जल तत्व प्रधान वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल और प्लूटो है। वृश्चिक राशि के कारक ग्रह चंद्र, मंगल और गुरु माने गए हैं। भाग स्थिर है और वृश्चिक लग्न की बाधक राशि वृषभ तथा बाधक ग्रह शुक्र है। लाल किताब अनुसार आठवें भाव में वृश्चिक राशि मानी गई है जिसके मंगल का पक्का घर भी तीन और आठ माना जाता है। यदि आप वृश्चिक राशि के जातक हैं तो आपके लिए यहाँ लाल किताब अनुसार सामान्य सलाह दी जा रही है। Show
वृश्चिक राशि का ग्रह मंगल होता है। यदि आपकी कुंडली में मंगल खराब है तो आप निम्नलिखित सावधानी और उपाय अपना सकते हैं। मंगल खराब होने की नीचे अशुभ की निशानी दी गई है। इससे आप पता लगा सकते हैं कि आपका मंगल खराब है या नहीं। अशुभ की निशानी : *मांस खाने से, भाइयों से झगड़ने और क्रोध करने से मंगल अशुभ हो जाता है। *रक्त या स्वभाव खराब है तो मंगल खराब की निशानी समझे। *शरीर पर जगह जगह लाल मस्से या तील जैसे निशान हो गए हैं तो अशुभ। *वृश्चिक राशि के जातक का मंगल बद है तो मंगल से संबंधित बीमारियों में पेट के रोग, हैजा, पित्त, भगंदर, फोड़ा, नासूर और आमाशय से संबंधित समस्याएं होने लगती हैं। *मानसिक रोगों में अति क्रोध, विक्षिप्तता, चिढ़चिढ़ापन, तनाव, अनिद्रा आदि मंगल के अशुभ होने की निशानी है।
सावधानी : *किसी से मुफ्त में कुछ ना लें। *भाई और पिता से झगड़ा न करें। *आंत और दांत साफ रखें। *मांस न खाएं। *अतिथियों की सेवा करें। *क्रोध न करें। उपाय : *बच्चों को उनके जन्मदिवस पर नमकीन वस्तुएं बांटें। *मेहमानों को मिठाई जरूर खिलाएं। *विधवाओं की निस्वार्थ मदद करें। *हमेशा अपनों से बड़ों का सम्मान करें। *कभी-कभी गुलाबी या लाल चादर पर सोएं। *सफेद रंग का सुरमा आंखों में लगाएं। *हनुमानजी की भक्ति करें। *गुड़ खाना चाहिए। अक्षर तालिका : तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू। विशेषत : नेतृत्व, पराक्रम, चतुराई और साहस। वृश्चिक राशि (Scorpion) का स्थान लिंग एवं गुदा में होता है। इसके कारक ग्रह चंद्र, मंगल और गुरु माने गए हैं। जल तत्व प्रधान वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल और प्लूटो है। भाग
स्थिर है और वृश्चिक लग्न की बाधक राशि वृषभ तथा बाधक ग्रह शुक्र है, लेकिन लाल किताब अनुसार शत्रु और मित्र ग्रहों का निर्णय कुंडली अनुसार ही होता है। लाल किताब अनुसार आठवें भाव में वृश्चिक राशि मानी गई है जिसके मंगल का पक्का घर भी तीन और आठ माना जाता है। लाल किताब की कुंडली अनुसार मंगल के खराब या अच्छा होने की कई स्थितियाँ हैं। यदि आप वृश्चिक राशि के जातक हैं तो आपके लिए यहाँ लाल किताब अनुसार सामान्य सलाह दी जा रही है। मंगल बद : बद का अर्थ खराब या अशुभ। मंगल अशुभ होता है- माँस खाने से, भाइयों से झगड़ने और क्रोध करने से। दूसरा यदि कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब अन्य ज्योतिष विद्या अनुसार मांगलिक दोष माना जाता है, लेकिन यहाँ मंगल का संबंध रक्त से माना गया है। रक्त या स्वभाव खराब है तो मंगल खराब की निशानी समझे। वृश्चिक राशि के जातक का मंगल बद है तो मंगल से संबंधित बीमारियों में पेट के रोग, हैजा, पित्त, भगंदर, फोड़ा, नासूर और आमाशय से संबंधित समस्याएँ होने लगती हैं। मानसिक रोगों में अति क्रोध, विक्षिप्तता, चिढ़चिढ़ापन, तनाव, अनिद्रा आदि। सावधानी व उपाय : किसी से मुफ्त में कुछ लेंगे तो बरकत जाती रहेगी। भाई और पिता से झगड़ा न करें। अपने बच्चों को जन्मदिवस पर नमकीन वस्तुएँ
बाँटें। मेहमानों को मिठाई जरूर खिलाएँ। विधवाओं की निस्वार्थ मदद करें। हमेशा अपनों से बड़ों का सम्मान करें और उनसे आशीर्वाद लेते रहें। कभी-कभी गुलाबी या लाल चादर पर सोएँ। आँत और दाँत साफ रखें। हनुमानजी की भक्ति करें। मंगल खराब की स्थिति में सफेद रंग का सुरमा आँखों में डालना चाहिए। गुड़ खाना चाहिए। भाई और मित्रों से संबंध अच्छे रखना चाहिए। क्रोध न करें। वृश्चिक लग्न वाले जातक के गुणवृश्चिक लग्न का जातक परिश्रम एवं लगन के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करते हुए जीवन में सफलता अर्जित करता है। विभिन्न विषयों में रूचि होने के कारण अनेको विषयों का ज्ञाता होता है। ऐसे जातक की गणना परिवार एवं अपने कुल में श्रेष्ठ एवं विद्वानों में होती है। मित्रों एवं भाई बहनों के प्रिय वृश्चिक लग्न के जातक महत्वाकाक्षी होते हैं। आत्मशक्ति की इनमे प्रधानता रहती है तथा जीवन में अधिक से अधिक धन संचय की इच्छा सदैव रहती है। इनका व्यक्तित्व या तो डरावना या आकर्षक लगता है। वृश्चिक लग्न का जातक रहस्यमयी होता है। आपका स्वाभाव कुछ बिगड़ैल, झगडे में तत्पर तथा शीघ्र ही क्रोधित हो जाने वाला होगा। ऐसे जातक बहुत सतर्क परन्तु झगड़ालू किस्म के होंगे। विवाद में आप पक्ष विपक्ष की बात तथा अपनी हानि का भी विचार नहीं कर दृढ़ता व संलग्नता पूर्वक झगडे में लग जायेंगें। आप सच्ची बात को स्पष्ट रूप से कहने वाले अर्थात काने को काना कहने में आपको तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होगी। हठी होने के कारण आप अपने बुजुर्गों तथा गुरुजनों से भी विवाद कर बैठेगें। कुसंयम तथा अपनी बुरी आदतों के कारण आप अपने स्वास्थ को बिगाड़ लेंगें। वृश्चिक लग्न के जातक शारीरिक रूप से संवेदनशील, सम्मोहित और तीव्र होते हैं, और दूसरों के साथ बातचीत करते समय सतर्क रहते हैं। यह सहजता उन्हें दूसरों की क्षमताओं, कमजोरियों, पीड़ा और झूठ को देखने में सक्षम बनाती है। ये अनुमान लगाने में भी काफी चतुर होते हैं। छिपे हुए अर्थों को बाहर निकालते हैं, और किसी को भी चौंका सकते हैं। वृश्चिक लग्न के जातक स्वभाव से कर्मठ एवं साहसी होते हैं। बहुत तेज़ बुद्धि तथा दृढ इच्छाशक्ति के कारण जीवन में आई अनेक कठिनाइयों को आप चुप-चाप धैर्य से पार कर लेते हैं तथा अपनी गति को बिना रोके मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं। अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
वृश्चिक लग्न में ग्रहों के प्रभाववृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में मंगल लग्नेश तथा रोगेश है। लग्न भाव का स्वामी होने के कारण यह कुंडली के सबसे पहला कारक ग्रह माना जाता है। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव में पड़ा मंगल अपनी क्षमतानुसार अपनी दशा-अंतर्दशा में शुभ फल देता है। तीसरे, छठें, आठवें, नौवें (नीच राशि) तथा बारहवें भाव में यदि मंगल पड़ा हो तो वह अपने अंश मात्र के बलाबल अनुसार अशुभ फल देगा क्योँकि यहाँ वह गलत भाव में पड़ा होने के कारण अपनी योग्य कारकता खो देता है। इस लग्न कुंडली में यदि मंगल किसी भी भाव में अस्त या दुर्बल अवस्था में हो तो मंगल देवता का रत्न मूंगा धारण किया जाता है। यदि मंगल उदय अवस्था में गलत भाव में पड़ा हो तो उसका दान और पाठ करके उसकी अशुभता को कम किया जाता है। वृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में बृहस्पति देवता दूसरे तथा पांचवे भाव के स्वामी हैं। दो अच्छे घरों के स्वामी तथा लग्नेश मंगल मित्र होने के कारण बृहस्पति देव इस कुंडली में अति योगकारक ग्रह माने जाते हैं। यदि बृहस्पति देव लग्न पहले भाव में, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुशार शुभ फल देते हैं। यदि बृहस्पति देव तीसरे (नीच राशि), छठें, आठवें तथा बारहवें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल देंगे। यदि बृहस्पति देव इस लग्न कुंडली में किसी भी भाव में अस्त अवस्था में हो तो बृहस्पति का रत्न पुखराज धारण किया जाता है। वृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में शनि देवता तीसरे तथा चौथे भाव के स्वामी हैं और कुंडली के सम ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव में स्थित हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में शुभ फल अपनी क्षमतानुसार देते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि देव यदि तीसरे, छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हों तो अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते है। इस लग्न कुंडली में शनि देव का रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। यदि शनि देव अशुभ हों तो उनका पाठ-पूजन एवं दान करके अशुभता को कम किया जाता है। वृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में शुक्र देवता सातवें तथा बारहवें भाव के स्वामी हैं। मारक स्थान के स्वामी होने के कारण शुक्र देव इस कुंडली के मारक ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शुक्र देवता मारक होने के कारण अपनी दशा-अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल ही देंगे। मारक ग्रह होने के कारण शुक्र ग्रह का रत्न इस कुंडली के जातक को कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। शुक्र ग्रह के दान – पाठ पूजन करके इस ग्रह की अशुभता को कम करना चाहिए। वृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में बुध आठवें तथा ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल से अति शत्रुता होने के कारण बुध देव इस कुंडली के मारक ग्रह बन जाते हैं। इस लग्न कुंडली के मारक ग्रह होने के कारण बुध देवता सदैव अशुभ फल देंगे। इस लग्न कुंडली में बुध ग्रह का रत्न पन्ना कभी भी नहीं पहनना चाहिए। बुध देवता का पाठ-पूजन व दान करके इनकी अशुभता को दूर किया जाता है। यदि बुध देवता छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हो तो यह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल भी देते हैं पर इसके लिए लग्नेश मंगल का बलि और शुभ होना अति अनिवार्य है। वृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में चंद्रमा नौवें भाव के स्वामी हैं। भाग्येश होने एवं लग्नेश मंगल के मित्र होने के कारण चंद्र देव अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। चंद्र देव यदि पहले (नीच), तीसरे, छठें, आठवें तथा बारहवें भाव में पड़ें हों तो चंद्र देव अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देंगे। यदि चंद्र देव किसी भाव में अस्त अवस्था में हों तो इनका रत्न मोती धारण किया जाता है। वृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न कुंडली में सूर्य देव दसवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल के मित्र ग्रह होने के कारण सूर्य देव इस कुंडली में अति योगकारक ग्रह माने जातें हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव यदि तीसरे, छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हों तो सूर्य देव अपनी क्षमता नुसार अशुभ फल देंगे। सूर्य देव यद शुभ फल देने वाले हों तो इनका रत्न माणिक धारण किया जाता है। सूर्य देव यदि अशुभ भावों में पड़ें हों तो इनका पाठ -पूजन तथा दान करके सूर्य देव की अशुभता को कम किया जाता है। वृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का प्रभावएकादश भाव का अधिपति होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं। वृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का प्रभावपंचम भाव का स्वामी होकर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं। अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। वृश्चिक लग्न में ग्रहों की स्तिथिवृश्चिक लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)
वृश्चिक लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)
वृश्चिक लग्न में सम ग्रह
वृश्चिक लग्न में ग्रहों का फलवृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का फल
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। वृश्चिक लग्न में धन योगवृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाली जातकों के लिए धनप्रदाता ग्रह बृहस्पति है। धनेश बृहस्पति की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति से एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति आय के स्रोत एवं चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल, भाग्येश चंद्र तथा लाभेश बुध की अनुकूल स्थितियां भी वृश्चिक लग्न वाले जातकों की धन एवं ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। वैसे वृश्चिक लग्न के लिए बुध, मंगल, शनि अशुभ होते हैं। गुरु शुभ फलदाई होता है एवं सूर्य, चंद्र राजयोग कारक होते हैं। गुरु मारकेश होते हुए भी मारक नहीं होता। शुभ युति :- चन्द्र + मंगल अशुभ युति :- मंगल + बुध राजयोग कारक :- सूर्य, चन्द्र, गुरु व मंगल
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। वृश्चिक लग्न में रत्न
रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।
वृश्चिक लग्न में मूंगा रत्नNatural Lab Certified Red Coral – Moonga
वृश्चिक लग्न में पुखराज रत्नNatural Lab Certified Yellow Sapphire – Pukhraj
वृश्चिक लग्न में मोती रत्नReal Pearl with Lab Certificate – Moti
वृश्चिक लग्न में माणिक रत्नNatural Lab Certified Ruby – Manik
अन्य लग्न की जानकारी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें, नवग्रह के रत्न, रुद्राक्ष, रत्न की जानकारी और कई अन्य जानकारी के लिए। आप हमसे Facebook और Instagram पर भी जुड़ सकते है नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Gems For Everyone पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। वृश्चिक राशि का कौन सा ग्रह खराब चल रहा है?वृश्चिक राशि का ग्रह मंगल होता है। यदि आपकी कुंडली में मंगल खराब है तो आप निम्नलिखित सावधानी और उपाय अपना सकते हैं। मंगल खराब होने की नीचे अशुभ की निशानी दी गई है।
वृश्चिक राशि में कौन सा ग्रह मजबूत है?वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है। यदि कुंडली में मंगल की ग्रहदशा हो फिर प्रभावहीन हो तो ऐसे में मंगल को मजबूत करने के लिए आप मूंगा धारण कर सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार, वृश्चिक राशि के लोग काफी रहस्यमय होते हैं।
वृश्चिक राशि में कौन सा दोष है?वृश्चिक राशि के जातक का मंगल बद है तो मंगल से संबंधित बीमारियों में पेट के रोग, हैजा, पित्त, भगंदर, फोड़ा, नासूर और आमाशय से संबंधित समस्याएँ होने लगती हैं। मानसिक रोगों में अति क्रोध, विक्षिप्तता, चिढ़चिढ़ापन, तनाव, अनिद्रा आदि।
वृश्चिक राशि की कमजोरी क्या है?वृश्चिक राशि के जातकों की सबसे बड़ी कमजोरी यह होती है कि वे अपने साहस का इस्तेमाल करने और सीधा हमला करने से डरते हैं।
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