कबीर के 5 दोहे अर्थ के साथ? - kabeer ke 5 dohe arth ke saath?

कबीर दास के इन 10 दोहे अर्थ सहित अगर आप जान लेंगे मित्रों आपका किस्मत बदल सकता है । मित्रों हम प्रवचन तो सुनते हैं या किसी इंटरनेट में जाकर ज्ञान तो पढ़ते हैं परंतु उस ज्ञान को हमें सदैव अपने पास रखने की कोशिश करना चाहिए तभी अपने जीवन के सफल मार्ग तक पहुंचने में आप कामयाब होंगे  । सांसारिक समस्याओं के कारण अधिकांश लोगों के ज्ञान नष्ट हो जाता है । क्योंकि सांसारिक समस्या हमारे जीवन में मूल समस्या है जिसके कारण जो भी ज्ञान हम प्राप्त करते हैं यह सब भूल जाते हैं और सांसारिक उलझन में ही रह जाते हैं ।



वैसे तो संत कबीर दास ने बहुत सारे ज्ञान वर्णन करके गए हैं ।

लेकिन क्या सारे के सारे कबीर दास के ज्ञान

हमारे मेमोरी के अंदर रख सकते हैं ? प्रिय मित्रों आपने जिंदगी को बदलना चाहते हैं तो बस इन 10 बातों को हमेशा याद रख कर चलिए हम उम्मीद करते हैं कि आपका जिंदगी बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । अधिकांश लोग ज्ञान पढ़ते हैं और सुनते भी हैं परंतु कुछ दिनों के अंदर सारे के सारे ज्ञान  दिमाग से उतर जाते हैं मित्रों आपको ऐसा नहीं करना है । अगर आपना कठिन जिंदगी से सरल जिंदगी में जीने की इच्छा है तो इन बातों को हमेशा अपने अंदर मौजूद रखना होगा ।




मित्रों हमेशा दूसरे की नकल करना हमें अच्छा लगता है, लेकिन आपको किसी की नकल करने की कोई आवश्यकता नहीं है आप खुद ही अपना जिंदगी को ऊंचाई मार्ग पर ले जा सकते हैं । याद रखें आपको वह बनना है जहां दुनिया के लोग आपको देखकर नकल करें  । । आप स्वयं को तभी बदल सकते हैं जब कबीरदास के इन 10 बातों को हमेशा अपने दिल में रख कर चलेंगे । 



तो मित्र चलिए जानते हैं संत कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित 



1-दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

 

भावार्थ: 👉इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।

 

 

2-जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

 

भावार्थ: 👉जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

 

3-जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

 

भावार्थ: 👉सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।


4-धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

 माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

 

भावार्थ: 👉मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !


5-साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय

मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।

  

भावार्थ: 👉कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजरा चल जाये। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।


6-ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।


भावार्थ: 👉कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने कभी अच्छे लोगों की संगति नहीं की और न ही कोई अच्छा काम किया, उसका तो ज़िन्दगी का सारा गुजारा हुआ समय ही बेकार हो गया । जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम नहीं है, वह इंसान पशु के समान है और जिसके मन में सच्ची भक्ति नहीं है उसके ह्रदय में कभी अच्छाई या ईश्वर का वास नहीं होता ।


7-जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।

जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।


भावार्थ: ‘👉आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा। अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो।



8-ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।


भावार्थ: 👉मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।


9-एकही बार परखिये ना वा बारम्बार ।

बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार।


भावार्थ: 👉किसी व्यक्ति को बस ठीक ठीक एक बार ही परख लो तो उसे बार बार परखने की आवश्यकता न होगी। रेत को अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी – इसी प्रकार मूढ़ दुर्जन को बार बार भी परखो तब भी वह अपनी मूढ़ता दुष्टता से भरा वैसा ही मिलेगा। किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में ही हो जाती है !

 

10-काची काया मन अथिर थिर थिर  काम करंत ।

ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ।

 

भावार्थ: 👉शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम  करते हो – इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है – मगन रहता है – उतना ही काल अर्थात मृत्यु उस पर हँसता है ! मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है ! कितनी दुखभरी बात है।

 

मित्रों मुझे उम्मीद है कि संत कबीर दास के इन 10 बातों को हमेशा आप याद रखेंगे  । वैसे संत कबीर दास ने दुनिया वालों को बहुत ही अच्छा संदेश देकर गए हैं । संत कबीर दास के दोहे जिनके मेमोरी में रखने में सक्षम है वही इंसान अपना जिंदगी को बहुत ही सरल तरीका से बदल दे सकता है । मित्रों मुझे उम्मीद है कि आप भी कबीरदास के इन 10 बातों को याद रख कर अपने जिंदगी को बदल सकते हैं  ।

कबीर दास के 5 दोहे और उनके अर्थ?

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित (Kabir Das Dohe with Mean).
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | ... .
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | ... .
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, ... .
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये | ... .
मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार । ... .
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय । ... .
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।.

कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ class 7?

अर्थ-कबीर दासजी लोगों को सलाह देते हैं कि कल का काम आज ही कर लो और आज का काम अभी तुरन्त, क्योंकि इस जीवन का कोई भराेसा नहीं, इसलिए दुबारा कब करोगे। साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। सरलार्थ—संत कबीर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मुझे इतनी ही सम्पत्ति दो, जिसमें हमारे परिवार वालों का भरण-पोषण हो जाए।

कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ class 6?

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय । व्याख्या : कबीर कहते हैं कि दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख के समय सब ईश्वर को भूल जाते हैं। लेकिन कोई भी इंसान सुख में ईश्वर को याद नहीं करता यदि वह सुख में भी ईश्वर कोई याद करता तो उसके जीवन में कभी भी दुख आता ही नहीं।

कबीर दास जी के 20 दोहे?

संत कबीर दास के 25 दोहे हिंदी अर्थ सहित.
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाउं।.
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।.
माला फेरत जग गया, गया न मन का फेर।.
आय हैं सो जायेंगे, राजा रंक फ़क़ीर।.
तिनका कबहुं ना निंदिए, जो पाँवन तर होय।.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।.
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाये।.