दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया था - dakshin aphreeka mein rangabhed ke khilaaph sangharsh kiya tha

भारत में जो सम्मान महात्मा गांधी को मिलता है, उतना ही सम्मान दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला को मिलता है। इसी वजह से तो उन्हें अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। मंडेला ने 27 साल जेल में रहकर रंगभेद की नीतियों के खिलाफ लड़ते हुए न केवल श्वेत-अश्वेत के बीच की खाई को पाटा बल्कि 10 मई 1994 को पहले अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में नए युग का सूत्रपात किया। आज उनका जन्मदिन पूरी दुनिया में रंगभेद को मिटाने के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है।

मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। वे अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। उनकी सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को खत्म करने और इसे अफ्रीका की धरती से बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया।

नेल्सन मंडेला एक ऐसे शख्स थे, जो लड़ते गए। न खुद कभी हथियार डाले और न ही समर्थकों को ऐसा करने दिया। 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिन 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित किया। खास बात यह है कि उनके जीवित रहते ही इसकी घोषणा हुई।

रंगभेद विरोधी लड़ाई के दौरान मंडेला को सरकार ने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया। उन्हें कोयला खान में काम करना पड़ा। 8X7 फीट के कमरे में वे रहते थे। घास-फूस की एक चटाई पर सोते। 1990 में दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार से समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया था - dakshin aphreeka mein rangabhed ke khilaaph sangharsh kiya tha

नेल्सन मंडेला के फ्यूनरल कार्यक्रम में भाग लेने गए तीन राष्ट्राध्यक्षों की इस सेल्फी पर खूब बवाल मचा था। इसमें उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ डेनमार्क की प्रधानमंत्री हेले थोर्निंग-श्मिट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन दिखाई दे रहे हैं।

भारत रत्न से सम्मानित
नेल्सन मंडेला ने जिस तरह से देश में रंगभेद के खिलाफ अपना अभियान चलाया, उसने कई देशों को आकर्षित किया। भारत सरकार ने 1990 में मंडेला को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। मंडेला भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके बाद बड़ी बीमारी के चलते 5 दिसंबर 2013 को 95 वर्ष की उम्र में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया।

1857ः मेरठ से उठी क्रांति से हिल गई थी ब्रिटिश हुकूमत

अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में 10 मई की तारीख बहुत अहम है। इसी दिन मेरठ छावनी से उठी क्रांति की ज्वाला से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई थी। मेरठ की तीनों रेजिमेंट के सिपाहियों ने बगावत का झंडा उठाकर दिल्ली कूच कर दिया। इसमें मह‍िलाओं ने भी सहयोग दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे दबाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

इस संघर्ष में अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर, नाना साहब, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे समेत कई बड़े नाम शामिल हुए थे। बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद से भारतीय सिपाहियों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नफरत बहुत बढ़ गई थी। इस स्वतंत्रता संग्राम में इसने आग में घी का काम किया। उत्तर भारत की बड़ी रियासतों ने इस बगावत को भड़काने में कोई कमी नहीं छोड़ी और इस समर में कूद पड़े। यह बात अलग है कि गोरों ने कुछ ही दिनों में इस संघर्ष को कुचल दिया। दिल्ली समेत जिन रियासतों ने आजादी की घोषणा की थी, उन्हें वापस ब्रिटिश हुकूमत में शामिल कर लिया गया।

1993ः भारत की इस बेटी ने रचा था इतिहास

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया था - dakshin aphreeka mein rangabhed ke khilaaph sangharsh kiya tha

हरियाणा की संतोष यादव ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर लगातार दूसरी बार दस मई के दिन ही कदम रखा था और ऐसा करने वाली वे दुनिया की पहली महिला पर्वतारोही बनीं।

इंटरनेशनल डेस्क। दक्षिण अफ्रीका में एक दौर था जब नस्लीय भेदभाव चरम पर था। हर सुविधाएं रंग के आधार पर बंटी हुईं थी। बात चाहे बस में सीट की हो या फिर सार्वजनिक स्थल पर मिलने वाली सुविधाओं की। भेदभाव के इस देश में नेल्सन मंडेला ने रंगभेद विरोधी आंदोलन को दिशा दी और इस भेदभाव की नीतियों का खात्मा किया। इसी रंगभेद विरोधी आंदोलन के दौरान उन्हें 27 साल तक जेल में बंद रहना पड़ा। 1990 में आज ही के दिन यानी 11 फरवरी को वो जेल से छूटे थे।

मंडेला के इसी अंहिसावादी रवैए और गांधीवादी तौर-तरीकों के कारण उन्हें अफ्रीकी गांधी भी कहा जाता है। वर्ष 1993 में उनके इसी तेवर को सम्मान देते हुए उन्हें नोबेल के शांति पुरस्कार से नवाजा गया। मंडेला दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। 1994 से 1999 के दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की बागडोर भी संभाली थी।

(रंगभेद विरोधी आंदोलनकर्ता नेल्सन मंडेला 11 फरवरी 1990 में 27 साल बाद जेल से छूटे थे। इस मौके पर हम उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं।)

मंडेला जीवनभर रंगभेद विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों को उनके अधिकार दिलाए। यह मंडेला के प्रयासों का ही नतीजा है कि आज दुनिया से नस्लीय भेदभाव पूरी तरह खत्म होने की कगार पर है।

प्रश्न – दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित रंगभेद नीति को समाप्त करने हेतु किए गए संघर्ष का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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प्रश्न – दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित रंगभेद नीति को समाप्त करने हेतु किए गए संघर्ष का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए। – 16 August 2021

उत्तर

रंगभेद की नीति 20वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका में अल्पसंख्यक श्वेतलोगों के शासन के अंतर्गत स्थानीय दक्षिण अफ़्रीकी एवं अन्य अश्वेत आप्रवासियों के विरुद्ध क्रूरतापूर्ण रंगभेदी भेदभाव की राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था को प्रदर्शित करती है।

दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित रंगभेद नीति को समाप्त करने हेतु उठाए गए कदम:

 

  • रंगभेद की नीति के विरुद्ध नागरिक प्रतिरोध गांधीवादी विचारों सत्याग्रह एवं अहिंसा पर आधारित था।
  • वर्ष 1912 में स्थापित अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) शीघ्र ही देश की 80% गैर-यूरोपीय जनसंख्या के नस्लीय उत्पीड़न का विरोध करने वाली प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी।
  • संघर्ष के प्रारंभिक चार दशकों के दौरान अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस द्वारा संघर्ष के वैधानिक तरीकों का उपयोग किया गया, परंतु 1950 के दशक के पश्चात अधिक आक्रामक अहिंसक प्रत्यक्ष कार्रवाई का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया गया।
  • अपनी अहिंसक गतिविधियों द्वारा अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में असमर्थ होने पर हतोत्साहित होकरअफ्रीकन नेशनल कांग्रेसनेताओं (नेल्सन मंडेला और अन्य) ने सशस्त्र विद्रोह का आह्वान किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रंगभेद की नीति की तीव्र आलोचना की गयी।
  • संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी रंगभेद का विरोध किया गया।

निष्कर्ष:

अंततः 1992 में दक्षिण अफ्रीकी श्वेत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव में अल्पसंख्यक शासन एवं रंगभेद को समाप्त करने को स्वीकृति प्रदान की। इसके पश्चात संपन्न हुए प्रथम स्वतंत्र चुनाव में नेल्सन मंडेला को नव गठित दक्षिण अफ्रीका के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया।

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रंगभेद के खिलाफ संघर्ष क्या है?

06 नवम्बर, 1913 को महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के खिलाफ 'द ग्रेट मार्च' का नेतृत्व किया था। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के बराबर दर्जा प्राप्त है।

रंगभेद नीति का विरोध करने वाले दक्षिण अफ्रीका के नेता कौन थे?

(रंगभेद विरोधी आंदोलनकर्ता नेल्सन मंडेला 11 फरवरी 1990 में 27 साल बाद जेल से छूटे थे। इस मौके पर हम उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं।) मंडेला जीवनभर रंगभेद विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ते रहे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों को उनके अधिकार दिलाए।

दक्षिण अफ्रीका का कौन सा राजनीतिक दल रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करता है?

नब्बे के दशक में अफ़्रीकन नैशनल कांग्रेस और नेलसन मंडेला के नेतृत्व में बहुसंख्यक अश्वेतों का लोकतांत्रिक शासन स्थापित होने के साथ ही रंगभेद का अंत हो गया।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति क्या है?

रंगभेद की नीति 20वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका में अल्पसंख्यक श्वेतलोगों के शासन के अंतर्गत स्थानीय दक्षिण अफ़्रीकी एवं अन्य अश्वेत आप्रवासियों के विरुद्ध क्रूरतापूर्ण रंगभेदी भेदभाव की राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था को प्रदर्शित करती है।