संसाधनों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर कैसे वर्गीकृत किया जाता है? - sansaadhanon ko unakee utpatti ke aadhaar par kaise vargeekrt kiya jaata hai?

  1. प्राकृतिक संसाधन:-प्रकृति से प्राप्त और अधिक संशोधन के बिना उपयोग में लाए जाते हैं।जैसे-वायु,नदियों और झीलों का जल,मृदा और खनिज।

संसाधनों का वर्गीकरण उनके विकास एवं प्रयोग के स्तर,उद्गम,भंडार एवं वितरण के अनुसार किया जाता है।विकास और उपयोग के आधार पर संसाधनों को दो वर्गों में रखा जा सकता है-

  1. वास्तविक संसाधन:-जिनकी मात्रा ज्ञात होती है।तथा जिनका उपयोग किया जा रहा है।जर्मनी के रूर प्रदेश में कोयला,पश्चिम एशिया में खनिज तेल,महाराष्ट्र में दक्कन पठार की काली मिट्टी.
  2. संभाव्य संसाधन:-वे संसाधन जिनकी सम्पूर्ण मात्रा ज्ञात नहीं हो सकती है और इस समय पर्याप्त प्रौद्दोगिकी के अभाव में इनका प्रयोग नहीं किया जा रहा है।इनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।जैसे-लद्दाख में पाया जाने वाला यूरेनियम।

200 वर्ष पूर्व तीव्र गति वाली पवनें एक संभाव्य संसाधन थी,परंतु आज वे वास्तविक संसाधन हैं। जैसे कि नीदरलैण्ड के पवन फार्मों में पवन-चक्की के प्रयोग से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।भारत में पवन फार्म तमिलनाडु के नगरकोइल तथा गुजरात के तट पर देखे जा सकते हैं।

उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों को जैव और अजैव संसाधनों में बाँटते हैं।मृदा चट्टानें और खनिज जैसे निर्जीव वस्तुएँ अजैव जबकि पौधे और जंतु जैव संसाधन हैं।

  1. नवीकरणीय संसाधनों में सौर और पवन ऊर्जा असीमित हैं,और उनपर मानवीय क्रियाओं का प्रभाव नहीं पड़ता है।परंतु जल,मृदा और वन का लापरवाही से किया गया उपयोग उनके भंडार को प्रभावित कर सकता है।जल असीमित नवीकरणीय संसाधन प्रतीत होता है,फिर भी जल की कमी और प्राकृतिक जल स्रोतों का सूखना आज विश्व के कई भागों के लिए एक बड़ी समस्या है।
  2. अनवीकरणीय संसाधन का भंडार सीमित है।कोयला,पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस।
  • संसाधनों के वितरण के आधार पर वे सर्वव्यापक(वायु)अथवा स्थानिक(ताँबा और लौह-अयस्क) हो सकते हैं।
  • मानव निर्मिति संसाधन-पुल,सड़क,मशीन और वाहन।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य लोगों को बहुमूल्य संसाधन संसाधन बनाने में मदद करते हैं।अधिक संसाधनों के निर्माण में समर्थ होने के लिए लोगों के कौशल में सुधार करना मानव संसाधन विकास कहलाता है।
  • संसाधनों का सतर्कतापूर्वक उपयोग करना और उन्हें नवीकरण के लिए समय देना,संसाधन संरक्षण कहलाता है।
  • संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता और भविष्य के लिए उनके संरक्षण में संतुलन बनाये रखना सततपोषणीय विकास कहलाता है।प्रत्येक व्यक्ति उपभोग को कम करके वस्तुओं के पुन:चक्रण और पुन:उपयोग द्वारा योगदान दे सकता है।

  • ततपोषणीय विकास:-संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग ताकि न केवल वर्तमान पीढी की अपितु भावी पीढियों की आवश्यकताएँ भी पूरी होती रहें।
  • सततपोषणीय विकास के कुछ सिद्धांत:-
  • जीवन के सभी रूपों का आदर और देखभाल
  • मानव जीवन की गुणवता को बढाना।
  • पृथ्वी की जीवन शक्ति और विविधता का संरक्षण करना प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास को कम-से-कम करना
  • पर्यावरण के प्रति व्यक्तिगत व्यवहार और अभ्यास में परिवर्तन।
  • समुदायों को अपने पर्यावरण की देखभाल करने योग्य बनाना।

हमारी पृथ्वी और इसके निवासी का भविष्य पेड़-पौधों और परितंत्र की सुरक्षा और संरक्षण से जुड़ा है।हमारा कर्तव्य है कि

  1. सभी नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग सततपोषणीय हैं।
  2. पृथ्वी पर जीवन की विविधता संरक्षित की जाए।
  3. प्राकृतिक पर्यावरणीय तंत्र की हानि को कम-से-कम किया जाए।

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उत्पत्ति के आधार पर जो दो संसाधन है वह है जब और अजैव संसाधन वैसे संसाधन जल संसाधन कहलाते हैं जो जय मंडल में मिलते हैं उदाहरण मनुष्य वनस्पतियां मछलियां और अजैव संसाधन व संसाधन है जो कि अजय संसाधन कहलाते हैं जो निर्जीव पदार्थों से मिलते हैं इसे मिट्टी हवा पानी धातु शादी

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संसाधन का वर्गीकरण: संसाधनों के प्रकार

संसाधन को विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

(1) उत्पत्ति के आधार पर 

(2) समाप्यता के आधार पर 

(3) स्वामित्व के आधार पर 

(4) विकास के स्तर के आधार पर 

उत्पत्ति के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

संसाधनों को उत्पत्ति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: जैव (Biotic) संसाधन एवं अजैव (Abiotic) संसाधन

(a) जैव संसाधन

हमारे पर्यावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ जिनमें जीवन है, को जैव संसाधन कहा जाता है। जैव संसाधन हमें जीवमंडल से मिलती हैं।

उदाहरण: मनुष्य सहित सभी प्राणि। इसके अंतर्गत मत्स्य जीव, पशुधन, मनुष्य, पक्षी आदि आते हैं।

(b) अजैव संसाधन

हमारे वातावरण में उपस्थित वैसे सभी संसाधन जिनमें जीवन व्याप्त नहीं हैं अर्थात निर्जीव हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं।

उदाहरण चट्टान, पर्वत, नदी, तालाब, समुद्र, धातुएँ, हवा, सभी गैसें, सूर्य का प्रकाश, आदि।

(2) समाप्यता के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

समाप्यता के आधार पर हमारे वातावरण में उपस्थित सभी वस्तुओं को जो दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: नवीकरण योग्य (Renewable) और अनवीकरण योग्य (Non-renewable)

(a) नवीकरण योग्य (Renewable) संसाधन

वैसे संसाधन जो फिर से नवीकृत किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन (Renewable Resources) कहा जाता है। जैसे सौर उर्जा, पवन उर्जा, जल, वन तथा वन्य जीव। इस संसाधनों को इनके सतत प्रवाह के कारण नवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है।

(b) अनवीकरण योग्य संसाधन (Non Renewable Resources)

वातावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ, जिन्हें उपयोग के बाद नवीकृत नहीं किया जा सकता है या उनके विकास अर्थात उन्हें बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लगते हैं, को अनवीकरण योग्य संसाधन कहा जाता है।

उदाहरण (i) जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, कोयला, आदि। जीवाश्म ईंधन का विकास एक लम्बे भू वैज्ञानिक अंतराल में होता है। इसका अर्थ यह है कि एक बार पेट्रोल, कोयला आदि ईंधन की खपत कर लेने पर उन्हें किसी भौतिक या रासायनिक क्रिया द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: इन्हें अनवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है।

(ii) धातु: धातु हमें खनन के द्वारा खनिज के रूप में मिलता है। हालाँकि धातु का एक बार उपयोग के बाद उन्हें फिर से प्राप्त किया जा सकता है। जैसे लोहे के एक डब्बे से पुन: लोहा प्राप्त किया जा सकता है। परंतु फिर से उसी तरह के धातु को प्राप्त करने के लिए खनन की ही आवश्यकता होती है। अत: धातुओं को भी अनवीकरण योग्य संसाधन में रखा जा सकता है।

(3) स्वामित्व के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है: व्यक्तिगत संसाधन, सामुदायिक संसाधन, राष्ट्रीय संसाधन तथा अंतर्राष्ट्रीय संसाधन।

(a) व्यक्तिगत संसाधन

वैसे संसाधन, जो व्यक्तियों के निजी स्वामित्व में हों, व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं। जैसे घर, व्यक्तिगत तालाब, व्यक्तिगत निजी चारागाह, व्यक्तिगत कुँए आदि।

(b) सामुदायिक संसाधन

वैसे संसाधन, जो गाँव या शहर के समुदाय अर्थात सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हों, सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन कहलाते हैं। जैसे सार्वजनिक पार्क, सार्वजनिक खेल का मैदान, सार्वजनिक चरागाह, श्मशान, सार्वजनिक तालाब, नदी, आदि सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन के कुछ उदाहरण हैं।

(c) राष्ट्रीय संसाधन

वैसे सभी संसाधन जो राष्ट्र की संपदा हैं, राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे सड़कें, नदियाँ, तालाब, बंजर भूमि, खनन क्षेत्र, तेल उत्पादन क्षेत्र, राष्ट्र की सीमा से 12 नॉटिकल मील तक समुद्री तथा महासागरीय क्षेत्र तथा उसके अंतर्गत आने वाले संसाधन आदि।

वैसे तो देश के अंदर आने वाली सभी वस्तुओं पर राष्ट्र का ही अधिकार होता है। चाहे वह कोई भूमि हो या कोई तालाब। सभी प्रकार की संसाधनों को राष्ट्र लोक हित में अधिग्रहित कर सकती है। जैसे कि सड़क, नहर, रेल लाईन आदि बनाने के लिए निजी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाता है।

भारत में 1978 में 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा मौलिक अधिकारों में से सम्पत्ति के अधिकार को हटा दिया गया। इस संशोधन के अनुसार सरकार लोकहित में किसी भी सम्पत्ति को अधिग्रहित कर सकती है।

भूमि अधिग्रहण का अधिकार शहरी विकास प्राधिकरणों को प्राप्त है।

(d) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन

तटरेखा से 200 समुद्री मील के बाद खुले महासागर तथा उसके अंतर्गत आने वाले संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन के अंतर्गत आते हैं। इनके प्रबंधन का अधिकार कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को दिये गये हैं। अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग बिना अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की सहमति के नहीं किया जा सकता है।

(4) विकास के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण

विकास के आधार पर संसाधनों को चार भाग में बाँटा गया है। ये भाग हैं, संभावी संसाधन, विकसित संसाधन, भंडार तथा संचित कोष।

(a) संभावी संसाधन

वैसे संसाधन जो विद्यमान तो हैं परंतु उनके उपयोग की तकनीकि का सही विकास नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं। जैसे राजस्थान तथा गुजरात में पवन और सौर उर्जा की अपार संभावना है, परंतु उनका उपयोग पूरी तरह नहीं किया जा रहा है। कारण कि उनके उपयोग की सही एवं प्रभावी तकनीकि अभी विकसित नहीं हुई है।

(b) विकसित संसाधन

वैसे संसाधन जिनके उपयोग के लिए प्रभावी तकनीकि उपलब्ध हैं तथा उनके उपयोग के लिए सर्वेक्षण, गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं।

(c) भंडार

वैसे संसाधन जो प्रचूरता में उपलब्ध हैं परंतु सही तकनीकि के विकसित नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है, भंडार कहलाते हैं।

जैसे वायुमंडल में हाइड्रोजन उपलब्ध है, जो कि उर्जा का एक अच्छा श्रोत हो सकता है, परंतु सही तकनीकि उपलब्ध नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है।

(d) संचित कोष

वैसे संसाधन जिनके उपयोग के लिए तकनीकि उपलब्ध हैं, लेकिन उनका उपयोग अभी आरंभ नहीं किया गया है, तथा वे भविष्य में उपयोग के लिए सुरक्षित रखे गये हैं, संचित कोष कहलाते हैं। संचित कोष भंडार के भाग हैं।

जैसे भारत के कई बड़ी नदियों में अपार जल का भंडार है, परंतु उन सभी से विद्युत का उत्पादन अभी प्रारंभ नहीं किया गया है। भविष्य में उनके उपयोग की संभावना है।

अत: बाँधों तथा नदियों का जल, वन सम्पदा आदि संचित कोष के अंतर्गत आने वाले संसाधन हैं।

संसाधनों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर कैसे वर्गीकृत किया जा सकता है?

संसाधनों के प्रकार उत्पत्ति के आधार पर - जैव संसाधन इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त है, जैसे मनुष्य, वनस्पतिजात, प्राणिजात, मत्स्य जीवन, पशुधन आदि । - - अजैव संसाधन वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, चट्टानें और धातुएँ।

संसाधनों को कितने प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है?

संसाधन दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक संसाधन और मानव निर्मित संसाधन

संसाधन क्या है संसाधन का वर्गीकरण करें?

संसाधन शब्द का अभिप्राय मानवी उपयोग की वस्तुओं से है। ये प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों हो सकती हैं। भूमि, जल, वन, वायु, खनिज घरों, भवनों, परिवहन एवं संचार के साधन ये संसाधन काफी उपयोगी भी हैं और मानव के विकास के लिए आवश्यक भी। संसाधन शब्द का अभिप्राय मानव उपयोग की वस्तुओं से है।

संसाधनों को आमतौर पर कितने वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है?

उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों के दो प्रकार हैं- जैविक और अजैविक । जैविक संसाधनों के अंतर्गत वन, समस्त वनोत्पाद, फसलें, पछी, पशु, मछली व अन्य सागरीय जैव रूप आते हैं । अजैविक संसाधनों के अंतर्गत भूमि, जल और खनिज जैसे- लोहा, ताँबा, सोना, चाँदी आदि आते हैं ।