शिक्षा के उद्देश्य के कितने प्रकार होते हैं? - shiksha ke uddeshy ke kitane prakaar hote hain?

शिक्षा एक व्यापक अवधारणा है जिसमें स्कूल तथा कॉलेजों में प्रदान की जाने वाली औपचारिक या नियमित शिक्षा के अतिरिक्त विभिन्न साधनों-घर, चर्च, क्लब, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन आदि से प्राप्त अनुभव भी सम्मिलित हैं। प्रायः लोग नियन्त्रित या औपचारिक शिक्षा को शिक्षा की श्रेणी में रखते हैं। वे दूसरे स्रोतों से प्राप्त अनुभवों को इसमें शामिल नहीं करते हैं। अत: शिक्षाविदों ने इस भ्रम को दूर करने के लिए शिक्षा के प्रकार या शिक्षा के विभिन्न रूपों के अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया है-

शिक्षा के उद्देश्य के कितने प्रकार होते हैं? - shiksha ke uddeshy ke kitane prakaar hote hain?
शिक्षा के प्रकार (Types of Education)

  • शिक्षा के प्रकार (Types of Education)
    • नियमित या औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
    • अनियमित या अनौपचारिक या सहज शिक्षा (Informal Education)
    • प्रत्यक्ष शिक्षा (Direct Education)
    • अप्रत्यक्ष शिक्षा (Indirect Education)
    • वैयक्तिक शिक्षा (Individual Education)
    • सामूहिक शिक्षा (Collective Education)
    • सामान्य शिक्षा (General Education)
    • विशिष्ट शिक्षा (Specific Education)

शिक्षाविदों के अनुसार शिक्षा के प्रकार निम्नलिखित हैं-

नियमित या औपचारिक शिक्षा (Formal Education)

औपचारिक या नियमित शिक्षा वह शिक्षा है, जो जान-बूझकर और विचारपूर्वक दी जाती है। इस शिक्षा को बालक भी जान-बूझकर प्राप्त करता है। इस शिक्षा की योजना पहले ही बना ली जाती हैं और इसका ध्येय भी निश्चित कर लिया जाता है। इसमें बालक को निश्चित समय पर और नियमित रूप से निश्चित ज्ञान दिया जाता है। यह शिक्षा विशेष प्रकार की संस्थाओं में दी जाती है। इसका आरम्भ अनियमित शिक्षा के बाद होता है। साधारणत: जब बालक, वयस्क हो जाता है, तब इसका अन्त हो जाता है। इस शिक्षा का प्रमुख स्थान ‘स्कूल’ है। ‘स्कूल’ के अतिरिक्त, चर्च, पुस्तकालय, अजायबघर, चित्र-भवन और पुस्तकें भी नियमित शिक्षा के साधन (Agencies) हैं। इस शिक्षा को चेतन शिक्षा (Conscious Education) भी कहते हैं।

अनियमित या अनौपचारिक या सहज शिक्षा (Informal Education)

हिन्दू संस्कृति के अनुसार यह शिक्षा बालक के जन्म से कुछ मास पहले ही आरम्भ हो जाती है, इसीलिए होने वाली माताओं से यह आशा की जाती है कि वे अपने आचरण को अच्छा बनाएँ। अभिमन्यु ने अपनी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह को तोड़ना सीख लिया था। अनियमित शिक्षा-बालक को अनायास और आकस्मिक रूप में प्राप्त होती है। यह शिक्षा अचेतन रूप से प्राप्त होती रहती है। इसको अचेतन शिक्षा (Conscious Education) भी कहते हैं। इस शिक्षा की कोई निश्चित योजना, कोई निश्चित स्थान, कोई निश्चित समय और कोई निश्चित नियम नहीं होता है। यह शिक्षा हर समय और हर स्थान पर किसी-न-किसी रूप में चलती रहती है। इस शिक्षा के साधन हैं-परिवार, धर्म, समाज, राज्य, रेडियो, समाचार-पत्र, जनसंचार के साधन, खेल के मैदान, दल, गुट, युवक-समूह आदि ।

प्रत्यक्ष शिक्षा (Direct Education)

इस शिक्षा को ‘वैयक्तिक शिक्षा’ (Personal Education) भी कहा जाता है। यह शिक्षा, अध्यापक और छात्र के बीच होती रहती है। अध्यापक अपने ज्ञान, आदर्शों और उद्देश्यों से छात्र के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। इसमें छात्र तथा शिक्षक के बीच प्रत्यक्षतः (Face to Face) अन्त:क्रिया होती है।

अप्रत्यक्ष शिक्षा (Indirect Education)

इस शिक्षा को ‘अवैयक्तिक शिक्षा’ (Impersonal Education) भी कहा जाता है। जब छात्र पर अध्यापक के उपदेश का प्रभाव नहीं पड़ता है, तब वह विभिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष साधनों को अपनाकर छात्र के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। इसमें छात्र तथा शिक्षक के बीच प्रत्यक्षत: (Face to Face) अन्त:क्रिया नहीं होती वरन्दू सरे साधनों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से इसको प्रभावित किया जाता है। हम ‘प्रत्यक्ष’ और ‘अप्रत्यक्ष’ विधियों के अन्तर को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। मान लीजिए, शिक्षक बालकों में समय-तत्परता और नियमबद्धता की आदतों का विकास करना चाहता है। वह इस कार्य को दो प्रकार से कर सकता है-
1. वह समय-तत्परता और नियमबद्धता पर उपदेश दे सकता है।
2. वह अपने कार्यों में समय-तत्पर और नियमबद्ध हो सकता है।

इन दोनों विधियों में पहली ‘प्रत्यक्ष और दूसरी ‘अप्रत्यक्ष’ है। इनमें दूसरी विधि पहली से अच्छी है, क्योंकि उदाहरण-उपदेश से अच्छा होता है। उदाहरण का प्रभाव स्थायी होता है, जबकि उपदेश का प्रभाव क्षणिक होता है।कुछ दशाओं में प्रत्यक्ष विधि को भी अपनाया जा सकता है, उदाहरणार्थ-बच्चे से कहना चाहिए कि यदि वह गर्मी के मौसम में धूप में खेलेगा, तो बीमार हो सकता है। उससे यह भी कहा जा सकता है कि जाड़े के मौसम में पानी में भीगने से सर्दी लग सकती है। फिर भी, बालक को इन बातों का स्वयं अनुभव करने देना चाहिए, क्योंकि तभी वह उपदेश के महत्त्व को समझ सकता है।

अत: शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह बच्चों में कार्य करने की आन्तरिक इच्छा उत्पन्न करे और उन पर उसे करने के लिए किसी प्रकार का बल प्रयोग न करे। ऐसी दशा में ही मार्ग-प्रदर्शन को सफल माना जाता है। यही वास्तव में सच्ची शिक्षा है। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा विवेकपूर्ण और ज्ञानपूर्ण पथ प्रदर्शन है।

वैयक्तिक शिक्षा (Individual Education)

वैयक्तिक शिक्षा का सम्बन्ध केवल एक बालक से होता है। यह शिक्षा उसको व्यक्तिगत रूप से और अकेले दी जाती है। शिक्षा देते समय उसकी रुचि, प्रकृति, योग्यता और व्यक्तिगत विभिन्नता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। शिक्षा देते समय इन बातों के अनुकूल ही शिक्षण-विधियों का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक समय में वैयक्तिक शिक्षा पर बहुत बल दिया जा रहा है। परिणामतः अनेक वैयक्तिक शिक्षण विधियों की खोज की गई है।

सामूहिक शिक्षा (Collective Education)

सामूहिक शिक्षा का सम्बन्ध एक बालक से न होकर बालकों के समूह से होता है। बहुत-से बालों के एक समूह को, एक कक्षा में एक साथ शिक्षा दी जाती है। इस शिक्षा में बालकों की व्यक्तिगत रुचियों, प्रवृत्तियों, योग्यताओं और विभिन्नताओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है आजकल सभी देशों के, सभी प्रकार के स्कूलों में शिक्षा का यही स्वरूप प्रचलित है।

सामान्य शिक्षा (General Education)

इस शिक्षा को उदार शिक्षा भी कहते हैं। आजकल के भारतीय हाई और हायर सेकण्डरी स्कूलों में इसी प्रकार की शिक्षा दी जाती है। इस शिक्षा का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह बालकों को केवल सामान्य जीवन के लिए तैयार करती है। इसका उद्देश्य केवल उनकी सामान्य बुद्धि को तीव्र करना है। यह उनको किसी विशेष व्यवसाय के लिए तैयार नहीं करती है।

विशिष्ट शिक्षा (Specific Education)

यह शिक्षा किसी विशेष लक्ष्य को ध्यान में रखकर दी जाती है। इसका उद्देश्य-बालकों को किसी विशेष व्यवसाय या निश्चित कार्य के लिए तैयार करना होता है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद बालक, जीवन के एक विशेष या निश्चित क्षेत्र में कार्य करने के लिए कुशल समझा जाने लगता है। बालक को इंजीनियर, डॉक्टर, वकील या एकाउण्टेंट बनाना विशिष्ट शिक्षा के उदाहरण हैं।

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शिक्षा के उद्देश्य कितने प्रकार के हैं?

शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान, एवं कला - कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते है।

शिक्षा के चार उद्देश्य क्या है?

(1) बालकों की रुचियों का विकास करना। (2) अच्छी आदतों को विकसित करना। (3) विचार शक्ति का विकास करना। (4) सामाजिक दृष्टिकोण को विकसित करना।

शिक्षा के मुख्य उद्देश्य कौन कौन से हैं?

शिक्षा का उद्देश्य aims of education.
ज्ञान अर्जन का उद्देश्य.
सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य.
चरित्र निर्माण का उद्देश्य या चरित्र का विकास.
जीविकोपार्जन का उद्देश्य व्यवसायिक.
सम विकास का उद्देश्य.
नागरिकता का उद्देश्य.
पूर्ण जीवन का उद्देश्य.
शारीरिक विकास का उद्देश्य.

शिक्षा कितने प्रकार के हैं?

शिक्षा के प्रकार : Types of education in hindi.
औपचारिक, औपचारिकेत्तर तथा अनौपचारिक शिक्षा (Formal, Informal and Non formal Education ) – औपचारिक शिक्षा में सब कुछ निश्चित विधि विधान के अनुरूप विद्यालय में शिक्षा की प्रक्रिया संचालित होती है। ... .
व्यक्तिगत एवं सामूहिक शिक्षा (Individual and Collective Education)-.