शिव का असली भक्त कौन है? - shiv ka asalee bhakt kaun hai?

महा शिवरात्रि का मौका था। गांव के लोग रात से ही एक सिद्ध मंदिर में जाने की तैयारी करने लगे। लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि इस मौके पर भगवान शिव के दर्शन हो जाएं तो रुके काम चल पड़ते हैं और बिगड़े काम सुधर जाते हैं। सबने आधी रात को ही गांव से बैलगाड़ी लेकर चलने की तैयारी कर ली थी। उस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते थे। सो कल महा शिवरात्रि पर भीड़ ज्यादा होगी इसलिए आधी रात से तैयारी जरूरी थी। सबकी अपनी-अपनी परेशानी थी। सब भोले का दर्शन करके अपने दुख दूर करना चाहते थे। गांव से 10 बैलगाड़ी जा रही थी। कालू लोहार भी जाना चाहता था लेकिन किसी बैलगाड़ी पर उसे जगह नहीं मिली। लेकिन उसने ठान लिया कि कुछ भी हो भगवान शिव के दर्शन तो करने ही हैं। हालांकि उसकी कोई मन्नत नहीं थी लेकिन वह भगवान के दर्शन से अपना जनम सुफल करना चाहता था। सो पैदल ही चल पड़ा।

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रबड़ का रास्ता जितना चलता उतनी दूरी बढ़ती

आधी रात से ही कालू चल रहा था। सुबह हो चली थी। रात में तो पता नहीं चला लेकिन जैसे-जैसे धूप तेज होती उसकी भूख-प्यास से थकान दोगुनी होती जाती। ऊपर से रास्ता जैसे रबड़ का हो जितना चलता ऐसा लगता जैसे दूरी और बढ़ जाती। भूख-प्यास से व्याकुल कालू के तलवे में छाले पड़ गए थे। खून रिसते पैरों में मिट्टी चिपक गई थी। पसीने से बेहाल हो गया था ऐसा लगता जैसे अभी गिर पड़ेगा। दोपहर मंदिर पहुंचा तो देखा भीड़ इतनी कि रात तक दर्शन हो जाएं तो बड़ी बात। लोग आते ही जा रहे थे। धक्का-मुक्की में बार-बार वह लाइन से बाहर हो जाता और उसे फिर से लाइन में लगना पड़ता। एक बार तो भीड़ की धक्का-मुक्की ने उसे आधे रास्ते लाइन से बाहर धकेल दिया। लाइन से बाहर होते ही वह गिर कर बेहोश हो गया। होश आया तो देखा लाइन पीछे और लंबी हो चुकी थी, थकान और प्यास तो थी ही अब उसकी हिम्मत भी जाती रही।

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निराश होकर बिना दर्शन मंदिर से लौटना पड़ा

उसने वहीं से लेटे-लेटे भगवान को दंडवत किया और भगवान से क्षमा मांग कर घर की ओर वापस लौट पड़ा। दिन था सो उसने शार्टकट रास्ता पकड़ लिया। यह रास्ता जंगल और खेतों से होते हुए जाता था। जंगल खत्म होने के बाद जहां से खेत शुरू होते थे वहां झाडि़यों में एक पुराना भगवान शिव का मंदिर था। वहां कोई नहीं जाता था। शांति देख कर वह मंदिर के फर्श पर लेट गया। थकान और प्यास से उसे तुरंत नींद आ गई। थोड़ी देर बाद ही उसका नाम लेकर कोई उसे पुकारने लगा। उठा तो देखा भगवान स्वयं उसे पुकार रहे थे। उठते ही वह भगवान के चरणों में दंडवत हो गया। उसने पूछा भगवान आप यहां? भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा हां मैं तो यहीं हूं, तुम यहां कैसे? उसने एक ही सांस में सारा किस्सा कह सुनाया। बोले आपके दर्शन नहीं पाए इसलिए निराश थका-मांदा यहां शांति देखकर लेट गया था। लेकिन आप यहां तो भक्त वहां किसके दर्शन कर रहे हैं? भगवान बोले अरे छोड़ो उनको, इतनी भीड़ में भला कौन रह सकता है?

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जहां शांति का निवास वहां भगवान का वास

न सांस ले सकता हूं न ध्यान लगा पाता हूं, तुम तो जानते ही हो मैं ठहरा योगी। यहां बड़ी शांति है इसलिए यहीं रहता हूं ध्यान में मगन। वहां लोग मेरी भक्ति नहीं मुझसे सौदा करने आते हैं। कोई कहता है ये कर दो, कोई कहता है वो कर दो। अरे मैं कैसे कर दूं? यदि सब मुझे ही करना होता तो तुम्हें कर्म करने का अधिकार क्यों देता? तुम कर्म करो फल मैं दूंगा। लेकिन सब मुझसे ही कर्म कराने को बोलते हैं। लोग मुझे ऑर्डर देने लगे हैं बस फर्क इतना है कि वह ऑर्डर रिक्वेस्ट मोड में होता है। रही बात तुम्हें दर्शन देने की, तो तुम्हारे मन में कोई इच्छा नहीं थी सिर्फ मेरा दर्शन करना चाहते थे तो मैंने तुम्हें दर्शन दे दिया। अब जब तुम मुझसे मिल लिए तो परंपरा के अनुसार मुझे तुम्हें कुछ वरदान देना होगा मांगो क्या चाहते हो। कालू बोला भगवान मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपके दर्शन चाहिए था मिल गया मैं मेरा जीवन कृतार्थ हो गया। मुझे जो चाहिए था वह तो आपने बिना मांगे ही दे दिया। तभी अचानक उसकी नींद खुल गई। देखा तो मंदिर में कहीं कोई नहीं था। बस एक पुराना टूटा-फूटा शिवलिंग था। लेकिन उसकी थकान दूर हो चुकी थी। उसके पैरों के घाव भर गए थे। वह अपने तन में एकदम ताजगी महसूस कर रहा था।

रिलिजन डेस्क. हनुमानजी भगवान शिव के अवतार हैं, ये बात तो हम सभी जानते हैं, लेकिन हनुमानजी और भगवान शिव का युद्ध भी हुआ था, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। इससे संबंधित कथा का वर्णन पद्म पुराण के पातालखंड में मिलता है। आज हम आपको इस बारे में बता रहे हैं।

1) ये है प्रसंग

जब श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया तो यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते देवपुर नाम के नगर में जा पहुंचा। उस नगर के राजा का नाम वीरमणि था। वीरमणि भगवान शिव का परम भक्त था इसलिए देवपुर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते थे। वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने जब यज्ञ का घोड़ा देखा उसे बंदी बना लिया। यह बात जब घोड़े की रक्षा कर रहे शत्रुघ्न को पता चली तो उन्होंने देवपुर पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

शत्रुघ्न और राजा वीरमणि की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया। हनुमानजी भी वीरमणि की सेना का संहार करने लगे। श्रीराम के भाई भरत के पुत्र पुष्कल ने जब राजा वीरमणि को घायल कर दिया तो उनकी सेना अपनी जान बचाकर भागने लगी। जब भगवान ने अपने भक्त का यह हाल देखा तो वे भी उनके पक्ष में युद्ध करने लगे। भगवान शिव को युद्ध करते देख शत्रुघ्न भी वहां आ गए। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा।

भगवान शिव ने वीरभद्र को पुष्कल से नंदी को हनुमाजनी से युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र और पुष्कल का युद्ध पांच दिन तक चलता रहा। अंत में वीरभद्र ने पुष्कल का वध कर दिया। ये देखकर शत्रुघ्न को बहुत दुख हुआ। शत्रुघ्न और क्रोधित होकर शिव से युद्ध करने लगे। उनका युद्ध 11 दिनों तक चलता रहा। अंत में भगवान शिव के प्रहार से शत्रुघ्न बेहोश हो गए। यह देख हनुमानजी स्वयं शिव से युद्ध करने लगे।

हनुमानजी ने शिवजी से पूछा कि आप तो राम भक्त हैं तो फिर हमसे युद्ध क्यों कर रहे हैं। शिवजी ने कहा कि- मैंने राजा वीरमणि को उसके राज्य की रक्षा करने का वचन दिया है इसलिए मैं युद्ध करने के लिए बाध्य हूं। इसके बाद हनुमानजी और शिवजी के बीच भयंकर युद्ध होने लगा।हनुमानजी के पराक्रम से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब हनुमानजी ने कहा कि- इस युद्ध में भरत के पुत्र पुष्कल मारे गए हैं और शत्रुघ्न भी बेहोश हैं। मैं द्रोणगिरी पर्वत पर संजीवनी औषधि लेने जा रहा हूं, तब तक आप इनके शरीर की रक्षा कीजिए। शिवजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।  

इधर हनुमानजी तुरंत द्रोणगिरी पर्वत आए और संजीवनी औषधि लेकर पुन: युद्ध भूमि में आ गए। उस औषधि से हनुमानजी ने पुष्कल को पुन:जीवित कर दिया और शत्रुघ्न को भी स्वस्थ कर दिया। शत्रुघ्न और शिवजी में फिर से युद्ध होने लगा। जब शत्रुघ्न किसी भी तरह से शिवजी से नहीं जीत पाए तो हनुमानजी ने उनसे श्रीराम को याद करने के लिए कहा। शत्रुघ्न ने ऐसा ही किया। श्रीराम तुरंत युद्ध भूमि में प्रकट हो गए। श्रीराम को आया देख भगवान शिव भी उनकी शरण में चले गए और वीरमणि आदि योद्धाओं से भी ऐसा ही करने को कहा। वीरमणि ने यज्ञ को घोड़ा भी श्रीराम को लौटा दिया और अपना राज्य भी उन्हीं को सौंप दिया। इस तरह वह युद्ध समाप्त हुआ।

महादेव का प्रिय भक्त कौन है?

3. रावण को शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। यह बात किसी और ने नहीं बल्कि खुद भगवान शिव ने कही थी कि रावण बहुत बड़ा शिवभक्त है, उसकी भक्ति पर भगवान राम को भी शक नहीं था।

शिव के प्रथम भक्त कौन थे?

हिन्दू धर्म में नयनार भगवान शिव के भक्त सन्त थे। इनका उद्भव मध्यकाल में मुख्यतः दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुआ था। कुल 63 नयनारों ने शैव सिद्धान्तो के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

शिव जी के गुरु कौन है?

उनके पिता आदि रुद्र भगवान महाकाल न केवल भगवान शिव अपितु अन्य सभी महारुद्रो के गुरु रहे थे … आदि रुद्र भगवान महाकाल ही रुद्र व्यवस्था एवम गुरूमण्डल के प्रणेता रहे थे उन्ही की प्रेरणा से भगवान शिव ने गुरूमण्डल गुरुकुल की स्थापना की थी …

भगवान शिव की भक्ति करने वाले को क्या कहते हैं?

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों और भगवान शिव की आराधना करने वाले लोगों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं ।