उत्तर - रुक्मी कर्तव्य से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से कुरुक्षेत्र गया और अपमानित हुआ। Show
प्रश्न-4 युद्ध के समय कौन-कौन से राजा युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए और तटस्थ रहे? उत्तर- युद्ध के समय सारे भारतवर्ष में दो ही राजा युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए और तटस्थ रहे-एक बलराम और दूसरे भोजकट के राजा रुक्मी। प्रश्न-5 पांडवों की विशाल सेना को कितने हिस्सों में बाँटा गया? उत्तर – पांडवों की विशाल सेना को सात हिस्सों में बाँटा गया। द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान, भीमसेन आदि सात महारथी इन सात दलों के नायक बने। प्रश्न-6 युद्ध को लेकर कर्ण की क्या हठ थी? उत्तर- कर्ण की हठ थी कि जब तक भीष्म जीवित रहेंगे, तब तक वह युद्ध-भूमि में प्रवेश नहीं करेगा। भीष्म के मारे जाने के बाद ही वह लड़ाई में भाग लेगा और केवल अर्जुन को ही मारेगा। प्रश्न-7 कौरवों की सेना की व्यूह-रचना देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन को क्या कहा? उत्तर- कौरवों की सेना की व्यूह-रचना देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन को आज्ञा दी–“एक जगह सब वीरों को इकट्टे रहकर लड़ना होगा। अतः सेना को सूची-मुख (सूई की नोंक के समान) व्यूह में सज्जित करो।" प्रश्न-8 रुक्मी किस मनसा से पांडवों की सहायता के लिए गए? उत्तर- कुरुक्षेत्र में होनेवाले युद्ध के समाचार सुनकर रुक्मी ने सोचा कि यह अवसर वासुदेव की मित्रता प्राप्त कर लेने के लिए ठीक होगा। इसलिए वह पांडवों के पास उनकी सहायता का प्रस्ताव ले कर गए। प्रश्न-9 रुक्मी को अपमानित होकर भोजकट क्यों लौटना पड़ा? उत्तर – कुरुक्षेत्र में होनेवाले युद्ध के समाचार सुनकर रुक्मी ने सोचा कि यह अवसर वासुदेव की मित्रता प्राप्त कर लेने के लिए ठीक होगा। इसलिए वह पांडवों के पास उनकी सहायता का प्रस्ताव ले कर गए। इस पर अर्जुन ने रुक्मी से बोला "राजन्! आप बिना शर्त के सहायता करना चाहते हैं, तो आपका स्वागत है। नहीं तो आपकी जैसी इच्छा।" यह सुनकर रुक्मी क्रोध में अपनी सेना लेकर दुर्योधन के पास गया और उससे कहा "पांडव मेरी मदद नहीं चाहते हैं। इस कारण मैं आपकी सहायता हेतु आया हूँ।" परन्तु दुर्योधन ने कहा "पांडवों ने जिसकी सहायता स्वीकार नहीं की, हमें उसकी सहायता स्वीकार करने की ज़रूरत नहीं है।" इस प्रकार रुक्मी दोनों तरफ़ से अपमानित होकर भोजकट वापस लौट गए । इसे सुनेंरोकेंकौरव सेना 11 अक्षौहिणी थी। हर अक्षौहिणी का एक सेना अध्यक्ष होता था और समस्त सेना का संचालन प्रधान सेनापति के अन्तर्गत होता था। पहले 10 दिन कौरव सेना के प्रधान सेनापति गंगापुत्र भीष्म थे। कौरवों के सेना का पहला सेनानायक कौन बने थे?इसे सुनेंरोकेंकौरव सेना के पहले सेनापति कौन बने? उत्तर: कौरव सेना के पहले सेनापति भीष्म पितामह बने। भारत में कौन सबसे अधिक दिनों तक कौरव सेना के सेनापति थे? इसे सुनेंरोकेंइस दिन कर्ण को कौरव सेनापति बनाया जाता है। इस दिन वह पांडव सेना का भयंकर संहार करता है। पढ़ना: पत्थर क्यों मारते हैं? कौरव सेना का सेनापति कौन था? इसे सुनेंरोकेंराजा शल्य ने ऐसा ही किया। – कर्ण की मृत्यु के बाद दुर्योधन ने राजा शल्य को कौरवों का सेनापति बनाया। महाभारत में भूरिश्रवा कौन थे?इसे सुनेंरोकेंभूरिश्रवा, बहलिका राज्य में स्थित एक छोटे से क्षेत्र का राजकुमार था। भूरिश्रवा के दादा बहलिका राजा शांतनु के बड़े भाई थे इस कारण भूरिश्रवा कुरुवंशी थे। ऐसा भी कहा जाता है कि देवकी के स्वयंवर के समय सोमदत्त की राजकुमार सिनी से लड़ाई हुई थी। अश्वत्थामा की पत्नी का क्या नाम था?इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बाल़क को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा।… युधिष्ठिर कौरव सेना की ओर क्यों गए? इसे सुनेंरोकेंवे हर समय कौरवों की अनैतिक हरकतों का विरोध करते रहे थे। यह बाद युधिष्ठिर अच्छी तरह जानते थे। युद्ध के प्रारंभ होने वाले दिन एन वक्त पर युधिष्ठिर ने उसे समझाया कि तुम अधर्म का साथ दे रहे हो। ऐसे में युयुत्सु ने विचार किया और वह डंका बजाते हुए कौरवों की सेना से पांडवों की सेना की ओर आ गया। पढ़ना: दौड़ लगाने से वजन कम होता है क्या? कौरवों का अंतिम सेनापति कौन था? इसे सुनेंरोकेंकौरव सेना का अंतिम सेनापति मद्रराज शल्य बना था। महाभारत युद्ध के कुल 18 दिन में कौरव सेना में चार सेनापति बने। जिनमें भीष्म पितामह 10 दिन, द्रोणाचार्य 5 दिन, कर्ण ने 2 दिन का सेनापति का कार्य संभाला। इन सब की मृत्यु होने के बाद 18वें दिन मद्रराज शल्य को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। अंतिम दिन कौरव सेनापति कौन था?इसे सुनेंरोकेंकौरव सेना का अंतिम सेनापति मद्रराज शल्य बना था। जिनमें भीष्म पितामह 10 दिन, द्रोणाचार्य 5 दिन, कर्ण ने 2 दिन का सेनापति का कार्य संभाला। इन सब की मृत्यु होने के बाद 18वें दिन मद्रराज शल्य को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। युद्ध के बारहवें दिन कौन सी अफवाह फैलाई गई?इसे सुनेंरोकेंबारहवें दिन युद्ध में क्या अफवाह फैल गई? Answer: बारहवें दिन के युद्ध में यह अफवाह फैल गई कि भगदत्त के हाथी ने भीम को मार गिराया। These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant & Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति are prepared by our highly skilled subject experts. Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापतिBal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 27 पाठाधारित प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 27 श्रीकृष्ण उपप्लव्य पहुँचकर पांडवों को हस्तिनापुर का सारा हाल सुनाया। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से युद्ध की तैयारी के लिए कहा। पांडवों ने विशाल सेना को सात भागों में बाँट दिया। द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान, भीमसेन आदि सात महारथी, इन सात दलों के नायक बने। अब प्रश्न उठा कि पांडवों का सेनापति किसे बनाया जाए? सबकी राय ली गई? धृष्टद्युम्न को पांडव सेनापति बनाया गया। दूसरे तरफ़ कौरव पक्ष में भीष्म ने कहा कि लड़ाई की घोषणा करते समय मेरे से सुझाव नहीं लिया गया। अतः मैं पांडु-पुत्रों का वध नहीं करूँगा। कर्ण सदैव हमारा विरोध करता रहा है, अतः उसे सेनापति बना दिया जाय। दुर्योधन ने भीष्म पितामह को ही कौरवों का सेनापति बनाया। कर्ण ने कहा जब तक भीष्म पितामह जीवित हैं मैं युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करूँगा। सिर्फ अर्जुन को मारने के लिए युद्ध में प्रवेश करूँगा। फलतः कर्ण तब तक युद्ध से अलग रहे। इधर युद्ध की तैयारियों के मध्य ही बलराम एक दिन पांडवों की छावनी में पहुँचे और बोले मैंने कृष्ण को अनेक बार कहा था, कौरव-पांडव हमारे लिए बराबर हैं, लेकिन अर्जुन के प्रेम के कारण तुम्हारे पक्ष में आ गए। दुर्योधन व भीम दोनों मेरे शिष्य हैं। मैं तो उनको लड़ते-लड़ते मरते देख नहीं सकता। अतः मैं युद्ध स्थान में किसी के तरफ़ से नहीं रहूँगा। मैं जा रहा हूँ। मैं तटस्थ रहूँगा। महाभारत के युद्ध में पूरे भारत वर्ष में दो ही राजाओं ने युद्ध में भाग नहीं लिया। वे तटस्थ रहे- एक बलराम और दूसरे भोजकर के राजा रुक्मी। राजा रुक्मी की छोटी बहन रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पत्नी थी। युद्ध का समाचार सुनकर रुक्मी एक अक्षौहिणी सेना लेकर आया था। रुक्मी के अहंकार के कारण दोनों पक्षों ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्षों की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी होकर युद्ध नीति पर चलने की प्रतिज्ञाएँ लीं। दोनों पक्षों की व्यूह रचनाएँ हो गईं। श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश से अर्जुन के भ्रम को दूर किया। तब अर्जुन का मोह भंग हुआ। युद्ध शुरू होने वाला था कि युधिष्ठिर ने अपना कवच उतारकर सीधे पितामह भीष्म के पास गए और झुककर चरण स्पर्श किए। पितामह से उन्होंने कहा- “पितामह हमने आपके साथ युद्ध का दुस्साहस कर ही लिया। कृपया हमें युद्ध की अनुमति दीजिए और आशीर्वाद भी कि हम युद्ध में विजय प्राप्त करें। पितामह बोले- “बेटा युधिष्ठिर! मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। तुम्हारे विपक्ष में लड़ना पड़ रहा है फिर भी मेरी कामना है कि रण में विजय तुम्हारी हो। भीष्म से आज्ञा और आशीर्वाद लेकर युधिष्ठिर इसी प्रकार आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य व मद्रराज शल्य के पास जाकर आशीर्वाद लिया और अनुमति माँगी। उन सबने उनको आशीर्वाद दिया और युद्ध की विवशता बताई। युद्ध के प्रारंभ में सबसे पहले बराबर वाले एक जैसे हथियार लेकर दो-दो की जोड़ी में लड़ने लगे। प्रत्येक योद्धा युद्ध धर्म का पालन करते युद्ध करने लगे। पितामह भीष्म के नेतृत्व में दस दिन तक युद्ध चला। भीष्म के आहत होने पर द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया गया। द्रोणाचार्य के बाद दो दिन कर्ण सेनापति रहे और अठाहरवें दिन शल्य सेनापति बने। महाभारत का युद्ध कुल अठारह दिन चला। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या-68- चर्चा – खबर, सुसज्जित – अच्छी तरह से सजा हुआ, सुचारु – ठीक, विशाल – बड़ा, राय – सलाह, दृष्टि – नज़र, कोलाहल – शोर, ऋण – कर्ज, सम्मति – राय। पृष्ठ संख्या-69- विपक्ष – विरोधी, सम्मिलित – शामिल, सहायता – मदद, प्रतिष्ठा – इज्जत। पृष्ठ संख्या-70- कतार – पंक्ति, हथियारबंद – हथियार के साथ। पृष्ठ संख्या-71- अनुमति–आज्ञा, स्वतंत्र-आज़ाद, रण-युद्ध, कामना-चाह, परिक्रमा-चारों ओर घूमना, विवश-लाचार, स्वर्गवास-देहांत, संचालन-देख-रेख करना, नियुक्त-बहाल, तैनात। महाभारत के 18 दिन के युद्ध में कौरवों और पांडवों के सेनापति कौन बनाए गए?4 18वे तथा अंतिम दिन महाराज शल्य थे। धृष्टद्युम्न, पांचाल नरेश द्रुपद के संतान थे, और द्रोपदी के भाई थे। महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष के कुल कितने सेनापति थे ? प्रथम सेनापति भीष्म पितामह, दूसरे सेनापति गुरु द्रोणाचार्य, तीसरे सेनापति महारथी कर्ण, चौथे सेनापति शल्य, और पांचवें और अंतिम सेनापति अश्वत्थामा बने थे।
कौरवों की सेना में कौन कौन सेनापति थे?महाभारत युद्ध में पांडवों की तरफ से सेनापति थी शिखण्डिनी और कौरवों के सेनापति थे भीष्म लेकिन पितामाह भीष्म की मृत्यु के बाद कर्ण और द्रोण को सेनापति बनाया।
कौरव सेना का अंतिम सेनापति कौन बना?कौरव पक्ष के आखिरी सेनापति के रूप में मद्र नरेश शल्य ने युद्ध के 18वे दिन नेतृत्व किया।
भीष्म पितामह कितने दिन कौरवों के सेनापति रहे?कौरव और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुआ ये युद्ध 18 दिनों तक चला था. इस युद्ध में पहले 10 दिनों तक कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे. 10वें दिन अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी. अर्जुन के तीरों से छलनी भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर आ गए.
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