बौद्ध धर्म में मृत्यु के बाद क्या होता है? - bauddh dharm mein mrtyu ke baad kya hota hai?

बौद्ध धर्म में मृत्यु के बाद क्या होता है? - bauddh dharm mein mrtyu ke baad kya hota hai?

हर एक जीव जिसने इस धरती पर जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इस धरती को छोड़कर जाना ही है, फिर चाहे वो इंसान हो या फिर जानवर या कोई पेड़ पौधा। हर किसी को एक न एक दिन मिट्टी में मिल जाना है। कई बार हम सभी के मन में ये सवाल आ जाता है कि आखिर मृत्यु हो जाने के बाद होता क्या है? इस सवाल का सही जवाब तो किसी को पता नहीं है। लेकिन मृत्यु के बाद हर धर्म में आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि अगर अंतिम संस्कार ठीक ढंग से न किया जाए तो आत्मा भटकती रहती है और मुक्त होकर नया शरीर नहीं खोज पाती है।

अगर बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में मृत शरीर का अंतिम संस्कार बहुत ही विधि विधान के साथ किया जाता है। हिंदू धर्म में मृत शरीर को जलाया जाता है। ऐसा करने के पीछे एक विशेष कारण है। ऐसा माना जाता है कि मृतक ने इस जीवन में जो भी नकारात्मक कार्य किये हैं, उससे मुक्ति दिलाने के लिए और उसके जो भी बंधन हैं, उनसे मुक्त कराने के लिए उसकी चिता को अग्नि प्रदान की जाती है। इससे उसका पुनर्जन्म हो पाता है और वो अपना नया जीवन शांति से व्यतीत कर पाता है। यही नहीं हिंदू धर्म में तो यह भी मान्यता है कि मृत शरीर का अंतिम संस्कार सूर्यास्त से पहले ही हो जाना चाहिए। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में सबसे पहला जो कार्य होता है वो शुद्धिकरण का होता है। इसको मुक्ति के नाम से भी जाना जाता है। फिर पार्थिव शरीर को धरती यानी ब्रह्मा पर रखा जाता है और उसे अग्नि यानी शिव को समर्पित किया जाता है। अंत में उसके शरीर की जो राख बच जाती है उसे अस्थियों के तौर पर जल यानी विष्णु में प्रवाहित कर दिया जाता है।

 वहीं अगर हिंदू धर्म में किसी बच्चे या फिर साधु संत की मृत्यु हो जाती है, तो उन्हें जलाया नहीं जाता है बल्कि उन्हें दफना दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 5 साल से छोटे बच्चों की आत्मा एकदम पवित्र होती है और इन्होंने कोई भी पाप नहीं किये होते हैं। इसीलिए उन्हें शुद्धिकरण की कोई आवश्यकता नहीं होती है और वो पूरी तरह से शुद्ध होते हैं। ऐसा तो हिंदू धर्म में होता है, लेकिन अलग अलग धर्मों में अंतिम संस्कार की जो प्रक्रिया है वो अलग अलग है। क्या आपको पता है कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की क्या प्रक्रिया है? आज हम इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। हम आप सभी को बताने जा रहे हैं कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।

बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी;-

ये धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला हुआ धर्म है। इसके जो संस्थापक थे वो महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि थे। इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें एशिया की ज्योति पुंज कहा जाता है। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था और इन्होंने अपने सबसे ज्यादा उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और जब इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, उसके बाद इन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा। जिस जगह इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था, उस जगह को बोधगया के नाम से जाना जाता है। गौतम बुद्ध 563 ईसा पूर्व से 583 ईसा पूर्व तक रहे थे। इन धर्म की जन्म ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म से भी पहले हो गया था। इन दोनों धर्मों के बाद ही यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस धर्म को जो लोग मानते हैं, वो ज्यादातर चीन, जापान, नेपाल, श्रीलंका, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, भूटान और भारत देश में रहते हैं।

बौद्ध धर्म में कैसे होता है अंतिम संस्कार?

बौद्ध धर्म में मृत शरीर को जलाया भी जा सकता है और दफनाया भी जा सकता है। इस धर्म में दोनों ही परंपरा को मान्यता प्रदान की गई है। इसमें अंतिम संस्कार की जो परंपरा है वो स्थानीय संस्कृति में चले आ रहे रीति रिवाजों पर निर्भर करती है। जब शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, उस समय परिवार के या फिर भिक्षु के सदस्य प्रार्थना करते हैं। इसके बाद अगले दिन संस्कारित अवशेषों को परिवार के द्वारा इकट्ठा किया जाता है। इसको परिवार चाहे तो अपने पास रख सकता है अन्यथा इसको किसी अस्थिशेष रखने के समर्पित भवन में रख दिया जाता है। कई लोग तो इसको समुद्र में विसर्जित भी कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ जो लोग अभी भी शरीर को दफनाते है, वो लोग सबसे पहले पार्थिव शरीर को ताबूत में रखते हैं और उसके बाद प्रार्थना करते हैं। इसके बाद फिर शरीर को दफना दिया जाता है।

महात्मा बुद्ध के समय की बात है। उन दिनों मृत्यु के पश्चात आत्मा को स्वर्ग में प्रवेश करवाने के लिए कुछ विशेष कर्मकांड करवाए जाते थे। होता यह था कि एक घड़े में कुछ छोटे-छोटे पत्थर

महात्मा बुद्ध के समय की बात है। उन दिनों मृत्यु के पश्चात आत्मा को स्वर्ग में प्रवेश करवाने के लिए कुछ विशेष कर्मकांड करवाए जाते थे। होता यह था कि एक घड़े में कुछ छोटे-छोटे पत्थर डाल दिए जाते और पूजा-हवन इत्यादि करने के बाद उस पर किसी धातु से चोट की जाती। अगर घड़ा फूट जाता और पत्थर निकल जाते तो उसे इस बात का संकेत समझा जाता कि आत्मा अपने पाप से मुक्त हो गई है और उसे स्वर्ग में स्थान मिल गया है।


चूंकि घड़ा मिट्टी का होता था इसलिए इस प्रक्रिया में हमेशा ही घड़ा फूट जाता और आत्मा स्वर्ग को प्राप्त हो जाती। अपने पिता की मृत्यु के बाद एक युवक ने सोचा क्यों न आत्मा-शुद्धि के लिए महात्मा बुद्ध की मदद ली जाए, वह अवश्य ही आत्मा को स्वर्ग दिलाने का कोई और बेहतर व निश्चित रास्ता जानते होंगे। इसी सोच के साथ वह महात्मा बुद्ध के समक्ष पहुंचा। 


उसने कहा, ‘‘हे महात्मन, मेरे पिता जी नहीं रहे, कृपया आप कोई ऐसा उपाय बताएं कि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी आत्मा को स्वर्ग में ही स्थान मिले।’’


बुद्ध बोले, ‘‘ठीक है, जैसा मैं कहता हूं वैसा करना। तुम 2 घड़े लेकर आना। एक में पत्थर और दूसरे में घी भर देना। दोनों घड़ों को नदी पर लेकर जाना और उन्हें इतना डुबोना कि बस उनका ऊपरी भाग ही दिखे। धातु से बनी हथौड़ी से उन पर नीचे से चोट करना और ये सब करने के बाद मुझे बताना कि क्या देखा?’’

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युवक बहुत खुश था, उसे लगा कि बुद्ध द्वारा बताई गई इस प्रक्रिया से निश्चित ही उसके पिता के सब पाप कट जाएंगे और उनकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। अगले दिन युवक ने ठीक वैसा ही किया और सब करने के बाद वह बुद्ध के समक्ष उपस्थित हुआ।
बुद्ध ने पूछा, ‘‘आओ पुत्र, बताओ तुमने क्या देखा?’’


युवक बोला, ‘‘मैंने आपके कहे अनुसार पत्थर और घी से भरे घड़ों को पानी में डाल कर चोट की। जैसे ही मैंने पत्थर वाले घड़े पर प्रहार किया घड़ा टूट गया और पत्थर पानी में डूब गए। उसके बाद मैंने घी वाले घड़े पर वार किया, वह घड़ा भी तत्काल फूट गया और घी नदी के बहाव की दिशा में बहने लगा।’’ 


बुद्ध बोले, ‘‘ठीक है, अब जाओ और पुरोहितों से कहो कि कोई ऐसी पूजा, यज्ञ इत्यादि करें कि वे पत्थर पानी के ऊपर तैरने लगें और घी नदी की सतह पर जाकर बैठ जाए।’’ 


युवक हैरान होते हुए बोला, ‘‘आप कैसी बात करते हैं? पुरोहित चाहे कितनी भी पूजा करवा लें, पत्थर कभी पानी पर नहीं तैर सकता और घी कभी नदी की सतह पर जाकर नहीं बैठ सकता।’’


बुद्ध बोले, ‘‘बिल्कुल सही और ठीक ऐसा ही तुम्हारे पिता जी के साथ है। उन्होंने अपने जीवन में जो भी अच्छे कर्म किए हैं, वे उन्हें स्वर्ग की तरफ उठाएंगे और जो भी बुरे कर्म किए हैं, वे उन्हें नरक की ओर खींचेंगे। तुम चाहे जितनी भी पूजा करवा लो, कर्मकांड करवा लो, तुम उनके कर्मफल को रत्ती भर भी नहीं बदल सकते।’’

बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार कैसे होता है?

जब शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, उस समय परिवार के या फिर भिक्षु के सदस्य प्रार्थना करते हैं। इसके बाद अगले दिन संस्कारित अवशेषों को परिवार के द्वारा इकट्ठा किया जाता है। इसको परिवार चाहे तो अपने पास रख सकता है अन्यथा इसको किसी अस्थिशेष रखने के समर्पित भवन में रख दिया जाता है।

बौद्ध धर्म में लाश को क्या करते हैं?

अन्य जगह बौद्ध धर्म के लोग शव को जलाते हैं व खुले में लाश छोड़ने हैं या जंगल में दफनाते हैं। कुछ बौद्ध धर्मगुरों को मिश्र की ममी की तर्ज पर ममी बनाने की भी प्रथा रही है। भगवान बुद्ध का ये मानना था कि शरीर नश्वर है ये बस एक कपड़े की तरह है जिसमें आत्मा का वास है।

बौद्ध धर्म में मृत्यु के बाद शरीर का क्या किया जाता है?

कई लोग तो इसको समुद्र में विसर्जित भी कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ जो लोग अभी भी शरीर को दफनाते है, वो लोग सबसे पहले पार्थिव शरीर को ताबूत में रखते हैं और उसके बाद प्रार्थना करते हैं। इसके बाद फिर शरीर को दफना दिया जाता है

मरने से पहले बुद्ध ने क्या खाया था?

हज़ारों सालों से भारत में यह बात प्रचलित है की गौतम बुद्ध ने अपना आख़िरी भोजन के तौर पर सुअर का माँस खाया था । प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद सिंघ जी ने इस पर प्रश्न चिन्ह लगाया है ।