एशिया का कौन सा देश तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है? - eshiya ka kaun sa desh tel ka sabase bada utpaadak desh hai?

एशिया का कौन सा देश तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है? - eshiya ka kaun sa desh tel ka sabase bada utpaadak desh hai?

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तेल उत्पादक देश

इस सूची में उन देशों एवं उनके प्रान्तों/राज्यों की सूची दी गयी है जो तेल के कुओं से कच्चा तेल (अंग्रेज़ी: crude oil) निकालते हैं।

अनुक्रम

  • 1 अफ्रीका
  • 2 एशिया
  • 3 ऑस्ट्रेलिया
  • 4 यूरोप
  • 5 मध्य पूर्व
  • 6 उत्तरी अमेरिका
  • 7 मध्य अमेरिका एवं कैरेबियायी देश
  • 8 दक्षिणी अमेरिका
  • 9 इन्हें भी देखें
  • 10 बाहरी कड़ियाँ

अफ्रीका[संपादित करें]

  • अल्जीरिया (ओपेक सदस्य)
  • अंगोला (ओपेक सदस्य; दिसंबर २००६ में शामिल)
  • कैमेरून
  • चाड
  • कोट द' आईवोर
  • कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य
  • कांगो गणराज्य
  • मिस्र
  • ईक्वीटोरियल गिनी
  • गबोन
  • केन्या
  • लीबिया (ओपेक सदस्य)
  • मॉरीतानिया
  • नाईजीरिया (ओपेक सदस्य)
  • दक्षिण अफ़्रीका
  • सूडान
  • ट्यूनीशिया

एशिया[संपादित करें]

  • अज़रबैजान
  • ब्रुनेई
  • जनवादी गणराज्य चीन
  • जोर्जिया
  • कज़ाख़िस्तान
  • मलेशिया
  • भारत
  • इंडोनेशिया ओपेक सदस्य दिसम्बर २००८ से समाप्त)
  • पाकिस्तान
  • फिलीपींस
  • थाईलैंड
  • तुर्कमेनिस्तान
  • उज़्बेकिस्तान
  • वियतनाम

ऑस्ट्रेलिया[संपादित करें]

  • ऑस्ट्रेलिया
  • न्यूजीलैंड
  • पापुआ न्यू गिनी
  • पूर्वी तिमोर

यूरोप[संपादित करें]

  • ऑस्ट्रिया
  • बुल्गारिया
  • क्रोएशिया
  • उत्तरी सागर तेल:
    • यूनाइटेड किंगडम
    • नार्वे
    • नीदरलैंड
    • डेनमार्क
    • जर्मनी
  • आयरलैंड गणराज्य ध्यानार्थ : कच्चे तेल का व्यावसायिक उत्पादन नहीं। कच्चा तेल मिला है, लेकिन उत्पादन सिर्फ प्राकृतिक गैस तक ही सीमित है।
  • इटली
  • लिथुआनिया (पश्चिमी समोगिटिया में)
  • पोलैंड
  • रोमानिया
  • रूस
  • सर्बिया
  • युक्रेन

मध्य पूर्व[संपादित करें]

  • बहरीन
  • ईरान (ओपेक सदस्य)
  • इराक (ओपेक सदस्य)
  • कुवैत (ओपेक सदस्य)
  • ओमान
  • कतर (ओपेक सदस्य)
  • सउदी अरब (ओपेक सदस्य)
  • सीरिया
  • संयुक्त अरब अमीरात (ओपेक सदस्य)
  • यमन

उत्तरी अमेरिका[संपादित करें]

  • संयुक्त राज्य अमरीका
  • कनाडा
    • अल्बेर्ता
    • ब्रिटिश कोलंबिया
    • न्यूफाउंडलैंड
    • सस्केचवान
    • मनितोबा
  • मेक्सिको

मध्य अमेरिका एवं कैरेबियायी देश[संपादित करें]

  • बारबाडोस
  • बेलीज़
  • क्यूबा
  • ग्वाटेमाला
  • त्रिनिदाद और टोबैगो

दक्षिणी अमेरिका[संपादित करें]

  • अर्जेंटीना
  • बोलीविया
  • ब्राजील
  • चिली
  • कोलोंबिया
  • एकुआडोर (ओपेक सदस्य)
  • गुयाना
  • पेरू
  • सूरीनाम
  • वेनेजुएला (ओपेक सदस्य)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ओपेक (OPEC)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • https://web.archive.org/web/20100830033649/http://www.eia.doe.gov/emeu/international/reserves.html

कच्चे तेल का मूल्य एवं अर्थव्यवस्था

संदर्भ:

वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देश COVID-19 महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इस महामारी से जहाँ एक तरफ भारी जनहानि हुई है वहीं इसकी रोकथाम के लिये  लॉकडाउन एवं अन्य सुरक्षात्मक प्रतिबंधों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी जैसी स्थितियाँ बनने लगी हैं। वैश्विक स्तर पर औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट से कच्चे तेल की मांग में कमी आई है और इसका सीधा प्रभाव तेल की कीमतों में गिरावट के रूप में देखने को मिला है। हाल ही में अमेरिकी कच्चे तेल के बेंचमार्क माने जाने वाले ‘वेस्ट टेक्सस इंटरमिडिएट’ (West Texas intermediate- WTI) के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (Future Contract) की कीमतें शून्य से भी नीचे पहुँच गई थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी कच्चे तेल कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट है। साथ ही तेल की मांग में इस कमी से विश्व के अन्य तेल उत्पादक जैसे- सऊदी अरब, रूस आदि भी तेल की कीमतों में हुई इस गिरावट से प्रभावित हुए हैं।  

पृष्ठभूमि:  

  • वर्तमान में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं। 
  • COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर पहले से ही कच्चे तेल की कीमतों में हो रही गिरावट में और अधिक वृद्धि हुई है।  
  • मार्च 2020 के शुरूआती सप्ताह से ही कच्चे तेल की कीमतों में 25% तक गिरावट देखी गई। वर्ष 1991 के खाड़ी युद्ध संकट के बाद यह तेल बाज़ार में एक दिन में दर्ज़ किया गया सबसे बड़ा नुकसान था।   
  • कई असहमतियों के बाद 10 अप्रैल, 2020 को विश्व के प्रमुख तेल उत्पादक देश तेल की कीमतों में आई इस गिरावट को नियंत्रित करने के लिये अपने दैनिक उत्पादन में 10% की कटौती करने पर सहमत हुए थे।
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर तेल की खपत में प्रतिदिन लगभग 30 मिलियन बैरल की गिरावट हो रही है।    

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण: 

  • पिछले कुछ वर्षों में तेल उत्पादक देशों ने अपनी तेल उत्पादन क्षमता में वृद्धि की है जिससे बाज़ार में तेल की आपूर्ति बढ़ी है।  उदाहरण के लिये पिछले एक दशक में अमेरिका ‘शेल ऑयल’ के उत्पादन में दोगुनी वृद्धि के साथ विश्व का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश (लगभग 12 मिलियन बैरल प्रतिदिन) बन गया है। 
  • COVID-19 के प्रसार के पहले ही वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही थी, वर्ष 2020 की शुरुआत में ही कच्चे तेल का मूल्य 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया था।  
  • कच्चे तेल की गिरती कीमतों को नियंत्रित करने के लिये उत्पादक देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती की बात कही गई परंतु रूस द्वारा इस प्रस्ताव से इनकार के बाद सऊदी अरब ने अप्रैल 2020 में तेल उत्पादन में वृद्धि का फैसला किया।
  • चीन में COVID-19 के प्रसार के बाद देश में यातायात और औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट के साथ ही चीन ने तेल आयात में कटौती की थी। ध्यातव्य है कि विश्व में सबसे अधिक कच्चे तेल का आयात करने वाले देशों में चीन भी शामिल है (वर्ष 2019 में औसतन लगभग 10 मिलियन बैरल प्रतिदिन)।
  • विश्व के अन्य देशों में COVID-19 के प्रसार के साथ ही वैश्विक स्तर पर यातायात और औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से तेल की मांग में भारी कमी आई है।
  • साथ ही COVID-19 संक्रमण पर नियंत्रण के लिये विश्व के कई देशों में लगभग सभी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रोक दिया गया जिससे विमानन ईंधन की मांग में अभूतपूर्व गिरावट देखी गई।

वेस्ट टेक्सस इंटरमिडिएट

(West Texas intermediate- WTI):

  • वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) 'ब्रेंट' और 'दुबई क्रूड' के साथ तेल मूल्य निर्धारण के तीन मुख्य बेंचमार्क में से एक है 
  • अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन मुख्यतः टेक्सस (Texas), नार्थ डेकोटा (North Dakota) और लुइज़ियाना (Louisiana) राज्य में होता है।
  • ईंधन के रूप में खनिज तेल के प्रयोग के अतिरिक्त वायदा बाज़ार  (Future Market) में एक कमोडिटी (Commodity) के रूप में इसका व्यापार भी किया जाता है।   
  • WTI के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (Future Contract) का व्यापार ‘न्यूयार्क मर्चेंटाइल एक्सचेंज’ (New York Mercantile Exchange- NYMEX) में किया जाता है और WTI की कीमत को अमेरिकी तेल बाज़ार में बेंचमार्क (Benchmark) के रूप में देखा जाता है।

 WTI के मूल्यों में गिरावट का कारण:

  • किसी भी अन्य कमोडिटी की तरह WTI के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट हर माह समाप्त हो जाते हैं और इसके समाप्त होने के बाद खरीदारों को यह तेल भौतिक रूप में लेना या बेचना पड़ता है।
  • सामान्य स्थितियों में यह तेल आसानी से बेचा जा सकता था परंतु वर्तमान में विश्व भर में तेल की मांग और कीमतों में भारी गिरावट आई है तथा कच्चे तेल को सुरक्षित रखने के भंडार केंद्र भी लगभग भर चुके हैं।
  • ऐसे में यह कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होने से पहले अनुबंध धारकों ने तेल के भंडारण या परिवहन के अतिरिक्त खर्च से बचने के लिये अपनी तरफ से पैसे देकर इस तेल को बेचने का प्रयास किया, जिसके कारण WTI की कीमतें शून्य से भी नीचे चली गईं।
  • हालाँकि WTI की मई माह की इन कीमतों का उतना प्रभाव जून माह की डिलीवरी पर नहीं पड़ेगा।       

कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती:

  • तेल की मांग में इतने लंबे समय तक कमी बने रहने और उत्पादन सक्रिय रहने से तेल की कीमतों में गिरावट के साथ ही विश्व के अधिकांश तेल भंडारण केंद्र भी  लगभग भर गए हैं, इसके अतिरिक्त लगभग 160 मिलियन बैरल कच्चे तेल को समुद्री तेल टैंकरों में सुरक्षित रखना पड़ा है। 
  • वर्तमान में तेल भंडारों और तेल की गिरती मांग को देखते हुए ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’- ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) द्वारा प्रस्तावित 10% कटौती के अलावा तेल के उत्पादन में अतिरिक्त कटौती किये जाने की आवश्यकता महसूस हुई है।
  • हालाँकि विशेषज्ञों के अनुसार, तेल उत्पादन को बंद करने की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और खर्चीली है तथा तात्कालिक रूप से उत्पादन को रोकने पर इन संयंत्रों की उत्पादन क्षमता प्रभावित हो सकती है।
  • इसे ध्यान में रखते हुए तेल उत्पादक कम कीमतों से होने वाले नुकसान के बावज़ूद भी तेल उत्पादन में कटौती नहीं करना चाहते। 

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर तेल कीमतों का प्रभाव:

  • खनिज तेल की मांग वैश्विक अर्थव्यवस्था के भविष्य के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण सूचक का कार्य करती है।  
  • वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में लॉकडाउन का प्रभाव अनेक औद्योगिक संस्थानों की उत्पादन क्षमता और उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ा है, ऐसे में इस महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्राप्त करने में काफी समय लग सकता है।     
  • लंबे समय तक तेल की कीमतों में गिरावट से तेल निर्यात पर आश्रित देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जो कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है ।   
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ ही अधिकांश देशों में संरक्षणवादी विचारधारा को बढ़ावा मिलेगा जिससे प्रवासी कामगारों के लिये अन्य देशों में रोज़गार के अवसरों में कमी आ सकती है।  

भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल कीमतों का प्रभाव:

  • WTI, ‘इंडियन क्रूड बास्केट’ (Indian Crude Basket) में शामिल नहीं है, भारत में आयात होने वाला अधिकांश ब्रेंट (Brent) और ओपेक देशों से संबंधित है। अतः WTI की कीमतों में आई गिरावट का प्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय तेल बाज़ार पर नहीं होगा। 

‘इंडियन क्रूड बास्केट’ (Indian Crude Basket): ‘इंडियन क्रूड बास्केट’ भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल के मूल्य का संकेतक है। सामान्यतः इसका निर्धारण ‘दुबई और ओमान’ तथा ब्रेंट क्रूड के भारित औसत (75.50:24.50) के आधार पर किया जाता है।  

  • परंतु WTI की कीमतों में आई कमी वर्तमान में वैश्विक स्तर पर तेल उत्पादन क्षेत्र के दबाव को दर्शाती हैं, जो लंबे समय में निर्यातकों और आयातकों दोनों के हितों के विपरीत है।  
  • भारत अपनी कुल आवश्यकता का लगभग 80% खनिज तेल अन्य देशों से आयात करता है, अतः तेल की कीमतों में गिरावट से भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार का दबाव कम होगा।   
  • भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद शीर्ष पर हैं, ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात को प्रभावित कर सकती है।
  • विश्व में तेल पर निर्भर देशों की अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर पड़ सकता है। जैसे- प्रवासी कामगारों की आय में कमी (उदाहरण के लिये- हाल ही में अमेरिका ने प्रवासी लोगों को दिये जाने वाले ग्रीन कार्ड के नियमों में सख्ती की है।), वैश्विक बाज़ार में मांग में गिरावट से निर्यात में कमी आदि।        

निष्कर्ष: वैश्विक तेल बाज़ार के वर्तमान संकट को देखकर यह स्पष्ट होता है कि COVID-19 की महामारी ने इस संकट में वृद्धि की है परंतु तेल उत्पादक देशों के बीच सामंजस्य का अभाव ही इस संकट का मूल कारण है। वर्तमान में तेल की कीमतों से भारत को अपने वित्तीय घाटे को संतुलित करने में सहायता मिलेगी परंतु इस गिरावट के लंबे समय तक बने रहने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर नकारात्मक परिणाम होंगे। वस्तुतः इस संकट के कारण निर्यात तथा आयात दोनों से जुड़े देशों के हितों को क्षति होगी।      

आगे की राह:  

  • वर्तमान में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट का लाभ उठाते हुये भारत को अधिक-से-अधिक तेल का भंडारण करना चाहिये, साथ ही भविष्य में ऐसे संकट से बचने के लिये सरकार को देश में तेल भंडारण की क्षमता में वृद्धि करनी चाहिये।
  • तेल की मांग में आई कमी के कारण कच्चे तेल के मूल्यों में हुई गिरावट को नियंत्रित करने हेतु उत्पादक देशों को तेल उत्पादन में और अधिक कटौती करनी होगी।  
  • विश्व के सभी देशों को एक साथ मिल कर COVID-19 के नियंत्रण और उपचार में समायोजित प्रयासों को बढ़ाना चाहिये, जिससे शीघ्र ही इस संकट का अंत कर वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की जा सके।
  • वर्तमान में वैश्विक तेल बाज़ार में संयुक्त राष्ट्र जैसी किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था के अभाव में तेल उत्पादक देश अपने हितों के लिये तेल की कीमतें निर्धारित करते हैं, अतः इस क्षेत्र में एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय का होना बहुत ही आवश्यक है जिससे उत्पादकों के साथ आयातक देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलन स्थापित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान में वैश्विक स्तर पर खनिज तेल के मूल्यों में हुई गिरावट के कारणों का उल्लेख करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की समीक्षा कीजिये।

एशिया में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश कौन सा है?

सही उत्तर सऊदी अरब है। विकल्पों में से, सऊदी अरब एशिया में तेल (पेट्रोलियम) का सबसे बड़ा उत्पादक है। सऊदी अरब प्रति दिन लगभग 12 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है। सऊदी अरब अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है।

तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?

वर्तमान में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं।

दुनिया के 10 सबसे बड़े तेल उत्पादक देश जानें कौन है नंबर वन?

जिन देशों के पास सबसे बड़ा तेल भंडार मौजूद है वो हैं- वेनेजुएला (301 अरब बैरल), सऊदी अरब (266 अरब बैरल), कनाडा (170 अरब बैरल), ईरान (158 अरब बैरल), इराक (143 अरब बैरल), कुवैत (102 अरब बैरल), संयुक्‍त अरब अमीरात (98 अरब बैरल), रूस (80 अरब बैरल) लीबिया (48 अरब बैरल) और नाइजीरिया (37 अरब बैरल)।

विश्व का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश कौन सा है?

दुनिया में सबसे ज्यादा कच्चा तेल निर्यात करने वाला देश सऊदी अरब है. उसने एक साल में 182.5 अरब डॉलर का कच्चा तेल निर्यात किया. कुल कच्चे तेल के निर्यात में उसकी हिस्सेदारी 16.1% है.