अनुच्छेद 360 में क्या होता है? - anuchchhed 360 mein kya hota hai?

वित्तीय आपातकाल लगाना हो सकता है उपयोगी

दिल्ली डायरी
ए के भट्टाचार्य /  April 01, 2020

प्रशासन के कामकाज में सुधार की दिशा में काम कर रही संस्था सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी ऐंड सिस्टेमिक चेंज (सीएएससी) ने 26 मार्च को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की। इसमें मांग की गई है कि कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन को देखते हुए केंद्र को वित्तीय आपातकाल घोषित करना चाहिए। यह जनहित याचिका है जिसमें उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि वह केंद्र सरकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल के प्रावधानों का इस्तेमाल करने का आदेश दे।

इससे दो दिन पहले यानी 24 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोगों और कंपनियों के लिए विभिन्न वैधानिक नियमों और प्रक्रियाओं के तहत समयसीमा आगे बढ़ाने के सरकार के फैसले के बारे में बताया था और उस दौरान वित्तीय आपातकाल लगाने की संभावना से इनकार किया था। उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि कुछ रिपोर्टों में देश में वित्तीय आपातकाल लागू करने का दावा किया जा रहा है लेकिन सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है।

हालांकि इस तरह की अटकलों का बाजार गर्म था कि नरेंद्र मोदी सरकार कोविड-19 के कारण पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए वित्तीय आपातकाल लागू करने पर विचार कर सकती है ताकि अर्थव्यवस्था को इसके प्रतिकूल असर से उबारने के लिए ज्यादा फंड दिया जा सके। वित्तीय आपातकाल को प्रोत्साहन पैकेज से भी जोड़कर देखा जा रहा था। पिछले कई दिनों में कई सरकारों ने इसी तरह के उपाय किए हैं और माना जा रहा है कि मोदी सरकार भी इसकी घोषणा कर सकती है।


वित्तीय आपातकाल में क्या होता है? 

भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान है। अनुच्छेद 352 के तहत अगर सरकार को लगता है कि युद्ध, बाहरी हमले या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश या उसके किसी भूभाग की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है तो वह राष्ट्रीय आपातकाल लगा सकती है। इस तरह के आपातकाल में केंद्र सरकार सभी तरह की कार्यकारी, विधायी और वित्तीय शक्तियां अपने हाथ में ले लेती है और राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकती है।

इस दौरान अनुच्छेद 20 (अपराधों की सजा के खिलाफ संरक्षण का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) को छोड़कर सभी मौलिक अधिकार निलंबित रहते हैं। देश में अब तक तीन बार इस तरह का आपातकाल लागू किया गया है। 1962 में चीन के साथ युद्ध, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और 1975 में आंतरिक गड़बड़ी का हवाला देकर राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था।

दूसरी तरह का आपातकाल अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में लागू किया जा सकता है। इसके तहत अगर किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी नाकाम हो जाती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। पिछले कई वर्षों के दौरान कई राज्यों में इसका इस्तेमाल किया गया है। राज्य में निर्वाचित सरकार के गठन के साथ ही इसे हटा दिया जाता है।

अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश की आर्थिक स्थिरता को खतरा है तो वह अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल लगा सकता है। इस तरह के फैसले को संसद को दोनों सदनों के समक्ष रखा जाना चाहिए और उन्हें दो महीने के भीतर एक प्रस्ताव पारित इसे मंजूरी देनी होगी। इसके प्रावधानों के तहत केंद्र खुद पर और सभी राज्य सरकारों पर वित्तीय स्वामित्व के मानक लागू कर सकता है। इसके लिए राज्यों के बजट भी केंद्र को ही पारित करने होंगे। अब तक किसी भी सरकार ने देश में वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया है।

अनुच्छेद 360 के तहत सबसे अहम अधिकार यह है कि केंद्र अपने और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कमी कर सकता है। इनमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी शामिल हैं। यह ऐसा प्रावधान है जो जरूरत पडऩे पर केंद्र को वित्तीय मोर्चे पर भारी राहत दे सकता है। सभी राज्यों का कुल व्यय में वेतन और भत्तों का हिस्सा करीब 25 फीसदी है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए यह राशि 9 लाख करोड़ रुपये होगी। केंद्र के असैन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्तों का खर्च करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये है।

इस तरह वित्तीय आपातकाल से केंद्र को अपने और राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन में कटौती की छूट मिलेगी जो कुल मिलाकर करीब 11.5 लाख करोड़ रुपये है। उनके वेतन में 10 फीसदी कटौती से केंद्र को करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी।

लेकिन यह एक मुश्किल फैसला होगा जिससे सरकार की लोकप्रियता बुरी तरह प्रभावित होगी। कोई भी सरकारी कर्मचारी वेतन में कटौती नहीं चाहेगा और हर कोई इस दर्द को लंबे समय तक याद रखेगा। लेकिन ऐसे समय, जब कई निजी कंपनियां अपने कर्मचारियों को छोड़ रही है, अपने कारोबार को बंद कर रहीं हैं जिससे लोग बेरोजगार हो रहे हैं और यहां तक कि वेतन में भी कटौती की जा रही है, वित्तीय आपातकाल में वेतन कटौती का प्रावधान एक विकल्प है जिस पर सरकार विचार कर सकती है।

देश को सीएएससी द्वारा दायर जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय की प्रतिक्रिया का भी बेसब्री से इंतजार रहेगा जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने की मांग की गई है।

आपात उपबंध

  • भारतीय संविधान में आपात उपबंधों को तीन भागों में बाँटा गया है- राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352), राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता/राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356) और वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360)।
  • हम यहाँ पर केवल राष्ट्रीय आपात की विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारतीय संविधान में आपात उपबंध

  • आपात उपबंध भारत शासन अधिनियम-1935 से लिये गए हैं।
  • भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल से संबंधित उपबंध उल्लिखित हैं।
  • ये प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
  • संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है।

उद्घोषणा- अनुच्छेद 352 में निहित है कि ‘युद्ध’ - ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण संपूर्ण भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा खतरें में हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है।

  • मूल संविधान में ‘सशस्त्र विद्रोह’ की जगह ‘आंतरिक अशांति’ शब्द का उल्लेख था।
  • 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द किया गया।
  • जब आपातकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर की जाती है, तब इसे बाह्य आपातकाल के नाम से जाना जाता है।
  • दूसरी ओर, जब इसकी घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जाती है तब इसे ‘आंतरिक आपातकाल’ के नाम से जाना जाता है।
  • राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण देश अथवा केवल इसके किसी एक भाग पर लागू हो सकती है।
  • मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

उद्घोषणा की प्रक्रिया एवं अवधि

  • अनुच्छेद 352 के आधार पर राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा नहीं कर सकता जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप से ऐसा प्रस्ताव उसे न भेज दे।
  • यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया।
  • ऐसी उद्घोषणा का संकल्प संसद के प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति व मतदान करने वाले सदस्यों को 2/3 बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा।
  • राष्ट्रीय आपात की घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाता है तथा एक महीने के अंदर अनुमोदन न मिलने पर यह प्रवर्तन में नहीं रहती, किंतु एक बार अनुमोदन मिलने पर छह माह के लिये प्रवर्तन में बनी रह सकती है।

उद्घोषणा की समाप्ति

  • राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय एक दूसरी उद्घोषणा से समाप्त किया जा सकता है।
  • ऐसी उद्घोषणा के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति के लिये ऐसी उद्घोषणा को समाप्त कर देना आवश्यक होता है जिसे जारी रखने के अनुमोदन प्रस्ताव को लोकसभा निरस्त कर दे।

प्रभाव

1. केंद्र-राज्य संबंध पर प्रभाव

(अ) कार्यपालक

  • केंद्र को किसी राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
  • यद्यपि, राज्य सरकारों को निलंबित नहीं किया जाता।

(ब) विधायी

  • संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  • यद्यपि, किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता।
  • उपरोक्त कानून, आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं।
  • यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति, राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।

(स) वित्तीय

  • राष्ट्रपति, केंद्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है।
  • ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं, जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।

2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव

  • लोकसभा के कार्यकाल को इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाने के लिये संसद द्वारा विधि बनाकर इसे एक समय में एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है।
  • इसी प्रकार, संसद किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी प्रत्येक बार एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ा सकती है।
  • उपरोक्त दोनों विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद अधिकतम छह माह तक के लिये ही लागू रहते हैं।

3. मूल अधिकारों पर प्रभाव

  • आपातकाल के समय मूल अधिकारों के स्थगन का प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से लिया गया है।
  • अनुच्छेद 358 तथा 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करते हैं।
  • अनुच्छेद 358, अनुच्छेद 19 द्वारा दिये गए मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है।
  • जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) से संबंधित है।

(अ)

  • अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपत की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं।
  • जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता है तो अनुच्छेद 19 स्वत: पुनर्जीवित हो जाता है।
  • अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है।

(ब)

  • अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर)
  • यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं
  • अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निलंबन आपातकाल की अवधि अथवा आदेश में वर्णित अल्पावधि हेतु लागू हो सकता है और निलंबन का आदेश पूरे देश अथवा किसी भाग पर लागू किया जा सकता है।

अब तक की गई ऐसी घोषणाएँ

  • अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा चुकी है-
  1. अक्तूबर 1962 से जनवरी 1968 तक-चीन द्वारा 1962 में अरुणाचल प्रदेश के नेफा (North-East Fronfier Agency) क्षेत्र पर हमला करने के कारण।
  2. दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के कारण।
  3. जून 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर।

अनुच्छेद 360 में किसका वर्णन है?

अनुच्छेद 360: वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) यदि राष्ट्रपति संतुष्ट है कि देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके कारण भारत की वित्तीय स्थिरता, भारत की साख या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता को खतरा है, तो वह केंद्र की सलाह पर अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है।

अनुच्छेद 360 कितनी बार लागू हुआ?

भारत में संविधान के अनुच्छेद 360 से वित्तीय या आर्थिक आपातकाल लगाने प्रावधान है।। अभी तक इस अनुच्छेद का एक बार भी प्रयोग नहीं हुआ है इसका मतलब वित्तीय आपातकाल देश में अभी तक नहीं लगा है।।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 360 क्या प्रदान करता है?

अनुच्छेद 360 में कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को आश्वस्त किया जाता है कि एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है जिससे वित्तीय स्थिरता या उसके किसी भी हिस्से को ख़तरा है, तो राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की स्थिति घोषित कर सकते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360, भारत के राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल घोषित करने की अधिकार देता है।

अनुच्छेद 352 356 360 क्या है?

अनुच्‍छेद 352 के तहत राष्‍ट्रीय आपात की उद्घोषणा और अनुच्‍छेद 356 के तहत राष्‍ट्रपति शासन का सीमित आधारों पर न्‍यायिक पुनर्विलोकन संभव है। संविधान के भाग 18 में अनुच्‍छेद 352-360 तक आपातकालीन उपबंधों का उल्‍लेख है। आपात उपबंध जर्मनी के वाइमर संविधान से लिये गए हैं।