गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित पटना, बिहार राज्य की राजधानी है। भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक, पटना पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। पटना शहर कई भारतीय साम्राज्यों की राजधानी रह चुका है। यूनानी लेखों में पाटलिपुत्र के प्राचीन शहर की तुलना फ़ारसी शहरों के वैभव से की गई है। वह स्थापत्यकला, मूर्तिकला, साहित्य, चित्रकला, व्यवसाय, धर्म एवं शिक्षा के क्षेत्रों में उत्कृष्ट था। Show ✕ इतिहासगंगा, सोन और पुनपुन नदियों के बीच बसे पटना के सामरिक स्थान ने शहर के राजनैतिक आधिपत्य को मज़बूत किया और उसे नदी व्यापार में सहायता दी । यह शहर शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त राजवंशों की राजधानी रहा । इन सब ने पटना पर अपनी छाप छोड़ी । राजनीति से दूर जाने के बाद भी पटना व्यवसाय का केंद्र बना रहा। मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल के दौरान उसने पुन: राजनैतिक महत्त्व प्राप्त किया । भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी पटना का सक्रिय योगदान रहा। अन्वेषण करें >> शहर के किस्सेपटना कई कथाओं से घिरा हुआ है । ये कथाएँ शहर के नाम और उसके प्राचीन उद्भव से संबंधित हैं। पटना कहानियों का एक खज़ाना है। पटना आए यात्रियों ने अपने लेखों में शहर के बारे में कई मनोहर बातें लिखीं हैं। शहर की पुरातत्विक परतों में पाए गए सिक्के, मूर्तियाँ, मिट्टी के पात्र, मुद्राएँ और संरचनाएँ शहर के मनोहारी इतिहास के बारे में बताते हैं । ✕ शहर की कहानियाँपटना, गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा है - वही विशाल नदी जिसने इस ऐतिहासिक शहर को नदीय व्यापार केंद्र का दर्जा दिया। नक्शे पर एक नज़र डालें, और उस आप कम्पास के चिह्न को देखेंगे जो इंगित करता है कि इस नक्शे को उत्तर-दक्षिण अभिविन्यास में पुन: व्यवस्थित किया गया है। पटना [संजय रंजन]। वैसे तो पटना की पहचान प्राचीन काल से ही रही है। कभी यह पाटलिपुत्र तो कभी फूलों का शहर के नाम प्रचलित लोगों के बीच पटना शुरू से आकर्षक का केंद्र रहा है। यहां की बोलीचाली, यहां के खानपान, यहां व्यवहार, बुद्धिमता और न जाने क्या क्या लोगों को खूब भाते है। अब तो पटना को एक और नई पहचान मिल गई जिससे यहां के लोग काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे है। जी हां, सभ्यता द्वार पटना की एक और नई पहचान बन गई है। अनगिनत यशस्वी शासकों का केंद्र रहे इस ऐतिहासिक शहर पटना में गंगा किनारे खड़ा यह विशाल सभ्यता द्वार लोगों को गौरवगाथा सुनाने को तैयार है। सभ्यता द्वार के शीर्ष पर बौद्ध स्तूप की आकृति बनाई गई है, जिसपर चार शेर वाला अशोक स्तंभ हैय सभ्यता द्वार में राजस्थान से मंगाए गए रेड एंड व्हाइट सैंड स्टोन का प्रयोग किया गया है। साथ ही द्वार के आसपास बागवानी कर इसे सुंदर लुक दिया गया है। दिल्ली का इंडिया गेट, मुंबई का गेटवे ऑफ इंडिया, हैदराबाद का चारमीनार और अब बिहार का सभ्यता द्वार एक तरफ गंगा का किनारा तो दूसरी तरफ पटना शहर। 32 मीटर ऊंचा और एक एकड़ में फैला यह सभ्यता द्वार बिहार के गौरवशाली इतिहास को अपने आप में समेटे है। 32 मीटर ऊंचा यह सभ्यता द्वार मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से छह मीटर ऊंचा है। राजधानी पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) करीब एक हजार साल तक इस देश की भी राजधानी भी रही है। यहा के प्रतापी सम्राटों ने एक समय में पुरे देश पर हुकूमत किया है। पटना में गंगा किनारे बना विशाल 'सभ्यता द्वार' इसी ऐतिहासिक विरासत की गौरवगाथा है। इसके माध्यम से एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। देश का सबसे ऊंचा द्वार है 'सभ्यता द्वार' देश की सबसे ऊंची गाधी की मूर्ति के बाद अब पटना देश के सबसे ऊंचे निर्माण का गवाह बना सभ्यता द्वार। सभ्यता द्वार देश का सबसे ऊंचा द्वार है। 32 मीटर की ऊंचाई वाला यह 'सभ्यता द्वार' मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से छह मीटर और पटना के गोलघर से तीन मीटर से ज्यादा ऊंचा है। मुख्यमंत्री नीतीश का ड्रीम प्रोजेक्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक ये सभ्यता द्वार प्राचीन पाटलिपुत्र के गौरव का अहसास कराता है क्योंकि इस पर भगवान महावीर, बुद्ध और सम्राट अशोक के संदेश भी उकेरे गए हैं। यही नहीं, इंडिका के लेखक मेगास्थनीज के संदेश भी इस पर लिखे गए हैं। करीब एक एकड़ में फैला सभ्यता द्वार पटना के गाधी मैदान के पास अशोका कन्वेंशन सेंटर के पीछे स्थित है। सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र स्थित सभ्यता द्वार 486.47 करोड़ रुपये की लागत से बनाई गई है। भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक के संदेश इस सभ्यता द्वार के एक ओर भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक का संदेश उकेरा गया है। सम्राट अशोक का कहना था कि दूसरे धर्म का सम्मान करें क्योंकि इससे अपने ही धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ती है। इससे विपरीत आचरण करने से अपने धर्म का प्रभाव तो घटता ही है, दूसरे धर्म को भी क्षति होती है। आर्यावर्त का सर्वश्रेष्ठ नगर भगवन बुद्ध ने कहा था कि- यह नगर आर्यावर्त का सर्वश्रेष्ठ नगर होगा और संपूर्ण आर्यावर्त का नेतृत्व करेगा। लेकिन इसे आग, पानी एवं आतरिक मतभेद का सदैव भय रहेगा। वही सभ्यता द्वार के दूसरी ओर यूनानी राजदूत और लेखक मेगास्थानीज और जैन तीर्थकार वर्धमान महावीर के शब्द उकेरे गए हैं। महावीर ने कहा था सभी जीवित प्राणियों को सम्मान देना अहिंसा है। वही मेगास्थानीज ने अपनी किताब इंडिगा में लिखा था पाटलीपुत्र का वैभव एवं ऐश्वर्य पर्सियन साम्राज्य के महान शहरों सुसा एवं इकबताना से कहीं बढ़कर है। भावी पीढ़ी के लिए बिहार का गौरवशाली सभ्यता द्वार यह प्राचीन बिहार के गौरवशाली इतिहास की झाकी है। भारत को एकीकृत करने वाले चन्द्रगुप्त, सम्राट अशोक एवं भगवान बुद्ध के संदेशों से युक्त यह सभ्यता द्वार प्राचीन बिहार की गौरव गाथा का बयान करेगा। आज भी लोग बिहार आकर गोलघर, पटना म्यूजियम देखते हैं। पिछले बारह सालों में बिहार में अनेक आइकॉनिक भवन बने, जिनमें राजगीर का कन्वेंशन सेंटर, बिहार म्यूजियम, अरण्य भवन, गाधी मूर्ति एवं बापू सभागार शामिल हैं। पाटलिपुत्र का दूसरा नाम क्या है?लोककथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है, जिसने अपनी रानी पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण किया। इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा। पाटलिपुत्र नाम भी इसी के कारण पड़ा।
पाटलिपुत्र का पुराना नाम क्या था?यह ऐतिहासिक नगर कई नाम पा चुका है- पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद और पटना. माना जाता है कि इसका मौजूदा नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ. शेरशाह सूरी ने इस नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की. उसने गंगा के किनारे एक किला बनाया.
भगवान बुद्ध के समय में पटना का नाम क्या था?पाटलीपुत्र : बिहार की राजधानी आज के 'पटना' को प्राचीनकाल में 'पाटलीपुत्र' कहा जाता था, जो भारत के प्रमुख नगरों में गिना जाता था। गौतम बुद्ध के जीवनकाल में बिहार में गंगा के उत्तर की ओर लिच्छवियों का 'वृज्जि गणराज्य' तथा दक्षिण की ओर 'मगध' का राज्य था।
पाटलिपुत्र का नामांतर क्या है?इस शहर में पहले सोन एवं गंगा नदी के प्रवाह क्षेत्र होने के कारण यहां बंदरगाह था ( बंदरगाह अर्थात पाटन ) अतः इसी कारण से यह स्थान पहले पाटलिपुत्र ( बिहार ) एवं बाद में पटना ( बिहार ) कहलाया ।
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