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CT 01: General English (Synonyms and Antonyms) 10 Questions 10 Marks 10 Mins In 1815, representatives of the European powers – Britain, Russia, Prussia, and Austria – who had collectively defeated Napoleon, met at Vienna to draw up a settlement for Europe.
Important Points The treaty of Vienna happened among Austria, Prussia, Britain, and Russia
From the above, we can conclude that London was not part of the treaty of Vienna in 1815. Last updated on Sep 26, 2022 Eklavya Model Residential School (EMRS) under the Ministry of Tribal Affairs released the official notification to recruit the candidates for EMRS TGT(Trained Graduate Teacher). A total vacancy of 1906 vacancies has been released for recruitment. The selection procedure for the EMRS TGT Exam consists of a single-stage test, i.e. an online computer-based test. The upper age limit to apply for the examination is 35 years. The candidates can go through the EMRS TGT Salary and Job Profile from here. Free CT 01: General English (Synonyms and Antonyms) 10 Questions 10 Marks 10 Mins 1815 में, यूरोपीय शक्तियों के प्रतिनिधियों - ब्रिटेन, रूस, प्रशिया और ऑस्ट्रिया - जिन्होंने सामूहिक रूप से नेपोलियन को हराया था, यूरोप के लिए एक समझौता बनाने के लिए वियना में मिले थे।
Important Points वियना की संधि ऑस्ट्रिया, प्रशिया, ब्रिटेन और रूस के बीच हुई।
ऊपर से, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लंदन 1815 में वियना संधि का हिस्सा नहीं था। Last updated on Sep 26, 2022 Eklavya Model Residential School (EMRS) under the Ministry of Tribal Affairs released the official notification to recruit the candidates for EMRS TGT(Trained Graduate Teacher). A total vacancy of 1906 vacancies has been released for recruitment. The selection procedure for the EMRS TGT Exam consists of a single-stage test, i.e. an online computer-based test. The upper age limit to apply for the examination is 35 years. The candidates can go through the EMRS TGT Salary and Job Profile from here. वियना कांग्रेस (Jean-Baptiste Isabey द्वारा निर्मित चित्र, 1819) वियना की कांग्रेस (Vienna Congress) यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की।[1] कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था। नैपोलियन को वाटरलू की पराजय के पश्चात् सेंट हेलेना द्वीप निर्वासित कर दिया गया, तत्पश्चात् आस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोप की विजयी शक्तियां 1815 में एकत्रित हुई। उद्देश्य था, यूरोप के उस मानचित्र को पुनर्व्यवस्थित करना जिसे नेपोलियन ने अपने युद्ध और विजयों से उलट-पटल दिया था। वस्तुतः आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने नेपोलियन के विरूद्ध मोर्चा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसीलिए उसकी पहल पर आस्ट्रिया की राजधानी वियना में कांगे्रस बुलाई गई थी। इस सम्मेलन में यूरोप के कई छोटे-छोटे देश शामिल हुए किन्तु नीति निर्माण के संबंध में चार मुख्य देशों के प्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। ये नेता थे- आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिक, रूस का जार एलेक्जेंडर, इंग्लैंड का विदेश मंत्री लॉर्ड कैसलरे तथा फ्रांसीसी विदेश मंत्री तैलरा। वियना कांग्रेस के समक्ष समस्याएं[संपादित करें]
वियना कांग्रेस के उद्देश्य एवं कार्यों की समीक्षा करें।[संपादित करें]नेपोलियन के पराजय के पश्चात अस्त व्यस्त यूरोप की पुर्णव्यवस्था तथा परस्पर विभिन्न विरोधि सिद्धान्तों ने समझौता करने के उद्देश्य से 1815 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में एक सम्मेलन का आयोजन किया इसे ही वियना कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। नेपोलियन ने अपनी विध्वंस कारी युद्धों से संपूर्ण यूरोप को ध्वस्त कर दिया। अत: उसकी शक्ती को कुचलने के उद्देश्य से इस कांग्रेस का आयोजन किया गया था। वाटरलू के विजेता क्रांति विरोधी थे जो विनिष्ट हो चुका था। उसका वे पुर्णस्थापना करने तथा पुर्णस्थापना व्यवस्थाओं को सुरक्षित रखने के लिए वे कटिबाध्य थे। इसी उद्देश्य से वियना कांग्रेस प्रारंभ हुआ था। जिसमें 19वीं शताब्दी के यूरोपीय राजव्यवस्था की आधार शिला रखी गई थी। नेपोलियन को पारजित करने में आस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटर्निक का प्रमुख हाथ था। वे महान राजनीतिज्ञ थे। उन्ही के चलते वियना कांग्रेस का सम्मेलन आस्ट्रिया की राजधानी वियना में किया गया। इसका प्रथम अधिवेशन 15 सितम्बर 1814 को ही आरंभ हो चुका था। इस सम्मेलन में रुस के जार एल्कजेन्डर प्रथम प्रशा के शासक फ्रेडरकि विलियम तृतीय आस्ट्रिया के मेटर्निक फ्रांस के टेलराँ तथा इंगलैंड के विदेश मंत्री लार्ड कैसलरे आदि शामिल थे इसमें तुर्की को छोड़ कर यूरोप के सभी छोट- बड़े शासक उपस्थित हुए थे। कांग्रेस की समस्या- वियना कांग्रस के सामने अनेक प्रकार की समस्याएँ थी। सर्व प्रथम नेपोलियन के युद्धों के चलते यूरोपीय मानचित्र में काफी परिवर्तन आ गया था। वियना कांग्रेस के समक्ष इन राज्यों की पुर्णस्थापना का प्रश्न था दूसरी समस्या क्रांतिकारी भावना का दमन- करना था। चर्च का प्रश्न भी बहुत बड़ी समस्या थी। वियना के सदस्य चर्च के प्रभाव को फिर से स्थापित करना चाहते थे। चौथी समस्या युद्ध की संभावना को समाप्त करना था ताकि पुन: नेपोलियन जैसा कोई शक्तिशाली व्यक्ति पैदा नहीं हो सके। विजित राष्ट्रों को पुरस्कृत करना भी एक अन्य समस्या थी। वियना कांग्रेस के सिद्धांत एवं उद्देश्य- उपर्युक्त समस्याओं के समाधान के लिए वियना कांग्रेस के कुछ सिद्धांत थे जो इस प्रकार है। शक्ति संतुलन का सिद्धांत- इसका प्रमुख सिद्धांत शक्ति संतुलन था अर्थात कोई देश इतना शक्तिशाली न बन पाए की वह दूसरों के लिए खतरनाक बन जाए इस लिए फ्रांस पर प्रतिबंध लगाने के लिए हौलेंड स्वीटजरलैंड, बबेरिया तथा सेर्डिनया का विस्तार किया गया। फ्रांस चारों तरफ से मजबूत राज्यों से घिर गया। इसी तरह जर्मनी को इतना शक्तिशाली बनाया गया कि प्रशा सर नहीं उठा सके। इटली में आस्ट्रिया की स्थापित की गई इस प्रकार शक्ति संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया। ताकि संपूर्ण यूरोप में शक्ति शांति बनी रहे। वैधता का सिद्धांत- इस सिद्धांत के आधार पर 1789 के यूरोपीय मानचित्र को आदार स्वीकार कर विभिन्न यूरोपीय राज्यों की सीमा- निर्धारण का प्रयत्न किया गया। हालैंड, पुर्तेगाल, नेपल्स, तथा इटली आदि राज्य अनेक पुराने राजवंश को लौटा दिया गया। क्षति- पूर्ति का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार जिन देशों को नेपोलियन ने नष्ट किया था और जिन्होंने उसके खिलाफ संघर्ष किया था। उनकी क्षति- पूर्ति करना और उन्हें पुरस्कृत करना स्वीकार किया गया। जिन देशों ने नेपोलियन का साथ दिया था। उन्हें दंड दिया गया गया था। फ्रांस के विरुद्ध सीमांत राज्यों को शक्तिशाली बनाना- इसका चौथा सिद्धांत फ्रांस के विरुद्ध सीमांत राज्यों को शक्तिशाली बनाया जाए ताकि फ्रांस अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को भंग नहीं कर सके। उपर्युक्त सिद्धान्तों के अतिरिक्त इसके अन्य सिद्धांत भी थे। शांति- समझौता को बरकरार रखने के लिए इसके पीछे भी शक्ति होनी चाहिए। अत: इंगलैंड, आस्ट्रिया, रुस और प्रशा ने चतुसुत्रीय संधि की इसी सिद्धांत के फलस्वरुप यूरोपीय व्यवस्था की उत्पत्ति हुई। वियना कांग्रेस के निर्णय एवं प्रादेशिक व्यवस्था- इसने जो प्रादेशिक व्यवस्था की उसके निम्नलिखित उद्देश्य थे। जिन देशों ने नेपोलियन को हराने में हिस्सा लिया था उन्हें पुरस्कार और जो पराजित हुए थे उन्हें दंड मिलना चाहिए। यूरोप में क्रांति से पहले की व्यवस्था लागु किया जाए। जिससे यूरोपीय व्यवस्था का निर्माण हो और शांति तथा सुरक्षा कायम रखा जा सके। नेपोलयन ने जिन राज्यों को फ्रांस में शामिल किया था उन्हें छीन लिया गया। और फ्रांस में प्राचीन राजवंश को फिर से स्थापित किया गया। इंगलैंड को औपनिवेशिक और व्यापारिक लाभ हुए। माल्टा, सेंट, लुसियना, मॉरिशस के द्वीप फ्रांस से लेकर इंगलैंड को दे दिया गया। प्रशा को भी लाभ हुआ उसे उत्तरी सैक्सनी, सलासापेल एवं त्रीले के प्रदेश दिए गए फलत: उसका राज्य दुगुन्ना बढ़ गया और दक्षिणी जर्मनी में उसका प्रभाव कायम हो गया। बेल्जियम को हौलेंड में शामिल किया गया और वहाँ फिर से अंग्रेज राजवंश की स्थापना की गई। आस्ट्रिया को इटली के बेलेशिया तता लोम्ब्रार्डी के प्रदेश दिए गए। इस प्रकार मध्य यूरोप में उसका प्रभाव कायम हो गया और मेटर्नक अपने उद्देश्य में सफल रहा। रुस को वारसा तथा वेसरेविग मिला। फलत: पश्चिमी यूरोप में उसका काफी विस्तार हुआ। इटली को छोटे- छोटे राज्यों में बाँटकर उसे वहाँ के प्राचीन शासकों को दे दिया गया और इटली में आस्ट्रिया का प्रभाव स्थापित किया गया। पोलैंड का अस्तित्व समाप्त हो गया। रुस, प्रशा और आस्ट्रिया ने उसे आपस में बाँट लिया। स्पेन में पुन: प्राचीन राजवंश की स्थापना की गई। यद्धपि पुर्तेगाल ने अंग्रेजों की सहायता की थी लेकिन इसे कुछ नहीं दिया गया। स्वीडन और डेनमार्क को दंड मिला। स्टीजरलैंड पहले से अधिक शक्तिशाली हो गया। उसे 22 राज्यों का शक्तिशाली संघ बनाया गया। जर्मनी के संबंध में कांग्रेस के निर्णय काफी महत्वपूर्ण थे। जर्मनी के बचे हुए 38 राज्यों को मिलाकर एक संघ बनाया गया। जिसका प्रधान आस्ट्रिया का सम्राट फ्रांसिसको प्रथम था। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने और भी अनेक कार्य किये उसने दास- प्रथा को अनैतिक बनाया। अंतराष्ट्रीय विधियों के संबंध में भी निर्णय लिए गए। भविष्य में यूरोपीय शांति को कायम रखने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की गई जिसे यूरोपीय व्यवस्था कहा जाता है। वियना कांग्रेस के कार्यों का मुल्यांकन- वियना कांग्रेस का आरंभ उच्च आदर्शों एवं उद्देश्यों की घोषणा के साथ हुआ था। लेकिन उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो सका था। उसका कार्य करने का ढंग दोषपूर्ण था। सभी राष्ट्र अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे थे। अत: समस्याओं के समाधान में यह असफल रहा। वियना सम्मेलन का कार्यक्रम स्वार्थ परता पर आधारित था। इसके सदस्यों ने नैतिक सिद्धांतों को अपेक्षा की। इस लिए इसके निर्णय अस्थायी अनिर्थक साबित हुए। इसने यूरोप के नव निर्माण में कोई ऐसा प्रयास नहीं किया जिससे जनता की इच्छा की पूर्ति हो सके और स्थायी तौर पर व्यवस्था कायम हो सके। इसने सिर्फ शक्तिसंतुलन के सिद्धांत के आधार पर राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण किया किया लेकिन लोकप्रिय भावना को कोई महत्व नदीं दिया। इसपर दुसरा आरोप यह लगाया जाता है कि इसने कुछ कार्यों को अधुरा छोड़ दिया और कुछ समस्याओं पर इसने ध्यान नहीं दिया जैसे- यूरोपीय शांति को सुरक्षित रखने के एक लिए एक संधि पत्र पर हस्ताक्षर करना था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कुछ इतिहासकारों ने वियना कांग्रेस को प्रतिक्रयावादी कहा है। इसके लिए राष्ट्रीय भावना की कोई कीमत नहीं थी इसपर यह भी आरोप है कि बड़े राष्ट्रों के हितों क रक्षा के लिए छोटे राष्ट्रों के हितों की उपेक्षा की गई। उपर्युक्त आरोपों के बावजुद यह स्वीकार करना पड़ेगा कि वियना में राजनीतिक संयम और दूरदर्शता से काम लिया गया था। जर्मनी और इटली के एकीकरण की दिशा में इसने महत्वपुर्ण काम किया। इतना ही नहीं इसमें दास प्रथा वयापारिक स्वतंत्रता आदि पर भी विचार किया गया। राज्यों की अराजकता को नष्ट करने की दिशा में इसने महत्वपूर्ण काम किया। इसने अंतराष्ट्रीय संविधान का भी निर्माण किया। इसके कार्यों के फलस्वरुप यूरोप में 40 वर्षों तक शांति बनी रही। पहली बार अंतरराष्ट्रीय विषयों पर बात- चीत करने के लिए बैठक बुलाई गई थी। और इसने यूरोपीय व्यवस्था का संगठन किया था इसे हम प्रथम अंतर्ऱाष्ट्रीय संगटन कह सकते है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वियना कांग्रेस के सिद्धान्त[संपादित करें]उपरोक्त उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वियना कांग्रेस ने कुछ सिद्धान्त बनाए जो निम्न थे-
वियना कांग्रेस के कार्य[संपादित करें]नई प्रादेशिक व्यवस्था[संपादित करें]गुलाबी रंग में दिखाये गये क्षेत्र पहले फ्रांस के पास रहने दिये गये थे किन्तु १०० दिन बाद उन्हें फ्रांस से अलग कर दिया गया। इंग्लैंड के औपनिवेशिक साम्राज्य में वृद्धि की गई। उसको माल्टा, एलिगोलैंड (उत्तरी सागर) आदि द्वीप मिले तथा फ्रांस के टोबगो, मॉरीसस तथा सेंट लुसिया के द्वीप तथा स्पेन से ट्रिनिडाड क्षेत्रों की प्राप्ति हुई। फ्रांस की सीमाएं वही निश्चित की गई जो क्रांति से पूर्व की थी। क्रांति काल के बाद सभी क्षेत्र फ्रांस से छिन लिए गए। युद्ध हर्जाने के रूप में 70 करोड़ फै्रंक की राशि की मांग की गई। फ्रांस के सीमावर्ती क्षेत्रों से शक्तिशाली राष्ट्रों का निर्माण किया गया ताकि भविष्य में फ्रांस महाद्वीप की शांति को भंग न कर सकें। फ्रांस के राजसिंहासन पर पुनः बूर्वो वंश के लुई 18वें को बैठा दिया गया। जर्मनी में नेपोलियन से पूर्व पवित्र रोमन साम्राज्य मौजूद था। नेपोलियन ने उसे समाप्त कर राइन संघ का गठन किया और वहां राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ। वियना कांग्रेस इस राष्ट्रीयता के प्रसार को रोकने के लिए कटिबद्ध थी। अतः वहां एक ढीला-ढाला संघ बनाया गया जिसका अध्यक्ष आस्ट्रिया का सम्राट फ्रांसिस बना। आस्ट्रिया को इटली में वेनेसिया तथा लोम्बार्डी के प्रदेश दिए गए। पोलैंड से दक्षिण वलेशिया भी प्राप्त हुआ। इस प्रकार आस्ट्रिया ने खोई शक्ति और प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर ली। इटली को अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त कर दिया गया। इटली वस्तुतः, मेटरनिक के शब्दों में, केवल एक भौगोलिक अभिव्यक्ति बन कर रहा गया। इस प्रकार इटली पर आस्ट्रिया का प्रभाव स्थापित किया गया। दास प्रथा का विरोध[संपादित करें]वियना कांग्रेस में दास प्रथा का विरोध किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण[संपादित करें]कांग्रेस ने शांति बनाए रखने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण किया जिसे 'यूरोपीय व्यवस्था' (Consert of Europe) कहा जा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संविधान[संपादित करें]पहली बार अंतर्राष्ट्रीय संविधान का निर्माण किया गया। इसके द्वारा नदियों में जहाजों का आवागमन, समुद्र का उपयोग तथा राष्ट्रों के बीच पारस्परिक व्यवहार के मुद्दों को व्याख्यायित किया गया। यूरोप के देशों की सीमाएँ १८१५ के वियना कांग्रेस द्वारा निर्धारित की गयीं थीम। वियना कांग्रेस की आलोचना[संपादित करें]
सबल पक्ष[संपादित करें]वियना कांगे्रस की मुख्य उपलब्धि यह रही कि इसने यूरोप में लगभग 40 वर्षों तक शांति की स्थापना की जिसकी यूरोपवासियों को उस समय सर्वाधिक जरूरत थी। वियना कांगे्रस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति स्थापित करने की कोशिश की तथा यूरोपीय व्यवस्था की स्थापना कर प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जिसकी आधारशिला पर आगे चलकर राष्ट्रसंघ (लीग ऑफ नेशन्स) व संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण हुआ। वियना कांगे्रस में फ्रांस के साथ अपेक्षाकृत न्यायपूर्ण व्यवहार किया गया था और पराजित शक्ति होने के बावजूद उसे कांगे्रस में प्रतिनिधित्व दिया गया, जबकि प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् वर्साय की संधि में पराजित जर्मनी को प्रतिनिधित्व नहीं मिला और संधि के कड़े प्रावधान उस पर थोप दिए गए। निष्कर्षतः कह सकते हैं कि वियना कांगे्रस ने तत्कालिक रूप से यूरोप में शांति स्थापित की। फ्रांस के साथ नरम व्यवहार करने जैसे सकारात्मक कदम उठाए। परन्तु उदारवाद, राष्ट्रवाद जैसी विचारधारा के प्रसार को रोकने का प्रयास कर इतिहास की धारा के विरूद्ध कार्य किया। इस दृष्टि से वियना कांगे्रस प्रतिक्रियावादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती थी। सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
कौन सा देश 1815 में वियना संधि में शामिल नहीं था?नेपोलियन युद्धों के बाद 9 जून, 1815 को वियना के कांग्रेस के अंतिम दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। ऊपर से, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लंदन 1815 में वियना संधि का हिस्सा नहीं था।
निम्नलिखित में से कौन सा वियना 1815 की संधि का?वियना की कांग्रेस (Vienna Congress) यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की।
1815 वियना संधि का मुख्य उद्देश्य क्या था?इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की। कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था।
वियना कांग्रेस में कौन सा राज्य सम्मिलित नहीं था?Solution : वियना कांग्रेस यूरोपीय राजदूतो का एक सम्मेलन था जो सितमबर 1814 से जून 1815 तक वियेना में आयोजित किया गया था इसकी अध्यक्षता आष्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की थी।
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