सर्वेक्षण प्रणाली से आप क्या समझते हैं इसकी मूल विशेषताएं क्या है? - sarvekshan pranaalee se aap kya samajhate hain isakee mool visheshataen kya hai?

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सर्वेक्षण उपकरणो की तालिका

सर्वेक्षण प्रणाली से आप क्या समझते हैं इसकी मूल विशेषताएं क्या है? - sarvekshan pranaalee se aap kya samajhate hain isakee mool visheshataen kya hai?

सर्वेक्षण में थियोडोलाइट का उपयोग करते हुए एक छात्र

सर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं का समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम 'लेखाचित्र' या मानचित्र कहलाता है। ऐसी आलेखन क्रिया की संपन्नता और सफलता के लिए रैखिक और कोणीय, दोनों ही माप लेना आवश्यक होता है। सिद्धांतत: आलेखन क्रिया के लिए रेखिक माप का होना ही पर्याप्त है। मगर बहुधा ऊँची नीची भग्न भूमि पर सीधे रैखिक माप प्राप्त करना या तो असंभव होता है, या इतना जटिल होता है कि उसकी यथार्थता संदिग्ध हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में कोणीय माप रैखिक माप के सहायक अंग बन जाते हैं और गणितीय विधियों से अज्ञात रैखिक माप ज्ञात करना संभव कर देते हैं।

इस प्रकार सर्वेक्षण में तीन कार्य सम्मिलित होते हैं -

  • क्षेत्र अध्ययन
  • मानचित्रण
  • अभिकलन

इतिहास[संपादित करें]

सर्वेक्षण प्रणाली से आप क्या समझते हैं इसकी मूल विशेषताएं क्या है? - sarvekshan pranaalee se aap kya samajhate hain isakee mool visheshataen kya hai?

नैन सिंह रावत : को हिमालयी क्षेत्रों के सर्वेक्षण के लिए सन १८७६ में रॉयल जिओग्राफिकल सोसायटी द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान किय गया।

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सन १८७० में निर्मित भारत का मानचित्र जो महान त्रोणमितीय सर्वेक्षण को प्रदर्शित करता है।

सर्वेक्षण क्रिया की उत्पत्ति की कहानी आदिकाल से आज तक के मानव समाज के विकास की कहानी, प्रधानत: सुख और समृद्धि के लिए भ्रमण और भूमि पर प्रभुसत्ता की प्राप्ति से, जुड़ी हुई है। भ्रमण के लिए स्थानों के बीच की दूरियों और दिशाओं का ज्ञान और प्रभुसत्ता के लिए सीमाओं और क्षेत्रफल का जानना आवश्यक था। ऐसा ज्ञान होने के प्रमाण प्राचीन ग्रंथों में राज्यों के विस्तार, दिशाओं के विवरण और दूरी के लिए योजना आदि के उल्लेख से मिलते हैं। प्राचीन काल में शिलाओं, भोजपत्र, ताम्रपत्र और कागज के प्रयोग से पूर्व, स्थानों के बीच की दूरी, दिशाएँ पहचानने का ज्ञान तथा अधिकार सीमाएँ मानव के स्मृतिपटल पर अंकित रहती होंगी। युद्ध और कलह का भय उत्पन्न होने पर, उस स्मृति और लिए गए मापों को किसी माध्यम पर प्रदर्शित करने की क्रिया का जन्म हुआ होगा, जिसे बाद में सर्वेक्षण की संज्ञा दी गई। इस प्रकार मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं और सर्वेक्षण का गहरा संबंध होने के कारण सर्वेक्षणक्रिया निरंतर उन्नति करती गई।

ऐसे प्रयासों का सबसे प्राचीन प्रमाण ईसा से 370 वर्ष पूर्व का मिला है, जो ट्यूरिन के अजायबघर में आज भी सुरक्षित है। यूनान और मिस्र में भी शिलाओं और लकड़ी के तख्तों पर सर्वेक्षण के प्राचीन आलेख मिले हैं। ऑस्ट्रिया में ईसापूर्व काल के कुछ ऐसे चिह्न मिले हैं जिनसे पता लगता है कि रोम साम्राज्य में सर्वेक्षण का प्रचलन था। उन्होंने मार्गों की सीध बाँधने के लिए आज जैसे उपकरण, सर्वेक्षण पट्ट (plane table) और दूसरा नापने के लिए अंकित छड़ों का प्रयोग किया था। ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि 300 वर्ष ईसापूर्व भारत पर आक्रमण के समय, यूनानियों ने सिंध से फारस की खाड़ी तक समुद्रतट नापकर लेखाचित्र तैयार किया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र और बाणभट्ट के हर्षचरित् में राजस्व के निर्धारण के सिलसिले में भूमि की नाप आदि के उल्लेख मिलते हैं। 1450 ई. में अरबवासियों ने कई समुद्री यात्राएँ कीं और समुद्रतटों के लेखाचित्र तैयार किए। 1498 ई. में वास्को डा गामा के भारत आने पर एक गुजराती पंडित ने उसे समुद्रतट का एक रेखाचित्र भेंट किया था। इससे विदित होता है कि सभ्यता के मार्ग पर बढ़े हुए सभी देशों में सर्वेक्षण का महत्व निरन्तर बढ़ता रहा और कृषि, राजस्व, भूमि के अधिकार की सीमाओं के निर्धारण और यात्राओं में मार्गों के लेखाचित्र बनाने में सर्वेक्षण का अभ्यास एवं प्रयोग होता रहा है। मगर 16वीं शताब्दी के समाप्त होते होते तो सर्वेक्षणक्रिया का महत्व आशातीत बढ़ा। मार्को पोलो, वास्को डी गामा, कोलंबस और कैप्टन कुक के भ्रमणों से यूरोप निवासियों को संसार के विस्तार और उसपर स्थित समृद्ध देश तथा उपजाऊ भूमि का पता लगा, तो वे बहुत तादाद में अपनी भाग्यपरीक्षा के लिए निकल पड़े। भूमि पर आधिपत्य करने में उनमें स्पर्धा जागी, जिससे सर्वेक्षणक्रियाओं को नई स्फूर्ति और तीव्र गति मिली। उस समय का बना हुआ भारत और अरब का मानचित्र ब्रिटिश अजायबघर में आज भी सुरक्षित है। नक्शे से पता लगता है कि वह फेरंडो बर्टोली द्वारा 1565 ई. में बनाया गया था। इसके बाद 1612 ई. में गेरार्डरा मर्केटर द्वारा बनाया भारत का मानचित्र, उस समय का अथक प्रयास, भी थाती के रूप में सुरक्षित है।

वर्गीकरण[संपादित करें]

शनैः-शनैः अधिकार की रक्षा के साथ-साथ देशों में विकास के प्रति भी रुचि जागी। सम्पूर्ण देश, अमुक साम्राज्य, संपूर्ण संसार एक साथ देखने की जिज्ञासा बढ़ी। इसकी पूर्ति का साधन मानचित्र ही हो सकता था। इस कारण सर्वेक्षण में इतनी नई-नई खोजें हुई कि उनके आधार पर सर्वेक्षणक्रिया ही दो प्रमुख वर्गों में बँट गई :

(1) भूगणितीय सर्वेक्षण (geodetic surveying)

(2) पट्ट सर्वेक्षण (Plane surveying)

इस वर्गीकरण का मुख्य आधार पृथ्वी का आकार है। जिस सर्वेक्षण में पृथ्वी के आकार को गोलाभ (spheroid) मानकर, उसकी सतह पर लिए गए नापों का प्रयोग करने से पहले पृथ्वी की वक्रता के लिए शोधन करते हैं, उसे भूगणितीय सर्वेक्षण कहते हैं। यह कठिन प्रक्रिया होती है। मगर पृथ्वी की गोल या वक्र सतह पर नापी दूरियाँ यदि अधिक लंबी न हों, तो उन्हें वक्र न मानकर ऋजु (सीधा) ही मान लिया जाए, तो कोई विशेष त्रुटि नहीं होगी। उदाहरणार्थ, पृथ्वी की वक्र सतह पर 11.5 मील लंबी रेखा नापने पर उसमें पृथ्वी के कारण केवल 0.05 फुट की त्रुटि होगी। इसी प्रकार पृथ्वी की सतह पर किन्हीं भी तीन बिंदुओं द्वारा 75 वर्ग मील क्षेत्रफल के त्रिभुज को समतल सतह पर सीधी रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाए, तो उसके कोणों के योग और उसी त्रिभुज की वक्र सतह पर बने कोणों के योग में केवल एक सेकंड का अंतर होगा। इस कारण यदि छोटे-छोटे क्षेत्रों के नक्शे तैयार किए जाएँ, तो पृथ्वी की सतह पर ली गई नाप को सीधी रेखाओं में सतल पर प्रदर्शित करने से कोई खटकनेवाली गलती नहीं होगी। इसलिए पृथ्वी के छोटे क्षेत्र को समतल मानकर, उस पर ली गई नापों को बिना वक्रता के शोधन के किसी पैमाने पर समतल कागज पर अंकित कर दिया जाता है। इस प्रकार के सर्वेक्षण को पट्ट सर्वेक्षण कहते हैं।

सामान्य व्यवहार में आनेवाले सर्वेक्षण समतलीय सर्वेक्षण ही होते हैं। भिन्न उद्देश्यों की सिद्धि के लिए सर्वेक्षणों की प्रक्रिया, उपकरण, पैमाना आदि में भी कुछ अंतर पैदा हो जाता है। इन कारणों से पट्ट सर्वेक्षण के भी कई वर्ग बन गए हैं :

  • (1) पैमाने के आधार पर 1:50,000; 1:25,000 1:5,000; 1:1,000 सर्वेक्षण (इस प्रकार से बताए पैमाने का अर्थ है कि मानचित्र पर एक इकाई लंबी रेखा भूमि पर क्रमश: 50,000; 25,000; 5,000 1,000 इकाई लंबाई के बराबर होग),
  • (2) किसी मंतव्य या कार्य विशेष के लिए किया गया सर्वेक्षण, जैसे स्थलाकृतिक (topographical) सर्वेक्षण, इंजीनियरी सर्वेक्षण, राजस्व (revenue) सर्वेक्षण तथा खनिज (mineral) सर्वेक्षण, तथा
  • (3) प्रयुक्त प्रमुख यंत्रों के नाम पर, जैसे जरीब सर्वेक्षण, टैकोमीटर (tachometer) सर्वेक्षण आदि।

यदि ऐसे समतलीय सर्वेक्षणों से भारत जैसे विस्तृत देश या महाद्वीप के मानचित्र संकलित (compile) किए जा सकें, तो पट्ट सर्वेक्षणों का महत्व आशातीत बढ़ जाता है। यह तभी संभव होगा, जब पट्ट सर्वेक्षणों की आधारशिला भूगणितीय सर्वेक्षण पर हो। आधारशिला का उल्लेख तभी ग्राह्य हो सकेगा, जब उसकी कुछ संक्षिप्त व्याख्या कर दी जाए।

सर्वेक्षण को भिन्न-भिन्न आधारों के अनुसार अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता हैं-

सर्वेक्षण का प्राथमिक वर्गीकरण[संपादित करें]

  • भू-पृष्ठीय सर्वेक्षण या भूगणितीय सर्वेक्षण (geodetic surveying)
  • समतल सर्वेक्षण या पट्ट सर्वेक्षण (Plane surveying)

सर्वेक्षण की विधि के अनुसार[संपादित करें]

  • त्रिभुजन सर्वेक्षण
  • चंक्रमण सर्वेक्षण

प्रयुक्त सर्वेक्षण उपकरण के अनुसार वर्गीकरण[संपादित करें]

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सर्वेक्षण उपकरण (बाएँ से दक्षिणावर्त) : प्रकाशीय थियोडोलाइट, रोबोटयुक्त पूर्ण स्टेशन, RTK GPS आधार स्टेशन, प्रकाशीय लेवेल

  • ज़रीब एवं फीता सर्वेक्षण
  • पटल सर्वेक्षण या प्लेन टेबल सर्वेक्षण
  • दिक्सूचक सर्वेक्षण
  • सेक्सटैन्ट सर्वेक्षण
  • थियोडोलाइट सर्वेक्षण
  • डम्पी लेवल द्वारा तल मापन
  • भारतीय क्लाइनोमीटर सर्वेक्षण
  • हवाई सर्वेक्षण

सर्वेक्षण की वस्तु के अनुसार वर्गीकरण[संपादित करें]

  • स्थलाकृतिक सर्वेक्षण
  • पुरातात्विक सर्वेक्षण
  • भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण
  • सैन्य सर्वेक्षण
  • भू-सम्पति सर्वेक्षण
  • शहर सर्वेक्षण
  • इंजीनियरी सर्वेक्षण

सर्वेक्षण-क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण[संपादित करें]

  • भू-सर्वेक्षण
  • सागरीय सर्वेक्षण
  • खगोलीय सर्वेक्षण

सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धान्त[संपादित करें]

विस्तृत लेख सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धान्त देखें।

सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धान्त बड़े ही सरल हैं। पृथ्वी की सतह पर बड़ी सरलता से दो ऐसे बिंदु चुने जा सकते हैं जो एक दूसरे की स्थिति से देखें जा सकें और उनके बीच की दूरी नापी जा सके। इन्हें किसी भी वांछित पैमाने पर कागज पर ऐसे लगाया जा सकता है कि उनके निकटवर्ती क्षेत्र का सर्वेक्षण कागज पर समा सके। इसके बाद इन दो बिंदुओं से किसी भी तीसरे बिंदु की दूरी नापकर उसी पैमाने से कागज पर उसकी सापेक्ष स्थिति अंकित कर सकते हैं। इस प्रकार अंकित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे अज्ञात बिंदु की दूरी निकालकर तथा क्रमानुगत अंकित करके, पूरे क्षेत्र का मानचित्र बनाया जा सकता है।

दूसरे शब्दों में, सर्वेक्षण की विधि, त्रिभुज की रचना है। ऊपर तो त्रिभुज की एक ही रचना का उल्लेख किया गया है, जिसमें त्रिभुज की तीनों भुजाओं की लंबाइयाँ ज्ञात है। त्रिभुज की अन्य रचना विधियाँ भी सर्वेक्षण में प्रयुक्त होती हैं।

सर्वेक्षण विधियाँ[संपादित करें]

ठीक भौगोलिक स्थिति में भू आकृति के रूपांकन के लिये मानचित्र के क्षेत्र के अंदर ऐसे प्रमुख नियंत्रण बिंदुओं के जाल के प्रथम आवश्यकता है जिनके ग्रीनविच के सापेक्ष सही सही अक्षांश और देशांतर अथवा औसत समुद्रतल से ऊँचाई ज्ञात हो। महान्‌ त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण ने भारत के अधिकांश मानचित्रों के निर्माण में यह कर लिया है। सार रूप में यह चौरस भूमि पर इन्वार (invar) धातु के तार या फीते से सावधानी से नापी हुई लगभग 10 मील लंबी जमीन होती है जिसे 'आधार' कहते हैं।

आधार की स्थापना के बाद उसपर एक के बाद एक उपयुक्त भुजा और कोण के त्रिभुजों की माला रची जाती है। त्रिभुजों के कोणों का निरीक्षण कर भुजा तथा बिंदुओं के नियामकों की गणना कर ली जाती है। इसे त्रिकोणीय सर्वेक्षण कहते हैं। त्रिभुजों का जाल सर्वेक्षण में सर्वत्र फैला होता है। मुख्य उपकरण काच चाप थियोडोलाइट है जिसमें ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज कोणों को चाप के एक सेकंड अंश या इससे भी कम तक सही पढ़ने की क्षमता होती है। ये बिंदु काफी दूर दूर होते हैं। अत: विस्तृत सर्वेक्षण संभव नहीं। इसके लिए यह आवश्यक है कि महान्‌ त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के बड़े त्रिभुजों को तोड़कर छोटे छोटे त्रिभुजों का जाल बनाकर सारी जमीन को कुछ मील के अंतर पर स्थित बिंदुओं की माला में परिणत कर दिया जाए।

पटल चित्रण (Plane tabling)[संपादित करें]

इच्छित पैमाने पर प्रक्षेप बनाया जाता है। प्रक्षेप में नियंत्रण बिंदु अंकित किए जाते हैं। इन बिंदुओं से प्रतिच्छेदन और स्थिति निर्धारण (inter secting and resecting) द्वारा पटलचित्रण और दृष्टिपट्टी की सहायता से विस्तृत सर्वेक्षण किया जाता है। इसे पटल चित्रण कहते हैं। भारतीय प्रवणतामापी (clinometers) नामक यंत्र से अतिरिक्त ऊँचाई निश्चित की जाती है। ऊँचाई से निश्चित ऊर्ध्वाधर अंतराल पर तलरेखा तक जिसे समोच्च रेखा कहते हैं, खींचे जा सकते हैं, जो भूमि की धराकृति अच्छी तरह प्रदर्शित करते हैं।

हवाई सर्वेक्षण[संपादित करें]

गत 30 वर्षो में सर्वेक्षण के क्षेत्र में प्रविष्ट, अत्यंत प्रभावकारी विधि हवाई फोटोग्राफ की विधि है। सैनिक और असैनिक उपयोगिता की दृष्टि से हवाई फोटोग्राफी का महत्व प्रथम विश्वयुद्ध काल में ही अनुभव किया जाने लगा था तथा सर्वेक्षण और मानचित्र निर्माणकार्य में इसका उपयोग सर्वप्रथम 1916 ई. में इंग्लैंड में ऑर्डनांस सर्वे की युद्धोत्तरकालीन योजना में हुआ। तब से यूरोपीय देशों तथा उत्तरी अमरीका में इस दिशा में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। अब तो हवाई फोटोग्राफी या फोटोग्राफी द्वारा सर्वेक्षण एक अनूठी वैज्ञानिक प्रविधि है। हवाई फोटोग्राफ द्वारा सर्वेक्षण की दो विधियाँ हैं : लेखाचित्रीय और यांत्रिकी।

लेखाचित्रीय विधि[संपादित करें]

भारत में लेखाचित्रीय विधि का कुछ वर्षों से अत्याधिक उपयोग हो रहा है और जहाँ तक स्थलाकृतीय मानचित्र अंकन का प्रश्न है, यह विधि लगभग पूर्णता प्राप्त कर चुकी है। इसका आधारभूत सिद्धांत यह है वास्तविक ऊर्ध्वाधर हवाई फोटोग्राफ में विकिरण रेखाएँ, जो फोटोग्राफ में थल बिंदु तक फैली होती हैं, यथार्थ और स्थिर कोण बनाती हैं। आकृतियों का उच्चता विस्थापन (height displacements) मानचित्र के समतल में दृष्टि बिंदु से ठीक नीचे स्थित एक बिंदु से (जिसे अवलंब बिंदु (Plumb line) कहते हैं और जो व्यवहार में वास्तविक ऊर्ध्वाधर फोटो (true vertical photograph) का केंद्र माना जाता है) अरीय होते हैं जिससे विवरण, मानचित्र समतल के बाहर उसकी ऊचाई और अवलंब बिंदु से दूरी के ठीक अनुपात में वास्तविक मानचित्र स्थिति से विस्थापित हो जाता है। अभीष्ट शक्ल फोटो प्राप्त कर लेने के बाद त्रिकोणकरण द्वारा के ठीक अनुपात में वास्तविक मानचित्र स्थिति से विस्थापित हो जाता है। अभीष्ट शक्ल फोटो प्राप्त कर लेने के बाद त्रिकोणकरण द्वारा निश्चित निंयत्रण बिंदुओं की सहायता और फोटो के अरीय गुण का उपयोग कर प्रक्षिप्त पत्रों पर, जिनका जिक्र हो चुका है, ठीक भौगोलिक स्थिति में फोटो के केंद्र अंकित किए जाते हैं। प्रत्येक फोटो के अरीय गुण का उपयोग कर विविध विवरणों का प्रतिच्छेदन उनकी सही स्थिति निश्चित की जाती है। लेखाचित्रीय विधि की सबसे बड़ी समस्या फोटो से परिशुद्ध उच्चता ज्ञात करना है। इस कठिनाई के कारण प्राय: भूमि सर्वेक्षण विधियों में पूरक उच्चता नियंत्रण का घना जाल बनाया जाता है। इस मार्गदर्शक उच्चताओं की सहायता से त्रिविमदर्शी (stereoscope) के नीचे रखकर फोटो पर समोच्च रेखाएँ खींचकर उन्हें मानचित्र पत्र पर लगा दिया जाता है।

यांत्रिक विधि[संपादित करें]

उद्भासन (Exposure) के समय कैमरा के प्रकाशाक्ष के ऊर्ध्वाधर न होने के कारण उपर्युक्त लेखाचित्रीय विधि से त्रुटिमुक्त मानचित्र नहीं बनते। यांत्रिक संकलन (mechanical compilation) त्रिविम आलेखन उपकरण (stereoscopic plotting instruments) में होता है जिससे फोटो ठीक उसी स्थिति में उलटते, झुकते और घूम जाते हैं जिसमें उद्भासन के समय विमान था। ये उपकरण वायुसर्वेक्षण समस्याओं का ठीक समाधान कर देते हैं जब कि लेखाचित्रीय विधियाँ सन्निकट समाधान प्रस्तुत करती हैं। भारत में आजकल काम आनेवाले आलेखन उपकरण हैं : वाइल्ड ऑटोग्राफ 47, वाइल्ड 48, मल्टीफ्लेक्स और स्टीरोटोप।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • मानचित्र
  • नैन सिंह रावत
  • त्रिभुजन सर्वेक्षण
  • स्थलाकृति (टोपोग्राफी)

सर्वेक्षण प्रणाली से आप क्या समझते हैं इसकी मूल विशेषता क्या है?

सर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं का समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम 'लेखाचित्र' या मानचित्र कहलाता है।

सर्वेक्षण पद्धति से आप क्या समझते हैं?

सर्वेक्षण पद्धति एक वैज्ञानिक क्षेत्र और एक पेशा दोनों है, जिसका अर्थ है कि क्षेत्र के कुछ पेशेवर अनुभवजन्य रूप से सर्वेक्षण त्रुटियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अन्य उन्हें कम करने के लिए सर्वेक्षण तैयार करते हैं

सर्वेक्षण के मूल सिद्धांत क्या है?

सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धांत बड़े ही सरल हैं। पृथ्वी की सतह पर बड़ी सरलता से दो ऐसे बिंदु चुने जा सकते हैं जो एक दूसरे की स्थिति से देखें जा सकें और उनके बीच की दूरी नापी जा सके। इन्हें किसी भी वांछित पैमाने पर कागज पर ऐसे लगाया जा सकता है कि उनके निकटवर्ती क्षेत्र का सर्वेक्षण कागज पर समा सके।

सर्वेक्षण का क्या महत्व है?

सर्वे के ज़रिए मिले जवाबों को इकट्ठा करने के बाद, हर एक जवाब पर महत्व लागू किया जाता है, ताकि इंटरनेट से मिले जनसांख्यिकी डेटा से उम्र, लिंग, और क्षेत्र के आधार पर मिले डेटा का मिलान हो सके. हम प्रतिनिधि और सुविधा के आधार पर टारगेट किए गए सर्वे में महत्व लागू करते हैं.