गणेश चतुर्थी का व्रत कैसे करें 2022 - ganesh chaturthee ka vrat kaise karen 2022

डीएनए हिंदी: Ganesh Vrat Katha- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘गणेश चतुर्थी’ (Ganesh Chaturthi) या ‘गणेश चौथ’ मनाई जाती है. वैसे तो पूरे भारत में ही यह त्योहार मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र (Mumbai Ganesh Chaturthi) में इसका महत्व कुछ खास ही है. इस दिन व्रत करने वाले गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha) या गणेश चतुर्थी की कहानी सुनते हैं.विघ्न विनायक श्री गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. श्री गणेश देवताओं में प्रथम पूजनीय है और बुद्धि के देवता है. इनके बगैर किसी शुभ काम की शुरुआत नहीं होती है. लड्डू (Ganesha Bhog) इनका प्रिय भोग है. गणेश जी के व्रत के पीछे कई पौराणिक कथाओं का जिक्र है. 

कैसे करें पूजा और रखें व्रत (Ganesh Chaturthi Puja vidhi and Vrat) 

गणेश चतुर्थी के दिन सुबह सुबह स्नान करके गणेश जी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर विधि से पूजा करते हैं. दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाते हैं. इनमें से पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देते हैं. गणेश जी की प्रतिमा को उत्तम मुहूर्त में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है. इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि व रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं. 

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पौराणिक कथाएं (Mythological Kahani behind Ganesh Chaturthi)

पुरान के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे तभी देवी पार्वती ने भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा. मां पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए,परंतु इस खेल में हार जीत का फैसला कौन करेगा यह प्रश्न माता पार्वती के समक्ष उठा. ऐसे में भगवान शिव ने कुछ तिनका एकत्रित कर उसका पुतला बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की और पुतले से कहा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं लेकिन हमारी हार जीत का फैसला करने वाला यहां कोई नहीं है.

इसलिए तुम्हें बताना होगा कि हम में से कौन जीता और कौन हारा. यह कहने के बाद खेल शुरू हो गया और तीनों बार माता पार्वती जीत गईं. खेल खत्म होने पर भगवान शिव ने बालक से हार जीत का फैसला करने के लिए कहा. बालक ने भगवान शिव को विजयी बताया.

यह सुनकर माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गई और क्रोध में आकर उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. माता पार्वती का क्रोध देखकर पुतला भयभीत हो गया और उसने अपने कृत्य के लिए मां पार्वती से माफी मांगी और कहा कि मां मुझसे अज्ञानता के कारण ऐसा हुआ है, मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. बालक के क्षमा मांगने पर मां पार्वती काफी भावुक हो गई और उन्होंने इस श्राप से निजात पाने का उपाय बताया. उन्होंने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी,उनके कहे अनुसार तुम भी गणेश पूजन करो. ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे. यह कहकर मां पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई.

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आई, नाग कन्याओं से बालक ने विघ्नहर्ता भगवान गणेश के व्रत और पूजन की विधि पूछा. पूजा विधि जानने के बाद उस बालक ने लगातार 21 दिन तक गणेश जी का व्रत और पूजन किया. उसकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उस बालक को साक्षात दर्शन दिया और मनोवांछित फल मांगने को कहा. उस पर बालक ने कहा हे विनायक मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वह देखकर प्रसन्न हो सकें. कैलाश पर्वत पर पहुंचने के बाद बालक ने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई

गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा (Ganesh Shiv parvati kahani in Hindi)

एक बार महादेव जी भोगावती नदी पर स्नान करने गए उनके चले जाने के बाद पार्वती माता ने अपने तन की मेल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले. उसका नाम ‘गणेश’ रखा. पार्वती माता ने उससे कहा कि एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं किसी को अंदर मत आने देना

भोगावती पर से स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया शिवजी ने बहुत समझाया पर गणेश जी नहीं माने. इसको शिव जी ने अपना अपमान समझकर उस पर क्रोध किया और त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर के भीतर चले गए. जब माता पार्वती को पता चला कि शिव जी ने गणेश जी का सिर काट दिया है तो वे बहुत कुपित हुई

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गणेश जी के मूर्छित होने से पार्वती माता अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने अन्न, जल का त्याग कर दिया. पार्वती जी की नाराजगी दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी के हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया. तब देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया. यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व ‘गणेश चतुर्थी’ के रूप में मनाई जाती है

मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत पालन कर गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुनने अथवा पढ़ने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन मे कष्टों का निवारण होता है, गणेश चतुर्थी व्रत कथा व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और जीवन में सुख समृद्धि लाने वाली बताई गई है

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गणेश चतुर्थी का व्रत कैसे किया जाता है?

गणेश जी के व्रत के पीछे कई पौराणिक कथाओं का जिक्र है. गणेश चतुर्थी के दिन सुबह सुबह स्नान करके गणेश जी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर विधि से पूजा करते हैं. दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाते हैं. इनमें से पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देते हैं.

गणेश चतुर्थी का व्रत कब से शुरू करना चाहिए?

इस व्रत को माघ मास से आरंभ करके हर महीने में करें तो संकट का नाश हो जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को उपवास करके श्रद्धा-भक्तिपूर्वक गणेशजी की पूजा करें और पंचमी को तिल का भोजन करें।

संकष्टी चतुर्थी की पूजा कैसे की जाती है?

आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी की व्रत एवं पूजा विधि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर भगवान गणेश की पूजा करने के लिए एक छोटी सी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। गणेश जी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें, फिर हाथ में रोल, अक्षत और फूल लेकर मंत्र का जाप करें।