Publish Date: Sun, 20 Sep 2015 12:02 AM (IST)Updated Date: Sun, 20 Sep 2015 12:02 AM (IST) किशन चौहान, मथुरा (बरसाना): वृषभान नंदिनी राधा के गांव बरसाना का अस्तित्व त्रेता काल से है। त्रेता य किशन चौहान, मथुरा (बरसाना): वृषभान
नंदिनी राधा के गांव बरसाना का अस्तित्व त्रेता काल से है। त्रेता युग में सूर्यवंशी राजा दिलीप के प्रपौत्र रसंग ने समृद्धशाली विश्व विख्यात नगर बृहत्सानुपुर (वर्तमान बरसाना) बसाया था। इसी कुल में राजा बृषभान जन्मे थे। द्वापर में राधारानी इन्हीं राजा वृषभान के घर बरसाना में जन्मी थीं। श्रीकृष्ण ने चंद्रवंश में जन्म लिया था, लेकिन उनकी प्राण प्रिय राधारानी सूर्यवंशी थी। बरसाना के इतिहास के अनुसार, हजारों साल पहले त्रेता युग में सूर्यवंशी और गो भक्त राजा दिलीप के पुत्र धर्म के प्रपोत्र राजा रसंग हुए। तब भगवान राम ने अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को लवाणासुर का वध करने के लिए मधुपुरी भेजा था। उनके साथ रसंग भी यहां आए थे। एक बार रसंग गाय चराते-चराते मथुरा से काफी दूर यमुना के किनारे एक सुंदर स्थल पर आ गए। यहां वन-उपवनों में पक्षी की चहक ने उनका मन मोहा तो रसंग यहीं बस गए। सूर्यवंशी रसंग के कुल में अब से करीब साढ़े पांच हजार साल पहले द्वापर में बृषभानजी ने जन्म लिया। बृषभानजी की सत्य निष्ठा और न्याय प्रियता से कंस भी उनका आदर करता था। 1017 ई. बरसाना एक समृद्धशाली नगर रहा। कालांतर में खूब लूट-खसोट और तोड़-फोड़ के चलते बरसाना एक छोटा सा गांव बनकर रह गया था। प्राचीन ग्रंथो के अनुसार पुराना रावल बरसाना ही था। इसका प्रमाण रावल में राजा बृषभान द्वारा बनवाया गया ब्रजेश्वर महादेव मंदिर है। यह आज भी रावल या रावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इसे रावलवन कहकर पुकारा गया। रावल वन में ही बृषभानजी का महल था। जहां बृषभानजी ने कुछ समय के लिए निवास किया था। ज्योतिषाचार्य रामशरण त्रिपाठी ने बताया की श्वेत वाराह कल्प के इस 28 वें द्वापर में राधिका का प्राकट्य हुआ था। इसीलिये बरसाना की महिमा आज सबसे अधिक है। अब तक जितनी बार राधा एवं कृष्ण ने ब्रज में अवतार लिया। वह सभी विष्णु के ही द्वारा प्रकट माने जाते रहे है। साधारण न थे बृषभान व कीरत राजा बृषभान कोई साधारण पुरुष नहीं थे। पहले जन्म में राजा नृग के पुत्र महाभाग सुचंद्र के नाम से विख्यात थे। राजा सुचंद्र भगवान विष्णु के अंश अवतार थे। उनका विवाह कलावती से हुआ। राजा सुचंद्र ने पत्नी कलावती के साथ गोमती तटपर नैमिष वन में बारह साल तक ब्रह्मा जी तपस्या की थी। ब्रह्मा जी से उन्होंने मोक्ष का वरदान मांगा। इस पर रानी कलावती ने कहा कि नारी बिना पति के जीवित नहीं रह सकती है। तब ब्रह्मा ने दोनों को पृथ्वी पर पुन: जन्म लेने का आशीर्वाद दिया था। कीरत कन्याकुंज देश (कन्नौज) में राजा भलंदन के यज्ञकुंड से प्रकट हुई थी और राजा सुरभानु के घर बृषभानु जन्मे थे। नंद बाबा ने ही बृषभानु और कीरत का विवाह कराया। संस्कृत का केंद्र भी रहा बृषभान नंदनी का निज धाम बरसाना कालांतर में संस्कृत भाषा का केंद्र भी रहा था। ब्रह्माचंल पर्वत के चार शिखरों पर राधाकृष्ण के लीलास्थली है। मानगढ़, विलासगढ़, भानगढ़ और दानगढ़ के शिखर पर राधारानी के निज महल है और अन्य शिखरों पर उनके मंदिर है। मान्यता है कि दानगढ़ शिखर पर कभी संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। इसमें ऋषि मुनियों ने संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
श्रीराम के भाई शत्रुघ्न ने बसाई थी मथुरा नगरी, कृष्ण जन्म उपरांत बढ़ी महिमाभगवान वाल्मीकि जी ने मथुरा की शोभा का बड़ा भव्य वर्णन किया है और यमुना के तट पर बसी इस सुंदर नगरी को ‘वेद निर्मिताम्’ देवताओं द्वारा बसाई गई नगरी कहा है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षक का वध करके इसकी... भगवान वाल्मीकि जी ने मथुरा की शोभा का बड़ा भव्य वर्णन किया है और यमुना के तट पर बसी इस सुंदर नगरी को ‘वेद निर्मिताम्’ देवताओं द्वारा बसाई गई नगरी कहा है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षक का वध करके इसकी स्थापना की थी। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई है। यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव स्थित राजा कंस के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात के ठीक 12 बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। मथुरा न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थली के रूप में जानी जाती है। मथुरापुरी भारत वर्ष के प्राचीनतम नगरों में से एक है। इसे भारत की सप्त महापुरियों में स्थान दिया गया है और मोक्षदायिनी बतलाया गया है। वैदिक, पौराणिक वासुदेव धर्म तथा बौद्ध और जैन धर्मों के साथ-साथ यह नगर वर्तमान वैष्णव धर्म का भी केंद्र रहा है और इसके वर्णनों से प्राचीन साहित्य भरा पड़ा है। राजनीति और इतिहास का भी मथुरा नगर पुराना केंद्र रहा है। भारत के प्राचीन गणतंत्रों में अग्रगण्य अंधक वृष्णि वंशी नरेशों के शूरसेन जनपद की राजधानी भी यह नगर रहा। भारतीय इतिहास के उत्थान-पतन का इतिहास मथुरा नगरी युगों से अपने आंचल में छिपाए आज भी स्थित है। मूर्तिकला के विकास में मथुरा का योगदान तो विश्व विख्यात ही है। यही नहीं भारतीय संस्कृति के मूलाधार नटनागर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण तो इस नगर की महिमा सदा-सदा के लिए अक्षुण्ण हो गई है और अपनी वर्तमान हीनावस्था में भी यह संपूर्ण देश के आकर्षण का केंद्र है। वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यहां एक भव्य आकर्षण मंदिर के रूप में स्थापित है। यहां कालक्रम में अनेकानेक गगनचुंबी भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। कब-कब बना मंदिर और ये भी पढ़े
पहला मंदिर ईस्वी सन से पूर्ववर्ती 80-57 के महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर, तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है।
मथुरा के राजा का नाम क्या था?कंस हिन्दू पौराणिक कथाएँ अनुसार चंद्रवंशी यादव राजा था जिसकी राजधानी मथुरा थी। वह भगवान कृष्ण की मां देवकी का भाई था। कंस को प्रारंभिक स्रोतों में मानव और पुराणों में एक दानव के रूप में वर्णित किया गया है।
मथुरा का पहला राजा कौन था?यह मंदिर सन् 1017-18 में महमूद गजनवी के कोप का भाजन बना। संस्कृत के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि महाराजा विजयपाल देव जब मथुरा के शासक थे तब सन् 1950 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नया मंदिर बनवाया था।
द्वापर युग में अयोध्या का राजा कौन था?परशुराम से बड़े हैं जामवन्त और जामवन्त से बड़े हैं राजा बलि। कहा जाता है कि जामवन्त सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है। जामवन्तजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवन्त की माता एक गंधर्व कन्या थी।
मथुरा का प्राचीन नाम क्या है?पुराण कथा अनुसार शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, जो प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था।
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