मेरे सहयात्री पाठ की कौन सी विधा है? - mere sahayaatree paath kee kaun see vidha hai?

ईकाई – 1 (मेरे सहयात्री)

प्रश्‍न - 1 नर्मदा नदी के तट के सौंदर्य का वर्णन कीजिए

 उत्‍तर-

    नर्मदा केवल नदी ही नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति की वाहक भी है। यह मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहलाती है। नर्मदा नदी का शुद्ध जल एवं दूर-दूर तक फैली हरियाली और इसके तट पर बसे हजारों गांव तथा नगर इसकी शोभा बढ़ाते हैं। नर्मदा नदी के उद्गम से लेकर संगम तक 10 करोड़ तीर्थ है। जहां पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है इसे एक नाम रेवा से भी जाना जाता है जो कि कालिदास ने मेघदूतम में दिया है इसकी गति और चट्टानों से गिरने के कारण इसे रेवा कहा जाता है। तीर्थों के घाटों पर हर हर नर्मदे बोलकर भक्तों का नदी में स्नान कर अर्पण-तर्पण करना इसकी शोभा में और अधिक वृद्धि करता है रात्रि के समय नर्मदा की आरती व दीपदान का मनोहारी दृश्य का वर्णन नहीं किया जा सकता है। ओमकारेश्वर के घंटे की आवाज से नर्मदा मैया प्रसन्न होती हैं, और नर्मदा की कल-कल करती हुई लहरें रात के सन्नाटे में भोलेनाथ को प्रफुल्लित करती है। नर्मदा नदी की तीव्र गति प्रपातों में दिखाई देती है। इसके तट पर बसे जबलपुर, भेड़ाघाट, अमरकंटक और शुक्लतीर्थ की समृद्धता नर्मदा की कहानी को अपने आप में स्‍वयं ही बयान कर देती है।

प्रश्‍न - 2 संस्मरण क्या है स्पष्ट करो

 उत्‍तर-

    नाम से ही स्पष्ट होता है कि सम + स्मरण अर्थात सम्यक स्मरण इसका सीधा संबंध अतीत से होता है।किसी विषय पर स्मृति या याद रखने की क्षमता के आधार पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। संस्मरण का रचनाकार की स्मृति से गहरा संबंध होता है। इसमें किसी घटना, व्यक्ति या वस्तु के वर्णन में एक क्षण का भी महत्व होता है। जब कोई रचनाकार करुणास्‍पद अनुभूतियों को कल्पना का रंग देता है एवं व्यंजना मुल्क शैली में व्यक्त करता है और इस तरह अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं का प्रक्षेपण करता है तो ऐसी यथार्थ रचना को ही संस्मरण कहते हैं।

प्रश्‍न - 3 नर्मदा नदी के सौंदर्य पर एक निबंध लिखिए

 उत्‍तर- 

    प्रकृति का सौंदर्य हमें भी मन से सुंदर होने की प्रेरणा देता है। प्राकृतिक सौंदर्य में एक पावन भाव होता है। ऐसा मनुष्य द्वारा निर्मित (निर्माण/बनाये गये) सौंदर्य में नहीं होता नर्मदा भारत के मध्य भाग से पूरब से पश्चिम की ओर बहती है। यह एक बहुत ही बड़ी एवं प्रमुख नदी है। यह नदी गंगा के समान ही पूजनीय है। नर्मदा नदी की उत्पत्ति महाकाल पर्वत के अमरकंटक शिखर से होती है। इसके उद्भव से लेकर संगम तक लगभग 10 करोड़ तीर्थ स्थान है

    नर्मदा का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रंखला में अमरकंटक नामक स्थान से हुआ है। इस कारण से इस नदी को मैकाल कन्या भी कहते हैं। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवाखंड के अंतर्गत किया गया है। कालिदास के मेघदूतम् में भी नर्मदा नदी को रेवा संबोधन किया गया है। जिसका अर्थ होता है पहाड़ी चट्टानों में कूदने वाली।

    नर्मदा की तेज धारा वास्तव में पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट के संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहा जाता है। जो आगे चलकर विशाल नर्मदा नदी का रूप धारण कर लेती है। इसके अलावा पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं। जहां श्रद्धालुओं का आना-जाना प्रतिवर्ष लगा रहता है। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर करीब 1310 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा भरूच के आगे खंभात की खाड़ी में विलुप्‍त हो जाती है। परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान है, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

    नर्मदा नदी के तट पर जबलपुर शहर बसा हुआ है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट नर्मदा का भेड़ाघाट जलप्रपात बहुत ही प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां किसी युग में भृगु ऋषि तपस्या करते थे। चट्टानों के निर्मल और सुंदर स्वरूप को देखकर आज भी ऐसा लगता है कि असंख्य ऋषि-मुनि नर्मदा के तट पर तपस्या में लीन हों। नर्मदा जल में खड़ी चट्टानें भी उनकी संगति में पूण्‍यता को प्राप्त होती है। यह संगमरमर की चट्टानें जब चांद आता है, तो चांद सी चमक उठती हैं और सूरज के सानिध्य में तप उठती हैं। सतपुड़ा की संगमरमर की चट्टानों पर गिरकर नर्मदा प्राकृतिक सुंदरता का अनूठा दृश्य प्रस्तुत करती है। इस स्थान पर उसका रूप तथा वेग उसके यौवन का प्रतीक माना जाता है। ओमकारेश्वर एवं महेश्वर नामक नगर इसके तट पर बसे हुए हैं। यहां ऊपरी किनारे पर अनेक मंदिर महल एवं स्नानघाट भी बने हुए हैं। नर्मदा की लहरों की कलकल करती हुई आवाज़ यात्रियों को बहुत ही प्रसन्न और उत्साह का बोध कराती है। इसके बाद नर्मदा भरूच पहुंचकर अंत में खम्‍भात की खाड़ी में जा मिलती है।

    नदी का केवल प्राकृतिक सौन्‍दर्य ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक सौन्‍दर्य भी बहुत है, लोग इसके जल को पवित्र मानकर इसमें स्नान करने आते हैं, विभिन्न धार्मिक कृत्यों में उपयोग करते हैं, नर्मदा मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाती है। मध्य प्रदेश के निवासी इसे गंगा से भी अधिक पवित्र मानते हैं। इसकी मान्यता है कि हर वर्ष एक बार गंगा स्वयं काली गाय का रूप लेकर इसमें स्नान करने आती है और श्वेत हो कर चली जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार विश्व में प्रत्येक शिवमंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान हैं, जिनकी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। गंगा में स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है परंतु नर्मदा के दर्शन से ही व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ऐसी यहां की मान्यता है।, नर्मदा घाट पर भक्तों का स्नान करना, अर्पण -तर्पण करना अत्यंत मनोहारी लगता है। रात्रि के समय नर्मदा की आरती व भक्तों द्वारा दीपदान देखने के लिए हजारों श्रद्धालु नर्मदा तट पर आते हैं। नर्मदा के दर्शन करके स्वयं को धन्य मानते हैं इन्हीं कारणों से नर्मदा को केवल नदी ही नहीं मोक्षदा भी कहा जाता है।

प्रश्‍न - 4 ‘मेरे सहयात्री संस्मरण का सारांश अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए अथवा संस्मरण के आधार पर बिगड़ जी के से यात्रियों पर संक्षिप्त निबंध लिखिए

उत्‍तर-

    मेरे सहयात्री संस्मरण श्री अमृतलाल वेगड़ द्वारा अपनी नर्मदा पदयात्रा के बारे में लिखा गया है। इसमें एक यात्रा का वृतांत है। जिसमें लेखक के द्वारा बताया है कि जब 1980 में वह नर्मदा परिक्रमा कर रहे थे तो उनको एक 75 वर्षीय एक बुजुर्ग मिला था जो कि नर्मदा की जिहलरी परिक्रमा कर रहा था। उस समय उनकी उम्र में उनकी ऐसी कठिन पदयात्रा से लेखक अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने सोचा कि मैं भी जब 75 वर्ष का हो जाऊंगा तो नर्मदा पदयात्रा पर जरूर आऊंगा। 3 अक्टूबर 2002 को लेखक 75 वर्ष में प्रवेश कर गए थे तब इसी समय उनकी अपनी प्रथम नर्मदा पदयात्रा के 25 वर्ष भी पूरे हुए थे, इस कारण उन्होंने उनकी स्मृति में पुनः नर्मदा पदयात्रा पुनरावृति यात्रा पर जाने की योजना बनाई थी।

    लेखक अपनी धर्म पत्नी कांता अपने बेटे के साथ पढने वाले लडके अशोक तिवारी, मुंबई के चार लोग रमेश शाह एवं उनकी पत्नी हंसा, पुत्र संजय और इस परिवार के एक अभिन्न मित्र गार्गी देसाई, दिल्ली के अखिल मिश्र, मंडला के अरविंद गुरु और उनकी पत्नी मंजरी, तीन गोंड सेवक फगनू, घनश्याम तथा गरीबा को साथ लेकर अपनी पुनरावृत्ति यात्रा पर निकले।

    वे अपने घर से पहले मंडला, फिर वहां से 20 किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी पर स्थित गुरु स्थान पर गए रात वहीं पर गुजार कर 7 अक्टूबर 2002 को नर्मदा पर बने मनोट के पुल पर आकर उन्होंने वहीं से नर्मदा के दर्शन करके नर्मदे हर शब्‍द कहते हुए उनकी यह नर्मदा पदयात्रा शुरू की।

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मेरे सहयात्री पाठ की विधा क्या है?

✎... 'मेरे सहयात्री' यात्रा वृतांत भी उन्होंने नर्मदा की अपनी यात्रा के विषय में लिखा था और इस यात्रा वृतांत में उन्होंने नर्मदा के सौंदर्य और उसकी परिक्रमा का अभूतपूर्व वर्णन किया है। इस यात्रा वृतांत में उन्होंने अपनी प्रिय नदी नर्मदा की परिक्रमा का सजीव चित्रण किया है।

संस्मरण क्या है मेरे सहयात्री संस्मरण का सारांश अपने शब्दों में लिखिए?

उत्तर: मेरे सहयात्री' संस्मरण श्री अमृतलाल वेगड़ द्वारा अपनी नर्मदा पदयात्रा के बारे में लिखा गया है। इसमें एक यात्रा का वृतांत है। जिसमें लेखक के द्वारा बताया है कि जब 1980 में वह नर्मदा परिक्रमा कर रहे थे तो उनको एक 75 वर्षीय एक बुजुर्ग मिला था जो कि नर्मदा की 'जिहलरी परिक्रमा' कर रहा था।

सौंदर्य की नदी नर्मदा रचना के लेखक कौन है?

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लेखक ने नर्मदा नदी को कौन सी उपमा दी है?

जैसे कि नदी के अर्धचन्द्राकार घुमाव को देखकर लेखक लिखते हैं, ''मंडला मानो नर्मदा के कर्ण-कुण्डल में बसा है।'' उनके भावों में यह भी ध्यान रखा जाता रहा है कि जो बात चित्रों में कही गई है उसकी पुनरावृति शब्दों में ना हो, बल्कि चित्र उन शब्दों के भाव-विस्तार का काम करें।