जब किसी वस्तु की कुल पूर्ति पर कुछ बड़ी फर्मों का अधिकार होता है तो इसे अल्पाधिकार कहते हैं। इस स्थिति में विक्रेता बहुत कम होते हैं, इसलिस वे वस्तु की पूर्ति तथा इसकी कीमत के प्रति सजग रहते हैं। एक विक्रेता की नीति का प्रभाव दूसरे पर भी पड़ता है। इस प्रकार सभी विक्रेताओं में कीमतों तथा उत्पादन के संबंध में पारस्पारिक संबंध होता है। Show बाजार का ऐसा रूप जिसमें कुछ एक फर्मों के बीच ही प्रतियोगिता होती है, एक नई तथा उभरती हुई घटना (Emerging Phenomenon) है। किसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या अधिक नहीं बल्कि अल्प होती है तथा वो बाजार में परस्पर प्रतियोगिता करती हैं। स्थानीय नहीं किन्तु प्रायः अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता इतनी तीव्र होती है कि प्रायः अर्थशास्त्री इसे गला-काट प्रतियोगिता से संबोधित करते हैं। ऐसे बाजार को अल्पाधिकार (Oligopoly) बाजार कहा जाता है। उदाहरणः (i) Coke, Pepsi, और Canada Dry तथा कुछ अन्य की Soft Drink के लिए विश्वभर में प्रतियोगिता चलती है (ii) General Motors, Toyota, Maruti Suzuki, Hyundai, Ford तथा कुछ अन्य की मोटरकारों के लिए विश्वभर में प्रतियोगिता चलती है। अल्पाधिकार बाजार की परिभाषामेयर्स के शब्दों में, ”अल्पाधिकार बाजार की वह अवस्था है जहां विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर प्रभाव पड़ता है तथा प्रत्येक विक्रेता इस बात को जानता है।“ लेक्टविच के अनुसार, ”बाजार की वे दशाएं अल्पाधिकार की दशाएं कहलाती है जिनमें थोड़ी संख्या में इतने से विक्रेता पाये जाते हैं कि एक की क्रियाएं दूसरे के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।“ अल्पाधिकार बाजार के प्रकारअल्पाधिकार बाजार निम्न प्रकार के होते हैं
1. विभेदात्मक अल्पाधिकार - विभेदात्मक अल्पाधिकार वह होता है, जिसमें फर्में विभेदित वस्तुओं का उत्पादन एवं विक्रय करती हैं। विभिन्न वस्तुओं में भेद वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता है। वास्तविक विभेद गुण, आकार, डिजाइन आदि पर आधारित होता है जबकि काल्पनिक विभेद ट्रेडमार्क, ब्राण्ड के नामों के कारण होता है। 2. विशुद्ध अल्पाधिकार - विशुद्ध अल्पाधिकार वह दशा होती है, जिसमें सभी फर्मांे द्वारा लगभग एक सी वस्तु का उत्पादन तथा विक्रय किया जाता है। विशुद्ध अल्पाधिकार में गैर-कीमत प्रतियोगिता नहीं हो सकती है। एक विक्रेता की वस्तु को दूसरे विक्रेता की वस्तु की अपेक्षा क्रेता द्वारा इसलिए पसन्द किया जाता है क्योंकि वह तुलनात्मक रूप से सस्ती होती है। 3. गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार - गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार वह होता है जिसमें उद्योग में लगी सभी फर्में किसी औपचारिक अथवा गैर-औपचारिक समझौते के अन्तर्गत अपना कोई संघ बना लेती हैं। गठबंधन दो प्रकार का हो सकता है। (1) पूर्ण गठबंधन (2) अपूर्ण गठबंधन। पूर्ण गठबंधन के अन्तर्गत किसी केन्द्रीय कार्टेल की स्थापना की जाती है अथवा बाजार सहभागियों द्वारा कार्टेल व्यवस्था अपनायी जाती है। अपूर्ण गठबंधन में उद्योग में लगी सभी फर्में किसी बड़ी फर्म अथवा प्रधान फर्म के मूल्य नेतृत्व को स्वीकार करती हैं अर्थात् प्रधान फर्म जो मूल्य निर्धारित करती है अन्य फर्में उसी मूल्य को स्वीकार करके उसका अनुसरण करती हैं। स्वतन्त्र अल्पाधिकार बाजार की वह दशा होती है जिसके अन्तर्गत उद्योग में लगी सभी फर्में वस्तु के उत्पादन अथवा मूल्य निर्धारण में स्वतंत्र होती हैं उनका आपस में कोई समझौता नहीं होता है। सभी फर्मों में आपस में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 20 Industrialization and Urbanization: Effects on Indian Society (औद्योगीकरण तथा नगरीकरण : भारतीय समाज पर प्रभाव) UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 20 Industrialization and Urbanization: Effects on Indian Society (औद्योगीकरण तथा नगरीकरण : भारतीय समाज पर प्रभाव)विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक) प्रश्न 1 धन कमाना मनुष्य की एक प्रमुख क्रिया है। आजीविका जुटाने के लिए प्रकृति के साथ सतत संघर्ष करना ही मानव-विकास की कहानी है। मनुष्य आखेट, पशुपालन व मछली पकड़ने से लेकर धीरे-धीरे औद्योगिक युग तक पहुँच गया है। औद्योगीकरण दो शब्दों के मेल से बना है-उद्योग + करण’। ‘उद्योग’ का अर्थ ‘कारखाने’ तथा ‘करण’ का अर्थ है–‘स्थापित करना। इस प्रकार औद्योगीकरण का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘कारखाने स्थापित करना। क्लार्क केर के अनुसार, “औद्योगीकरण से अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें पहले का कृषक अथवा व्यापारिक समाज एक औद्योगिक समाज की दिशा की ओर परिवर्तित होने लगता है।” औद्योगीकरण की विशेषताएँ
औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव औद्योगीकरण का भारतीय समाज के सभी पक्षों पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिस पर हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे (क) भारतीय पारिवारिक जीवन पर प्रभाव 1. संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन – संयुक्त परिवार भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता रही है। एक परिवार के सभी नये-पुराने सदस्य एक ही स्थान पर रहते हुए खेती का कार्य करते रहे हैं, किन्तु उद्योगों के विकास के साथ-साथ लोग कारखानों में काम करने के लिए गाँव छोड़कर शहरों की ओर भागे। एक ही परिवार का कोई सदस्य कहीं पहुँच गया, कोई कहीं। कारखानों की मजदूर कॉलोनी में या अन्य छोटे-छोटे आवासों में लोग जा बसे, जहाँ मुश्किल से एक छोटे-से परिवार को ही गुजारा होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार को विघटन होने लगा और यह क्रिया काफी व्यापक पैमाने पर हुई है। इस प्रकार के स्थानों पर जिन परिवारों की नींव पड़ी, वे भी छोटे थे; क्योंकि पति-पत्नी तथा बच्चों के अतिरिक्त अन्य किसी का वहाँ गुजारा नहीं हो सकता था। 2. पारिवारिक कार्य-क्षेत्र का सीमित होना – संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों की अधिकांश आवश्यकताएँ अन्य सदस्यों द्वारा पूरी हो जाती थीं। औद्योगीकरण के प्रभाव से परिवार के अनेक कार्य विशिष्ट संस्थाओं द्वारा होने लगे हैं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप कपड़े धोने का काम लॉण्ड्री में, कपड़े सिलने का काम दर्जी की दुकानों में, आटा पीसने का काम आटा पीसने की शक्ति-चालित चक्कियों में, खेत जोतने, बोने, काटने, माँड़ने का काम विभिन्न मशीनों से होने लगा। इस प्रकार परिवार का कार्य-क्षेत्र सीमित हो गया है। 3. स्त्रियों का नौकरी करना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप घर के अनेक कार्य मशीनों द्वारा होने लगे और स्त्रियों के पास समय बचने लगा। अतः महँगाई और अभाव से ग्रस्त परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए स्त्रियाँ नौकरी करने लगीं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप सघन कॉलोनी में रहने के कारण पर्दा-प्रथा भी कम हो गयी और नौकरी पर जाने में स्त्रियों की हिचक समाप्त हो गयी। 4. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – धन कमाने के कारण स्त्रियाँ स्वावलम्बिनी होने लगीं। अपने पैरों पर खड़े होने के कारण उनका आत्मविश्वास बढ़ा। वे अधिक स्वतन्त्र हुईं। उनमें शिक्षा का प्रसार हुआ और इस प्रकार उनकी स्थिति में सुधार हुआ। 5. विवाह के रूप में परिवर्तन – पहले धर्म-विवाह होते थे, जो संयुक्त परिवार के बुजुर्गों द्वारा कर दिये जाते थे। औद्योगीकरण के प्रभाव में प्रेम-विवाह और अन्तर्जातीय विवाहों की संख्या बढ़ी है, क्योंकि सघन औद्योगिक बस्तियों में युवक और युवतियों के सम्पर्क बढ़े तथा बड़े बुजुर्गों के नियन्त्रण का अभाव हो गया। इसके साथ-ही-साथ अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयास में विवाह की आयु बढ़ी और इस प्रकार विलम्ब विवाह होने लगे। वैवाहिक जीवन पर नियन्त्रण घटने से तलाक भी बढ़े हैं। 6. पारिवारिक नियन्त्रण का घटना – पहले संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों पर परिवार के मुखिया का कठोर नियन्त्रण रहता था। हर व्यक्ति परिवार के रीति-रिवाज, आस्थाओं, मान्यताओं आदि से प्रभावित रहता था। औद्योगीकरण के प्रभावस्वरूप परिवारों का आकार छोटा हो गया और व्यक्ति पर पारिवारिक नियन्त्रण घट गया है। (ख) भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव 1. रहन-सहन में कृत्रिमता – औद्योगीकरण के फलस्व रूप लोगों का जीवन अप्राकृतिक हो गया। है। तंग घरों, अँधेरी गलियों, धुएँ से भरा हुआ आकाश, ट्रामें, बसें, रेलें, ऊँचे-नीचे मकान व मशीनों का शोर औद्योगीकरण की ही देन है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से दूर होती जा रही है। 8. चिन्ता एवं तनाव में वृद्धि – बढ़ती हुई जनसंख्या और रहन-सहन की सुविधाओं के अभाव के कारण तथा नौकरी की तनावपूर्ण दशाएँ, शोषण, ईष्र्या, द्वेष, प्रतिद्वन्द्विता आदि के कारण औद्योगिक बस्ती में रहने वाले लोगों में चिन्ता एवं तनावों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी है। इससे व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन अशान्त हो गया है। (ग) भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव 1. पूँजीवाद का विकास बड़े – बड़े उद्योग चलाने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है, जो पूँजीपतियों से प्राप्त होता है या सरकार द्वारा लगाया जाता है। भारत में भी औद्योगीकरण के विकास के साथ पूँजीपतियों को बढ़ावा मिला है। उनका धन उद्योगों के खोलने में लगा है और उद्योगों के लाभ से उनके कोष भरे पड़े हैं। इसके साथ-ही-साथ श्रमिकों का शोषण भी हुआ है। 2. बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं व्यापार – भारत में औद्योगीकरण के फलस्वरूप नये-नये कारखाने खोले गये हैं, जिनसे विभिन्न वस्तुओं का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होने लगा है। कई उद्योगों के लिए कच्चा माल बाहर से आने लगा है और शक्ति के कुछ साधनों का भी आयात किया गया है। इस प्रकार औद्योगीकरण से उत्पादन एवं व्यापार को काफी बढ़ावा मिला है। 3. उच्च जीवन-स्तर – औद्योगीकरण से देश में उत्पादन बढ़ता है और निर्यात द्वारा जो धनोपार्जन होता है वह जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है। हमारे देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जो तीव्र गति से औद्योगिक विकास हुआ है, उससे देशवासियों के 4. श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण – कुटीर उद्योगों में तो उद्योग खोलने वाला व्यक्ति सभी काम स्वयं कर लेता है, किन्तु बड़े उद्योगों में कारखानों में काम कई भागों में बाँट दिये जाते हैं और उन्हें विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अत्यधिक तीव्र गति और दक्षता से करते हैं। इस प्रकार श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है। औद्योगीकरण का यह एक अनिवार्य परिणाम है। 5. काला धन, चोर-बाजारी एवं आयकर की चोरी – औद्योगीकरण के साथ लोगों की आमदनी बढ़ती है। आमदनी पर कर देना होता है, इसलिए उत्पादन ही छिपा लिया जाता है। इस प्रकार कुल आमदनी के एक अंश आयकर की चोरी की जाती है। अवैध रूप से दबाये हुए उत्पादन की वस्तुओं की बिक्री करके चोर-बाजारी पनपती है। भारत में यह सभी कुछ हो रहा है। (घ) भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव औद्योगीकरण का प्रभाव भारतीय राजनीतिक जीवन पर भी पड़ा है, जो निम्नवत् है
(ङ) भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव औद्योगीकरण का किसी देश के धार्मिक जीवन पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में औद्योगीकरण का धार्मिक मान्यताओं पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है 1. समाज में धर्म का महत्त्व कम होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत में ईश्वर पर से लोगों की आस्था कम होती जा रही है। लोगों का ध्यान भौतिक सुखों की ओर अधिक बढ़ने लगा है। 2. नैतिकता का ह्रास – नैतिकता की भावना, जो धर्म का एक आवश्यक अंग है, भारतीय जीवन से तिरोहित होती जा रही है। स्वार्थों की टकराहट में मानवता का हनन हो रहा है। मनुष्य ने मनुष्य को पहचानना तक छोड़ दिया है। 3. आदर्शों का अभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यक्ति का दृष्टिकोण भौतिकवादी हो गया है। अपने को वह केवल वर्तमान से ही जोड़कर रखने की कोशिश करता है। भौतिक सुखों की उपलब्धि उसके जीवन का लक्ष्य है। जीवन के आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रहा है, क्योंकि उसकी निगाह भविष्य पर टिकी नहीं होती। औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के उपाय औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
प्रश्न 2 ‘नगरीकरण’ शब्द नगर से ही बना है। सामान्यत: नगरीकरण का अर्थ नगरों के उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन से लिया जाता है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं। जब एक स्थान पर एक विशाल उद्योग स्थापित हो जाता है तो उस स्थान पर कार्य करने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं और धीरे-धीरे वह स्थान नगर के रूप में विकसित हो जाता है। नगरीकरण को परिभाषित करते हुए ब्रीज लिखते हैं, “नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसके कारण लोग नगरीय कहलाने लगते हैं, शहरों में रहने लगते हैं, कृषि के स्थान पर अन्य व्यवसायों को अपनाते हैं जो नगर में उपलब्ध हैं और अपने व्यवहार-प्रतिमान में अपेक्षाकृत परिवर्तन का समावेश करते हैं।’ डेविस के अनुसार, “नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है, परिवर्तन का वह चक्र है जिससे कोई समाज कृषक से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।” बर्गेल के अनुसार, “ग्रामीण क्षेत्रों को नगरीय क्षेत्र में बदलने की प्रक्रिया को ही हम नगरीकरण कहते हैं।” नगरीकरण की विशेषताएँ
उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ ही भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुई है। ग्रामीण लोग देश के विभिन्न भागों में स्थित कारखानों में काम करने के लिए गमन करने लगे हैं, फलस्वरूप महानगरीय एवं नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई है। | भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया ने यहाँ के समाज और जनजीवन को बहुत कुछ प्रभावित किया है। इसके परिणामस्वरूप एक तरफ अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं तो दूसरी ओर कई सामाजिकआर्थिक परिवर्तनों एवं समस्याओं को भी पनपने का मौका मिला है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि नगरीकरण का अर्थ केवल ग्रामीण जनसंख्या का शहर में आकर बसना या भूमि से सम्बन्धित कार्यों के स्थान पर अन्य कार्यों में अपने को लगाना ही नहीं है। लोगों के नगर में आकर बस जाने मात्र से ही उनका नगरीकरण नहीं हो जाता। ग्रामीण व्यक्ति भी जो कि ग्रामीण व्यवसाय और आदतों को त्यागते नहीं हैं, नगरीय हो सकते हैं, यदि वे नगरीय जीवन-शैली, मनोवृत्ति, मूल्य, व्यवहार एवं दृष्टिकोण को अपना लेते हैं। नगरीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव नगरीकरण की प्रक्रिया ने, जो भारतवर्ष में पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध से चल रही है, देश में अनेकानेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं और जनजीवन को गहराई से प्रभावित किया है, जिस पर अग्रलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे (क) नगरीकरण का पारिवारिक जीवन पर प्रभाव 1. संयुक्त परिवार का विघटन – गाँवों में संयुक्त परिवार पाये जाते हैं। शहरों में स्थानाभाव के कारण तथा गाँवों से एकाकी रूप से स्थानान्तरित होने के कारण संयुक्त परिवार का स्थान एकाकी छोटे परिवारों ने ले लिया है। 2. पारिवारिक नियन्त्रण का अभाव – गाँवों में संयुक्त परिवार के मुखिया का परिवार पर काफी नियन्त्रण रहता है। नगरों में छोटे परिवार तथा उन्मुक्तता के कारण पारिवारिक नियन्त्रण इतना कठोर नहीं होता। 3. नयी प्रथाएँ एवं परम्पराएँ – नगरीकरण के प्रभाव से भारत के गाँवों के परिवार की प्रथाएँ एवं परम्पराएँ भी बदलती जा रही हैं; जैसे – माँ-बाप को माता-पिता कहने के स्थान पर मम्मी-डैडी कहना, रसोई में पीढ़े पर खाने के बजाय मेज-कुर्सी पर खाना, भाषा में अंग्रेजी का अधिक प्रयोग करना आदि। 4. पारिवारिक जीवन में अस्थिरता – गाँवों में पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थिर एवं स्थायी होते हैं। शहरों में स्त्रियों को पर-पुरुषों से मिलने-जुलने का काफी अवसर मिलता रहता है। और अधिक स्वतन्त्रता रहती है; इसलिए पति-पत्नी के सम्बन्धों में कुछ कम स्थिरता होती है। नगरों में तलाक की घटनाएँ अधिक होती हैं। 5. वैवाहिक आदशों में परिवर्तन – नगरों में युवक-युवतियाँ उच्च स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने में लगे रहते हैं। फिर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए नौकरी ढूंढ़ते हैं। स्वावलम्बन प्राप्त करने के इस प्रयास में विवाह की अवस्था बढ़ जाती है, जिससे विलम्ब विवाह नगरों में सामान्य हो गये हैं। कुछ लोग विवाह के चक्कर में नहीं फंसना चाहते, अत: वे अविवाहित रहते हैं। इनके अतिरिक्त नगरों में प्रेम-विवाहों की परम्परा भी प्रचलित है और विधवा-विवाह बुरे नहीं माने जाते। 6. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – नगरीकरण के साथ-साथ भारत में स्त्रियों में स्वावलम्बन “और स्वतन्त्रता की तरंग अधिक व्याप्त होती जा रही है। वे पुरुषों के दबाव में और पर्दे में नहीं रहतीं। वे पुरुष के समकक्ष शिक्षा प्राप्त करती हैं और नौकरियाँ करती हैं। इस प्रकार उनकी दशा में काफी सुधार हुआ है और होता जा रहा है। (ख) नगरीकरण का सामाजिक जीवन पर प्रभाव नगरीकरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है 1. शिक्षा का प्रसार – भारत में शिक्षितों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि स्थान-स्थान पर विद्यालय खुलते जा रहे हैं। शिक्षा के इस व्यापक प्रसार से अन्धविश्वास में कमी, सामाजिक जीवन की अधिक गहरी समझ, विचारों का आदान-प्रदान, उद्योगों का विकास, कृषि की उन्नति, व्यापार में विकास आदि सभी कुछ हो रहा है। 2. सभ्यताओं का संगम – नगरों में विभिन्न जातियों, प्रदेशों, सम्प्रदायों आदि के लोग रहते हैं। विदेशों से भी लोगों का आवागमन होता रहता है। इस प्रकार रहन-सहन के तरीकों, भाषाओं और विचारों के मिश्रण से रहन-सहन में परिवर्तन होता रहता है। भारत के अनेक भागों में यह लक्षण परिलक्षित हो रहा है। फलस्वरूप स्थाने-विशेष की मूल संस्कृति में भी परिवर्तन हो जाती है। 3. संचार के साधनों का प्रसार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों में भी परिवर्तन होता 4. अपराध-प्रवृत्ति का प्रसार – शहर में आवास की सुविधाओं का अभाव रहता है, जनसंख्या अधिक रहती है, धनलोलुपता अधिक पायी जाती है, इसलिए लोगों में नैतिकता का अभाव होता है। झूठ, घूस, चोरी, छल-कपट, मिलावट, शराबखोरी, जुआ, डकैती, हत्या आदि भाँतिभाँति के अपराध सामाजिक जीवन पर हावी होते जा रहे हैं और उसे नारकीय बना रहे हैं। नगरीकरण के साथ-साथ मानव को मूल्य कम और धन का महत्त्व अधिक बढ़ता जा रहा है। 5. बीमारियों का प्रसार – स्वास्थ्य-विभाग की व्यवस्थाओं के बावजूद भी घनी जनसंख्या, तंग, अँधेरी, बदबू तथा सीलन से युक्त बस्तियों, खुली हवा का अभाव, खाद्य पदार्थों में तरह-तरह की मिलावट, अवैध एवं मुक्त यौनसम्बन्ध तथा अनियमित रहन-सहन से नगरीकरण के साथ रोगों का भी काफी प्रसार होता है। 6. रहन-सहन में कृत्रिमता – नगरीकरण के प्रभाव से गाँवों का स्वाभाविक एवं प्राकृतिक जीवन कृत्रिम रूप ग्रहण करने लगता है। कोल्ड स्टोरेज की सब्जियाँ, दवाओं से युक्त गेहूँ, पॉलिश किया हुआ चावल, रँगी हुई दाल, कृत्रिम वनस्पति घी एवं मक्खन, सेन्ट डाला हुआ कडूवा तेल, टिन में बन्द अन्य खाद्य सामग्रियों का प्रयोग करते हैं। वस्त्रों में सूती, ऊनी व रेशमी वस्तुओं के स्थान पर बनावटी रेशों के वस्त्र; जैसे-टेरीलीन, नायलॉन आदि; का प्रयोग किया जाता है। 7. स्वास्थ्य में गिरावट, किन्तु जीवनावधि में वृद्धि-रहन – सहन की अनियमितता तथा अशुद्ध वस्तुओं के सेवन आदि के कारण नगरीकरण से लोगों के सामान्य स्वास्थ्य में गिरावट आती है। किन्तु चिकित्सा की उत्तम पद्धतियों में रोगों का निराकरण भी हो जाता है, और नगर में रहने वाला भारतीय कमजोर, किन्तु अधिक लम्बा जीवन जीता है। 8. नशीले द्रव्यों के सेवन में वृद्धि – नगरीकरण के प्रभाव से लोगों में शराब, अफीम, एल० एस० डी०, मारिजुआना, हीरोइन, भाँग आदि के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ती है, क्योकि नगरीय जीवन में तनाव से शान्ति प्राप्त करने हेतु नशीले द्रव्यों का सेवन आवश्यक बन जाता है। इनके साथ-साथ नींद प्राप्त करने के लिए सोने की गोलियों का प्रयोग भी बढ़ता है। 9. भौतिकवाद की प्रधानता – नागरिक प्रभाव के कारण भारतीय समाज के आदर्शवादी सिद्धान्त तिरोहित होने लगे हैं। लोगों का ध्यान आत्मिक विकास के स्थान पर भौतिक सुख सम्पन्नता प्राप्त करने पर अधिक रहने लगा है। इससे पारस्परिक संघर्ष, ईष्र्या-द्वेष, वैमनस्य, प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है और तनाव-चिन्ता में वृद्धि हुई है। (ग) नगरीकरण का भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव नगरीकरण के प्रभाव से भारतीय आर्थिक जीवन भी काफी प्रभावित है, जिसका विवरण निम्न प्रकार है 1. पूँजीवाद का विकास – उद्योगों और व्यापारिक कार्यों से थोड़े-से लोगों के हाथ में धन का केन्द्रीकरण होने लगा है और शेष जनता शोषण का शिकार हुई है। जिनके पास साधनसुविधाएँ हैं, वे अधिकाधिक धन कमा रहे हैं तथा जिनके पास इनका अभाव है, उनकी दशा गिरती जाती है। 2. महँगाई में वृद्धि – जनसंख्या में अधिक वृद्धि एवं उत्पादन में कमी की वृद्धि के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है, वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं जिससे मध्यम और निम्न वर्ग त्रस्त हो रहा है। 3. कुटीर उद्योगों का ह्रास – नगरीकरण के साथ बड़े उद्योग-धन्धों का प्रसार तेजी से हुआ है। और कुटीर उद्योगों का उसी अनुपात में ह्रास हुआ है। फलस्वरूप नगरीकरण के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था असन्तुलित होती जा रही है। 4. बेकारी में वृद्धि – नगरीकरण के साथ-साथ बेकारी में वृद्धि होती है, क्योंकि बड़े उद्योगों में मशीनें मानवीय श्रम का स्थान ले लेती हैं, जिससे बेकारी बढ़ जाती है। व्यवसाय के अभाव से निर्धनता बढ़ती है। नगरीकरण से ऐसे शिक्षित नवयुवकों की संख्या बढ़ती है, जो केवल पढ़ने-लिखने से सम्बन्धित काम करना चाहते हैं। इस तरह के नवयुवक गाँवों से भी नगर में नौकरी की तलाश में आकर इकट्ठे होने लगते हैं और बेकारी की संख्या में वृद्धि करते हैं। 5. वाणिज्य और व्यापार का विस्तार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों का विस्तार और प्रसार होता है। पक्के वातानुकूलित गोदामों का निर्माण होता है, जो वस्तुओं को संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करते हैं। दूर-दूर से व्यापारी आकर इकट्ठे होते हैं और इस प्रकार वाणिज्य और व्यापार का विस्तार होता है। (घ) नगरीकरण का भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव नगरीकरण का देश के राजनीतिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है
(ङ) नगरीकरण का भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव नगरीकरण की प्रक्रिया ने भारत के धार्मिक जीवन को निम्नलिखित रूप से प्रभावित किया है
प्रश्न 3 भारतीय समाज पर नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के प्रभावों का अनेक विद्वानों ने अध्ययन किया है, जिनमें एम० एस० गोरे, एलन डी० रॉस, एम० एन० श्रीनिवास आदि प्रमुख हैं। इन्होंने भारतीय ग्रामीण सामाजिक संरचना, संयुक्त परिवार, विवाह एवं जाति-प्रथा पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया है। भारतीय समाज पर औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के प्रभावों का उल्लेख निम्नवत् है 1. यातायात के साधनों का विकास – उद्योगों का यन्त्रीकरण हुआ तो उत्पादन की गति तीव्र हुई। कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मण्डियों में पहुँचाने के लिए तीव्रगामी यातायात के साधनों की आवश्यकता महसूस हुई। परिणामस्वरूप रेल, मोटर, ट्रक, वायुयान, जहाज आदि का आविष्कार हुआ, पक्की सड़कें बनीं और यातायात के साधनों का जाल बिछ गया। 2. श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण – ग्रामीण कुटीर व्यवसायों में एक परिवार के व्यक्ति मिलकर ही सम्पूर्ण निर्माण की प्रक्रिया में हाथ बंटाते थे, किन्तु जंब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया गया। इसी कारण श्रम-विभाजन का उदय हुआ। एक व्यक्ति सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के मात्र एक भाग को ही कर सकता था, जिसके कारण विशेषीकरण ने जन्म लिया। 3. उत्पादन में वृद्धि – औद्योगीकरण में श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा। अधिक उत्पादन के कारण माल की खपत के क्षेत्र में वृद्धि हुई, पूँजी में वृद्धि हुई और स्थानीय आवश्यकताओं के लिए ही नहीं वरन् विश्वव्यापी मॉग के लिए उत्पादन होने लगा। 4. बैंक, बीमा एवं साख – व्यवस्था का उदय-उद्योगों को सुविधाएँ देने, उनके लिए पूँजी जुटाने एवं माल की सुरक्षा के लिए बैंक, बीमा एवं साख-व्यवस्था का उदय हुआ। आज हजारों लोग बैंकों एवं बीमा कार्यालयों में काम करते हैं। 5. आर्थिक प्रतिस्पर्धा – औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। इस प्रतिस्पर्धा में अधिक पूँजी वाला कम पूँजी वाले के व्यवसाय को नष्ट कर देता है और अपना एकाधिकार स्थापित कर लेता है। एकाधिकार कायम होने पर वह माल को अपनी मनचाही कीमत पर बेचता है। 6. सांस्कृतिक सम्पर्क – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण ही यातायात एवं सन्देशवाहन के साधनों का विकास हुआ। नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया। यही कारण है कि शहरों में जो औद्योगिक केन्द्र हैं, उनमें हम विभिन्न संस्कृतियों को साथ-साथ फलते-फूलते देख सकते हैं। 7. विवाह पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के प्रभाव के कारण परम्परात्मक भारतीय विवाह संस्था में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं। अब जीवन-साथी के चयन में स्वयं लड़के व लड़कियों की राय को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। नगर में ही हमें प्रेम-विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, कोर्ट मैरिज, विधवा पुनर्विवाह, तलाक आदि अधिक दिखाई देते हैं। नगर के लोग विवाह को अब एक धार्मिक संस्कार न मानकर एक सामाजिक समझौता मानने लगे हैं जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। अब विवाह का उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति न मानकर सन्तानोत्पत्ति एवं रति-आनन्द माना जाने लगा है। 8. जाति-प्रथा पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण भारतीय जाति-प्रथा में भी परिवर्तन हुआ है। परम्परागत जाति-प्रथा में संस्तरण की एक प्रणाली पायी जाती है, जिसमें जातियों की स्थिति ऊँची और नीची होती है। प्रत्येक जाति का इस संस्तरण में एक स्थान निश्चित होता है। किन्तु औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण जाति-प्रथा की उपर्युक्त विशेषताओं में परिवर्तन हुआ है। अब व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति के बजाय उसके गुणों के आधार पर होने लगा है। जातीय संस्तरण में भी परिवर्तन हुआ है और उन जातियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है, जो संख्या की दृष्टि से अधिक हैं, आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं और जिन्हें राजनीतिक सत्ता प्राप्त है। खान-पान के सम्बन्धों एवं छुआछूत में भी शिथिलता आयी है। 9. ग्रामीण समुदाय पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव ग्रामीण समुदायों पर भी पड़ा। यद्यपि गाँवों में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा, जाति-प्रथा व कुछ मात्रा में जजमानी प्रथा का प्रचलन है, फिर भी नगरों के प्रभाव से ग्राम बच नहीं पाये हैं। ग्रामीणों में वस्तु के स्थान पर मुद्रा विनिमय का प्रचलन बढ़ा है। उनके दृष्टिकोण एवं मूल्यों में परिवर्तन हुआ है और नयी आकांक्षाएँ पैदा हुई हैं। गाँवों में जजमानी प्रथा कमजोर हुई है और कई ग्रामीण लोग नगरों में जाकर अपना जातीय व्यवसाय करने लगे हैं। गाँवों में नगरीय संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था पनपने लगी है। 10. राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया ने राजनीतिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। नगरों में यातायात एवं संचार के साधनों एवं समाचार-पत्रों आदि की सुविधा होने के कारण राजनीतिक दल अपने विचारों और सिद्धान्तों को सरलता से जनता तक पहुँचा देते हैं। नगरीकरण ने लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा की है और नवीन प्रजातन्त्रीय मूल्यों से लोगों को परिचित कराया है। 12. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन – नगरों में स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। वहाँ लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलायी जाती है। अतः वे पढ़-लिखकर स्वयं धन अर्जन करने लगी हैं और पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हुई है। नगरों में स्त्रियाँ डॉक्टर, इन्जीनियर, प्राध्यापक, प्रशासक, विधायक, मन्त्री और अन्य पदों पर कार्य करने लगी हैं। प्रेम-विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह के कारण स्त्रियों की पारिवारिक प्रस्थिति भी ऊँची उठी है। वर्तमान में परिवारों में पत्नी को पति के समकक्ष दर्जा प्राप्त है। 13. सामाजिक गतिशीलता – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर होने पर एक से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग, व्यवसाय को बदलने के लिए तैयार रहता है। 14. व्यापारिक मनोरंजन – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण मनोरंजन का व्यापारीकरण हुआ है। अनेक संस्थाएँ आज मनोरंजन प्रदान करने का कार्य करती हैं। सिनेमा, क्लब, नाटक, टेलीविजन, रेडियो आदि के संचालन में पर्याप्त मात्रा में पैसों की जरूरत नहीं होती है। ग्रामीण जीवन में मनोरंजन, त्योहारों व उत्सवों के अवसर पर होने वाले नृत्यों द्वारा उपलब्ध होता था, किन्तु आज इन सबके लिए पर्याप्त पैसा खर्च करना होता है। 15. अन्य प्रभाव – उपर्युक्त प्रभावों के अतिरिक्त औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कुछ अन्य प्रभाव इस प्रकार हैं
प्रश्न 4 1. पूँजीवाद का जन्म – औद्योगीकरण से पूर्व जीवन-यापन का प्रमुख साधन कृषि एवं कुटीर व्यवसाय थे, जो छोटे पैमाने पर होते थे और जिनमें अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती थी, किन्तु जब औद्योगीकरण हुआ तो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हुआ। जिसके पास पूँजी थी, उसने कारखाना लगाया। धीरे-धीरे पूँजी में वृद्धि हुई। श्रमिकों के श्रम का लाभ पूँजीपतियों को मिला। वे अधिक धनी बने। औद्योगीकरण ने ही पूँजीपति एवं मजदूर, दो प्रमुख वर्गों को जन्म दिया। 2. मजदूर समस्याओं एवं मजदूर संगठनों का जन्म – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण अनेक मजदूर समस्याओं ने जन्म लिया। मजदूरों के स्वास्थ्य की समस्या, काम के घण्टे, भर्ती की समस्या, शिक्षा, बीमा, चिकित्सा, मकान, बोनस आदि से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का जन्म हुआ। इन्हें हल करने के लिए उन्होंने मजदूर संगठनों का निर्माण किया। कुटीर व्यवसाय से सम्बन्धित कोई श्रम समस्याएँ नहीं थी, क्योंकि उनमें काम करने वालों में परस्पर सहयोग और घनिष्ठ सम्बन्ध थे। अतः शोषण का प्रश्न ही नहीं था। 3. बेकारी – उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान लिया। अभिनवीकरण में ऐसी मशीनों का प्रयोग किया जाता है, जिनके द्वारा कम श्रम से अधिक उत्पादन होता है तथा इससे मजदूरों की छंटनी होती है। भारत जैसे देश में, जहाँ पहले से ही बेकारी है, मशीनीकरण से अनेक श्रमिक बेकार हो गये। 4. कुटीर उद्योगों का ह्रास – औद्योगीकरण से पूर्व उत्पादन कुटीर उद्योगों द्वारा होता था, किन्तु जब मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा जो कि हाथ से बने माल की अपेक्षा सस्ता, साफ व टिकाऊ होता था तो उसके सामने गृह उद्योग द्वारा निर्मित माल टिक नहीं सका। धीरे-धीरे कुटीर व्यवसाय समाप्त होने लगे और उनमें काम करने वाले तथा उनके मालिक कारखानों में श्रमिकों के रूप में सम्मिलित हुए। इस प्रकार औद्योगीकरण से ग्रामीण कुटीर उद्योगों एवं गृह-कला का ह्रास हुआ। 5. आर्थिक संकट व पराश्रितता – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण गाँवों में आत्मनिर्भरता समाप्त हुई। एक गाँव की दूसरे गाँव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी। आज एक देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष अंथवा परोक्ष रूप में दूसरे देशों का भी योगदान है। यदि अरब राष्ट्र भारत को तेल देना बन्द कर दें, तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के दोषों को दूर करने के उपाय जहाँ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण लोगों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं, वहाँ इनके प्रभाव के कारण अनेक समस्याएँ भी पैदा हुई हैं। औद्योगीकरण के इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय प्रभावी होंगे
प्रश्न 5 विभिन्न विद्वानों द्वारा औद्योगीकरण की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं एम० एस० गोरे के अनुसार, “औद्योगीकरण उस प्रक्रिया से सम्बन्धित है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हाथ से न होकर विद्युतशक्ति द्वारा चालित मशीनों से किया जाता है।” पी-कांग-चांग के अनुसार, “औद्योगीकरण से अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत उत्पादन के कार्यों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते रहते हैं। इनमें वे आधारभूत परिवर्तन भी सम्मिलित किये जाते हैं जिनका सम्बन्ध किसी औद्योगिक उपक्रम के यन्त्रीकरण, नवीन उद्योगों का निर्माण, नये बाजारों की स्थापना तथा किसी नवीन क्षेत्र के विकास से है। वह एक प्रकार से पूँजी को गहन तथा व्यापक बनाने की विधि है।” ऊपर वर्णित परिभाषाओं से स्पष्ट है कि औद्योगीकरण उद्योगों के विकास की एक प्रक्रिया है, जिसमें बड़े पैमाने पर उद्योग लगाए जाते हैं तथा हाथ से किया जाने वाला उत्पादन मशीनों से किया जाने लगता है। औद्योगीकरण शब्द का प्रयोग व्यापक एवं संकुचित दो अर्थों में हुआ है। संकुचित अर्थ में औद्योगीकरण से तात्पर्य निर्माता-उद्योगों की स्थापना एवं विकास से है। इस अर्थ में औद्योगीकरण आर्थिक विकास की प्रक्रिया का ही एक भाग है जिसका उद्देश्य उत्पादन के साधनों की कुशलता में वृद्धि करके जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है। व्यापक अर्थ में, “औद्योगीकरण के द्वारा देश की सम्पूर्ण आर्थिक संरचना को परिवर्तित किया जा सकता है।” औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लघु एवं कुटीर उद्योगों का स्थान बड़े पैमाने के उद्योग ले लेते हैं। उद्योगों में जड़ शक्ति का प्रयोग किया जाता है और उत्पादन मशीनों की सहायता से होता है। फलस्वरूप उत्पादन तीव्र गति से तथा विशाल मात्रा में होता है। औद्योगीकरण के विकास में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अन्तर्गत कोयला, विद्युत शक्ति, खनिज पदार्थ आदि की अधिकाधिक प्राप्ति तथा उनके प्रयोग पर बल दिया जाता है। छोटेछोटे उद्योगों के स्थान पर बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना अथवा बड़े पैमाने पर उद्योगों की स्थापना जिनमें प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता हो तथा उत्पादन कार्य मशीनों की सहायता से होता हो, उसे औद्योगीकरण कहा जाता है। 1. प्रदूषित मकानों का जन्म – उद्योगों में काम करने के लिए गाँवों से लोग हजारों की संख्या में आते हैं। परिणामस्वरूप उनके निवास की समस्या पैदा होती है। शहरों में हवा वे रोशनी वाले मकानों का अभाव होता है। मकान महँगे होने के कारण कई व्यक्ति मिलकर एक ही कमरे में रहने लगते हैं। औद्योगिक केन्द्रों में मकान, भीड़-भाड़युक्त, सीलन भरे एवं बीमारियों के घर होते हैं। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने गन्दी बस्तियों की समस्या को प्रमुखत: जन्म दिया है। 2. प्रदूषित वातावरण – शहर में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता है। मकानों में भीड़-भाड़, वायु प्रदूषण, मिल-फैक्ट्री का धुआँ, स्थान की कमी, बन्द मकान, रोशनी एवं स्वच्छ हवा का अभाव, गड़गड़ाहट एवं बहरा कर देने वाला शोरगुल, खटमल, मच्छर, आदि की अधिकता, छूत के रोग, बदबूदार एवं सीलन भरे कमरे, आदि सभी मिलकर स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। शहरों में मृत्यु-दर गाँव की अपेक्षा अधिक होने का यही प्रमुख कारण है। स्वच्छ वातावरण प्रदान करने एवं मनोरंजन हेतु वहाँ पार्क, बगीचों एवं खेलकूद की सुविधाएँ जुटायी जाती हैं। 3. सांस्कृतिक पर्यावरण पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण ही यातायात एवं सन्देशवाहन के साधनों का विकास हुआ। नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया, उनमें पारस्परिक समझ बढ़ी, पारस्परिक आदान-प्रदान हुआ, एक-दूसरे की फैशन, वस्त्र प्रणाली, धर्म, रीति-रिवाज, जीवन विधि आदि को अपनाना सम्भव हुआ। यही कारण है कि शहरों में जो औद्योगिक केन्द्र हैं, उनमें हम विभिन्न संस्कृतियों को साथ-साथ फलते-फूलते देख सकते हैं। लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 1. औद्योगीकरण गाँव एवं नगर दोनों ही स्थानों पर हो सकता है। इसके लिए गाँव छोड़कर नगर जाने की आवश्यकता नहीं है। ग्रामों में भी यदि बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना कर दी जाए अथवा उत्पादन शक्ति-चालित मशीनों से होने लगे तो वहाँ भी औद्योगीकरण हो जाएगा, किन्तु नगरीकरण में ग्रामीण जनसंख्या को ग्राम छोड़कर नगरों में जाना होता है। 2. औद्योगीकरण में कृषि व्यवसाय को छोड़ना होता है और उसके स्थान पर अन्य व्यवसायों में लगना होता है, जब कि नगरीकरण का सम्बन्ध कृषि, उद्योग, व्यापार, नौकरी एवं छोटे-छोटे व्यवसायों 3. औद्योगीकरण का सम्बन्ध उत्पादन की प्रणाली से है, जिसमें उत्पादन का कार्य मशीनों की सहायता से किया जाता है। आर्थिक वृद्धि से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः मूलत: यह एक आर्थिक प्रक्रिया है, किन्तु नगरीकरण नगरीय बनने की एक प्रक्रिया है, जिसका सम्बन्ध एक विशेष प्रकार की जीवन-शैली, खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन से है, जो नगर में निवास करने वाले लोगों में पाया जाता है। 4. सामान्यतः औद्योगीकरण नगरीकरण अथवा नगरों पर आधारित है; क्योंकि उद्योगों की स्थापना के लिए सुविधाओं; जैसे-बैंक मुद्रा, साख, श्रम, यातायात एवं संचार के साधन, पानी, बिजली, बाजार, कच्चा माल आदि की आवश्यकता होती है, वे सभी नगरों में उपलब्ध होती हैं। अतः कहा जाता है कि औद्योगिक समाज नगरीय समाज ही है, जब कि नगरीकरण औद्योगीकरण के बिना भी सम्भव है। प्राचीन समय में जब उत्पादन कार्य बिना मशीनों की सहायता से नहीं किया जाता था तब भी नगर मौजूद थे। उस समय नगर धार्मिक, राजनीतिक, शैक्षणिक एवं व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थल थे। तीर्थस्थान, राजधानियाँ, शिक्षा व संस्कृति के केन्द्र तथा व्यापारिक मण्डियाँ ही तब नगर कहलाते थे। प्रश्न 4 1. सम्बन्धों में औपचारिकता – जीवन का क्षेत्र नगरीकरण के कारण विस्तृत होता है। नगरों की जनसंख्या अधिक होती है। अतः आमने-सामने के घनिष्ठ एवं औपचारिक सम्बन्ध, जो कि लघु समुदायों में सम्भव होते हैं, नगरों में सम्भव नहीं होते। सम्बन्धों में औपचारिकता बढ़ जाती है। 2. एकाकी परिवारों में वृद्धि – भारत में नगरों का विकास हो जाने से संयुक्त परिवारों का विघटन होता जा रहा है। नगरों में व्यावसायिक विजातीयता से एकाकी परिवारों को प्रोत्साहन मिलता है। अब एकाकी परिवारों में वृद्धि के कारण व्यक्तियों में सामाजिक सम्बन्धों की घनिष्ठ ता समाप्त हो चली है तथा साथ-ही पारिवारिकता की भावना का अन्त हो गया है। 3. फैशन का बोलबाला – नगरों में सामाजिक जीवन में बनावट आ गयी है। नगरों में चमके दमक, सजावट तथा आकर्षण का महत्त्व बढ़ गया है। चारों ओर फैशन का बोलबाला हो रहा है तथा सामाजिक रहन-सहन के स्तर में भारी अन्तर आ गया है। साथ ही जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी अन्तर आ गया हैं। 4. सामाजिक विजातीयता – नगरों में विभिन्न जातियों, पेशों तथा संस्कृति के लोग पाये जाते हैं। एक ही जाति एवं धर्म के लोगों के सामूहिक निवास का नगरों में अभाव होता है। अतः नगर के लोग स्थायी सम्बन्धों की स्थापना करने में असफल रहे हैं। नगर के लोगों में पीढ़ीदर-पीढ़ी चलने वाले सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है; क्योंकि नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं, जो उद्देश्यों तथा संस्कृति में समान नहीं होते हैं, इसलिए नगरीकरण के कारण सम्बन्धों में विजातीयता बढ़ गयी है। प्रश्न 5 1. सीमित आकार – इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप परिवार के आकार में कमी हुई है। नगरों व औद्योगिक केन्द्रों में शिक्षा के प्रसार तथा परिवार नियोजन के कारण परिवार के सदस्यों की कमी हुई है और संयुक्त परिवार का आकार पहले की तुलना में सीमित हो गया है। 2. कार्यों में परिवर्तन – परम्परागत रूप से परिवार अपने सदस्यों के लिए शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य बीमा तथा अन्य सभी प्रकार के कार्य करता था, परन्तु आज इसके सभी परम्परागत कार्य अन्य विशेषीकृत समितियों ने ले लिये हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का कार्य शिक्षा संस्थाओं तथा स्वास्थ्य सुरक्षा का कार्य अस्पतालों ने ले लिया है। 3. पारिवारिक नियन्त्रण में कमी – परिवार के परम्परागत कार्यों में कमी के साथ ही परिवार का व्यक्ति पर नियन्त्रण कम हुआ है। आज पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ परिवार के कठोर नियन्त्रण को पसन्द नहीं करते हैं। अतः सामाजिक नियन्त्रण में इनका महत्त्व कम हो गया है। 4. एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है तथा एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। आज नगरीय तथा औद्योगिक क्षेत्रों में इसी कारण एकल परिवारों की संख्या संयुक्त परिवारों की संख्या से कहीं अधिक है। 5. संरचना में परिवर्तन – संयुक्त परिवार की परम्परागत संरचना में काफी परिवर्तन हुआ है। कर्ता की स्थिति, स्त्रियों की स्थिति तथा विधवाओं की स्थिति में परिवर्तन हुआ है। 6. सम्बन्धों में परिवर्तन – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादिता में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों के सम्बन्धों में औपचारिकता आती जा रही है। स्त्रियों के बाहर काम करने से भी सम्बन्ध प्रभावित हुए हैं। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2
प्रश्न 3
प्रश्न 4 प्रश्न 5
प्रश्न 6
प्रश्न 7 प्रश्न 8 प्रश्न 9 निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6 प्रश्न 7 प्रश्न 8 प्रश्न 9 बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6 प्रश्न 7 उत्तर: We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 20 Industrialization and Urbanization: Effects on Indian Society (औद्योगीकरण तथा नगरीकरण : भारतीय समाज पर प्रभाव) help you. |