भिन्नात्मक प्रतिशत त्रुटि क्या है ? - bhinnaatmak pratishat truti kya hai ?

किसी भी भौतिक राशि की माप पूर्णतया शुद्ध नहीं होती है। भौतिक राशि की वास्तविक माप तथा किसी यंत्र द्वारा मापी गई माप में जो अंतर पाया जाता है उसे ही त्रुटि कहते हैं। त्रुटि सदैव प्रतिशत में व्यक्त की जाती है।

त्रुटि के प्रकार

सामान्य रूप से त्रुटि दो प्रकार की होती है।
(i) क्रमबद्ध त्रुटि (systematic error)
(i) यादृच्छिक त्रुटि (random error)

1. क्रमबद्ध त्रुटि

वे त्रुटि जो किसी एक दिशा, धनात्मक या ऋणात्मक में प्रवृत्त होती रहती हैं। क्रमबद्ध त्रुटि कहलाती हैं। यह त्रुटियां किसी प्रयोग में नियमित रूप से प्राप्त होती हैं।
जैसे – वर्नियर कैलिपर्स की शून्यांक त्रुटि।

2. यादृच्छिक त्रुटि

किसी मापन में अनियमित रूप से उत्पन्न होने वाली त्रुटि को यादृच्छिक त्रुटि कहते हैं। चूंकि इस प्रकार की त्रुटि में स्रोत का ज्ञान नहीं होता है इसलिए इसे आकस्मिक त्रुटि भी कहते हैं। यह त्रुटि प्रायोगिक अवस्थाओं (जैसे ताप दाब आदि) में होने वाले परिवर्तनों के कारण तथा पाठ्यांक के समय प्रेक्षक द्वारा की गई व्यक्तिगत त्रुटि के कारण उत्पन्न होती हैं। यादृच्छिक त्रुटि को कम करने के लिए एक ही प्रेक्षक को बार-बार दोहराया जाता है।

निरपेक्ष त्रुटि

किसी मापी गई राशि के वास्तविक मान तथा उसके प्रेक्षित मान के बीच अंतर को उस भौतिक राशि की निरपेक्ष त्रुटि कहते हैं। इसे ∆a द्वारा दर्शाया जाता है निरपेक्ष त्रुटि सदैव धनात्मक (positive) ली जाती है।

भिन्नात्मक त्रुटि

किसी भौतिक राशि की निरपेक्ष त्रुटि तथा उसके वास्तविक मान के अनुपात को उस भौतिक राशि की भिन्नात्मक त्रुटि कहते हैं।

भिन्नात्मक त्रुटि = निरपेक्ष त्रुटि/ वास्तविक मान ⇒ \( \frac{∆a}{a} \)

प्रतिशत त्रुटि

भिन्नात्मक त्रुटि को प्रतिशत त्रुटि में व्यक्त करने के लिए इसमें 100 से गुणा करते हैं तब प्राप्त मान को प्रतिशत त्रुटि कहते हैं।
प्रतिशत त्रुटि = भिन्नात्मक त्रुटि × 100
प्रतिशत त्रुटि = \( \frac{∆a}{a} \) × 100

प्रायोगिक प्रतिशत त्रुटि

जब किसी प्रयोग में किसी राशि का मान गलत प्राप्त होता है तो इसे प्रायोगिक प्रतिशत त्रुटि कहते हैं।
प्रायोगिक प्रतिशत त्रुटि = प्रमाणिक मान – प्रयोगिक मान / प्रमाणिक मान × 100

त्रुटि संबंधित प्रश्न

1. एक वृत्त की त्रिज्या मापने में 3% की त्रुटि होती है तो वृत्त के क्षेत्रफल में प्रतिशत त्रुटि कितनी होगी।

“किसी भौतिक राशि के परिमाण को अंको में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है।” अर्थात् इसमें परिमाण व्यक्त करने के लिए केवल पूर्णांक का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि मापक यंत्र का प्रयोग करके ही भौतिक राशि का परिमाण ज्ञात किया जाता है। मापन एक तुलनात्मक विधि है।

मापन की आवश्यकता

(1). मात्रक – वह उचित मानक जिसका उपयोग किसी भौतिक राशि की तुलना के लिए किया जाता है यह उस भौतिक राशि का मात्रक कहलाता है। इसे u से प्रदर्शित करते हैं।
जैसे – लंबाई का मात्रक मीटर, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम इत्यादि।
(2). अंकिक मान – यह एक शुद्ध संख्या है इसमें मात्रक नहीं होते हैं। तथा इसका मान मापी जाने वाली भौतिक राशि के परिमाण तथा मापन के चुने हुए मात्रक के परिमाण के बीच अनुपात के बराबर होता है। इसे n से दर्शाते हैं। अर्थात्
अंकिक मान n = मापी जाने वाली भौतिक राशि का परिमाण (q)/मापन के मात्रक का परिमाण [u]
अथवा n = \frac{q}{[u]} , इसलिए n ∝ \frac{1}{[u]}
अर्थात् “भौतिक राशि के परिमाण का अंकिक मान n चुने हुए मात्रक के परिमाण [u] के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”

भौतिक राशियां क्या है

“वे सभी राशियां जिनका संबंध किसी भौतिकीय परिघटना से हो जो एक संख्या द्वारा व्यक्त की जा सकें तथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में मापी जा सकें ‘भौतिक राशियां’ कहलाती हैं।”
उदाहरण – लंबाई, द्रव्यमान, ताप, चाल, बल तथा समय आदि भौतिक राशियां है।

मूल राशियां एवं मूल मात्रक क्या होते हैं

भौतिकी में प्रयोग की जाने वाली भौतिक राशियों की संख्या बहुत अधिक है और प्रत्येक भौतिक राशि को मापने के लिए एक विशेष मात्रक की आवश्यकता होती है।

मूल राशियां क्या है

स्वेच्छा से चुनी गई वे भौतिक राशियां जिनकी सहायता से अन्य भौतिक राशियां प्रदर्शित की जाती हैं, अर्थात् “वह भौतिक राशियां जो एक-दूसरे से स्वतंत्र होती हैं ‘मूल राशियां’ कहलाती हैं।”
उदाहरण – ताप, द्रव्यमान, समय, लंबाई, विद्युत धारा, ज्योति-तीव्रता तथा पदार्थ की मात्रा आदि कुल 7 मूल राशियां हैं।

मूल मात्रक क्या है

“मूल राशियों के वे मात्रक जो एक-दूसरे से पूर्णतया स्वतंत्र होते हैं तथा इनमें से किसी एक मात्रक को किसी अन्य मात्रक से बदला अथवा उससे संबंधित नहीं किया जा सकता है, मूल मात्रक कहलाते हैं।”
उदाहरण – मीटर, किलोग्राम, सेकंड, केल्विन, कैन्डिला, एम्पियर तथा मोल आदि कुल 7 मूल मात्रक है।

मूल मात्रकों के गुण निम्नलिखित हैं –

  • यह बाह्य कारकों से अप्रभावित रहना चाहिए।
  • यह सुपरिभाषित होना चाहिए।
  • इसे सरलतापूर्वक निर्मित किया जा सकना चाहिए।
  • इसका उपयोग सरल होना चाहिए।

मापन की पद्धतियां

कालांतर से मापन हेतु भिन्न-भिन्न देशों के वैज्ञानिक अलग-अलग मापन प्रणालियों का प्रयोग करते रहे हैं। अर्थात्
अब से कुछ समय पूर्व मापन की तीन प्रणालियां काफी प्रचलन में थीं। वर्तमान समय में भी इन प्रणालियों का उपयोग कहीं-कहीं देखनें को मिल जाता है। ये प्रणालियां इस प्रकार हैं।

  1. C.G.S. प्रणाली – इस प्रणाली में लंबाई का मात्रक सेंटीमीटर, द्रव्यमान का मात्रक ग्राम एवं समय का मात्रक सेकंड है।
  2. M.K.S. प्रणाली – इस प्रणाली में लंबाई, द्रव्यमान एवं समय को क्रमशः मीटर, किलोग्राम तथा सेकंड में मापते हैं।
  3. F.P.S. प्रणाली – इस प्रणाली में लंबाई, द्रव्यमान एवं समय के मात्रकों को क्रमशः फुट, पाउंड एवं सेकंड में व्यक्त करते हैं।
  4. मापन की अंतरराष्ट्रीय प्रणाली अथवा S.I. प्रणाली – मापन की यह प्रणाली आजकल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रणाली है सांकेतिक रूप में इसे S.I. प्रणाली कहते हैं S.I. पद्धति का अर्थ है ‘सिस्टम इन्टरनेशनल डी यूनिट्स’; अर्थात् इस प्रणाली में सात मूल मात्रक (जैसे – मीटर, किलोग्राम, सेकंड, एंपियर, केल्विन, कैन्डिला एवं मोल) के अतिरिक्त समतलिय कोण के मात्रक रेडियन एवं घनकोण के मात्रक स्टेरेडियन को पूरक मात्रकों की तरह शामिल किया जाता है। अतः इस प्रणाली में कुल 7 मूल मात्रक तथा 2 पूरक मात्रक शामिल होते हैं।

Note – मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में मूल मात्रकों तथा पूरक मात्रकों की परिभाषाएं

(a). मूल मात्रक –

(1). मीटर (m) – यह लंबाई का मात्रक है। अर्थात् एक मीटर वह दूरी है जो प्रकाश द्वारा 1 सेकंड के 299, 792, 458वें समयांतराल में तय किए गए पथ की लंबाई 1 मीटर है।
(2). किलोग्राम (kg) – यह द्रव्यमान का मात्रक है। अर्थात् एक किलोग्राम प्लैटिनम इरीडियम के उस बेलन का द्रव्यमान है जो माप तोल की अंतरराष्ट्रीय समिति के पास फ्रांस में सीवर्स नामक स्थान पर रखा है।
(3). सेकण्ड (s) – यह समय का मात्रक है। अर्थात् एक सेकंड वह समयांतराल है जिसमें सीजियम-133 परमाणु द्वारा उत्सर्जित एक विशेष तरंगदैर्ध्य वाले विकिरण के 9, 192, 631, 770 कम्पन होते हैं।
(4). एम्पियर (A) – यह विद्युत्-धारा का मात्रक है। अर्थात् एक एंपियर वह विद्युत धारा है जिसके निर्वात् में 1 मीटर की दूरी पर स्थित दो सीधें समांतर अनंत लंबाई के तारों में प्रवाहित होने पर प्रत्येक तार की प्रति मीटर लंबाई पर 2×10-7 न्यूटन का वैद्युत बल आरोपित होता है।
(5). केल्विन (k) – यह तापक्रम का मात्रक है। अर्थात् एक केल्विन जल के त्रिक बिंदु के ऊष्मागतिक ताप का 1/273.16वाॅं भाग है।
(6). कैन्डिला (cd) – यह ज्योति-तीव्रता का मात्रक है। अर्थात् एक कैन्डिला कृष्णिका के पृष्ठ के 1/6000,000 मीटर2 क्षेत्रफल की पृष्ठ के लंबवत् दिशा में ज्योति तीव्रता है जबकि कृष्णिका का ताप प्लेटिनम के गलनांक के बराबर हो तथा कृष्णिका पर दाब 101,325 न्यूटन/मीटर2 हो।
(7). मोल (mol) – यह पदार्थ की मात्रा का मात्रक है। अर्थात् एक मोल किसी पदार्थ की वह मात्रा है जिसमें उस पदार्थ के अवयवों की संख्या कार्बन-12 के 0.012 किग्रा में परमाणुओं की संख्या के बराबर होती है।

(b). पूरक मात्रक –

(1). रेडियन (rad) – यह कोण का मात्रक है। अर्थात् एक रेडियन वह कोण है जो वृत्त की त्रिज्या के बराबर लंबाई का चाप वृत्त के केंद्र पर अंतरित करता है।
(2). स्टेरेडियन (Sr) – यह घनकोण का मात्रक है। अर्थात् एक स्टीरेडियन वह घनकोण है जो किसी गोले की त्रिज्या के वर्ग के बराबर क्षेत्रफल वाले किसी गोलीय पृष्ठ द्वारा उस गोले के केन्द्र पर अंतरित होता है।

व्युत्पन्न राशियां एवं व्युत्पन्न मात्रक क्या होते हैं

मूल राशियों के अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियों के मात्रक एक अथवा अधिक मूल मात्रकों पर उपयुक्त घातें लगाकर प्राप्त किए जाते हैं। अर्थात्

  • व्युत्पन्न राशियां – वे भौतिक राशियां जो मूल राशियों की सहायता से व्यक्त की जाती हैं ‘व्युत्पन्न राशियां’ कहलाती हैं। उदाहरण के लिए – क्षेत्रफल, घनत्व, वेग तथा बल आदि। मूल तथा पूरक राशियों के अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियां व्युत्पन्न राशियां हैं।
  • व्युत्पन्न मात्रक – वे मात्रक जो किसी व्युत्पन्न राशि को व्यक्त करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं ‘व्युत्पन्न मात्रक’ कहलाते हैं। ये मूल मात्रकों की सहायता से प्राप्त किए जाते हैं तथा मूल मात्रकों के पदों में ही व्यक्त किए जाते हैं।
    उदाहरण के लिए – क्षेत्रफल का मात्रक मीटर2, घनत्व का मात्रक किलोग्राम/मीटर3, वेग का मात्रक मीटर/सेकंड तथा बल का मात्रक किलोग्राम×मीटर×सेकंड2 अथवा न्यूटन है।

व्युत्पन्न राशियों की विमायें, विमीय सूत्र तथा विमीय समीकरण

S.I. पद्धति के सात मूल मात्रकों के विमीय सूत्रों के संकेत क्रमशः [L], [M], [T], [k], [A], [cd] तथा [mol] होते हैं। अर्थात् अनेक भौतिक राशियों की विमाएं परस्पर समान हो सकती हैं। जैसे – कार्य, ऊर्जा, बल-आघूर्ण की समान विमाएं [ML2T-2] हैं। अर्थात्

  • विमाएं – किसी भौतिक व्युत्पन्न राशि की विमायें वह घातें हैं जो उस व्युत्पन्न भौतिक राशि को व्यक्त करने के लिए मूल राशियों पर लगाई जाती हैं।
  • विमीय सूत्र – किसी भौतिक व्युत्पन्न राशि का विमीय सूत्र वह व्यंजक है जो यह बताता है कि उस व्युत्पन्न भौतिक राशि में कौन-कौन सी मूल राशि किस-किस प्रकार शामिल है।
  • विमीय समीकरण – किसी भौतिक व्युत्पन्न राशि को उसके विमीय सूत्र के बराबर लिखने पर प्राप्त समीकरण को उस राशि का विमीय समीकरण कहते हैं।

विमीय संतुलन की परिभाषा

किसी समीकरण के विमीय सन्तुलन का अर्थ है कि समीकरण के दोनों और के प्रत्येक पद की विमाएं ठीक एक-सी होनी चाहिए। यदि ऐसा हो तो समीकरण अथवा सूत्र सत्य है अन्यथा नहीं।

विमाओं की समांगता का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार, केवल उन्हीं भौतिक राशियों को परस्पर जोड़ा या घटाया जा सकता है जिनकी विमाएं परस्पर बराबर होती हैं।

मापन की यथार्थता एवं परिशुद्धता में अंतर

(1). किसी मापन की यथार्थता वह मान है जो हमें यह बताती है कि किसी राशि का मान उसके वास्तविक मान के कितना निकट है, जबकि किसी मापन की परिशुद्धता यह बताती है कि वह राशि किस सीमा या विभेदन तक मापी गई है।
(2). किसी भी मापक यंत्र की यथार्थता उस यंत्र में विद्यमान उसकी क्रमबद्ध त्रुटि पर निर्भर करती है, जबकि किसी भी मापक यंत्र की परिशुद्धता या दृच्छिक त्रुटियों पर निर्भर करती है।

त्रुटि से आप क्या समझते है?

“किसी मापक यंत्र द्वारा ली गई माप की अनिश्चितता को त्रुटि कहते हैं।” अर्थात् प्रत्येक मापन यंत्र द्वारा प्रेक्षित मानों अथवा एक ही मापन यंत्र द्वारा प्रेक्षित भिन्न-भिन्न मानों तथा भौतिक राशि के सैद्धांतिक मान व वास्तविक मान के बीच कुछ न कुछ अन्तर अवश्य होता है। वास्तविक मान तथा प्रेक्षित मान के बीच का यह अन्तर ‘त्रुटि’ कहलाता है।
सामान्यतः त्रुटियां दो प्रकार की होती हैं।
(1). क्रमबद्ध त्रुटियां, (2). यादृच्छिक त्रुटियां ।

1.क्रमबद्ध त्रुटियां

ऐसी त्रुटियां जो किसी प्रयोग में नियमित रूप से प्राप्त होती रहती हैं। ये त्रुटियां किसी निश्चित नियम अथवा नियामक से नियंत्रित होती हैं जैसे – वर्नियर कैलीपर्स की शून्यांक त्रुटि।

2.यादृच्छिक त्रुटियां

ये ऐसी त्रुटियां है जिनके स्त्रोत का ज्ञान नहीं होता है इसलिए इन्हें आकस्मिक त्रुटियां भी कहते हैं।

निरपेक्ष त्रुटि क्या है

किसी भौतिक राशि के वास्तविक मान तथा प्रेक्षित मान के अंतर के परिमाण को मापन की ‘निरपेक्ष त्रुटि’ कहते हैं।

आपेक्षिक अथवा भिन्नात्मक त्रुटि क्या है

किसी भौतिक राशि के मापन में माध्य निरपेक्ष त्रुटि तथा भौतिक राशि के वास्तविक मान (मध्यमान) का अनुपात आपेक्षिक अथवा ‘भिन्नात्मक त्रुटि’ कहलाता है। अतः
गणितीय रूप में भिन्नात्मक त्रुटि R = \frac{∆a}{a}

प्रतिशत त्रुटि क्या है

जब किसी माप की आपेक्षिक त्रुटि को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है तो इस त्रुटि को ‘प्रतिशत त्रुटि’ कहते हैं। अतः
गणितीय रूप में प्रतिशत त्रुटि = \frac{∆a}{a} × 100%

सार्थक अंक क्या है

किसी राशि की माप में वे अंक जो मापक यंत्र की यथार्थता के अंतर्गत उस राशि के मान को व्यक्त करते हैं ‘सार्थक अंक’ कहलाते हैं।

निष्कर्ष – हमें उम्मीद है यह आर्टिकल आपको पसन्द आया होगा तो इसे अपने दोस्तों में भेजें और यदि कोई सवाल या क्योरी हो, तो आप हमें कमेंट्स कर के बताएं हम जल्द ही उसका हल प्राप्त कर देंगे।

भिन्नात्मक त्रुटि क्या होती है?

किसी भौतिक राशि की निरपेक्ष त्रुटि तथा उसके वास्तविक मान के अनुपात को उस भौतिक राशि की भिन्नात्मक त्रुटि कहते हैं।

त्रुटि कितने प्रकार के होते हैं?

त्रुटि के प्रकार (types of errors).
क्रमबद्ध त्रुटि (systematic errors).
यादृच्छिक त्रुटि (random errors).
स्थूल त्रुटि (gross errors).

आपेक्षिक त्रुटि का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर - आपेक्षिक त्रुटि को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है तो उसे प्रतिशत त्रुटि (Percentage Error) कहते है।

यादृच्छिक त्रुटि क्या है?

यादृच्छिक त्रुटियाँ (Random Errors) इस प्रकार की त्रुटियाँ अज्ञात कारणों के द्वारा उत्पन्न होती हैं तथा इस प्रकार की त्रुटि मापन कर रहे व्यक्ति तथा प्रयोग पर निर्भर करती हैं ; जैसे – यदि कोई व्यक्ति एक ही प्रयोग को बार – बार करके प्रेक्षण लेता है , तो वह प्रत्येक प्रेक्षण में एक भिन्न मान प्राप्त करता है ।