भारत में सबसे पहले झंडा कहां फहराया गया था - bhaarat mein sabase pahale jhanda kahaan phaharaaya gaya tha

कानपुर। क्रांतिकारियों का गढ़ कहे जाने वाले कानपुर ने देश की आजादी में अहम भूमिका अदा की थी, जिसके चलते जब देश सो रहा था तब नामित प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ बारह बजे रात्रि को कानपुरवासी झण्डा फहरा रहे थे। तब से शुरू हुई परंपरा आज भी जारी है। इसी क्रम में 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की अगुवाई कानपुरवासियों ने मंगलवार की रात बारह बजे पन्द्रह अगस्त की तारीख लगते ही झण्डारोहण कर आजादी-ए-जश्न मनाया।

15 अगस्त को वैसे तो पूरे देश में बड़ी धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है लेकिन कानपुर में इसकी अलग ही परंपरा है। यहां 14 अगस्त की रात को 12 बजते ही 15 अगस्त की तारीख लगते ही जैसे ही घड़ी की सुई प्रथम सेकेण्ड को छूती है तो यहां झण्डा रोहण किया जाता है। यहां रात में ही बड़ी धूम धाम से 15 अगस्त का झंडा फहराया जाता है। इसी क्रम में एक बार फिर रात में शहर के मेस्टन रोड के बीच वाले मंदिर के पास 1947 से चली आ रही परंपरा का अनुसरण किया गया। यहां सबसे पहले 1947 को 14 अगस्त की रात 12 बजे तब झंडा फहराया गया था जब अंग्रेजो ने भारत को आजादी सौपी थी। आजादी के बाद तब से यहां हर साल 14 अगस्त को रात 12 बजे ही 15 अगस्त मनाया जाता है और झण्डा रोहण किया जाता है। इस समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी शामिल थे। इस झंडारोहण में शहर के सभी वर्ग के लोगों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी भाग लिया। ठीक 12 बजते ही यहां आतिशबाजी के साथ 72 गोले दाग कर आजादी का जश्न मनाया गया। आजादी का जश्न इस कदर था कि आसमान सतरंगी नजर आने लगा। गीत संगीत के बीच कवियों ने आजादी से ओतप्रोत कविताओं को पढ़कर उपस्थित लोगों के जोश को दूना कर दिया। इस अवसर पर महापुरुषों की झांकियां भी सजाई गई।

पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि आजादी बहुत बलिदानों के बाद मिली थी। प्रत्येक व्यक्ति को इसका मूल्य समझना होगा। जायसवाल ने बताया कि आजादी मिलने पर नामित प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू वर्तमान राष्ट्रपति भवन से ठीक बारह बजे झण्डा फहराया था जिसकी जानकारी पर कानपुर भी उसी समय झण्डा फहराकर देश का पहला शहर बन गया था। उसे परंपरा को कानपुर आज भी जीवित रखे हुए है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शंकर दत्त मिश्र ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने वाला था। शहर क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का बड़ा केंद्र था, स्वाभाविक है ऐसे में आजादी का जश्न भी ऐतिहासिक होना था। दीपक और मशालों की रोशनी से शहर की हर सड़क और गली को रोशन किया गया। 14 अगस्त रात 12 बजे मेस्टन रोड स्थित चौक पर शान से तिरंगा फहराया गया। अर्धरात्रि के उस हुजूम में शामिल बच्चे, बूढ़े, युवा, महिलाएं सभी ने एक स्वर में भारत माता के जयकारे लगाए तो आसमान भी गूंज उठा। जश्न-ए-आजादी की उस परंपरा को कांग्रेस ने आजादी के 71 वर्षो बाद भी जिंदा रखा है।

आजादी के जश्न में आते थे मुख्यमंत्री

शहर अध्यक्ष हर प्रकाश अग्निहोत्री ने बताया कि कानपुर में आजादी का जश्न पूरे देश में प्रसिद्ध था। आजादी के बाद से यहां पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री शहरवासियों के साथ आजादी का जश्न मनाने आते थे, लेकिन यह सिलसिला तब टूटा जब 1967 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह नहीं आ पाये। जबकि फूलबाग में पहुंचने वाले जुलूस को पंडित गोविंद वल्लभ पंत, डा. संपूर्णानंद, एनडी तिवारी, सीबी गुप्ता, विश्वनाथ प्रताप सिंह और श्रीपति मिश्रा ने मुख्यमंत्री रहते हुए संबोधित कर चुके हैं। कहा जब से प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार हो गयी तब से यहां पर प्रदेश अध्यक्ष हर वर्ष संबोधित करते हैं।

आजादी के बाद भी कानपुर ने छोड़ी छाप

इतिहासकार के.के. द्विवेदी बताते हैं कि आजादी से पूर्व कानपुर ही संयुक्त प्रान्त का ऐसा शहर था जहां पर क्रांतिकारी व नेता अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए रणनीति बनाते थे। आजादी के बाद भी कानपुर देश में अपनी अलग छाप छोड़ने में सफल रहा। कहा चूंकि 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस होता है इसलिए तय यह हुआ था कि हिन्दुस्तान का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाएगा। इसी के चलते जब नामित प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वायसराय पैलेस वर्तमान में राष्ट्रपति भवन से 15 अगस्त को ज्यों ही घड़ी की सुई बारह पर पहुंची तो झण्डा फहरा दिया और पहले ही तैयारी कर चुके कानपुरवासियों ने भी झण्डा फहराकर आजादी के बाद भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा।

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Mon, 15 Aug 2022 12:10 AM IST

Independence Day 2022: ब्रिटिश हुकूमत ने भारत पर सालों कब्जा करके रखा। लेकिन जब भारतीयों ने अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई तो ब्रिटिश हुकूमत को देश छोड़कर जाना पड़ा। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। ये दिन हर भारतीय के लिए अहम है। ऐसे में हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले से ध्वाजारोहण करते हैं। इस साल आजादी का अमृत महोत्सव है। ऐसे में सरकारी, गैर सरकारी और निजी कार्यालयों के साथ ही लोगों के घरों, कालोनियों में पहले से ही तिरंगा लहराया जाने लगा। हर तरफ तिरंगामय वातावरण देखने को मिला। आजादी के बाद किसी खास मौके पर भारतीय ध्वज को फहराया जा सकता है लेकिन भारत के इतिहास में एक ऐसा समय भी आया, जब देश की आजाद होने से सालों पहले ही भारत का झंडा फहराया जा चुका था। उस दौर में जब गुलाम भारत में देश का झंडा फहराने की अनुमति नहीं थी, तो एक क्रांतिकारी महिला ने विदेश तक जाकर भारत का पहला झंडा फहराया था। चलिए जानते हैं उस क्रांतिकारी भारतीय महिला के बारे में, जिन्होंने आजादी से 40 साल पहले ही भारत का झंडा विदेश में फहरा दिया था और भारत का सबसे पहला झंडा कैसा दिखता था, क्या है देश के पहले ध्वज का इतिहास।

पहली बार कब और कहां फहराया गया था भारत का झंडा?

भारत की आजादी के 40 साल पहले यानी 22 अगस्त 1907 में पहली बार भारत का झंडा जर्मनी के स्टूटगार्ट नगर में फहराया गया था। यहां सातवीं अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस के आयोजन में भारतीय झंडा फहराकर स्वतंत्रता संग्राम की मांग को अधिक तेज किया गया।

किसने फहराया था भारत का पहला झंडा?

जर्मनी में भारत का पहला झंडा फहराने वाली एक महिला थीं। इस महिला का नाम भीकाजी कामा था। भीकाजी कामा भारतीय मूल की पारसी महिला थीं, जिन्होंने उस दौर में लंदन से लेकर जर्मनी और अमेरिका का भ्रमण किया और भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज कई देशों तक पहुंचाई। भीकाजी कामा पेरिस से 'वंदेमातरम्' पत्र प्रकाशित करती थीं, जो प्रभावी भारतीयों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ करता था।

भीकाजी कामा का जीवन परिचय

भीकाजी कामा का जन्म महाराष्ट्र के मुंबई में 24 सितंबर 1861 को हुआ था। भीकाजी कामा में बचपन से ही देशप्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी। 1896 में मुंबई में प्लेग फैल गया था। उस दौरान भीकाजी कामा ने मरीजों की सेवा में अपना योगदान दिया। जन सेवा में लगी भीकाजी कामा खुद प्लेग की चपेट में आ गईं थीं। हालांकि इलाज के बाद वह स्वस्थ हुईं और फिर देश सेवा में लग गईं।13 अगस्त 1936 में आजादी का सपना आंखों में बसाए भीकाजी कामा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

कैसा था देश का पहला झंडा

आज भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जिसको पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। तिरंगे में तीन रंगों के साथ ही नीले रंग का अशोकचक्र का चिन्ह दिया गया है। लेकिन 1947 से पहले भारतीय ध्वज में कई बार परिवर्तन हुए। जर्मनी में जो पहला भारत का झंडा फहराया गया वह भी तीन रंगों से बना था लेकिन आज के जैसा तिरंगा नहीं था।

भारत के पहले झंडे के जरिए देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। इसमें हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था, जो कि इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करता है। इस झंडे के बीच में देवनागरी लिपि में 'वंदे मातरम्' लिखा हुआ था।

भारत का झंडा सबसे पहले कौन फहराया था?

देश में फहराए गए पहले नेशनल फ्लैग का किस्सा तो हमने ऊपर जान लिया। अब बात भारत के बाहर फहराए गए झंडे की। 22 अगस्त 1907 में मैडम कामा और उनके साथियों ने जर्मनी में भारत का झंडा फहराया था। इसे बर्लिन कमेटी फ्लैग कहा गया।

पहली बार भारत में तिरंगा कब फहराया गया?

22 जुलाई 1947 को इसे भारतीय तिरंगा के रूप आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। इसे पहली बार 15 अगस्त 1947 को फहराया गया था। तिरंगे का पहला रंग केसरिया जो देश की ताकत और साहस का प्रतीक है। वहीं सफेद शांति और सच्चाई का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

भारत का पहला तीन रंगों वाला झंडा कहाँ फहराया गया था?

देश का पहला गैर अधिकारिक झंडा: देश का पहला ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था. इस तिरंगे में ऊपर हरे, बीच में पीले और नीचे लाल रंग की क्षैतिज पट्टियां थीं.