फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत सुनने जैसा है ऐसा क्यों कहा गया है? - faadar ko yaad karana ek udaas shaant sangeet sunane jaisa hai aisa kyon kaha gaya hai?


राष्ट्र मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ती- है। जिस भूमि के अन्नजल से यह शरीर बनता एवं पुष्ट होता है। उसके प्रति अनायास ही स्नेह श्रद्‌धा उमड़ती रहती है। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र की सुरक्षा एवं उसके प्रति अपने कर्त्तव्यों की उपेक्षा करता है, वह कृतघ्न है। उसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं। उसका जीवन पशु के सदृश बन जाता है। रेगिस्तान में वास करने वाला व्यक्ति ग्रीष्म की भयंकरता के कारण हाफ-हाफ कर जी लेता है लेकिन अपनी के प्रति दिव्य प्रेम संजोए रहता है। शीत प्रदेश में वास करने वाला व्यक्ति कांप-कांप कर जी लेता है लेकिन जब देश पर कोई संकट आता है तो वह अपनी जन्म भूमि पर प्राण न्योछावर कर देता है। “यह मेरा देश है” कथन में कितनी मधुरता है। इस पर जो कुछ है वह सब मेरा है। जो व्यक्ति ऐसी भावना से रहित है, उसके लिए ठीक ही कहा गया है-

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।

वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

मेरा महान देश भारत सब देशों का मुकुट है। इसका अतीत स्वर्णिम रहा है। एक समय था जब इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसे प्रकृति देवी ने ‘अपने अपार’ वैभव, शक्ति एवं सौंदर्य से विभूषित किया है। इससे आकाश के नीचे मानवीय प्रतिभा ने अपने सर्वोत्तम वरदानों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया है। इस देश के चिंतकों ने गूढ़तम प्रश्न की तह में पहुंचने का सफल प्रयास किया है।

मेरा देश अति प्राचीन देश है। इसे सिंधु देश, आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी कहते हैं। इसके उत्तर मे ऊंचा हिमालय पर्वत इसके मुकुट के समान है। उसके परे तिब्बत तथा चीन है। दक्षिण में समुंद्र इसके पांव धोता है। श्रीलंका द्‌वीप वहां समीप हे। उसका इतिहास भी भारत से संबद्‌ध है। पूर्व में बंगला देश और म्यनमार देश हैं। पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान देश हैं। प्राचीन समय में तथा आज से दो हजार वर्ष पहले सम्राट् अशोक के राज--काल में और उसके बाद भी गांधार (अफगानिस्तान) भारत का ही प्रांत था। कुछ वर्ष पहले बंगला देश, ब्रह्मदेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका भारत के ही अंग थे।

इस देश पर मुसलमानों, मुरालों, अंग्रेजों ने आक्रमण करके यहां पर विदेशी राज्य स्थापित किया और इसे खूब लूटा तथा पद-दलित किया। पर अब वे दुःख भरे दिन बीच चुके हैं। हमारे देश के वीरों, सैनिकों, देशभक्तों और क्रांतिकारियों के त्याग और बलिदान से 15 अगस्त, 1947 ई० में भारत स्वतंत्र होकर दिनों-दिन उन्नत और शक्तिशाली होता जा रहा है। 26 जनवरी, सन 1950 से भारत में नया संविधान लागू हुआ है और यह ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ बन गया है। अनेक ज्वारभाटों का सामना करते हुए भी इसका सांस्कृतिक गौरव अक्षुण्ण रहा है।

यहां गंगा, यमुना, सरयू नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी, सोन, सतलुज, व्यास, रावी आदि पवित्र नदियां बहती हैं, जो कि इस देश को सींचकर हरा-भरा करती हैं। इनमें स्नान कर देशवासी वाणी का पुण्य लाभ उठाते हैं। यहां बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमंत और शिशिर, ये छ: ऋतुएं क्रमश: आती हैं। अनेक तरह की जलवायु इस देश में है। भांति-भांति के फल-फूल, वनस्पतियां, अन्न आदि यहां उत्पन्न होते हैं। इस देश को देखकर हृदय गद्-गद् हो जाता है। यहां अनेक दर्शनीय स्थान हैं।

यह एक विशाल देश है। इस समय इसकी जनसंख्या एक सौ दस करोड़ से अधिक हो गई है, जो संसार में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहां हिंदू मुसलमान, सिक्स, ईसाई आदि मतों के लोग परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं। उनमें कभी-कभी वैमनस्य भी पैदा हो जाता है। देशभक्त तथा समाज-सुधारक इस वैमनस्य को मिटाने की कोशिश भी करते हैं। यहां हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, बंगला, तमिल, तेलुगू आदि अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। दिल्ली इसकी राजधानी है। वहीं संसद् है, जिसके लोक सभा और राज्य सभा दो अंग हैं। मेरे देश के प्रमुख “राष्ट्रपति” कहलाते हैं। एक उपराष्ट्रपति भी होता है। देश का शासन प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल चलाता है। इस देश में 28 राज्य या प्रदेश हैं जहां विधानसभाएं हैं। मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल द्‌वारा शासन होता है।

यह धर्म प्रधान देश है। यहां बड़े धर्मात्मा, तपस्वी, त्यागी, परोपकारी, वीर, बलिदानी महापुरुष हुए हैं। यहां की स्त्रियां पतिव्रता, सती, साध्वी, वीरता और साहस की पुतलियां हैं। उन्होंने कई बार जौहर व्रत किये हैं। वे योग्य और दृढ़ शासक भी हो चुकी हैं और आज भी हैं। यहां के ध्रुव, प्रह्लाद, लव-कुश, अभिमन्यु, हकीकतराय आदि बालकों ने अपने ऊंचे जीवनादर्शों से इस देश का नाम उज्जवल किया है।

मेरा देश गैरवशाली है। इसका इतिहास सोने के अक्षरों में लिखा हुआ है। यह स्वर्ग के समान सभी सुखों को प्रदान करने में समर्थ है। मैं इस पर तन-मन-धन न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहता हूं। मुझे अपने देश पर और अपने भारतीय होने पर गर्व है।

फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा था कैसे?

Solution : (क) फादर कामल बुल्के का जीवन करुणा, वाल्सल्य और अपनत्व से भरा था। वे जब भी किसी से मिलते थे तो भरपूर स्नेह से मिलते थे। आज वे दुनिया में नहीं हैं। अत: उन्हें याद करके एक उदासी और शांति छा जाती है।

फ़ादर को याद करना एक उदास संगीत सुनने जैसा क्यों लगता है ?

(ख) फ़ादर को याद करने से दु:ख होता है और यह दु:ख एक उदास शांत संगीत की तरह हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ जाता है। उनको याद कर मन दु:खी हो जाता है।

फ़ादर बल्ुके ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तत क ु ी है कैसे?

फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे? Solution : जहाँ सामान्यतः संन्यासी सभी प्रकार के मोह से दूर रहते है , खुद को सामाजिक <br> बंधनों से अलग रख कर खुद को ईश्वर से बाँध लेते है एवं उनकी भक्ति में ही लीन रहते है

1 फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?`?

Solution : फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी क्योंकि फादर की आँखों में सदैव वात्सल्य झलकता था। प्रभु की आस्था है उनका अस्तित्व थी। वे परिवार के किसी बड़े जन की भाँति सवों के दुख तथा कष्ट को सुलझाने का प्रयास करते थे।