भारत का आखिरी मुगल शासक कौन था? - bhaarat ka aakhiree mugal shaasak kaun tha?

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बहादुर शाह जफर जिसे बहादुर शाह द्वितीय भी कहते हैं

bahadur shah jafar jise bahadur shah dwitiya bhi kehte hain

बहादुर शाह जफर जिसे बहादुर शाह द्वितीय भी कहते हैं

        

भारत का आखिरी मुगल शासक कौन था? - bhaarat ka aakhiree mugal shaasak kaun tha?
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भारत का आखिरी मुगल शासक कौन था? - bhaarat ka aakhiree mugal shaasak kaun tha?

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नई दिल्ली : जिस मुगलिया सल्तनत ने भारत में राज किया, उसका आखिरी बादशाह बेबस और लाचार था। 82 साल के बुजुर्ग बहादुर शाह जफर की नजरें जमीन की तरफ धंस गई थीं। अंग्रेजी पेंशन पर जी रहे जफर की हालत बिना पावर वाले शासक वाली थी। जफर इस खौफ में थे कि अंग्रेज पकड़ने के बाद उन्हें मार देंगे। वो साल था 1857 और तारीख 16 सितंबर। अंग्रेजी फौज ने दिल्ली को चारों तरफ से घेर लिया था। खबर लाल किले तक पहुंच चुकी थी कि अंग्रेज अब कुछ सौ गज के फासले पर हैं। अमरपाल सिंह ने अपनी किताब 'द सीज ऑफ देलही' में 1857 की क्रांति के बाद मेरठ से दिल्ली तक के घटनाक्रमों पर विस्तार से लिखा है। अब तक बहादुरशाह जफर हथियार डालकर सरेंडर करने का मन नहीं बना पाए थे। उन्हें डर था कि कहीं हिरासत में लेने के बाद अंग्रेज उनकी हत्या न कर दें।

19 सितंबर को परिवार संग भागे जफर
माहौल भांपकर 19 सितंबर को जफर अपने परिवार और बचे-खुचे वफादार सैनिकों के साथ महल से बाहर निकल गए। 20 सितंबर को अंग्रेजों को पता चल गया था कि जफर इस समय हुमायूं के मकबरे में पहुंच गए हैं। अगले 24 घंटे में तेजी से घटनाक्रम बदले।

अंग्रेज कैप्टन विलियम हॉडसन (William Hodson) जफर को पकड़ने की ताक में रणनीति बना रहे थे। उन्होंने दो नुमाइंदे हुमायूं के मकबरे में भेजे, जहां उस समय जफर अपने करीबियों के साथ छिपे हुए थे। हडसन के नुमाइंदों ने बाहर आकर बताया कि बादशाह जफर कह रहे हैं कि जनरल विल्सन ने उनसे वादा किया था कि उनके जीवन को बख्श दिया जाएगा, अगर हॉडसन उस वादे को दोहराते हैं तो वह सरेंडर करने के लिए तैयार हैं।

जफर को अंग्रेजों ने क्यों दिया जीवनदान
हॉडसन को भ्रम हुआ कि ये वादा कब और कैसे किया गया क्योंकि उनके पास ऊपर से आदेश था कि विद्रोही कोई भी हो अगर वह आत्मसमर्पण कर रहा है तो कोई शर्त स्वीकार नहीं की जाएगी। ऐसे समय में जब लगातार क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया जा रहा था तब बादशाह को जीवनदान देने का फैसला क्यों लिया गया। अमरपाल सिंह ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था कि इसकी वजह यह थी कि बादशाह काफी बुजुर्ग हो चुके थे, वह सिर्फ कहने के लिए विद्रोहियों के नेता थे। अंग्रेज दिल्ली में आ चुके थे लेकिन कई हिस्सों में अब भी संघर्ष जारी था। ऐसे में अंग्रेजों को लगा कि अगर बादशाह के मारे जाने की खबर देशभर में फैलती है तो क्रांतिकारियों की भावनाएं भड़क सकती हैं और उनका सामना करना मुश्किल होगा।

मुगलिया सल्तनत की कहानी खत्म
आखिरकार बरतानिया हुकूमत ने तय किया कि अगर बादशाह सरेंडर कर दें तो उनकी जिंदगी बख्श दी जाएगी। कुछ देर बाद मकबरे से महारानी जीनत महल आगे आईं और पालकी में बादशाह जफर आते दिखे। हॉडसन ने तुरंत बादशाह से हथियार डालने को कहा। जफर ने तसल्ली कर ली कि वह हॉडसन ही थे और उन्हें वादा याद है। कैप्टन ने जान बख्शने का वादा दोहराया तब जाकर जफर ने हथियार डाले। वैसे, हथियार भले ही जफर ने डाले लेकिन इस घटना के साथ ही भारत में मुगलिया सल्तनत की कहानी खत्म हो गई।

भारत का आखिरी मुगल शासक कौन था? - bhaarat ka aakhiree mugal shaasak kaun tha?

रंगून में अपने आखिरी दिनों में जफर।


जफर कवि और नरम दिल वाले थे लेकिन थे तो बादशाह ही, और 20-21 सितंबर को वह जैसे खुद से आंखें चुरा रहे थे। भले ही मुगलों के पास शासन करने के लिए उस समय दिल्ली का एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा बचा था लेकिन उनके मुगल बादशाह कहे जाने के साथ सपोर्ट कर रहे क्रांतिकारियों की भी उम्मीदें भी जिंदा थीं।

दूर बर्मा ले गए अंग्रेज
बाद की कहानी दुनिया को पता है। अंग्रेज जफर को दिल्ली से दूर बर्मा लेकर गए और कैद करके रखा। 87 साल की उम्र में 7 नवंबर 1862 को तड़के आखिरी मुगल शासक का इंतकाल हो गया। फटाफट अंग्रेजों ने उन्हें वहीं पास में दफना दिया। किसी को पता न चले कि जफर की कब्र कहां है, इसलिए जमीन को समतल कर दिया गया। जफर कितने बदनसीब थे कि उनकी कब्र 132 साल यूं ही रही और 1991 में एक आधारशिला के लिए खुदाई के दौरान कब्र का पता चला। निशानी और अवशेष से पुष्टि हुई कि यह बहादुर शाह जफर थे।

जफर ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा था,

कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

1857 की क्रांति के समय का जिक्र किए बगैर जफर की कहानी खत्म नहीं होती है। अमरपाल सिंह अपनी किताब में लिखते हैं कि 10 मई 1857 को भारत में ब्रिटिश हुकूमत को पहली बार लगा कि उसके लिए चुनौती बड़ी है। दिल्ली के करीब मेरठ छावनी में सैनिकों ने बगावत कर दी। ब्रिटिश अफसरों के सामने खुलकर कहा गया कि अब ब्रिटिश राज के दिन खत्म हो चुके हैं। वहां से नारा बुलंद किया गया - दिल्ली चलो। वे मुगलों की राजधानी रही दिल्ली की तरफ कूच कर गए।

ब्रिटिश सरकार की पेंशन पर जी रहे बहादुर शाह जफर के शरीर में जैसे देश के लिए जीने की इच्छा फिर से जाग गई। उन्होंने पूरे हिंदुस्तान को एकजुट करने के लिए नेतृत्व संभालने का फैसला। वैसे, यह पूरी तरह से सांकेतिक ही रहा। उधर, बगावत की चिंगारी को बुझाने के लिए अंग्रेजों के लिए दिल्ली को फिर से कैप्चर करना जरूरी हो गया था। इसी से तय होता कि बगावत फेल रही या सफल। दिल्ली के करीब तीन महीने तक खूनी लड़ाई का दौर चला। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। वो वक्त ऐसा था कि लोगों को पता ही नहीं चल पा रहा था कि कौन किस पर भारी पड़ रहा है। जफर के सरेंडर के दिन वो कहानी फिर याद आ गई।

जफर ने लिखा था,

उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इन्तज़ार में।

भारत का सबसे आखिरी मुगल शासक कौन था?

आज भारत के आखिरी मुगल बादशाह मिर्जा अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर यानी बहादुर शाह जफर का जन्मदिन है. कहा जाता है कि बहादुर शाह जफर को नाममाज्ञ बादशाह की उपाधि दी गई थी. 1837 के सितंबर में पिता अकबर शाह द्वितीय की मौत के बाद वह गद्दीनशीं हुए.

मुगल बादशाह का आखिरी बादशाह कौन था?

आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मौत 1862 में 87 साल की उम्र में हुई थी, लेकिन उनकी दरगाह 132 साल बाद 1994 में बनी। इस दरगाह की एक-एक ईंट में आखिरी बादशाह की जिंदगी के इतिहास की महक आती है।

मुगलों का राज कैसे खत्म हुआ?

मुगल साम्राज्य भारत में कब से कब तक? मध्य-16 वीं शताब्दी और 17-वीं शताब्दी के अंत के बीच मुग़ल साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में प्रमुख शक्ति थी। 1526 में स्थापित, यह नाममात्र 1857 तक बचा रहा, जब वह ब्रिटिश राज द्वारा हटाया गया।

बहादुर की उम्र कितनी थी?

बहादुरशाह प्रथम गद्दी पर बैठने वाला सबसे वृद्ध मुग़ल शासक था। जब वह गद्दी पर बैठा, तो उस समय उसकी उम्र 63 वर्ष थी