धर्म क्या है धर्म के तत्वों की व्याख्या करें? - dharm kya hai dharm ke tatvon kee vyaakhya karen?

धर्मक्याहै ?

प्राय ब्लोगस पर पढते  पढते ऐसा लगने  लगा मानो धर्म का अर्थ केवल मात्र दुसरे को नीचा दिखाना हो गया,

दुसरो को हिनता का अहसास करवाना धर्म का उद्देश्य बना जाता है.

क्योकी मेँरा मानना है धर्म स्व-विकास के अतिरिक्त कुछ अन्य नही हो सकता, किंतु कुछ् लोगो का शंका समाधान भी अनिवार्य था,

अत: स्वाध्य्यन आरभ  हो गया.

किंतु मैरा उद्देश्य किसी धर्म विशेष को नीचा अथवा ऊचा दिखाना नही रहा. ना ही मैरा उद्देश्य  यह दिखाना है कि कोई धर्म विशेष कैसा है.

मैराउद्देश्यहैधर्मऔरकेवलधर्मक्याहै ???

मैरा स्वाध्य्य आरम्भ हुआ मनुस्मृती से:-

मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह: ।

धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌ ।। (मनुस्‍मृति ६.९२)

अर्थात – धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना – ये दस   धर्म के लक्षण हैं.

याज्ञवल्क्य के अनुसार:-

अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह: ।

दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌ ।।

अर्थात – अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति – धर्म के ये नौ लक्षण है.

पद्मपुराण कहता है:-

ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते।

दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।।

अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते।

एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।।

अर्थात – ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है ।

विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं –

यज्ञो दानम्अध्य्न तपश च च्त्वार्येतान्य्न्ववेतानि सभ्दि:

दम: सत्यमार्जवमानृशन्सयम च्त्वार्येतान्यंववयंति संत:

अर्थात – यज्ञ, दान, अध्ययन, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ ये आठ धर्म के अंग है.

और इनमें से प्रथम चार अंगों  का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है,

किन्तु अन्तिम चार अंगों का आचरण करने वाला व्यक्ती ही धर्माचरण करता है.

विदुरजी की परीभाषा सर्व ���प्यूक्त एवम पुर्ण जान पडती है.

अब एक बार इन आठ गुणो को विस्तार से देख ले:

यज्ञ करना – अर्थात समस्त समाज के कल्याण के लिए किया गया कार्य

दान –  अर्थात अपने धन आदि का कुछ हिस्सा समाज कल्याण के लिए सव्यम समर्पित करना

अध्ययन –  अर्थात ज्ञान प्राप्ती

तप –  अर्थात दुसरे के भले के लिए कष्ट सहने को तत्पर रहना

सत्य –  अर्थात जैसा नेत्रो से देखा है वैसा जीव्हा से व्य्क्त करना

दया – अर्थात प्राणी मात्र को कष्ट देने से बचना या यथा सम्भव कम दण्ड देना

क्षमा –  अर्थात अलक्षित अपराध पर दण्ड न देना या कम दण्ड देना

अलोभ –  जो वस्तु अपनी नही है उस अनाधिकृत अधिकार चेष्टा न करना

अब मुझे बताईए, ऐसा कोन सा धर्म विशेष है जो इन गुणो से दुर करता है ???

सारे ही धर्म तो यही शिक्षा है.

फिर कोन सा धर्म अच्छा कोन सा बुरा. सभी तो एक जैसे हुए. फिर किसी धर्म को बुरा कहना ??? बस यही एक अधर्म है.

अगर किसी ने आपके धर्म को बरा या गलत कह भी दिया क्या आपका धर्म बुरा अथवा गलत हो जाएगा, कहने दिजीए, क्षमा और दया भी तो आपके ही धर्म का अंग है. दुसरे को क्षमा करके भी तो आप अपने धर्म का ही पालन कर रहे होगे.

किसी के लिए हम अपना क्षमा और दया का धर्म क्यो छोडे ???

धर्म से आप क्या समझते हैं धर्म के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं?

साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह मानवधर्म हैं। "धर्म" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।

धर्म का तत्त्व क्या है?

उन्होंने धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि धर्म के मूल तत्व सभी धर्मो में एक समान है, केवल आवश्यकता उनके व्यवहारिक क्रियान्वयन की है। वर्तमान समाज में जो भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, उसका मुख्य कारण लोगों का धर्म को न मानना है। यदि लोग धर्म का आचरण करते हैं।

धर्म क्या है pdf?

दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो ।

धर्म क्या है और इसकी विशेषताएं?

धर्म की पहली विशेषता यह है कि यह शक्ति मे विश्वास पर आधारित है। धर्म शक्ति पर आधारित है वह मनुष्य निर्मित न होकर प्राकृतिक होता है। धर्म से जिस शक्ति मे विश्वास किया जाता है, उसकी प्रकृति अलौकिक होती है। चूंकि यह चरित्र दिव्य होता है, अतः मानव समाज से परे होती है।