पटनाः भगवान शिव की पूजा या उपासना करने वाले 'शैव' कहे जाते हैं. शिव को पूरी दुनिया में पूजने वाले लोग देवों के देव महादेव के नाम से पुकारते हैं. इसके अलावा भोलेनाथ, भगवान शिव, ओघड़दानी आदि कई नामों से भी इन्हें पुकारा जाता है. शिव को आप हमेशा लिंग रूप में विराजमान देखते हैं. शिवे के इसी लिंग रूप को शिवलिंग कहा जाता है. वहीं भगवान शंकर की पूजा भी की जाती है. ऐसे में क्या आपको पता है कि भगवान शिव और शंकर दोनों में क्या अंतर है? क्या दोनों एक ही हैं? Show
जो नहीं जानते उनके लिए शिव और शंकर एक ही हैं, दोनों एक ही सत्ता के प्रतीक हैं और दोनों की पूजा ऐसे लोग उसी आस्था और विश्वास के साथ करते हैं लेकिन आपको बता दें कि दोनों अलग-अलग हैं और इनका स्वरूप भी अलग-अलग है. Mahashivratri 2023: अगले साल किस दिन पड़ रहा है महाशिवरात्रि का पर्व, जानें भोलेनाथ की पूजा का शुभ मुहूर्तListen to the latest songs, only on JioSaavn.com shivratrishivratri 2018shivratri vratshivratri kathaShivratri Wishes टिप्पणियां पढ़ें देश और दुनिया की ताज़ा ख़बरें अब हिन्दी में (Hindi News) | शिक्षा समाचार (Education News), शहर (City News), बॉलीवुड, चुनाव 2022 और राजनीति के समाचार at NDTV.in तो उन्होंने विज्ञान को किनारे रख दिया और मनचाहे तरीके से मंदिर बनाने लगे। आप जानते हैं, यह एक प्रेम संबंध होता है? एक भक्त जो चाहेकर सकता है। उसके लिए सब जायज है क्योंकि उसके पास एक ही चीज है और वह है अपनी भावनाओं की ताकत। इसी वजह से लिंग बनाने का विज्ञान खत्म होने लगा। वरना यह एक बहुत गहन विज्ञान था। यह एक आत्मपरक विज्ञान या सब्जेक्टिव साईंस है और इसे कभी लिखा नहीं गया। क्योंकि लिखने से इसके गलत समझे जाने की पूरी संभावना थी। इस तरह से, बिना किसी विज्ञान की जानकारी के, अनेक लिंगों की स्थापना की गई। 4.शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई ? – चक्रों को दर्शातें हैं लिंग
इस समय, भारत में अधिकतर लिंगों में केवल एक या दो चक्र ही स्थापित है। ईशा योग केंद्र में मौजूद ध्यानलिंग की खासियत ये है कि इसमें सातों चक्रों को अपने चरम तक ऊर्जावान बनाकर स्थापित किया गया है। यह ऊर्जा की सबसे उच्चतम संभव अभिव्यक्ति है । ये इस तरह से है कि अगर आप ऊर्जा को लेते हैं और उसे उसकी तीव्रता की चरम सीमा तक ले जाते हैं तो, केवल एक निश्चित सीमा तक ये एक आकार को धारण कर सकती है, उसके बाद ये आकार छोड़ देती है। जब ये अपना आकार छोड़ देती है तो लोग इसे अनुभव नहीं कर पाते। ऊर्जा को उस बिंदु तक धकेलना कि जिसके बाद वो आकार छोड़ दे, और ठीक तभी उसे एक निश्चित रूप दे देना- इस तरह से ध्यानलिंग की स्थापना/प्रतिष्ठा की गई है। 5.पंच भूतों की साधना
दक्षिण भारत में पांच भव्य मंदिरों की रचना की गई थी। हर एक मंदिर में एक लिंग स्थापित किया गया था, जो पंचतत्वों में से एक तत्व को दर्शाता है। अगर आप “जल” तत्व के लिए साधना करना चाहते हैं तो आप तिरुवनईकवल जाएं। आकाश तत्व के लिए आप चिदंबरम जाएं, वायु तत्व के लिए कालाहस्ती, पृथ्वी तत्व के लिए कांचीपुरम और अग्नि तत्व की साधना करने के लिए आप थिरुवन्नामलई जा सकते हैं। 6.शिवलिंग कितने है ? - 12 शिवलिंग – ज्योतिर्लिंग
इस सिलसिले में, हमारी संस्कृति में कई शक्तिशाली साधन बनाए गए हैं। ज्योतिर्लिंग इसी दिशा में एक बहुत शक्तिशाली साधन के रूप में स्थापित किए गए थे। इन आकृतिओं की मौजूदगी में होने से एक शक्तिशाली अनुभूति होती है। ज्योतिर्लिंगों में ज़बरदस्त शक्ति होती है, क्योंकि उन्हें एक खास तरीके से बनाया गया है। इन्हें बनाने में न केवल मानव क्षमताओं का बल्कि प्राकृतिक शक्तियों का भी उपयोग किया गया। पूरी दुनिया में सिर्फ बारह ज्योतिर्लिंग हैं। भूगोल और खगोलशास्त्र की नजर से वे महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थित हैं। इन स्थानों पर एक तरह की शक्ति है। काफी समय पहले कुछ खास तरह की समझ रखने वाले लोगों ने इन स्थानों को बारीकी से जांचा और खगोलीय गतिविधि के आधार पर इन जगहों का चुनाव किया था। कुछ ज्योतिर्लिंग अब जीवंत नहीं हैं, लेकिन उनमें से कई अब भी बहुत शक्तिशाली यन्त्र की तरह है। 7.ध्यानलिंग
संस्कृत में ध्यान का अर्थ है “मैडिटेशन” और लिंग का अर्थ है “आकार”। सद्गुरु ने अपनी प्राण ऊर्जाओं का प्रयोग करके प्राण प्रतिष्ठा नामक एक दिव्य प्रक्रिया द्वारा लिंग को उसके चरम पर स्थापित किया है। इस प्रक्रिया में सभी सातों चक्रों (शरीर में ऊर्जा के महत्वपूर्ण केंद्र) को उनके चरम तक ऊर्जावान बनाकर स्थापित किया गया है, जिससे ध्यानलिंग ज्यादा विकसित प्राणी के ऊर्जा शरीर के जैसा बन गया है। इस ध्यान गर्भगृह में किसी भी तरह की पूजा या प्रार्थना करना ज़रूरी नहीं है, और यहाँ सभी धर्मों को एक ही स्त्रोत से प्रकट हुए अलग-अलग रूप माना जाता है। 8.महाकाल: परम मुक्ति के दाता
उज्जैन का महाकाल मंदिर एक ज़बरदस्त प्राण-प्रतिष्ठित स्थान है। यह शक्तिशाली अभिव्यक्ति यक़ीनन कमज़ोर दिल वालों के लिए नहीं है। यह ज़बरदस्त शक्ति वाला स्थान उन सभी लोगों के लिए उपलब्ध है जो पूर्ण रूप से विसर्जित हो जाना चाहते हैं। जैसा कि हमें मालूम है, परम विसर्जन का मतलब है समय का नाश हो जाना। विश्व के किसी भी हिस्से में, आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब हमेशा भौतिकता से परे जाना ही रहा है, क्योंकि भौतिक चीजें चक्रों के अधीन हैं। इसलिए काल भैरव को अज्ञानता का नाश करने वाले के रूप में देखा जाता है, वे जो जीवन और मृत्यु, होने और न होने के बाध्यकारी चक्र को तोड़ देते हैं। 9.संसार के अन्य स्थानों पर लिंग
हालांकि पिछले 1500 सालों में दुनिया भर में धर्म का बहुत आक्रामक तरीके से प्रसार होने की वजह से अतीत की ज़्यादातर महान संस्कृतियां जैसे प्राचीन मेसोपोटामिया की सभ्यता, मध्य एशियाई सभ्यताएं और उत्तरी अफ़्रीकी सभ्यताएं गायब हो चुकी हैं। इसलिए ये अब बहुत ज्यादा दिखाई नहीं देतीं, लेकिन अगर आप इतिहास में गहराई से देखें तो ये हर जगह मौजूद थी। तो कहीं न कहीं आध्यात्मिक विज्ञान हर संस्कृति में मौजूद हुआ करता था। लेकिन पिछले 1500 सालों में विश्व के अन्य हिस्सों में एक बड़े स्तर पर इनका पतन हुआ है। 10.अलग अलग तरह से बनते हैं लिंग
कुछ लिंग पत्थर, लकड़ी या मणि/रत्न को तराश कर बनाए गए होते हैं। जबकि दूसरे लिंग मिट्टी, बालू या किसी धातु से गढ़े होते हैं। ये प्रतिष्ठित लिंग होते हैं। कई लिंग धातु की एक परत से ढके होते हैं और उन्हें एक चेहरे की आकृति भी दी जाती है ताकि भक्त उनसे ज्यादा बेहतर तरीके से जुड़ सकें। इन्हें मुखलिंग कहते हैं। कुछ लिंग में तो शिव की पूरी छवि सतह पर तराशी हुई होती है। लिंग, पौरुष और स्त्रैण ऊर्जा के मिलन को दर्शाते हैं। लिंग का आधार स्त्रैण को सूचित करता है जिसे गौरीपीठम या आवुदैयार कहते हैं। लिंग और उसका आधार दोनों मिलकर शिव और शक्ति के मिलन को दर्शाते हैं, जो कि पौरुष और स्त्रैण ऊर्जा के सूचक हैं। 11.लिंग- एक गुरु की अभिव्यक्ति
आधुनिक विज्ञान ने, पांच इन्द्रियों पर पूरी तरह से निर्भर होने के कारण, अनुसंधान या खोज में अनुभवजन्य या तार्किक दृष्टिकोण को ज्यादा महत्त्व दिया है, और खुद को मानव मन की साधारण शक्तियों पर सीमित कर दिया है। आधुनिक शिक्षा ने इसी दृष्टिकोण को अपनाया है और व्यक्ति के ग्रहण करने की क्षमता को नज़रंदाज़ कर दिया है। इस तरह के वातावरण में एक गुरु की ऐसी अंतर्दृष्टि रखने की क्षमता पर बहुत संदेह किया जाता है जो तार्किकता से परे हो। फिर भी, पूरे इतिहास में यह देखा गया है कि जिज्ञासु सहज रूप से एक गुरु की तरफ खिंचते हैं। आध्यात्मिक मार्गदर्शन की इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ दूरदर्शी गुरुओं ने ऐसे ऊर्जा स्थानों का निर्माण किया है जो एक गुरु की उपस्थिति और उसकी ऊर्जा जैसा ही हैं। ध्यानलिंग, एक गुरु की परम अभिव्यक्ति है। यह यौगिक विज्ञान का प्रतिष्ठित सार है जो भीतरी ऊर्जा को उसके चरम पर अभिव्यक्त करता है। 12.शिवलिंग-एक ब्रह्माण्डीय स्तम्भ के रूप में
दोनों हार गये। क्योंकि यह विराट स्तम्भ कोई और नहीं बल्कि खुद शिव थे। कोई उसे कैसे माप सकता है जो असीमित है? जब विष्णु वापस लौटे, तब उन्होंने अपनी हार मान ली। जबकि ब्रह्मा हार स्वीकार नहीं करना चाह रहे थे और उन्होंने यह दावा किया कि उन्होंने इस स्तम्भ का शिखर ढूँढ लिया। प्रमाण के तौर पर उन्होंने एक सफ़ेद केतकी का फूल दिखाया और दावा किया कि ये उन्हें ऊपर शिखर पर मिला। जैसे ही यह झूठ बोला गया, शिव, आदियोगी (सबसे पहले योगी) के रूप में प्रकट हो गये। ये दोनों भगवान (विष्णु और ब्रह्मा) उनके पैरों पर गिर पड़े। ब्रह्मा के इस झूठ के लिए शिव ने यह घोषित किया कि वो पूजा किये जाने के सौभाग्य से वंचित रहेंगे। इस फूल ने ब्रम्हा के इस अपराध में साथी बनने की वजह से अपना सम्मान खो दिया। आदियोगी ने इसके बाद इसे अर्पण/भेंट के रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया। हालांकि महाशिवरात्रि की पावन रात्रि के लिए एक अपवाद है। इस दिन, वर्ष की सबसे ज्यादा अंधेरी रात, महाशिवरात्रि की रात में केतकी के सफ़ेद फूल को पूजा के लिए अर्पण किया जाता है। इस रात को असीम आध्यात्मिक संभावनाओं की रात माना जाता है। शिवजी और शिवलिंग में क्या अंतर है?ज्योतिर्लिंग सदैव स्वयंभू होते हैं जबकि शिवलिंग मानव द्वारा स्थापित और स्वयंभू दोनों हो सकते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है। जहां-जहां ये शिव ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, आज वहां भव्य शिव मंदिर बने हुए हैं।
शिवलिंग शिव जी का कौन सा अंग है?क्योंकि इस उत्तर दिशा में भगवान शिव जी का बाया अंग होता है और शक्ति रूपा देवी उमा/पार्वती जी का स्थान होता है। शिवलिंग को शिवलिंग क्यों कहा जाता है? इसे सुनेंरोकेंलिंग रूप में इन्हें समस्त ब्रह्मांड में पूजा जाता है क्योंकि वो समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं. इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूप में पूजे जाते हैं.
शिव और शंकर अलग है क्या?शिव परमात्मा रचयिता हैं और शंकर उनकी एक रचना हैं। शिव ब्रह्म लोक में परमधाम के निवासी हैं और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले हैं। शिव की यादगार में शिवरात्रि मनाई जाती है ना कि शंकर रात्रि। अतः शिव निराकार परमात्मा हैं और शंकर सूक्ष्म आकारी देवता है।
शंकर भगवान को शिवलिंग क्यों कहा जाता है?शिवलिंग के शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो 'शिव' का अर्थ है 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ होता है 'सृजन'। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिंह या प्रतीक होता है। इस तरह शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। भगवान शिव को देव आदिदेव भी कहा जाता है।
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