एकात्मक व्यवस्था व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? - ekaatmak vyavastha vyavastha se aap kya samajhate hain?

Political Processes and Institutions in Comparative Perspective तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक प्रक्रियाएं और संस्थाएँ Chapter 1st

 Forms of Government : करकारों के रूप 

1) Unitary and Federal System : एकात्मक और सघात्मक 

प्रश्न 1 – एकात्मक प्रणाली का परीक्षण कीजिए | एकात्मक प्रणाली की विशेषताओं को बताते हुए उसके  गुण एवम् दोषो का वर्णन कीजिए ?

उत्तर – परिचय 

वर्तमान में छोटे राज्यों के साथ बड़े राज्य भी अस्तित्व में हैं। इन बड़े और विस्तृत राज्यों का शासन एक केन्द्रीय आधार पर या एक स्थान से कुशलता के साथ नहीं किया जा सकता। इसीलिए शासन की सुविधा की दृष्टि से समस्त राज्य को कई इकाइयों में बाट दिया जाता है। तत्पश्चात केन्द्र एवं इकाइयों में शक्तियों का विभाजन किया जाता है। संविधान द्वारा क्षेत्र के आधार पर शक्तियों का जो केन्द्रीयकरण या वितरण किया जाता है और देश के शासन में केन्द्रीय और स्थानीय इकाइयों के बीच जो सम्बन्ध होता है, उसके आधार पर शासन व्यवस्थाओं को एकात्मक और संधात्मक दो रूपों में वर्गीकृत किया जाता है। 

एकात्मक शासनः- अर्थ एवं परिभाषा 

एकात्मक शासन व्यवस्था में, शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है । संविधान द्वारा शासन की समस्त शक्तिया केवल केन्द्रीय सरकार को ही सौंपी जाती हैं तथा इकाइयों को शासन की शक्तिया केन्द्र से प्राप्त होती है । स्थानीय अथवा इकाइयों की सरकारों का अस्तित्व एवं शक्तियां केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर करती है। एकात्मक शासन व्यवस्थाओं के प्रसिद्ध उदाहरण हैं – ब्रिटेन, फ्रांस,चीन और बेल्जियम |

विभिन्न विद्वानों ने एकात्मक शासन की परिभाषाए दी हैं – सी.एफ.स्ट्रांग के अनुसार, “एकात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार सर्वोच्च होती है तथा सम्पूर्ण शासन एक केन्द्रीय सरकार के अधीन संगठित होता है और उसके । अधीन जो भी क्षेत्रीय प्रशासन कार्य करता है, उसकी शक्तिया उसे केन्द्र सरकार से प्राप्त होती हैं।“

फाइनर के शब्दों में, “एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें सम्पूर्ण सत्ता, शक्ति, केन्द्र में निहित होती है और जिसकी इच्छा एवं अभिकरण पूर्ण क्षेत्र पर वैध रूप से मान्य होते हैं।”

प्रो.गार्नर के अनुसार, “एकात्मक शासन, शासन का वह रूप है जिसमें शासन की सर्वोच्च शक्ति संविधान के माध्यम से एक केन्द्रीय सरकार को प्राप्त होती है तथा केन्द्र एवं स्थानीय सरकार के बीच संवैधानिक शक्ति का विभाजन नही होता और केन्द्र सरकार से ही स्थानीय सरकारों को शक्ति एवं स्वतंत्रता प्राप्त होती है।” 

डायसी के शब्दों में “एकात्मक राज्य में कानून बनाने की समस्त शक्तिया केन्द्रीय सत्ता के हाथों में निवास करती है ।” 

विलोबी के शब्दों में “एकात्मक शासन में शासन के सम्पूर्ण अधिकार मौलिक रूप से एक केन्द्रीय सरकार में निहित रहते हैं तथा केन्द्रीय सरकार अपनी इच्छानुसार शक्तियों का वितरण इकाइयों में करती है।”

एकात्मक शासन की विशेषता

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर एकात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषता हैं

(1) शासन की पूर्ण शक्ति केन्द्र में निहित- एकात्मक शासन की प्रमुख विशेषता यह है कि शासन कार्य की समस्त शक्तिया केन्द्रीय सरकार में निहित रहती हैं। शासन की सुविधा के लिए राज्य को प्रदेशों एवं प्रान्तों में बाटा जा सकता है किन्तु इन प्रदेशों व प्रान्त सरकारों को शासन कार्य के लिए स्वतंत्र शक्तिया प्राप्त नहीं होती | केन्द्र ही उन्हें आवष्यकतानुसार शक्तियां देता है। उन्हें केन्द्र के अधीन रहकर ही कार्य करना होता है और इनका अस्तित्व पूर्णतः केन्द्र सरकार की इच्छा पर निर्भर रहता है। 

(2) इकहरी नागरिकता- एकात्मक शासन में नागरिकों को इकहरी नागरिकता (केन्द्र की) प्राप्त होती है।

(3) एक संविधान- एकात्मक शासन में सम्पूर्ण राष्ट्र का एक संविधान होता है। इकाइयों के लिए कोई अलग संविधान नहीं होता। संघात्मक शासन में कहीं-कहीं पर इकाइयों के अलग-अलग संविधान भी होते हैं। जैसे भारत में जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान हैं। एकात्मक शासन वाले राज्यों में ऐसा नहीं होता। 

एकात्मक शासन व्यवस्था के गुण-

एकात्मक शासन प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं

(1) शासन में एकरूपता व शक्ति सम्पन्नता- एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन में एकरूपता पाई जाती है। सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए एक सा कानून होता है और केन्द्र के निर्देशन में उसे समान रूप से सर्वत्र लागू किया जाता है। फलतः पूरे राष्ट्र के शासन कार्यो में एकरूपता बनी रहती है। शासन की इस एकरूपता के कारण शासन-शक्ति संगठित रहती है , शासन कार्यों में दृढ़ता एवं मजबूती आ जाती है और संकट के समय यह शीघ्र निर्णय लेने के लिए सक्षम हो जाता है। 

(2) राष्ट्रीय एकता में वृद्धि- एकात्मक शासन व्यवस्था में सम्पूर्ण राज्य में एक सा कानून, एक सी शासन व्यवस्था होने तथा सभी को एक समान न्याय मिलने के कारण, आपसी मतभेद पैदा नहीं हो पाते। सभी के साथ एक सा व्यवहार होने के कारण नागरिकों में राष्ट्र के प्रति सम्मान पैदा होता है और राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती हैं।

(3) संकटकाल के लिए उपयुक्त- एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन की शक्ति एक ही स्थान पर केन्द्रीत होने के कारण संकट के समय यह शीघ्र निर्णय लेने में सक्षम होता है। इन निर्णयों को गुप्त भी रखना होता है और शीघ्र ही कार्यान्वित भी करना पड़ता है, इस हेतु एकात्मक शासन ही सक्षम होता है। 

(4) मितव्ययता- एकात्मक शासन व्यवस्था में एक ही स्थान से शासन का संचालन होने और राज्य इकाइयों मे अलग से कोई मंत्रिमण्डल व व्यवस्थापिका का गठन न करने से काफी खर्च बच जाता है । इस दृष्टि से यह मितव्ययी शासन व्यवस्था है।

(5) छोटे राज्यों के लिए उपयोगी- एकात्मक शासन व्यवस्था छोटे राज्यों के लिए बहुत ही उपयोगी है क्योंकि इसमें सम्पूर्ण शासन का संचालन एक ही स्थान से किया जाता है। 

(6) नीति संबंधी निर्णय में एकरूपता– एकात्मक शासन प्रणाली में नीति संबंधी जो भी निर्णय लिए जाते हैं उनमें एकरूपता बनी रहती है क्योंकि ये निर्णय एक स्थान से अर्थात् केन्द्र से लिये जाते हैं। इसके अतिरिक्त नीति-संबंधी निर्णयों के लिए केन्द्र को राज्य सरकारों से कोई भी राय व सहमति नहीं लेनी होती है, जिस कारण नीति संबंधी निर्णयों में एकरूपता आ जाती हैं। 

 (7) आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त- एकात्मक शासन व्यवस्था में एक ही स्थान से निर्णय लिये जाने के कारण पूरे राष्ट्र की आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निर्णय लिए जा सकते हैं , जिस कारण यह व्यवस्था आर्थिक विकास के लिए उपयोगी होती हैं। 

(8) सुदृढ अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति- एकात्मक शासन की स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में काफी सुदृढ़ रहती है , क्योंकि इसके अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में शीघ्रता से निर्णय लिया जा सकता है, समान रूप की नीति का अनुसरण किया जा सकता है और अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को अधिक कुशलता के साथ निभाया जा सकता है।

(9) संघर्ष की सम्भावना नही- एकात्मक शासन में शासन की समस्त शक्तिया केन्द्र के हाथों में रहती है तथा इकाइया केन्द्र के पूर्णतः अधीन होकर कार्य करती हैं, जिस कारण केन्द्र तथा इकाइयों के बीच संघर्ष की सम्भावना नहीं रहती है। प्रशासनिक निर्णय लेने में आसानी होती है।

एकात्मक शासन प्रणाली के दोष 

एकात्मक शासन प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं

(1) शासन कार्य में कुशलता की कमी- एकात्मक शासन में शासन कार्यों का सम्पूर्ण संचालन एक ही स्थान अर्थात् केन्द्र से संचालित होता है, जिसे शासन कार्य की कुशलता के लिए उपर्युक्त नहीं कहा जा सकता , क्योंकि एक ही स्थान से केन्द्रीय सरकार पूरे देश में कुशल शासन संचालन कर ले यह सम्भव नहीं है। अतः देश के सभी भागों के हितों व आवश्यकताओं की पूर्ति केन्द्र द्वारा नहीं हो सकती। 

(2) लोकतंत्र की भावना के विरूद्व – एकात्मक शासन व्यवस्था लोकतंत्र की भावना के विरूद्ध हैं क्योंकि इसमें प्रा न्तीय अथवा स्थानीय स्वशासन को वो महत्ता नहीं मिलती जो लोकतंत्र में मिलती है। 

(3) शासन की निरंकुशता की सम्भावना- एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन की निरंकुशता का भय बना रहता है क्योंकि शासन की समस्त शक्तिया केन्द्र में ही निहित होती हैं | केन्द्र अपनी शक्तियों को बढ़ा कर निरंकश न हो जाए और शासन के सभी क्षेत्रो में अपनी मनमानी न करने लगे , इस बात की सम्भावना बनी रहती हैं। 

(4) विविधताओं वाले राष्ट्रों में असफल- एकात्मक शासन व्यवस्था विविधताओं वाले राष्ट्रों में असफल रहती हैं, छोटे-छोटे राज्यों के लिए यह शासन व्यवस्था सफल हो सकती है, बड़े व विविधताओं वाले राष्ट्रों में नहीं, क्योंकि एक ही स्थान से शासन चलाने पर विभिन्न जाति, धर्म, भाषाओं व नस्लों के लोगों के हितों की पूर्ति सम्भव नहीं हो सकती।

(5) स्थानीय संस्थाओं के क्रिया- कलापों पर प्रतिबन्ध- एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन में इतनी कठोरता और अंकुश रहता है कि इससे स्थानीय संस्थाओं के क्रिया-कलापों पर प्रतिबन्ध लग जाते हैं उनकी स्वायत्तता लगभग समाप्त ही हो जाती है। 

(6) शासन कार्यों के प्रति उदासीन जनता- एकात्मक शासन-व्यवस्था में जनता को सार्वजनिक कार्यों में भागीदारी का पूर्ण अवसर प्राप्त नहीं होता, जिस कारण जनता सार्वजनिक कार्यों के प्रति उदासीन रहती हैं। जनता को प्रशासनिक कार्यो में भाग लेने का अवसर प्राप्त न होने के कारण उन्हें राजनीतिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है। 

(7) क्रान्ति का भय- एकात्मक शासन पर अनुदार होने का आरोप लगाया जाता है, क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों का अपरिवर्तनशील श्रंखलाबद्ध शासन स्थापित हो जाता है। अपनी अनदारता के कारण यह प्रगति विरोधी हो जाता है तथा नई योजनाओं को जल्दी क्रियान्वित नहीं करता । फलस्वरूप इस शासन व्यवस्था में क्रान्ति का भय उत्पन्न हो जाता |

निष्कर्ष –

एकात्मक सरकार ब्रिटेन, फ़्रांस, श्रीलंका, हालैंड में शासन प्रणाली के रूप विद्यमान हैं, इन देशो में लगातार केंद्र सारकार के मजबूत पंजो को ढीला करने के लिए आंदोलन होते रहे हैं |

प्रश्न 2 – संघीय व्यवस्था से आप क्या समझते है और उसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए |

उत्तर-

परिचय

संघवाद को, लोकतंत्र की एक ऐसी शाखा माना जाता है, जहाँ राजनीतिक प्रणाली के अन्तर्गत शासक और जनता परस्पर मिलकर प्रतिद्वंद्विता एवं अंतर्विरोधों के बीच एक प्रकार का संतुलन स्थापित करते हैं। संवैधानिक दृष्टिकोण से संघात्मक व्यवस्था शासन का वह रूप है, जिसमें अनेक स्वतंत्र राज्य अपने कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, केन्द्रीय सरकार संगठित करते हैं और उद्देश्यों की पूर्ति में आवश्यक व सहायक विषय केन्द्रीय सरकार को सौंप देते हैं तथा शेष विषयों में अपनी-अपनी पृथक स्वतंत्रता सुरक्षित रखते हैं। अर्थात्, संघीय शासन प्रणाली में सरकार की शक्तियों का “पूरे देश की सरकार और देश के विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के बीच विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि हरेक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में क़ानूनी  तौर पर एक दुसरे से स्वतंत्र होती है।

सारे देश की सरकार का अपना ही अधिकार-क्षेत्र होता है और यह देश के संघटक अंगों की सरकारों के किसी प्रकार के नियंत्रण बिना, अपने अधिकार का उपयोग करती है और इन अंगों की सरकारें भी अपने स्थान पर अपनी शक्तियों का उपयोग केन्द्रीय सरकार के किसी नियंत्रण के बिना ही करती हैं। विशेष तौर से, सारे देश की विधायिका की अपनी सीमित शक्तियाँ होती हैं और इसी प्रकार से राज्यों या प्रान्तों की सरकारों की भी सीमित शक्तियाँ होती हैं। दोनों में से कोई किसी के अधीन नहीं होती बल्कि दोनों एक-दूसरे के समन्वयक (Co-ordinator) होती हैं।”

इस प्रकार संघ-राज्य में एक संघीय या केन्द्रीय सरकार होती है और कुछ संघीभूत इकाइयों की सरकारें होती हैं। उनमें से प्रत्येक स्तर, अपनी शक्ति और कार्य, एक ऐसी सत्ता से प्राप्त करता है, जिसपर शासन के उन दोनों स्तरों में से किसी का भी नियंत्रण नहीं होता, बल्कि इसके विपरीत, वह उन दोनों को नियमित करती है। संघात्मक व्यवस्था का निर्माण सामान्यतया एक लिखित समझौते, जो एक संविधान के रूप में होता है|

संविधान या इस लिखित समझौते के द्वारा केन्द्र तथा ईकाइयों की सरकारों के बीच, शासन शक्तियों का सुनिश्चित व स्पष्ट विभाजन कर दिया जाता है। सामान्य और सम्पूर्ण देश पर लागू होने वाले विषयों का प्रबंध केन्द्रीय सरकार के हाथ में रखा जाता है तथा स्थानीय व क्षेत्रीय महत्व के विषयों के ईकाइयों को सरकारों को सौंप दिया जाता है। अविशिष्ट शक्तियाँ सामान्यतया राज्यों की सरकारों के लिए ही रहती हैं। दोनों प्रकार की सरकारें, अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं। उनके अधिकार क्षेत्र में किसी प्रकार का परिवर्तन एक विशेष प्रक्रिया द्वारा, दोनों की सहमति से ही होती है। दोनों प्रकार की सरकारों का शासन सत्ता मौलिक होती है और दोनों का अस्तित्व एक ही संविधान द्वारा होता है, और दोनों ही प्रकार की सरकारें किसी भी प्रकार एक दूसरे पर अपने अधिकार क्षेत्र के संबंध में आश्रित नहीं रहती हैं।

अर्थ एवं परिभाषा

संघ शब्द अंग्रेजी भाषा के फेडरेशन (Federation) शब्द का रूपान्तर है, जो लैटिन के ‘फीयडस’ से व्यत्पन्न हआ है, जिसका अर्थ है ‘संविदा’। इसलिए शब्द व्यत्पत्ति की दष्टि से संघीय समझौते द्वारा निर्मित राज्य को ‘संघ राज्य’ कहा जाता है। संघ का निर्माण दो प्रकार से होता है-

(1) एकीकरण (Integration) द्वारा

(2) पृथक्करण द्वारा (By disintegration)

विभिन्न विद्वानों ने संघ की परिभाषा विभिन्न रूप में दी है

गार्नर के अनुसार, “संघात्मक शासन वह पद्धति है, जिसमें समस्त शासकीय शक्ति एक केन्द्रीय सरकार तथा उन विभिन्न राज्यों या क्षेत्रीय उपविभागों की सरकारों के बीच विभाजित या बँटी रहती है, जिसको मिलाकर संघ का निर्माण होता है।”

फाइनर के अनुसार, “संघात्मक व्यवस्था में शक्ति और सत्ता का एक भाग ईकाइयों में तथा एक भाग केन्द्रीय सरकार में निहित रहता है। केन्द्र का निर्माण स्थानीय क्षेत्रों द्वारा होता है।”

के. जी. व्हीयर के अनुसार, “संघात्मक व्यवस्था में सामान्य व प्रादेशिक सरकार, दोनों ही नागरिकों से सीधा सम्पर्क रहता है और हर एक नागरिक दो सरकारों के शासन में रहता है।”

डेनियल जे० एलाजारा के अनुसार, “संघीय पद्धति ऐसी व्यवस्था प्रदान करती है, जो अलग-अलग राज्य व्यवस्थाओं को एक बाहर से घेरने वाली राजनीतिक पद्धति में इस प्रकार संगठित करती है कि उनमें से हरेक अपनी-अपनी मूल राजनीतिक अखण्डता को बनाए रख सकती है।”

कार्ल जे. फ्रीड्रिख के अनुसार, “संघवाद का अर्थ है, समूहों का यूनियन, वह यूनियन राज्यों का हो सकता है अथवा राजनीतिक दलों, मजदूर सभाओं आदि समुदायों का।”

संघात्मक व्यवस्था का रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण

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कोरी एवं अब्राह्म के अनुसार, “संघवाद सरकार का ऐसा दोहरापन है, जो विविधता के साथ एकता का समन्वय करने की दृष्टि से शक्तियों के प्रादेशिक व प्रकार्यात्मक विभाजन पर आधारित होता है।”

इससे स्पष्ट है कि, संघीय व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण शक्तियों और सत्ता का सामान्य सरकार तथा राज्य सरकारों के मध्य वितरण। इस प्रकार, संघवाद विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं का समन्वय है और इसका नियंत्रण तथा ठोसता व एकता है। अगर संघवाद दोहरी शासन व्यवस्था की उत्पत्ति और क्रियान्वयन है, तो इसका स्वाभाविक परिणाम यही कहा जा सकता है कि संघात्मक शासन व्यवस्था में राजनीति प्रथा, सम्पूर्ण समाज के आधारभूत सिद्धान्तों का निरूपण व निर्धारण तथा क्रियान्वयन इस प्रकार समझ, बातचीत और सहयोग से होता है कि दोनों ही प्रकार की सरकारें-केन्द्रीय तथा प्रान्तीय, निर्णय लेने और निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया में सम्मिलित रहे हैं।

संघवाद वास्तव में एक ऐसी कार्यकारी व्यवस्था है, जिसमें ‘राजनीतिक शक्तियों’ का कुछ ‘अराजनीतिक शक्तियों’ जैसे वैचारिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक इत्यादि से समन्वय होता है। इसलिए निष्कर्ष में, यह कहना उपयुक्त होगा कि संघवाद का सिद्धान्त एक ऐसी प्रक्रिया है, जो एक राजनीतिक व्यवस्था में समन्वयकारी व विघटनकारी तत्वों या शक्तियों से तालमेल रखते हुए, विकास की समुचित व्यवस्था करता है।

संघात्मक शासन की विशेषताएँ या लक्षण (Features of Federal System)

संघवाद के उपर्युक्त तथ्यों के अवलोकनोपरान्त, संघात्मक शासन के अग्रलिखित विशेषताएँ या लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं

  1. लिखित संविधान (Written Constitution) – देश के सर्वोच्च कानून के रूप में एक लिखित संविधान का होना अनिवार्य है, जिससे केन्द्रीय तथा प्रान्तीय दोनों सरकारें अपना अधिकार क्षेत्र प्राप्त करती हैं।
  2. संविधान की सर्वोच्चता (Supermany of Constitution) – संघीय व्यवस्था में, संविधान केवल लिखित स्पष्ट एवं निश्चित ही नहीं होता, वरन् वह सर्वोच्च भी होता है। संविधान की सर्वोच्चता का अर्थ है, ‘सांविधानिक उपबन्धों के विरुद्ध किसी को कानून बनाने का अधिकार नहीं’। अर्थात् यह भी अपेक्षित है कि संविधान में संशोधन करने की विधि कठिन हो, ताकि न केन्द्रीय शासन तथा न ईकाइयों की सरकारें ही इसे अपनी सुविधा के अनुसार बदल सकें तथा ऐसा करके देश के संघीय ढाँचे के साथ खिलवाड़ कर सकें। यानी कि संविधान को कठोर स्वभाव का होना चाहिए।
  3. दोहरे शासन की व्यवस्था (Dual Adminstration)- संघात्मक शासन में, दो स्तरों का शासन का संचालन होता है-पहले केन्द्रीय स्तर पर, जिसे हम संघ सरकार के नाम से जानते हैं; दूसरा स्तर है, ईकाइयों की सरकारें। कुछ देशों में इन्हें राज्यों की सरकारें तथा कुछ देशों में ये प्रान्तीय सरकार के नाम से जानी जाती हैं।
  4. शक्तियों का विभाजन (Sapration of Power)- संघात्मक सरकार के अन्तर्गत शक्तियों का विभाजन होता है। समस्त शासकीय शक्तियाँ संघ और ईकाइयों के बीच बँटी रहती हैं और अपने-अपने क्षेत्र में दोनों को विधि निर्माण करने तथा स्वतंत्र रूप से शासन संचालन करने का अधिकार होता है। शक्तियों का विभाजन संविधान के द्वारा किया जाता है।
  5. स्वतंत्र सर्वोच्च न्यायालय (Independent Supreme Court)- अन्त में समय-समय पर संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका होनी चाहिए, जो केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासनों के बीच संवैधानिक विवादों का समापन करते हुए अंतिम निर्णायक के रूप में कार्य करें।

इन आधारभूत लक्षणों के अतिरिक्त संघीय शासन की कुछ अन्य विशेषताएँ भी होती हैं, जो गौण विशेषताएँ कही जाती हैं। ये लक्षण या विशेषताएँ हैं-राज्यों का इकाइयों के रूप में केन्द्रीय व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व, राज्यों का संशोधन प्रक्रिया में भाग, दोहरी नागरिकता, दोहरी न्याय व्यवस्था, संविधान की कठोरता, राष्ट्रीय एकता तथा क्षेत्रीय स्वायत्तता में सामंजस्य आदि। इस प्रकार, संघात्मक व्यवस्था की “आधारभूत व मौलिक पहचान, संविधान की सर्वोच्चता, शक्तियों का विभाजन तथा इन दोनों को किसी एक स्तर की सरकार के अतिक्रमण से बचाने के लिए स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था है।

एकात्मक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

(2) लोकतंत्र की भावना के विरूद्व - एकात्मक शासन व्यवस्था लोकतंत्र की भावना के विरूद्ध हैं क्योंकि इसमें प्रान्तीय अथवा स्थानीय स्वशासन को वो महत्ता नहीं मिलती जो लोकतंत्र में मिलती है। जाती है। सरकार के पास शासन की समस्त शक्तिया होती हैं तथा स्थानीय सरकारें केन्द्र के अधीन रह कर कार्य करती हैं

एकात्मक शासन व्यवस्था से क्या तात्पर्य है ?`?

पिछले अध्याय में हमने गौर किया था कि शासन के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता का उर्ध्वाधर बँटवारा आधुनिक लोकतंत्रों में सत्ता की साझेदारी का एक आम रूप है। इस अध्याय में हम सत्ता के बँटवारे के इसी स्वरूप पर विचार करेंगे। इसे आमतौर पर संघवाद कहा जाता है।

एकात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें?

“एक केंद्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च कानून, अधिकार का प्रयोग ही एकात्मक शासन है ।” “जब सरकार की संपूर्ण शक्तियां संविधान द्वारा एक ही केंद्रीय अंग को दे दी जाए और उसी से स्थानीय सरकारें अपनी शक्ति प्राप्त करें । वह व्यवस्था एकात्मक होती है ।” यह व्यवस्था अनेक देशोंके प्रयोग की जाती है ।

एकात्मक व्यवस्था व्यवस्था से क्या तत्व है?

Ekatmak Shasan Vyavastha Se Kya Tatparya Hai.