कलौंजी में कौन सा खाद डालें? - kalaunjee mein kaun sa khaad daalen?

सातबीघा में प्रयोग के तौर पर कलौंजी की खेती से मिला मुनाफा इतना रास आया कि पूरे परिवार ने 60 बीघा में बुआई कर दी। अन्य किसानों ने भी 80 बीघा में कलौंजी की खेती की। कलौंजी फसल की बिक्री मप्र की नीमच मंडी में होती है।

भीमखंड के किसान मनोहरसिंह चारण ने गत वर्ष सात बीघा में मसाला फसल कलौंजी की खेती के साथ 23 बीघा में पारंपरिक गेहूं की खेती की थी। मात्र सात बीघा में कलौंजी फसल से 5.50 लाख रुपए की आमद हुई, जबकि 23 बीघा में गेहूं से 4.50 लाख रुपए की आमद ही हुई। कलौंजी से प्रति बीघा 78 हजार तो गेहूं से सिर्फ 20 हजार रुपए की आमदनी हुई। फसल में पानी की जरूरत अधिक है। प्रतापगढ़ जिले के छोटीसादड़ी क्षेत्र में कलौंजी की खेती देखकर गत साल बसेड़ा से इसके बीज लेकर आए तथा फसल ली।

दोमट काली मिट‌्टी उपयुक्त | कृषिपर्यवेक्षक ललित चास्टा के अनुसार कलौंजी की खेती सभी प्रकार की मिट्‌टी में की जा सकती है। लेकिन दोमट या काली मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता अधिक होने से यह अधिक उपयुक्त है। बुअाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में की जाती है। पकाव अवधि के दौरान बारिश होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है।

औषधिमें बड़ा प्रयोग | कलौंजीश्वास नली की मांसपेशियों को ढीला करती है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करती है और खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस आदि को ठीक करती है। कलौंजी बीजों का तेल भी बनाया जाता हैं जो कई रोग के इलाज में प्रभावशाली होता है। कलौंजी का प्रयोग मसाले और अनेक रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

{एक हैक्टेयर में 5-7 किलो बीज। बीज को एक ग्राम बाविस्टीन प्रति किलो बीज मान से उपचारित करें।

{बीजको 8-10 किलो गोबर की छनी खाद में मिलाकर बोनी करें।

{कतारसे कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. रखें।

{एकहैक्टेयर में 60 किलो यूरिया, 150 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 30 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश बोनी के पूर्व मिट्टी में मिला दें।

कलौंजी की खेती मुख्यतः औषधि एवं मसाले के रूप में किया जाता है। यह रैननकुलैसी (Ranunculaceae) परिवार से सम्बन्ध रखता है। इसका वैज्ञानिक नाम नाईजेला सेटाईवा (Nigella sativa Linn.) और साधारण नाम कालाजीरा, कलवंजी, कलौंजी, मंगरैल, कलोंजी, कलौंजी जीरु, मोटा कालीजीरे, कालवन्जी, मुंगेलो, मुंगरैला है। कलौंजी की खेती दक्षिण पश्चिमी एशिया, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकी देशों में की जाती हैं। भारत में  कलौंजी की खेती मुख्य रूप से पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा आसाम आदि राज्यों में की जाती हैं। 

Table of Contents

  • कलौंजी (मंगरैला) का उपयोग: 
  • जलवायु:
  • तापमान:
  • भूमि:
  • भूमि की तैयारी:
  • खाद एवं उर्वरक:
  • उन्नत किस्में:
  • बीज की मात्रा:
  • बीज उपचार:
  • बुवाई का समय:
  • बुआई की विधि:
  • सिंचाई:
  • खरपतवार नियंत्रण:
  • रोग एवं कीट नियंत्रण:
  • फसल कटाई:
  • भण्डारण:
  • कलौंजी से उपज:
  • कलौंजी का बीज कहां मिलेगा:
  • कलौंजी की पैदावार कहां बेचें:

कलौंजी (मंगरैला) का उपयोग: 

कलौंजी (Kalonji) का उपयोग इस प्रकार है-

  • खाद्य पदार्थ में: कलौंजी (Kalonji) के बीज का उपयोग खाद्य पदार्थ को खुशबूदार बनाने और खट्टापन बढ़ाने के लिए होता है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सब्जी, सलाद, नान, ब्रैड, केक, आचार, पुलाव और अन्य कई खाद्य पदार्थ में किया जाता है। 
  • औषधियों में: कलौंजी (Kalonji) का इस्तेमाल औषधियों के रूप में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेसर, मिर्गी, गंजेपन, त्वचा के विकार, लकवा, खून की कमी, पीलिया आदि बीमारियों के लिए लाभकारी है।

जलवायु:

कलौंजी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होता हैं। यह सर्दी की फसल है। इसकी बढ़वार के समय हल्की ठंडी और पकते समय गर्मी की आवश्यकता पड़ती है।

तापमान:

कलौंजी (Kalonji) के पौधे की अंकुरण से कटाई तक अलग अलग समय में अलग अलग तापमान की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए 18 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान के आसपास आवश्यकता होती है।

भूमि:

कलौंजी की खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर अच्छी जल निकास वाली बुलई दोमट मिट्टी जिसका PH मान 6 से 7 हो उपयुक्त होती है। 

भूमि की तैयारी:

कलौंजी (Kalonji) से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए भूमि तैयारी के समय खेत की 2 से 3 बार अच्छी तरह जुताई कर खेत को समतल करें। 

खाद एवं उर्वरक:

आप अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराके खेत में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें। यदि मिट्टी की जाँच ना हो सके तो उस स्थिति में प्रति एकड़ खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें-

कलौंजी की खेती से अच्छी उपज के लिए कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 4 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से, खेत की तैयारी के समय डालें। इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में 16 किलो नाइट्रोजन, 8 किलो फॉस्फोरस और 6 किलो पोटाश प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए।

उन्नत किस्में:

कलौंजी (Kalonji) की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार है- 

  • एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन-1: कलौंजी (Kalonji) की यह एक उन्नत किस्म हैं। जिसकी लम्बाई लगभग 2 फिट होती हैं। इस किस्म के बुआई के लगभग 135 से 140 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की पैदावार लगभग 3 क्विंटल प्रति एकड़ हैं।
  • आजाद कलौंजी: कलौंजी (Kalonji) की इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश राज्य में होती है।इस किस्म के बुआई के लगभग 140 से 150 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की पैदावार लगभग 5 क्विंटल प्रति एकड़ हैं। 
  • पंत कृष्णा: कलौंजी (Kalonji) की इस किस्म की लम्बाई लगभग 2 से 2.5 फिट होती हैं। इस किस्म के बुआई के लगभग 130 से 140 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की पैदावार लगभग 4 क्विंटल प्रति एकड़ हैं। 
  • एन.एस.-32: कलौंजी (Kalonji) की इस किस्म की ऊंचाई सामान्य  होती हैं। इस किस्म के बुआई के लगभग 140 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की पैदावार लगभग 6 क्विंटल प्रति एकड़ हैं।

बीज की मात्रा:

कलौंजी की खेती के लिए लगभग 3 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।

बीज उपचार:

कलौंजी (Kalonji) के बीज को 2.5 ग्राम थीरम की दर से प्रति किलो बीज उपचारित करें।

बुवाई का समय:

कलौंजी (Kalonji) की खेती रबी सीजन में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक की जाती है। लेकिन आप लास्ट अक्टूबर तक इसकी बुआई कर सकते हैं। 

बुआई की विधि:

कलौंजी (Kalonji) की खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर और बीज को 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। इसकी बुआई छिड़काव विधि, लाइन या मेड़ों में बोया जाता है।

सिंचाई:

कलौंजी (Kalonji) की बुआई नम भूमि में करना चाहिए। इसमें बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। इसलिए मौसम एवं मिट्टी में नमी के आवश्यकता अनुसार 20 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। पूरी फसल के दौरान इसमें 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण:

कलौंजी (Kalonji) के स्वस्थ पौधे और अच्छी विकास एवं पैदावार के लिए 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती हैं। इसमें पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 25 से 30 दिन बाद एवं दूसरी निराई-गुड़ाई प्रथम निराई-गुड़ाई के 25 दिन बाद कर देना चाहिए।

रोग एवं कीट नियंत्रण:

कलौंजी (Kalonji) में कीट एवं रोग का प्रकोप बहुत ही कम देखने को मिलता हैं। अच्छी फसल के लिए बुआई के समय उपचारित बीज का प्रयोग करें।

फसल कटाई:

कलौंजी (Kalonji) की फसल जब पक कर पीले पड़ने लगे तब इसकी कटाई या जड़ सहित उखाड़ लेना चाहिए। उसके बाद इसे तेज धूप में 4 से 5 दिनों तक सुखाकर डंडो से पिट कर इसके अंदर से बीज को निकल लेना चाहिए।

भण्डारण:

कलौंजी (Kalonji) की फसल मड़ाई के पश्चात दानों को 3 से 4 दिनों तक तेज धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करें। अन्यथा दानों में नमी होने के कारण खराब हो सकता है।

कलौंजी से उपज:

कलौंजी (Kalonji) के फसल से लगभग 4 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त होता है।

कलौंजी का बीज कहां मिलेगा:

कलौंजी (Kalonji) का बीज आप ऑनलाइन या बीज दुकान से खरीद सकते है। इसके अलावा सरकारी उद्यानिकी विभाग या अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि कॉलेज में संपर्क कर इसकी खेती के बारे में जानकारी ले सकते है।

कलौंजी की पैदावार कहां बेचें:

कलौंजी (Kalonji) का डिमांड बाजारों में सालों भर बना रहता हैं। क्योंकि इसका उपयोग मशालें एवं औषधीय के रूप में अधिक होता हैं। आप कलौंजी की उपज या पैदावार को ऑनलाइन, मसाला मंडी, मसाला व्यापारी या कई ओर भी माध्यम से आसानी से बेच सकते हैं।

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कलौंजी में कौन सा खाद डालना चाहिए?

कलौंजी का प्रयोग मसाले और अनेक रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है। {एक हैक्टेयर में 5-7 किलो बीज। बीज को एक ग्राम बाविस्टीन प्रति किलो बीज मान से उपचारित करें। {बीजको 8-10 किलो गोबर की छनी खाद में मिलाकर बोनी करें।

कलौंजी में खरपतवार की दवा कौन सी है?

कलौंजी में खरपतवारनाशक यानी खरपतवार की दवा उपलब्ध नही है, परन्तु बहुत से किसान धनिये की फसल के लिए उपयोग किये जाने वाला खरपतवारनाशक इस्तेमाल करते है. यदि आप किसी भी खरपतवारनाशी का उपयोग करते है तो पहले कृषि विशेषज्ञों से सलाह जरूर लेवें.

कलौंजी कौन से महीने में होती है?

कॉन्ट्रैक्ट पर भी हो रही है कलौंजी की खेती इसके साथ ही खेत समतल होना चाहिए. वहीं इसकी खेती के लिए सर्दी और गर्मी दोनों की जरूरत होती है. फसल की बढ़वार के लिए सर्दी का मौसम सही रहता है और पकने के वक्त गर्मी का मौसम उपयुक्त होता है.

कलौंजी कैसे उगाते हैं?

इसे मुख्यता उत्तरी भारत में सर्दी के मौसम में रबी में उगाया जाता है इसकी बुआई व बढवार के समय हल्की ठंठी तथा पकने के समय हल्की गरम जलवायु की जरूरत पड़ती है। भूमि: कलौंजी को जीवांश युक्त अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई भूमि कलौंजी की फसल उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त है।