संस्कृति के दो रूप कौन से हैं? - sanskrti ke do roop kaun se hain?

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में राजनीतिक संस्कृति (Political Culture) के बारे में इस Post में हम जानेंगे राजनीतिक संस्कृति का अर्थ, आधार, परिभाषा और उसके प्रकार, आयाम और उप-संस्कृति के बारे में । तो चलिए शुरू करते हैं आसान भाषा में ।

राजनीतिक संस्कृति का अर्थ

राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक व्यवस्थाओं की मर्यादाओं तथा जीवन के सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत क्षेत्रों की औचित्यपूर्ण सीमाओं को परिभाषित करती है । सभी तरह की राजनीतिक व्यवस्थाओं को उत्तरजीविता निरंतरता प्रदान करने के लिए तथा दबावों और संकटों का सामना करने के लिए मूल्यत्मक मतैक्यता तथा उसके सदस्यों के प्रति निष्ठावान होना आवश्यक है । राजनीतिक संस्कृति का संबंध इसी से है ।

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राजनीतिक संस्कृति एक आधुनिक अवधारणा है । इसका विकास मूलत मनोवैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय पद्धतियों से संबंधित है । इसके अंतर्गत व्यक्तियों के मूल्यों, मनोभावों, व्यवहार, मान्यताओं, विश्वास के तरीकों, कर्तव्य आदि को शामिल किया जाता है । यह सभी राजनीतिक क्षेत्र में भी महत्व रखती हैं और सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में भी । सामान्य शब्दों में कहा जाए तो स्पष्ट होता है कि व्यक्ति समाज में व्यवहार करते हैं करते समय कई तत्वों से प्रभावित होता है । जब वह इस संस्कृति अथवा मान्यताओं को राजनीतिक क्षेत्र में लागू करता है, तो राजनीतिक संस्कृति का उदय होता है । महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन संपूर्ण संस्कृति के संदर्भ में ही किया जा सकता है ।

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राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा

राजनीतिक संस्कृति को अलग-अलग विद्वानों ने इसे अलग-अलग नामों से संबोधित किया है । जैसे आलमंड इसे कार्य के प्रति अभिमुखीकरण कहता है तथा बीयर इसे राजनीतिक संस्कृति कहता है । ईस्टन इसे पर्यावरण कहता है । स्पीरो इसे राजनीतिक शैली कहता है । इन सभी नामों में राजनीतिक संस्कृति की सबसे उपयुक्त नाम माना जाता है ।

आलमंड एम पावेल के अनुसार

“राजनीतिक संस्कृति किसी राजव्यवस्था के सदस्यों में राजनीति के प्रति व्यक्तिगत अभिवृत्तियों और अभीविन्यासों का नमूना है ।”

सिडनी बर्बा के अनुसार

“राजनीतिक संस्कृति में अनुभाविक विश्वासों, अभिव्यक्तआत्मक प्रतीकों और मूल्यों की व्यवस्था निहित है । जो उस परिस्थितियों दशा को परिभाषित करती है, जिसमें राजनीतिक क्रिया संपन्न होती है ।”

बाल के शब्दों में

“राजनीतिक संस्कृति उन सभी अभिवृत्तियों, विश्वासों, भावनाओं और समाज के मूल्यों से मिलकर बनती है, जिसका संबंध राजनीतिक पद्धति और राजनीतिक प्रश्नों से होता है ।”

हींज़ युलाक का मानना है,

“राजनीतिक संस्कृति उन रूपों की ओर इशारा करती है जिसका पूर्वानुमान समूहों के राजनीतिक व्यवहार से तथा एक समूह के सदस्यों के सामान्य विश्वासों, नियामक सिद्धांतों, उद्देश्य व मूल्यों से लगाया जाता है । चाहे उस समूह का आकार कुछ भी हो ।”

राजनीतिक संस्कृति के प्रमुख लक्षण

आइये अब राजनीतिक संस्कृति के प्रमुख लक्षणों के बारे में जान लेते हैं । जो कि निम्नलिखित हैं ।

1) राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का ही एक अंग है अथवा उसका एक भाग है ।

2) यह एक अमूर्त धारणा है, इसके अंतर्गत व्यक्ति और समाज के राजनीतिक मूल्य और विश्वास आते हैं ।

3) राजनीतिक संस्कृति अनेक तत्व ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक विचारधारा आदि का समन्वित रूप माना जाता है ।

4) इसमें गतिशीलता का भी तत्व विद्यमान है ।

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राजनीति संस्कृति की मुख्य विशेषताएं

आइए अब जानते हैं, राजनीतिक संस्कृति की मुख्य विशेषताओं के बारे में । इसके अलावा राजनीतिक संस्कृति की तीन विशेषताएं मुख्य हैं ।

1. राजनीतिक संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण राजनीतिक समाज के व्यक्तियों की आनुभविक आस्थाओं और विश्वास का है । इसी के आधार पर शासकों और शासितों के पारस्परिक संबंधों का नियमन होता है । यह लक्षण एक आधारभूत लक्षण है, क्योंकि राजनीतिक व्यवस्था का संचालन इसी से प्रभावित और नियमित होता है ।

2. राजनीतिक संस्कृति का प्रमुख लक्षण व्यक्तियों और संपूर्ण समाज के लिए मूल्य अभिरुचियाँ है । यह वह तत्व है जिसे सरकार द्वारा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है तथा यह वह आस्था व विश्वास है, जिन्हें राजनीतिक समाज के लिए प्राप्त करना सरकार का प्रमुख उद्देश्य होता है ।

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3. प्रभावी अनुक्रियाएं राजनीतिक संस्कृति की तीसरी प्रमुख विशेषता है । जिससे यह स्पष्ट होता है कि किसी देश के राजनीतिक संस्थाओं, प्रतिक्रियाओं तथा प्रतीकों के संबंध में जनता किस प्रकार का भाव रखती है । यह प्रभावी अनुकिर्याएं राजनीतिक संस्कृति को नया रूप प्रदान करती हैं ।

राजनीतिक संस्कृति के आधार

किसी राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संस्कृति का निर्माण किस प्रकार होता है तथा किन मूल्यों के आधार पर इसकी प्रकृति का निर्धारण होता है । यह निम्न तत्वों से और उनके आधारों से निर्धारित होता है ।  राजनीतिक संस्कृति के आधार निम्नलिखित हैं ।

1) ऐतिहासिक आधार

राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में ऐतिहासिक तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि इतिहास ही वह नीव है जिस पर किसी देश का संपूर्ण ढांचा अवस्थित होता है । यदि हम ब्रिटेन की राजतंत्र की व्यवस्था को देखें तो पाएंगे कि ब्रिटेन वासियों में ऐतिहासिक आधार पर राजा के प्रति अपार श्रद्धा है । शायद इसी कारण उन्होंने सम्राट का पद कायम रखा है । इसी प्रकार भारत में राष्ट्रीय व्यक्तित्व, प्रतीकों, स्मारकों को अत्यंत श्रद्धा से नमन किया जाता है । क्योंकि भारत शताब्दियों तक ब्रिटिश उपनिवेश का शिकार रहा । जिसके कारण एक लंबे स्वतंत्रता संघर्ष में जिन लोगों तथा प्रतीकों का योगदान रहा, उनके प्रति लोग आज भी आदर तथा सम्मान का भाव रखते हैं । इसका आधार ऐतिहासिक ही है ।

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2) भौगोलिक आधार

प्रत्येक राज्य का भौगोलिक अवस्था भी वहां की राजनीतिक संस्कृति का प्रमुख आधार होती है । राज्यों की संस्कृति, उनकी स्थिति, सीमाओं तथा प्रकृतिक संसाधनों से अवश्य ही प्रभावित होती है । जैसे ब्रिटेन एक द्वीप है और इसी द्विपीय अलगाव के कारण वह अन्य देशों के साथ सुरक्षित रहा । इसके अलावा द्विपीय स्थिति ही इसके विशाल जल सेना का भी कारण है । इसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका का दुनिया से अलगाव तथा विशेष स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता ने इसे विश्व शक्ति बनने में सहायता प्रदान की है । अतः राजनीतिक संस्कृति का निर्धारण काफी हद तक भौगोलिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है ।

3) सामान्य संस्कृति

समाज की सामान्य संस्कृति, राजनीतिक संस्कृति का आधार स्तंभ होती है । राजनीतिक संस्कृति, समाज का सामान्य संस्कृति से संबंधित है, उस पर आश्रित है, तथा कभी-कभी पूर्णता आधारित भी हो जाती है । परंतु राजनीतिक संस्कृति समाज की संस्कृति का भाग होते हुए भी उससे अलग नहीं हो सकती । यदि राजनीतिक संस्कृति का निर्णय, सामान्य संस्कृति के संबंध में किया जाए तो, वह निश्चित रूप से सफल होती है । इसके विपरीत होने पर इस में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकते हैं ।

4) सामाजिक आर्थिक संरचना

किसी भी समाज का सामाजिक आर्थिक ढांचा, राजनीतिक संस्कृति का महत्व आधार होता है । जिस देश की सामाजिक आर्थिक संरचनाएं विकसित अवस्था में हैं, वहां पर राजनीति संस्कृति का विकास होता है । इसके विपरीत स्थिति में एशिया, अफ्रीका राजनीतिक संस्कृति परिपक्वता नहीं ग्रहण कर सकती है । क्योंकि इन देशों के समाज जाति, लिंग आदि के संकुचित बंधनों में जकड़े हुए हैं । वहीं इन देशों की आर्थिक व्यवस्था, निर्धनता और भीषण आर्थिक असमानताओं से ग्रसित है । इन देशों की विडंबना यह है कि विकसित देशों की राजनीतिक संस्कृति को प्राप्त करना चाहते हैं, पर अपनी व्यवस्थाओं में व्यापक सुधार लाने हेतु पर यह तैयार नहीं है । अभी भी इनकी सामाजिक आर्थिक संरचना अत्यंत निम्न स्तर की हैं ।

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5) विचारधाराओं का आधार

क्योंकि प्रारंभ में विचारधाराओं में कोई टकराव नहीं था, परंतु विश्व के आधुनिकता में प्रवेश के साथ इनमें टकराव प्रारंभ हो गया । प्रथम विश्व युद्ध के समय फासीवाद तथा नाजीवाद विचारधाराओं का लोकतंत्र की विचारधारा से संघर्ष था, तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्पष्ट तौर पर दो परस्पर विरोधी धारणाओं पूंजीवादी तथा साम्यवादी का प्रभुत्व स्थापित करने का चलन पैदा हुआ । इसका उद्देश्य अपने राजनीतिक संस्कृति का प्रभाव पूरे विश्व में फैलाना था । इस प्रकार अब विचारधारा राजनीतिक संस्कृति का आधार बन गई है ।

राजनीतिक संस्कृति के आयाम

आइए अब राजनीति संस्कृति के आयाम के बारे में जान लेते हैं । आलमंड और बर्बा ने राजनीतिक संस्कृति के चार आयामों की चर्चा की है । उनके अनुसार राजनीतिक संस्कृति के प्रमुख आयाम राष्ट्रीय राज्य की धारणा के इर्द-गिर्द घूमते हैं । उन्होंने राजनीतिक विश्वासों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है । जिससे विश्व अधिक अच्छे रूप में स्पष्ट हो सके । उनके अनुसार यह चार आयाम निम्नलिखित हैं ।

i) राष्ट्रीय अभिज्ञान या एकत्म्य

ii) नागरिकों के साथ एकात्मकता

iii) शासन निरगतों के बारे में आस्थाएं

iv) निर्णयकरिता के बारे में आस्थाएं

आइए अब इन आयामों को विस्तार से जान लेते हैं ।

i) राष्ट्रीय अभिज्ञान एकत्म्य

राजनीतिक संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आयाम राष्ट्रीय अभिज्ञान है । राजनीतिक संस्कृति का संपूर्ण राष्ट्र के साथ संबंध होने के कारण यह राष्ट्रीय अभिज्ञान राष्ट्रीय एकरूपता, समानता और व्यक्तियों को परस्पर बांधने वाला तत्व भी है । इसी से व्यक्ति का व्यवहार विशेष प्रकार का बनता है तथा बुद्धिजीवियों और विशिष्ट वर्गों को और विशिष्टता प्रदान करता है । राष्ट्रीय एकत्म्य का भाव किसी राज्य के नागरिकों में स्पष्ट होना चाहिए, जो कि राजनीतिक संस्कृति को सक्रिय बनाती है तथा लोगों को सक्रिय बनाती है । राष्ट्रीय विज्ञान की वृद्धि में यातायात संचार साधनों व आदि जनों की भूमिका विशेष महत्वपूर्ण है ।

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ii) साथी नागरिकों के साथ एकत्म्य

राजनीतिक संस्कृति के प्रथम आयाम की व्यवहारिकता इस बात पर आधारित है कि किसी समाज के सदस्य अपने साथी नागरिकों के बारे में किस प्रकार के एकत्म्य में विश्वास तथा आस्था रखते हैं । जिस राजनीतिक व्यवस्था के नागरिक सब प्रकार की भिन्नता, जातीय, आवासीय, भारतीय, धार्मिक और सांस्कृतिक रखते हुए भी एक दूसरे के सहयोगी बनकर रहते हैं । तो यह इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक संस्कृति में विखंडन सारी प्रवृतियां विद्वान नहीं है । इस प्रकार राजनीतिक व्यवहार में पूरा समुदाय समिति से ऊपर उठकर राजनीति में सक्रिय रहेंगे । विकासशील समाजों में यह प्रवृत्ति कम मात्रा में पाई जाती है ।

iii) शासन निर्गतो के बारे में आस्थाएं

सरकार के बारे में व्यक्तियों के विचारों का निर्माण उनके द्वारा व्यक्ति के लिए किए गए कार्यों पर निर्भर करता है । हर व्यक्ति सरकार से कुछ लाभ की अपेक्षा रखता है । राजनीतिक संस्कृति के प्रथम दो आयामों को ठोसता उपलब्ध कराने में इस बात का बहुत महत्व है कि जनता सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यों के संबंध में आश्वासन रखती है या निराश हो जाती है । कोई भी सरकार सभी नागरिकों की मांगों को संतुष्ट नहीं कर सकती । फिर भी अधिकांश लोगों की मांगों का उचित ढंग से निराकरण हो । तो राजनीतिक संस्कृति पर वेतनकारी तत्वों का प्रभाव कम हो जाता है । ऐसी राजनीतिक संस्कृति सब को एक सूत्र में बांधकर राष्ट्रीय एकात्मता स्थापित करने में सहायक सिद्ध होती है ।

iv) निर्णयकरिता के बारे में आस्थाएं

प्रत्येक समाज में राजनीतिक निर्णय कुछ ही व्यक्तियों द्वारा लिए जाते हैं । लोकतांत्रिक व्यवस्था में इन निर्णयकर्ताओं की दो विशेषताएं होती हैं । पहली निर्णय करने वाले जनता से ही चुन कर भेज जाते हैं तथा दूसरी अपने प्रत्येक निर्णय के संबंध में जनता के प्रति उत्तरदाई होते हैं । इससे जनता की राजनीतिक व्यवस्था में आस्था बनी रहती है तथा व्यवस्था का व्यतिकरण हो जाता है, क्योंकि जनता स्वयं को शासन या उसका अभिन्न अंग समझती है । यह राजनीतिक संस्कृति को लोकतांत्रिक भी बनाता है ।

राजनीतिक संस्कृति के प्रकार

आइए अब जान लेते हैं, राजनीतिक संस्कृति के प्रकार के बारे में । राजनीतिक संस्कृति के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं।  १) विशुद्ध संस्कृति तथा २) मिश्रित संस्कृति ।

1) विशुद्ध संस्कृति

राजनीतिक संस्कृति का विशुद्ध रूप इसके अंतर्गत तीन प्रकार की संस्कृतियों को शामिल किया जाता है ।

संकीर्ण या संकुचित संस्कृति

यह संस्कृति प्राय परंपरागत तथा सरल समाजों में पाई जाती है । इसमें राजनीतिक व्यवस्था के भीतर व्यक्तियों के प्रति, वस्तुओं के प्रति, अभिविन्यास काफी दुर्बल होते हैं । वह अपने आप को स्थानीय, ग्रामीण तथा क्षेत्रीय स्तर तक ही सीमित रखते हैं तथा राष्ट्रीय राजनीतिक संस्थाओं व राष्ट्रीय क्षेत्रों से सकारात्मक रूप से जोड़ने का प्रयास नहीं करते । वह मानते हैं कि इस योग्य नहीं है । इसमें भूमिकाओं का विषयीकरण का अभाव पाया जाता है तथा भूमिकाओं का विविधीकरण अति सरल होता है । व्यक्ति धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक भूमिकाओं को एक साथ निभाता है ।

प्रजाभावी संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में नागरिक राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा इसके निर्गतों के बारे में पूरी तरह से अवगत होते हैं तथा इसका समर्थन या विरोध भी करते हैं । परंतु वह राजनीतिक व्यवस्था में निवेश या मांगों को बहुत कम पराजित कर पाते हैं ।

सहभागी संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में नागरिक राजनीतिक वस्तुओं के संबंध में अधिक अवगत होते हैं तथा राजनीतिक दृष्टि से सभी नागरिक सक्रिय भूमिका निभाते हैं । इस प्रकार की संस्कृति हमेशा विकसित समाजों में पाई जाती है ।

2) मिश्रित संस्कृति

इसके अलावा राजनीतिक संस्कृति के मिश्रित रूप में ही और अधिक पाए जाते हैं, क्योंकि विशुद्ध संस्कृतियां बहुत कम पाई जाती हैं । मिश्रित संस्कृति के भी तीन प्रकार हैं, जो कि निम्नलिखित हैं ।

संख्या संस्था संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में नागरिक संख्या संस्थाओं के प्रति आस्था रखता छोड़ देता है तथा उसमें अति विशिष्ट सरकारी संस्थाओं के प्रति निष्ठा विकसित होने लगती है । सरकारी संस्थाओं में जानकारी के बावजूद नागरिक इस को प्राप्त करने में अनभिज्ञ होते हैं ।

प्रजाभावी सहभागी संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में नागरिकों का एक महत्वपूर्ण भाग राजनीतिक मुद्दों के प्रति अवगत तथा सक्रिय होता है । जबकि कुछ नागरिक उदासीन होते हैं । जो नागरिक राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय नागरिकों में राजनीतिक प्रभाविता भावना भी अधिक होती है । परंतु एक सामान्य नागरिक यह जानता है कि उसे सक्रिय तथा सहभागी होना चाहिए फिर भी उसे राजनीतिक निर्णय में भाग लेने का अवसर बहुत कम ही मिल पाता है ।

संकीर्ण सहभागी संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में निवेशक संस्थाएं, क्षेत्रीय जनपदीय समुदायिक समितियां होते हैं । परंतु राष्ट्रीय निर्गत संस्थाएं काफी विकसित होती हैं । जनता के प्रचार रैलियों तथा राष्ट्रीय चुनावों में सहभागिता के लिए प्रेरित किया जाता है ।

नागरिक संस्कृति

इस प्रकार की संस्कृति में तीनों प्रकार की विशुद्ध राजनीतिक संस्कृतियों के लक्षण पाए जाते हैं । नागरिकों में जन सहभागिता तथा राजनीतिक प्रभाविता भावना होती है । उनमें अन्य लोगों पर विश्वास करने की भावना होती है तथा सरकार के सभी मामलों पर विरोध नहीं किया जाता है । इस प्रकार की संस्कृति में काफी राजनीतिक रूप से सक्रिय होता है तथा गैर शासकीय संस्थाओं में भी उसकी आस्था होती है ।

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इसके अतिरिक्त राजनीतिक संस्कृति में कुछ उप संस्कृति अभी पाई जाती हैं तथा एक ही राजनीतिक संस्कृति में कई उप संस्कृतियों होती हैं । किसी भी समाज में एक सी राजनीतिक संस्कृति नहीं पाई जाती है ।

राजनीतिक संस्कृति के वर्गीकरण को दो उप संस्कृतियों में विभाजित किया है । पहला अभिजन उप संस्कृति तथा दूसरा जनसाधारण उप संस्कृति ।

अभिजन उप संस्कृति अपेक्षाकृत समजातीय होती है, जबकि दूसरे प्रकार में विषम जातीयता पाई जाती है । दोनों प्रकार की संस्कृति या सामूहिक रूप से राष्ट्रीय संस्कृति का निर्माण करती हैं । विकसित देशों में इन उप संस्कृतियों की पहचान की जा सकती है । परंतु विकासशील राष्ट्रों में इन दोनों संस्कृतियों में अंतर नहीं पाया जाता ।

तो दोस्तो ये था राजनीतिक संस्कृति के बारे में । उसकी परिभाषा, अर्थ, प्रकार, आयाम और उप-संस्कृति के बारे में । अगर Post अच्छी लगी तो दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

संस्कृति के कितने रूप हैं?

संस्कृति दो प्रकार की हो सकती है : (1) भौतिक संस्कृति, तथा (2) अभौतिकसंस्कृति।

संस्कृति के मुख्य प्रकार कौन कौन से हैं लिखिए?

1. भौतिक संस्कृति को सभ्यता भी कहा जाता है, जबकि अभौतिक संस्कृति को केवल संस्कृति कहा जाता है । जबकि वैज्ञानिक का विचार अभौतिक संस्कृति है। 3.

संस्कृति का क्या अर्थ है?

अंग्रेजी में संस्कृति के लिये कल्चर शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के 'कल्ट या कल्टस' से लिया गया है जिसका अर्थ है जोतना विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना । संक्षेप में किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके।

संस्कृति का उदाहरण क्या है?

इस प्रकार संस्कृति के अन्तर्गत वह सब कुछ सम्मिलित है जो कुछ मनुष्य समाज में सीखता है, जैसे-ज्ञान-धार्मिक, विश्वास, कला, कानून, नैतिकता, रीति-रिवाज, व्यवहार के तौर-तरीके, साहित्य, संगीत तथा भाषा आदि। सहज व्यवहार जैसे साँस लेना इत्यादि संस्कृति के अन्तर्गत नहीं आते है।