयां ढलवां है। वहां चोटियां नहीं है, न ही सीधी खड़ी ढलानें हैं। चंद्रमा पर न तो पानी है, न ही हवा, इसलिए वहां जीवन भी नहीं है। वहां दिन एकाएक निकलता है और इसी प्रकार रात भी एकाएक होती है। हवा न होने के कारण वहां कोई ध्वनि भी नहीं है। चंद्रमा का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का 1/6 है। यदि आप पृथ्वी पर एक मीटर उछलते हैं, तो चंद्रमा की सतह पर 6.05 मीटर उछलेंगे। इसी प्रकार वजन पर भी प्रभाव पड़ता है। चंद्रमा की सतह पर किसी भी वस्तु का भार छठा हिस्सा हो जाता है। वहां का तापमान दिन में 120° सेल्सियस और रात में घटकर –160° सेल्सियस हो जाता है। 20 जुलाई, 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चंद्रमा पर पहुंचकर अनेक अध्ययन किए।
सूर्य, चंद्रमा की एक ही सतह को चमकता है, इसकी दूसरी सतह अंधेरे में रहती है। यह 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं है। उस पर सूर्य की किरणे पड़ती हैं, इसलिए हम उसे देख पाते हैं, चन्द्रमा सदा एक जैसा नहीं दिखता। महीने भर के दौरान उसका आकार बदलता जाता है तब हमें बिलकुल नहीं दिखता। जब सूर्य पृथ्वी की दूसरी ओर होता है तब हमे पूरा चांद दिखता है। जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो चंद्रग्रहण होता है। ऐसी स्थिति केवल पूर्णिमा के दिन ही होती है। अर्थात चंद्र ग्रहण केवल किसी पूर्णिमा को होता है। समुद्रों में ज्वार चंद्रमा में खिंचाव के कारण आते हैं। यद्यपि सूर्य भी इसके लिए उत्तरदायी है, लेकिन चंद्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के निकट होने के कारण ज्वारों पर अधिक प्रभाव डालता है। लेसर किरणों की सहायता से चंद्रमा की दूरी 3,84,00 किमी. मापी गई जिसमें केवल 15 सेमी. की त्रुटि है। चन्द्रमा पर सबसे बड़े गडढ़े का व्यास 232 किमी. है जिसकी गहराई 365.7 मीटर है। इससे एकत्रित की गई चट्टानों में एल्युमिनियम, लोहा, मैग्नीशियम आदि है। यहां सिलीकेट्स भी है। चंद्रमा का व्यास 3476 किमी. है। चंद्रमा, पृथ्वी की तुना में 81.3 गुना भारी है और चंद्रमा से 49 गुना आयतन में बड़ा है। मंगल सूर्य से दूरी के अनुसार मंगल चौथा ग्रह है। आकार में यह हमारी पृथ्वी से लगभग आधा है। अनुकूल अवस्था में यह चमकीला लाल नजर आता है, इसलिए इसे लाल ग्रह भी कहते हैं। मंगल अपनी धुरी पर पृथ्वी के समान ही झुका हुआ है। इसके ध्रुवीय क्षेत्र बारी-बारी से सूर्य के सामने आते हैं जिनसे प्रत्येक गोलार्द्ध में गर्मी और सर्दी के मौसम आते हैं। यहां के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड में बादल है। मंगल ग्रह (लाल ग्रह)
मंगल और वहां के लोगों के बारे में अनेक कहानियां लिखी गई हैं और फिल्में भी बनी हैं, लेकिन अंतरिक्ष खोजों से पता चला कि वहां किसी किस्म का जीवन नहीं है। स्पेस प्रोब मैनियर 9 से प्राप्त चित्रों से ज्ञात हुआ है कि मंगल पर गहरे खड्डें धूल भरी घाटियां और ऊँचे उठे हुए भाग हैं। पृथ्वी की तुलना में वहां ज्वालामुखी पर्वत अधिक है। मंगल पर एवरेस्ट की चोटी से लगभग तीन गुना ऊँचा एक ज्वालामुखी पर्वत निक्स ओलम्पिया है। यह मंगल की सतह से 24 किमी. ऊँचा उठा हुआ है, उसमें 65 किमी. लंबी विशाल बर्फ की गुफाएं हैं। सन् 1976 में वाइकिंग स्पेस प्रोब्स (वाइकिंग-1 और वाइकिंग-2) मंगल पर भेजे गए, जिनका उद्देश्य मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगना था। लेकिन इनकी खोजों से ज्ञात हुआ कि मंगल पर किसी प्रकार का जीवन नहीं है। मंगल पर किसी जीव का न होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि वहां का तापमान, पानी के हिमांक से ऊंचा नहीं उठता। मंगल पर पानी नहीं है। मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डेसीमोस।
बृहस्पति बृहस्पति सौर परिवार का सबसे बड़ा ग्रह है। हमारी 318 पृथ्वियां बृहस्पति में समा सकती हैं। बृहस्पति, गैसों से बना एक गृह है। इसमें तारा और ग्रह, दोनों की विशेषताएं पाई जाती हैं। सभी ग्रह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, लेकिन बृहस्पति लंबी वेब लेंथों में अपनी रेडियो ऊर्जा को विस्फोट के द्वारा फैलाता रहता है। सूर्य के बाद सौर मंडल में सबसे अधिक शक्तिशाली रेडियो तरंगें इसी की हैं। इसके वायु मंडल में अधिकांशत: हाइड्रोजन और हीलियम है। मीथेन और अमोनिया भी वहां मौजूद है। बृहस्पति का वायुमंडल हमारी आदिकालीन पृथ्वी जैसा है। हाइड्रोजन, मीथेन, अमोनिया और पानी, जिनसे पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ हुआ था, संभव है कि बृहस्पति में भी जीवन की ऐसी ही प्रक्रिया की शुरूआत हो। चुकी है।
सन् 1973 के अंत में पहला स्पेस प्रोब पॉयनियर 10 बृहस्पति तक पहुंचा। इनके अनुसंधानों से पता चला कि बृहस्पति पर चुंबकीय क्षेत्र है। वैज्ञानिकों के लिए इस चुंबकीय क्षेत्र से आती हुई तरंगें अभी तक रहस्य बनी हुई हैं। वैज्ञानिकों को ऐसा विश्वास है कि बृहस्पति पर कहीं जीवन मौजूद है। सन् 1979 में वॉयेजर-1 और वॉयेजर-2 बृहस्पति के पास से गुजरे। बृहस्पति का सबसे नजदीकी चित्र उस ग्रह से 18 लाख किमी. की दूरी से खींचा गया। ग्रह के इर्द-गिर्द 30 किमी. मोटे छल्ले का भी पता चला। उसे एक उपग्रह आयो पर ज्वालामुखियों तथा गंधक और ऑक्सीजन जैसे तत्वों की मौजूदगी का ज्ञान हुआ। बृहस्पति का एक अन्य उपग्रह यूरोपा जो हमारे चंद्रमा के आकार का है, बर्फ से ढका हुआ है। कुछ स्थानों पर तो बर्फ की सतह 100 किमी. तक मोटी है। बृहस्पति हमेशा बादलों में घिरा रहता है। ग्रह के चारों ओर 5 चमकीली पट्टियां और चार गाढ़ी भूरी पट्टियां दिखाई देती हैं। ग्रह पर एक अंडाकार रहस्यमय लाल धब्बा नजर आता है। यह आकार में पृथ्वी से तीन गुना बड़ा है। यह एक अंतहीन तूफान है, जो इस ग्रह का स्थाई अंग लगता है। यह बृहस्पति के 40,000 किमी. लंबे और 4000 किमी. चौड़े क्षेत्र को ढके हुए हैं। बृहस्पति के 16 उपग्रह हैं।
सूर्य से दूरी के अनुसार शनि छठा ग्रह है। यह ग्रहों में सबसे अधिक सुन्दर है। अपने पड़ोसी बृहस्पति की भांति यह भी गैस के गोले के समान है, लेकिन आकार में कुछ छोटा है। हमारी 95 पृथ्वियां इसमें समा सकती हैं। हाइड्रोजन और हीलियम के इस विशाल ग्रह के छल्लों ने इसे और भी रहस्यात्मक बना दिया है। ये छल्ले लगभग 275,000 किमी. तक फैले हैं और ग्रह के चारों और घूम रहे हैं। सन् 1980 में वॉयेजर-1 और वॉयेजर-2 अंतरिक्ष यानों द्वारा पता चला कि ये घूमते हुए छल्ले असंख्य कणों में बने हैं। वॉयेजरों ने इन कणों को मापने में हमारी मदद की है। इन कणों के व्यास कुछ सेंटीमीटर से 8 मीटर तक पाए गए हैं। छल्लों की संख्या 1000 से भी अधिक हैं।
नोट:
बृहस्पति की तरह शनि में भी एक लाल धब्बा है, लेकिन यह अपेक्षाकृत बहुत छोटा है। इसमें सफेद अंडाकार और पट्टीनुमा हल्क और घने बादल हैं। शनि पर बहुत तेज हवाएं चलती हैं, जिनका वेग लगभग 1760 किमी. प्रति घंटा होता है। इसकी सतह का तापमान –180° सेल्सियस है। अभी तक शनि के 21 उपग्रह ज्ञात हैं, ये बर्फ से बने लगते हैं। इसके सबसे बड़े उपग्रह टाइटन में वायुमंडल के होने का अनुमान है। यह उपग्रह, बुध ग्रह से भी बड़ा है।
यूरेनस सर विलियम हर्शल ने मार्च, 1781 में यूरेनस की खोज की थी। बृहस्पति और शनि से यूरेनस काफी छोटा है, लेकिन पृथ्वी से काफी बड़ा। इसमें हमारी 15 पृथ्वियां समा सकती हैं। दूरबीन से देखने पर यूरेनस हरे रंग का दिखाई देता है। इस ग्रह का अधिकांश भाग मीथेन गैस से बना है। यह एक ठंडा ग्रह है, जिसकी सतह का तापमान –210° सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सन् 1977 में खगोलशास्त्रियों को पता चला के यूरेनस के चारों ओर धुंधले छल्ले हैं। ये सभी छल्ले 64000 किमी. की सीमा के अंदर हैं। यह वह सीमा है, जिसके अंदर अपने ज्वारीय बलों से एक विशाल उपग्रह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। यूरेनस, पृथ्वी के 84 वर्षों से सूर्य का एक चक्कर लगाता है और वहां का एक दिन पृथ्वी के 10 घंटे 49 मिनट के बराबर होता है। यूरेनस के पांच उपग्रह हैं। मिरांडा, एरियल, अम्ब्रायल, टिटेनिया और ओबेरान।
नेप्च्यून सन् 1849 में खगोलशास्त्रियों, एडम्स और लवेरियर ने नेप्च्यून ग्रह का पता लगाया था। यह हरे रंग का ठंडा ग्रह है, जिसकी सतह का तापमान लगभग –220° सेल्सियस रहता है। नेप्च्यून में हमारी 17 पृथ्वियां समा सकती हैं। ऐसा अनुमान है कि यूरेनस की तरह नेप्च्यून के चारों ओर भी छल्ले हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिल सका। नेप्च्यून का एक दिन पृथ्वी के 18 घंटे 26 मिनट के बराबर है तथा वहां का एक वर्ष पृथ्वी के 164.8 वर्षों के बराबर होता है।
नेप्च्यून के दो उपग्रह हैं ट्रिटेन और नेरीड। ट्रिटेन अपेक्षाकृत प्लूटो से बड़ा है। इसका व्यास 3700 किमी. है।
प्लूटो नेप्च्यून की खोज के बाद खलोगशास्त्री ने सोचा कि अभी एक और ग्रह भी है जो इससे काफी दूर है। आखिर सन् 1930 में प्लूटो का पता चल ही गया। इसे खोजने का श्रेय क्लायडे विलियम टौमबॉध को जाता है। यह ग्रह बुध से थोड़ा छोटा है। यहां सूर्य लगभग [latex]6\frac { 1 }{ 2 }[/latex] घंटे ही चमकता है। यह बहुत ठंडा ग्रह है। यहां का तापमान -230° सेल्सियस है। ग्रह से सूर्य किसी चमकीले तारे की भांति दिखता है, क्योंकि यह सूर्य से 59000 लाख किलोमीटर दूर है। प्लूटो पर हवा नहीं है। यह एक चट्टानी गोला है। अंतरिक्ष यात्री यहां उतर सकता है, लेकिन सर्द से बचने के लिए उसे स्पेस सूट पहनना पड़ेगा और सांस लेने के लिए हवा की भी व्यवस्था करनी होगी। प्लूटों का एक उपग्रह है। इसका कक्ष नेप्च्यून की कक्षा को अंतर्विभाजित करता है, इसलिए ऐसा सोचा जाता है कि ये नेप्च्यून से निकला हुआ उपग्रह है। ग्रहों से संबंधित मुख्य विशेषताएं
छुद्र ग्रह ग्रह और उनके चंद्रमा और परिवार के बड़े सदस्य हैं। इनके अलावा कुछ नन्हें सदस्य भी हैं, जिन्हें छुद्र ग्रह कहते हैं। मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच की पट्टी से सबसे अधिक छुद्र ग्रह है। सूर्य से इनकी दूरी 2.2-3.3 au है। ये भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इस पट्टी में 40,000 से 50,000 तक छुद्र ग्रह हैं। इनमें से अधिकांश इतने छोटे हैं कि प्रचलित तरीकों से उनका व्यास भी नहीं मापा जा सकता। इनमें सबसे बड़ा सेरेज है, जिसका व्यास 1003 से 1040 किमी. है। इसकी खोज सन् 1801 में हुई थी। केवल एक ही छुद्र ग्रह ऐसा है, जो बिना दूरबीन के दिखाई पड़ता है, वह है 4 वेस्ता, जिसका व्यास 555 किमी. है। जिस छुद्र ग्रह की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट आने पर नापी गई, वह है हमीज। पृथ्वी से इसकी दूरी 780,000 किमी. या 0.006 au थी। यह अब लुप्त हो गया है। कोई नहीं जानता कि छुद्र ग्रह कैसे बने। कुछ लोगों का अनुमान है कि ये किसी ग्रह के टुकड़े हैं जो कभी मंगल और बृहस्पति के बीच में स्थित रहा होगा। ऐसा भी कहा जाता है कि ये मंगल और बृहस्पति ग्रह के ही टूटे हुए हिस्से हैं। कुछ छुद्र ग्रह धूमकेतु के भी टुकड़े हो सकते हैं। उल्का और उल्कापिंड कभी-कभी रात के समय आकाश में कोई चमकता बिंदु, चमकीली रेखा खींचता हुआ गायब हो जाता है। इसे सामान्यतः तारा टूटना कहते है। लेकिन तारे तो कभी टूटते नहीं टूटकर गिरने वाले ये पिंड तारे नहीं बल्कि उल्काएं होती हैं। ये बड़ी तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और हवा में रगड़ खाकर जल उठते हैं। उनका यह जलना ही हमें टूटते तारा जैसा नजर आता है। उल्काएं नहीं सौर परिवार की सदस्य हैं। जब कोई खगोलीय पिंड गति करता हुआ पृथ्वी के पास आता है तो धरती की आकर्षण शक्ति से खिंचकर पृथ्वी की ओर आता है और पृथ्वी पर गिर पड़ता है। आसमान के गिरी हुई सभी उल्काएं धरती तक नहीं पहुंचती। उनमें से अधिकांश रास्ते में ही हवा की रगड़ से जलकर नष्ट हो जाती हैं या भाप और राख बन जाती हैं, लेकिन जब कोई उल्का पूरी तरह नहीं जल पाती और धरती पर गिर जाती है तब उसके अवशेष को उल्कापिंड कहते हैं। चंद्रमा, मंगल और बुध ग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से ही गड्ढ़े बन गए हैं। पृथ्वी पर सबसे बड़ा गढ्डा जो उत्तरी ऐरिजोना में है, शायद उल्कापिंड के टकराने से बना। 1265 मीटर व्यास के इस क्रेटर की गहराई 175 मीटर है। यह गड्ढ़ा लगभग 25,000 वर्ष पहले बना था। ऐसा अनुमान है कि प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ उल्काएं पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। इनकी गति 35-95 किमी. प्रति सेकण्ड होती है। एक साधारण उल्का को भाप बनने में लगभग एक सेकंड का समय लगता है। हर साल लगभग 500 उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं। सबसे बड़ा उल्का पिंड जो धरती पर गिरा उसका भार 37 टन था। उल्का पिंड तीन प्रकार के होते है। धूमकेतु जैसे, पत्थर जैसे और आग की गेंदनुमा जैसे। अधिकांश उल्कापिंड पत्थर, लोहा, निकल और दूसरे तत्वों से मिलकर बने हैं।
सबसे बड़ा उल्कापिंड दक्षिण पश्चिम अफ्रीका में ग्रुटफॉण्टीन के पास होबा वेस्ट में सन् 1920 में पाया गया था। इसका वजन 60,000 किग्रा. है। यह प्रागौतिहासिक काल में कभी गिरा था। कोलकाता के अजायबघर में कुछ उल्कापिंड दर्शकों के लिए रखे हुए हैं। अमेरिका के विभिन्न अजायबघरों में 672 उल्कापिंड रखे हुए हैं। धूमकेतु धूमकेतु ऐसे खगोलीय पिंड हैं, जिनकी धुएं जैसी लंबी चमकदार पूंछ होती है। इनको पुच्छल तारा भी कहते है। पहले लोग इनको देखकर भयभीत हो जाया करते थे। वे इनको विनाश का सूचक समझते थे। लेकिन अब लोगों को इनके रहस्य का पता चल गया है और अब वे ऐसा नहीं समझते। धूमकेतु सौर परिवार के अनेक आकाशीय पिंडों की तरह है। पृथ्वी की भांति इनका भी एक निश्चित पथ है, लेकिन इनका आकार भिन्न होता है। ऐसा अनुमान है कि 100 वर्ष में लगभग 1000 धूमकेतु होते हैं, जिनको बगैर दूरबीन के देखा जा सकता है। हेली धूमकेतु इनमें सबसे प्रसिद्ध है, जो 76 वर्ष बाद सूर्य के पास से गुजरता है। इसको सबसे पहले इंग्लैण्ड के खगोलविद् एडमंड हेली ने सन् 1682 में देखा था। उन्हीं के नाम पर इसे हेली धूमकेतु कहते हैं। अभी कुछ वर्ष पहले सन् 1986 में इसे देखा गया था। उस समय गिओटी स्पेस प्रोब ने इसके फोटो लिए। अब इसे सन् 2061 में देखा जाएगा। अब तक खोजे गए सभी धूमकेतुओं में हेली सबसे बड़ा है। धूमकेतु के तीन भाग होते है। नाभि, सिर, तथा पूंछ। नाभि धूमकेतु के सिर का सबसे चकीला भाग है। नाभि का व्यास 100-10,000 मीटर तक हो सकता है। हेली धूमकेतु की नाभि का व्यास लगभग 5,000 मीटर है। अमोनिया, धूल, गैस जैसे अनेक तत्वों से बनी बर्फ की यह दूषित धूल, गैस जैसे अनेक तत्वों से बनी बर्फ की यह दूषित गेंद जो नाभि कहलाती है। प्रकाश को प्रतिबिंबित करती हुए सिर के केंद्र से चमकती हुई दिखाई देती है। नाभि के चारों ओर के भाग को सिर कहते हैं। यह गैस और धूल से बना होता है, जिसका व्यास 2000,000 लाख किमी. से भी अधिक हो सकता है। सिर हाइड्रोजन गैस के बादलों से घिरा रहता है। पूंछ धूमकेतु का खास भाग है। धूमकेतु की पूंछ दो प्रकार की होती है। डस्टटेल जो दस लाख से एक करोड् किमी. लंबी होती है तथा प्लाज्मा टेल यानी अत्यंत गर्म आयोनाइज्ड गैस की पूंछ जो दस करोड़ किमी. लंबी होती है। धूमकेतु की पूंछ तभी बनती है, जब वह सूर्य के नजदीक आ जाता है। सूर्य का प्रकाश उनके सिर की कुछ गैस को परे ढकेलता है और यही गैस, पूंछ की तरह चमकने लगती है। जैसे ही यह सूर्य के पास आता है, बड़ी तेजी से चक्कर काटते हुए अपनी पूंछ को आगे करते हुए सूर्य से दूर चला जाता है। धूमकेतु की पूंछ हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में होती है। अंतरिक्ष अन्वेषण 4 अक्टूबर, 1957 को रूस ने पहला उपग्रह स्पूतनिक–1 अंतरिक्ष में भेजा था। इसी दिन को अंतरिक्ष युग की शुरूआत कहा जा सकता है। इसकी सफलता के बाद 3 नवंबर, 1957 को दूसरा उपग्रह स्पूतनिक-2 छोड़ा गया है, जिसमें एक कुतिया लाइका को भेजा गया था। इसक अध्ययन से पता लगा कि मानव भी अंतरिक्ष में जीवित रह सकता है। 1 फरवरी, 1958 को अमेरिका ने अपना पहला उपग्रह एक्सप्लोरर-1 छोड़ा है। इस प्रकार रूस के स्पूतनिक और अमेरिका के एस्सप्लोरर से अंतरिक्ष अभियान का दौर शुरू हो गया। रूस को मानव युक्त प्रथम उपग्रह वोस्तोक-1 ने 12 अप्रैल, 1961 को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने के लिए उड़ान भरी। इसी यान में कर्नल यूरी गगारिन ने सबसे पहले विश्व की परिक्रमा की और अंतरिक्ष से पृथ्वी और आकाश को देखा। ये अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति बने। रूस की लेफ्टिनेंट वेलन्तिना तेरेशकोवा अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने 16 जून, 1973 में वोस्तोक-6 में 2 दिन 22 घंटे 42 मिनट में पृथ्वी की 48 परिक्रमाएं की। 3 जून, 1965 को अमेरिका के जेमिनी-4 के अंतरिक्ष यात्री एडवर्ड व्हाइट बाहर निकलकर 21 मिनट तक अंतरिक्ष में तैरते रहे। अंतरिक्ष में चलने वाले यह पहले व्यक्ति थे। सन् 1965 में दो व्यक्तियों वाले जेमिनी की उड़ान से एक श्रृंखला की शुरूआत हुई। इस कार्यक्रम के अंतरिक्ष यात्रियों के दल ने चंद्रमा पर भेजे जाने वाले अपोलो अभियान के लिए जोखिम से पूर्ण कलाबाजियों, डाकिंग प्रक्रियाओं और अंतरिक्ष में चलने का अभ्यास किया। इनके बाद चंद्र अभियान में सफलता प्राप्त की गई। कुल मिलाकर चंद्रमा पर 12 लोग गए। चंद्रमा की यात्रा तीन व्यक्तियों वाला अपोलो-2 जिसमें चालकों के घूमने-फिरने और यहां तक कि सीधे खड़े होने के लिए काफी जगह थी, 16 जुलाई, 1969 को चंद्रमा के लिए रवाना हुआ। अपोलों के चंद्रमा पर उतरने के संबंध में खास बात यह थी कि उसके चार पैरों वाले लूनर माड्यूल ईगल द्वारा दो व्यक्ति चंद्रमा की धरती को छू सकते थे। 20 जुलाई, 1969 की रात को 10 बजकर 56 मिनट पर लूनर माड्यूल चंद्रमा पर उतरा और नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा की सतह पर अपना पहला कदम रखा। चंद्रमा की धरती पर मानव का यह पहला छोटा-सा कदम था। नील आर्मस्ट्रांग ने धरती की ओर भेजे गये अपने रेडियो संदेश में कहा आदमी का यह नन्हा-सा कदम संपूर्ण मानवता के लिए एक बहुत बड़ी छलांग है। इसके बाद एडविन एल्ड्रिन भी चंद्रमा की धरती पर उतर आए। माइकल कोलिस के आदेशानुसार यान के अंदर चंद्रमा की सतह पर गुजारे। आर्मस्ट्रांग चांद की धरती पर सवा दो घंटे तक घूमते रहे, एल्ड्रिन इनसे कुछ कम समय तक घूमे। इस दौरान इन्होंने 20 किग्रा. से ज्यादा चट्टानें और मिट्टी एकत्र की। इसी अवधि से चंद्रमा की सतह पर एक से रूबी लेसर किरणे भेजी गई जो रिट्रोपरावर्तक से वापस धरती पर प्राप्त की गई। इनसे धरती से चंद्रमा की दूरी मापी गई। मानव के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस सफलता के बाद अपोलो कार्यक्रम के दौरान निम्नलिखित व्यक्तियों ने चंद्रमा की यात्रा की। वे 3800 किग्रा. भार की चट्टानें और मिट्टी वहां से ले आए। अपोलो – 12 कॉनराड, गॉर्डन, बीन 14 नवम्बर, 1969 अपोलो – 14 शेपर्ड, मिचेल. रूजा 31 जनवरी, 1971 अपोलो – 15 स्कॉट, इर्विन, वडॅन 26 जुलाई, 1971 अपोला – 16 यंग, ड्यूक, मैटिंगले 16 अप्रैल, 1972 अपोलो – 17 सर्नन, श्मिट्, इवांस, 7 दिसंबर, 1972 अंतरिक्ष में मानव को भेजने के अमेरिका के कार्यक्रम पर अपोलो-17 के चंद्र अभियान तक कुल अनुमानित खर्च 255.41 करोड़ डॉलर आया था। खर्च को कम करने के लिए अमेरिका ने स्पेस शटल का आविष्कार किया। यह ऐसा अंतरिक्ष यान है जिसका इस्तेमाल वायुयान की तरह बार-बार किया जा सकता है। इसकी गति लगभग 28000 किमी. प्रतिघंटा होती है। 12 अप्रैल, 1981 को पहला स्पेस शटल कोलम्बिया छोड़ा गया। रूस ने इसकी प्रकार का बुरान नामक अंतरिक्ष यान का सितंबर, 1988 में प्रक्षेपण किया जो अपना लक्ष्य पूरा करके सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आया। आज भी स्पेस शटल के अभियान चल रहे यद्यपि दो स्पेस शटल दुर्घटना ग्रस्त हो गए हैं, और उनमें जाने वाले यात्री जान गवां बैठे हैं।
सैलेनोग्राफी
घूर्णन
पृथ्वी और सौरमण्डल (कुछ पारिभाषिक शब्द)
परिक्रमा
ऋतु परिवर्तन
नोट: पृथ्वी का अक्ष इसके कक्षा-तल पर बने लम्ब से 23(1/2)° का कोण बनाता है।
– पृथ्वी के अक्ष का झुकाव। – पृथ्वी के अक्ष का सदैव एक ही ओर झुके रहना। – पृथ्वी की परिक्रमण या वार्षिक गति का होना। – इन तीनों के परिणाम स्वरूप दिन-रात का छोटा बड़ा होते रहना। चन्द्र कलाएं
अक्षांश, देशान्तर अंतराष्ट्रीय तिथि व समय निर्धारण
अक्षांश
कुछ महत्वपूर्ण अक्षांश
देशान्तर
कुछ महत्वपूर्ण देशान्तर
खगोलीय पिंडों के अध्ययन को क्या कहते हैं?ऊपर से यह स्पष्ट है कि खगोलीय पिंडों के अध्ययन को खगोल विज्ञान कहा जाता है।
खगोल विज्ञान का अध्ययन क्या कहलाता है?खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है।
खगोलीय भूगोल क्या है?खगोलीय भूगोल : यह पार्थिव घटनाओं का अध्ययन करता है, जिसमें मुख्य रूप से पृथ्वी की सतह के साथ-साथ सूर्य, चन्द्रमा और सौरमंडल के ग्रहों को शामिल किया जाता है। भूआकृति विज्ञान : यह पृथ्वी के स्थलरूपों का अध्ययन करता है।
पृथ्वी के अध्ययन को क्या कहा जाता है?पृथ्वी के अध्ययन करे वाला विज्ञानन के पृथ्वी विज्ञान कहल जाला। इन्हन में सबसे पुरान विज्ञान के भूगोल कहल जाला जेवन पृथ्वी के अलग-अलग अस्थान के रूप आ उहाँ पावल जाए वाला पर्यावरण आ लोगन के अध्ययन आ वर्णन करे वाला विषय हवे। पृथ्वी की अन्दर की जानकारी के खोज करे वाला बिज्ञान भूगर्भशास्त्र कहल जाला।
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