इंडिया में सबसे बड़ा योद्धा कौन है? - indiya mein sabase bada yoddha kaun hai?

जो हमने वर्तमान में नहीं देखा वो सब काल्पनिक लगता है, लेकिन ये भी सच है कि इतिहास से सीखे बिना हम अपना वर्तमान और भविष्य नहीं सुधार सकते. यही कारण है कि हमें पौराणिक कथाएं सुनाई जाती हैं, यही पौराणिक कथाएं हमें सिखाती हैं कि हम से पहले इस धरती पर रह चुके लोगों ने कैसे इस इंसानियत को बनाए रखा. आज हम आपको ऐसी ही एक पौराणिक कहानी बताने जा रहे हैं, जो हमें सिखाती है कि सबसे बड़ा धर्म मानवता का होता है. 

महाभारत के निष्पक्ष राजा उडुपी नरेश की कहानी 

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ये कहानी समझाती है कि युद्ध में पक्ष और विपक्ष के अलावा भी कुछ होता है और वो होता है निष्पक्ष. निष्पक्षता ही हमें इंसानों में भेदभाव करने से रोकती है. इतिहास हो या वर्तमान इसी पक्ष और विपक्ष की लड़ाई ने करोड़ों मासूमों की जान ली है. महाभारत के युद्ध के दौरान एक राजा ने दुनिया को यही समझाने की कोशिश की थी कि निष्पक्ष होना सबसे बड़ी मानवता है. ये निष्पक्ष राजा थे उडुपी नरेश. 

महाभारत का युद्ध जिसमें मारे गए थे करीब सवा-करोड़ लोग

महाभारत वो काव्य ग्रंथ है जिसके बारे में हम सबने सुना है. इसकी कहानियां हम अपने बड़े बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं. इसके साथ ही हमने धारावाहिक और फिल्मों के रूप में भी इसकी कहानी जानी. महाभारत का नाम आते ही दिमाग में पांडव-कौरव, श्री कृष्ण और युद्ध, यही शब्द और नाम दिमाग में आते हैं. हम सभी जानते हैं कि ये एक ऐसा युद्ध था जहां प्राण गंवाने वालों की गिनती ही नहीं थी. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार मात्र 18 दिन चले इस युद्ध में कुल मिलाकर सवा करोड़ योद्धा-सैनिक मारे गए थे. इनमें करीब 70 लाख कौरव पक्ष से तो 44 लाख लोग पांडव सेना के सैनिक व योद्धा थे. महायुद्ध में दोनों पक्षों से कुल 18 अक्षौहिणी सेनाएं लड़ी थीं. जिनमें 11 कौरवों के पास और 7 पांडवों के पास थी. महाभारत के अनुसार एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 घुड़सवार एवं 1,09,350 पैदल सैनिक होते थे. इस तरह देखा जाए तो अठारह अक्षौहिणियों में कुल 1,14,16,374 सैनिक योद्धा थे. 

महाभारत के युद्ध में किसने मिटाई थी योद्धाओं की भूख?

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ये बातें अधिकतर लोग जानते होंगे लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इतने लोगों का पेट भरने के लिए भोजन किसने बनाया होगा और इस बात का अंदाजा कैसे लगता होगा कि युद्ध से कितने सैनिक वापस लौटेंगे और कितना भोजन बनाया जाए जो न व्यर्थ हो न कम पड़े? सोचने पर ये सवाल आपका सिर चकरा देगा लेकिन जिसने महाभारत में भोजन का प्रबंधन संभाला उसके लिए ये बहुत आसान था. इतने बड़े और कठिन दायित्व का बीड़ा उठाने वाले थे उडुपी के नरेश. वह महाभारत के ऐसे योद्धा थे जिन्होंने युद्ध में लोगों के प्राण नहीं लिए, बल्कि उनकी भूख मिटाई.

उडुपी नरेश क्यों कहलाए निष्पक्ष राजा? 

महाभारत युद्ध के दौरान ऐसा कोई राजा नहीं बचा था जो इस भीषण युद्ध का हिस्सा न बना हो. यहां तक कि रानियां भी अपने स्तर से इस युद्ध में शामिल हुईं. हर किसी ने अपना पक्ष चुन लिया था लेकिन श्री बलराम और रुक्मी ही ऐसे थे जिन्होंने न किसी का पक्ष चुना और न ही इस युद्ध का हिस्सा बने. इन दोनों के अलावा एक राज्य और ऐसा था जो कई प्रयासों के बावजूद युद्ध का हिस्सा नहीं बना.

दरअसल, श्रीकृष्ण की घोषणा के बाद जब यह तय हो गया कि महाभारत का युद्ध अटल है तो कौरव और पांडव दोनों ही पक्ष अन्य राज्यों के राजाओं को अपने पक्ष में मिलाने के लिए जुट गए. उस समय दक्षिण भारत के उडुपी राज्य के प्रतापी राजा को भी दोनों पक्षों ने अपने-अपने समर्थन के लिए खूब मनाया लेकिन वह नहीं माने. 

According to Mahabharata, the Kurukshetra war, between the Pandavas and the Kauravas, was the mother of all battles. The king of Udupi, however, chose to remain neutral. He spoke to Krishna and said, ‘Those who fight battles have to eat. I will be the caterer for this battle.’ pic.twitter.com/u3J5Apnfoj

— anand neelakantan ആനന്ദ് നീലകണ്ഠൻ (@itsanandneel) January 27, 2020

अंत में ये जिम्मा श्रीकृष्ण पर आया तो उन्होंने उडुपी के राजा को अपना पक्ष चुनने के लिए कहा. ऐसे में राजा ने श्रीकृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण! यहां सभी युद्ध के लिए व्याकुल हैं लेकिन किसी के मन में ये विचार नहीं आया कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध कैसे होगा?” श्रीकृष्ण को भी उनकी सोच अच्छी लगी. ऐसे में उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण से अपनी इच्छा जाहीर करते हुए कहा कि वह इस युद्ध में निष्पक्ष रहेंगे और अपनी पूरी सेना के साथ अन्य सभी के लिए भोजन का प्रबंध करेंगे. 

उडुपी नरेश ने कैसे किया था युद्ध के दौरान भोजन का इंतजाम?

Mahabharata war faught Dwapar yug,3000BC, Kurukshetra, Haryana. Estimated force was 50 lacs, Kauravas & Pandavas,War where every king participated with Army Except Krishna and king Udupi was took arrangements of meals for Kauravas and Pandavas
. pic.twitter.com/3zZYUG939v

— Arun Rae (@arun_rae) January 9, 2021

ये बात कहने में जितनी सरल थी, आजमाने में उतना ही कठिन. हर कोई ये देखना चाहता था कि आखिर उडुपी नरेश अपना कहा हुआ कथन सच कैसे करेंगे. पहले दिन जब राजा ने सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध तो उनकी कुशलता सबको आश्चर्य चकित कर गई. उस दिन अन्न का एक दाना भी व्यर्थ नहीं गया. 

ऐसा ही क्रम आगे भी जारी रहा. राजा के लिए समय के साथ ये भोजन बनाने की जिम्मेदारी कम होती रही क्योंकि योद्धाओं की संख्या भी कम हो रही थी. सबके लिए ये बात हैरान करने वाली थी कि राजा कैसे उतने ही योद्धाओं के लिए खाना बनाते थे जो युद्ध से जीवित लौट आते थे. उन्हें मारे गए सैनिकों का इतना सटीक अंदाजा कैसे लग जाता था.

उडुपी नरेश क्या करते थे कि खाना बर्बाद नहीं होता था?

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ये सवाल सभी को विचलित कर रहा था. महाभारत का युद्ध जब समाप्त हुआ तो युधिष्ठिर अपनी इस जिज्ञासा को रोक न पाए और उन्होंने उडुपी नरेश से पूछ ही लिया की वह इतनी विशाल सेना के लिए सटीक मात्रा में भोजन का प्रबंध कैसे कर लेते हैं? वो क्या करते हैं जिससे कि एक दाना एन भी बर्बाद नहीं होता था? उन्हें रोजाना मारे गए सैनिकों की संख्या का सटीक अनुमान कैसे लग जाता है? 

युधिष्ठिर के इतने सवालों का उडुपी नरेश के पास एक ही जवाब था और वो ये कि, ‘ये सब कृष्ण की माया है.’ दरअसल, उन्होंने युधिष्ठिर को बताया कि श्रीकृष्ण को रात में मूंगफली खाना पसंद है और वह उनके लिए रोजाना गिन कर मूंगफली रखते थे. उनके खाने के बाद वह गिन कर देखते कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है. 

वे जितनी मूंगफली खाते थे उससे ठीक 1000 गुणा ज्यादा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे. जैसे कि अगर वे 50 मूंगफली खाते थे तो राजा को अंदाजा हो जाता कि अगले दिन 50,000 योद्धा मारे जाएंगे. उसी हिसाब से उडुपी नरेश अगले दिन का भोजन तैयार करते थे. इस तरह से कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं होता था.

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