ब्रजमंडल में मथुरा, गोकुल, नंदगांव, वृंदावन, बरसाना, गोवर्धन आदि क्षेत्र आते हैं। मथुरा जहां श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है। वहीं गोकुल उनकी बाललीला की भूमि है। श्रीकृष्ण जब थोड़े बड़े हुए तो वृंदावन उनका प्रमुख लीला स्थली बन गया। उन्होंने यहां रास रचा और दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया। बरसाना श्रीराधा की जन्मभूमि है और उनका परिवार भी वृंदावन में आकर रहने लगा था। आओ जानते हैं वृंदावन धाम के 8 चमत्कार या रहस्य को। Show
1. रंग महल : वृंदाव में रंग महल है। प्रतिदिन मंदिर के अंदर स्थित रंगमहल में कृष्ण−राधा का पलंग लगा दिया जाता है और पूरा रंगमहल सजा दिया जाता है तथा राधाजी का श्रृंगार सामान रख कर मंदिर के दरवाजे बन्द कर दिए जाते हैं। जब प्रातः दरवाजे खुलते हैं तो सारा सामान अस्त−व्यस्त मिलता है। मान्यता है कि रात्रि में राधा−कृष्ण आकर इस सामान का उपयोग करते हैं। हालांकि शाम के बाद यह मंदिर बंद हो जाता है और यह भी कहा जाता है कि अगर यहां कोई छुपकर रासलीला देखता है तो वह अगले दिन पागल हो जाता है। 2. अपने आप बंद होता और खुलता मंदिर : वृन्दावन में श्रीकृष्ण का एक ऐसा मंदिर है जो अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है। 3. वृंदावन और तुलसी का रहस्य : वृंदा तुलसी को कहा जाता है। यहां तुलसी के पौधे अधिक हैं, इसलिए इसे वृंदावन नाम दिया गया। यानी वृंदा (तुलसी) का वन। कहते हैं कि यहां तुलसी के दो पौधे एक साथ लगे हैं। रात के समय जब राधा और कृष्ण रास रचाते हैं तो यही तुलसी के पौधे गोपियां बनकर उनके साथ नाचते हैं। इन तुलसी का एक भी पत्ता यहां से कोई नहीं ले जाता है। जिसने भी गुपचुप यह कार्य किया वह भारी आपदा का शिकार हो जाता है। 4. अजीब हैं पेड़ : मंदिर के परिसर में उगने वाले पेड़ और निधिवन में उगने वाले पेड़ भी अजीब है। यहां के पेड़ की शखाएं नीचे की ओर बढ़ती है। जहां आमतौर पर पेड़ ऊपर की तरफ बढ़ते हैं वहीं निधिवन में मौजूद पेड़ों की ऊंचाई बेहद कम हैं और इनकी शाखाएं इसकी जड़ों की ओर बढ़ती है। यहाँ पेड़ भी आपस में गुथे हुए हैं जो इस जगह को देखने में भी रहस्यमयी बनाती है। Radha Ashtami Day 5. मंदिर में करते हैं शयन : मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण रोज रात को खुद शयन करने आते हैं। उनके सोने के लिए मंदिर के पुजारी रोज पलंग लगाते हैं और जिस पर साफ-सुधरी गादी एवं बिस्तर के ऊपर चादर बिछाते हैं। लेकिन कहते हैं कि जब मंदिर खुलता है तो उस बिस्तर की हालत देखकर सभी अचंभित हो जाते हैं, क्योंकि उसे देखकर लगता है कि यहां कोई सोया था। सबसे आश्चर्य की बात यह भी कि यहां प्रतिदिन माखन मिश्री का प्रसाद चढ़ाया जाता है और जो बच जाता है उसे मंदिर में ही रख दिया जाता है, लेकिन सुबह तक वह प्रसाद भी समाप्त हो जाता है। आखिर कौन खा जाता होगा वह प्रसाद? रात में यहां कोई भी नहीं रुकता है। स्थानीय लोगों के अनुसार ऐसा बरसों से होता आ रहा है। कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं और कुछ लोग इसे श्रीकृष्ण का चमत्कार। 6. घरों की खिड़कियां कर देते हैं बंद : यहां के आसपास के अधिकतर घरों में खिड़कियां नहीं हैं और जिनके घरों में हैं वे शाम की आरती के बाद खिड़कियां इस डर से बंद कर देते हैं कि कोई मंदिर की दिशा में देखे नहीं, अन्यथा वह अंधा हो जाएगा। 7. निधिवन : कहते हैं कि आज भी समय-समय पर प्रभु वृंदावन के निधिवन और मथुवन में रास भी करते हैं। वहां के मंदिरों में भ्रमण भी करते हैं। कहते हैं कि श्रीकृष्ण वृंदावन के निधिवन में रासलीला करने आते हैं और उनके साथ श्रीराधा सहित उनकी अष्ट सखियां भी आती हैं। लोगों का मानना है कि यहाँ हर रात आरती के बाद श्री कृष्ण, राधा और उनकी गोपियाँ रास रचाते हैं। आस-पास रहने वाले कई लोगों का कहना है कि उन्हें कई बार घुंघरूओं की आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन कोई इस रास-लीला को अपनी आँखों से देखने की हिम्मत नहीं रखता, और देख ले तो फिर दुनिया में कुछ और देखने-समझने के लायक नहीं रहता। यानी अंधा हो जाता है। इसलिए अब निधिवन के दरवाज़े शाम 7 बजे बंद कर दिया जाते हैं। 8. हरिदास भक्त : वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर से कई कथाएं जुड़ी हुई है। कहते हैं कि श्री हरिदासजी बांके बिहारी के सबसे बड़े भक्त थे जिनकी भक्ति और चमत्कारों की कई कथाएं प्रचलित हैं। भगवान की भक्त में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते।
मथुरा शहर मे सम्मिलित वृन्दावन मथुरा से १५ किमी कि दूरी पर स्थित वृन्दावन (Vrindavan) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है। वृन्दावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहाँ विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं । बांके विहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का, ठा.श्री पर्यावरण बिहारी जी का मंदिर बड़े प्राचीन हैं । इसके अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर। निधि वन ,श्री रामबाग मन्दिर आदि भी दर्शनीय स्थान है।[1][2] यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर,बिहारी जी की बगीची, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं । प्राचीन वृन्दावन[संपादित करें]कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है। श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन तो गोवर्धन के निकट कहीं था। यह तब गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे। सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु।[3] ब्रज का हृदय[संपादित करें]वृन्दावन को 'ब्रज का हृदय' कहते है जहाँ श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ की हैं। इस पावन भूमि को पृथ्वी का अति उत्तम तथा परम गुप्त भाग कहा गया है। पद्म पुराण में इसे भगवान का साक्षात शरीर, पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का स्थान तथा सुख का आश्रय बताया गया है। इसी कारण से यह अनादि काल से भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, श्री हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक गोस्वामी भक्तों ने इसके वैभव को सजाने और संसार को अनश्वर सम्पति के रूप में प्रस्तुत करने में जीवन लगाया है। यहाँ आनन्दप्रद युगलकिशोर श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा की अद्भुत नित्य विहार लीला होती रहती है। महाप्रभु चैतन्य का प्रवास[संपादित करें]15वीं शती में चैतन्य महाप्रभु ने अपनी ब्रजयात्रा के समय वृन्दावन तथा कृष्ण कथा से संबंधित अन्य स्थानों को अपने अंतर्ज्ञान द्वारा पहचाना था। रासस्थली, वंशीवट से युक्त वृन्दावन सघन वनों में लुप्त हो गया था। कुछ वर्षों के पश्चात शाण्डिल्य एवं भागुरी ऋषि आदि की सहायता से श्री कृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने कहीं श्रीमन्दिर, कहीं सरोवर, कहीं कुण्ड आदि की स्थापनाकर लीला-स्थलियों का प्रकाश किया। किन्तु लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों के बाद ये सारी लीला-स्थलियाँ पुन: लुप्त हो गईं, महाप्रभु चैतन्य ने तथा श्री रूप-सनातन आदि अपने परिकारों के द्वारा लुप्त श्रीवृन्दावन और ब्रजमंडल की लीला-स्थलियों को पुन: प्रकाशित किया। श्री चैतन्य महाप्रभु के पश्चात उन्हीं की विशेष आज्ञा से श्री लोकनाथ और श्री भूगर्भ गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी, श्री गोपालभट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथदास गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी आदि गौड़ीय वैष्णवाचार्यों ने विभिन्न शास्त्रों की सहायता से, अपने अथक परिश्रम द्वारा ब्रज की लीला-स्थलियों को प्रकाशित किया है। वर्तमान वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में राजा मानसिंह का बनवाया हुआ है। यह था। मूलत: यह मंदिर सात मंजिलों का था। ऊपर के दो खंड औरंगज़ेब ने तुड़वा दिए थे। किम्वदंती है इस मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर जलने वाले दीप मथुरा से दिखाई पड़ते थे। यहाँ का अन्य विशाल मंदिर दाक्षिणत्य शैली में बना हुआ रंगजी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके गोपुर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। यह मंदिर दक्षिण भारत के श्रीरंगम के मंदिर की अनुकृति जान पड़ता है। वृन्दावन के दर्शनीय स्थल हैं- निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुंज आदि। प्राकृतिक छटा[संपादित करें]वृन्दावन की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। यमुना नदी ने इसको तीन ओर से घेर रखा है। किसी समय यहाँ के सघन कुंजो में भाँति-भाँति के पुष्पों से शोभित लता तथा ऊँचे-ऊँचे घने वृक्ष मन में उल्लास भरते थे । बसंत ॠतु के आगमन पर यहाँ की छटा और सावन-भादों की हरियाली आँखों को शीतलता प्रदान करती है। वृन्दावन में यमुना के घाट[संपादित करें]वृन्दावन में श्रीयमुना के तट पर अनेक घाट हैं। उनमें से कुछ प्रसिद्ध घाट हैं -
इन घाटों के अतिरिक्त 'वृन्दावन-कथा' नामक पुस्तक में और भी 14 घाटों का उल्लेख आता है- (1) महानतजी घाट (2) नामाओवाला घाट (3) प्रस्कन्दन घाट (4) कडिया घाट (5) धूसर घाट (6) नया घाट (7) श्रीजी घाट (8) विहारी जी घाट (9) धरोयार घाट (10) नागरी घाट (11) भीम घाट (12) हिम्मत बहादुर घाट (13) चीर या चैन घाट (14) हनुमान घाट। वृन्दावन के पुराने मोहल्लों के नाम[संपादित करें](1) ज्ञानगुदड़ी (2) गोपीश्वर, (3) बंशीवट (4) गोपीनाथबाग, (5) गोपीनाथ बाज़ार, (6) ब्रह्मकुण्ड, (7) राधानिवास, (8) केशीघाट (9) राधारमणघेरा (10) निधुवन (11) पाथरपुरा (12) नागरगोपीनाथ (13) गोपीनाथघेरा (14) नागरगोपाल (15) चीरघाट (16) मण्डी दरवाज़ा (17) नागरगोविन्द जी (18) टकशाल गली (19) रामजीद्वार (20) कण्ठीवाला बाज़ार (21) सेवाकुंज (22) कुंजगली (23) व्यासघेरा (24) श्रृंगारवट (25) रासमण्डल (26) किशोरपुरा (27) धोबीवाली गली (28) रंगी लाल गली (29) सुखनखाता गली (30) पुराना शहर (31) लारिवाली गली (32) गावधूप गली (33) गोवर्धन दरवाज़ा (34) अहीरपाड़ा (35) दुमाईत पाड़ा (36) वरओयार मोहल्ला (37) मदनमोहन जी का घेरा (38) बिहारी पुरा (39) पुरोहितवाली गली (40) मनीपाड़ा (41) गौतमपाड़ा (42) अठखम्बा (43) गोविन्दबाग़ (44) लोईबाज़ार (45) रेतियाबाज़ार (46) बनखण्डी महादेव (47) छीपी गली (48) रायगली (49) बुन्देलबाग़ (50) मथुरा दरवाज़ा (51) सवाई जयसिंह घेरा (52) धीरसमीर (53) टट्टीया स्थान (54) गहवरवन (55) गोविन्द कुण्ड और (56) राधाबाग। (57) सरस्वती विहार इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
कृष्ण वृंदावन में क्या कर रहे हैं?मान्यता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी आज भी आधी रात में रासलीला करने के लिए पहुंचते हैं। उनके आते ही निधिवन के तुलसी पेड़ों की बेल गोपियों का रूप धर लेती हैं। इसके बाद श्रीकृष्ण मुरली बजाते हैं और राधा रानी समेत सभी गोपियों के साथ नृत्य लीला में मगन हो जाते हैं।
कृष्ण वृंदावन क्यों गए थे?कृष्ण के वृंदावन छोड़ने का बाहरी कारण अन्य मामलों में भाग लेना था जैसे राक्षसों को मारना और धार्मिक सिद्धांतों को स्थापित करना (जैसा कि उन्होंने अपनी उपस्थिति से पहले मातृ पृथ्वी का वादा किया था, और जो उन्होंने कुरुक्षेत्र की लड़ाई में किया था) और साथ ही साथ पारस्परिकता के लिए।
कृष्ण वृंदावन क्यों नहीं गए?भगवान कृष्ण को वृंदावन छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें कंस का वध करना था और वे देवकी और वासुदेव के पुत्र थे। चूंकि उनका मकसद हर जगह धर्म का प्रसार करना था इसलिए उन्हें वृंदावन छोड़ना पड़ा था ।
वृंदावन का रहस्य क्या है?वृंदावन और तुलसी का रहस्य : वृंदा तुलसी को कहा जाता है।
यहां तुलसी के पौधे अधिक हैं, इसलिए इसे वृंदावन नाम दिया गया। यानी वृंदा (तुलसी) का वन। कहते हैं कि यहां तुलसी के दो पौधे एक साथ लगे हैं। रात के समय जब राधा और कृष्ण रास रचाते हैं तो यही तुलसी के पौधे गोपियां बनकर उनके साथ नाचते हैं।
|