हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के इस लेख में महाकवि सूरदास का जीवन परिचय Class 10 (Surdas ka jeevan parichay class 10th ) में। Show दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि सूरदास के बारे में जानेंगे। की महाकवि सूरदास का जन्म कहाँ हुआ था? महाकवि सूरदास की रचनाएँ कौन-कौन सी हैं? महाकवि सूरदास का भाव पक्ष और कला पक्ष क्या है? दोस्तों सूरदास का जीवन परिचय Class 9, Class 10, Class 11, और Class 12 में अक्सर पूँछा जाता है। आप यहाँ से सूरदास का जीवन परिचय लिखने का आईडिया ले सकते हैं:- तो आइए दोस्तों शुरू करते हैं आज का यह लेख सूरदास का जीवन परिचय Class 10 हिंदी में:-
सूरदास कौन थे Who was Surdasसूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की प्रेमाश्रयी शाखा के अंतर्गत सगुण ब्रह्मा भगवान श्री कृष्ण के उपासक तथा एक महाकवि थे। जिन्होंने भक्ति काल की प्रेमाश्रयी शाखा को सगुण ब्रह्म धारा से युक्त विभिन्न प्रकार की रचनाएँ प्रस्तुत प्रदान की। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु को अपना आराध्य देव मानकर भगवान श्री कृष्ण से संबंधित विभिन्न प्रकार की रचनाओं का सृजन किया। जिसमें भगवान श्री कृष्ण के प्रति वात्सल्य तथा प्रेम की आभा झलकती रहती है। इसलिए सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य कहा जाता है। कई विद्वान कहते हैं, कि सूरदास जन्म से अंधे थे, किंतु इस बात से लेकर बहुत से विद्वानों में अभी भी मतभेद है, की जन्म से अंधा एक व्यक्ति सूरसागर, साहित्य लहरी जैसी रचनाएँ किस प्रकार से कर सकता है। सूरदास का जीवन परिचय Jivan Parichay of Surdasभक्तिकाल के प्रेमाश्रयी शाखा के महान कवि सूरदास जी का जन्म 1478 में आगरा मथुरा मार्ग में स्थित रुनकता नामक क्षेत्र में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान सूरदास का जन्म स्थान दिल्ली के पास स्थित सीही नामक क्षेत्र को बताते हैं। सूरदास के पिता का नामराम दास बैरागी था। जो सारस्वत ब्राह्मण थे तथा गायक का काम किया करते थे। सूरदास भी अपने पिता की तरह ही विद्वान व्यक्ति थे। किशोरावस्था में सूरदास जी विरक्त होकर आगरा गऊघाट पहुंच गए। तथा वहीं पर रहने लगे। गऊघाट पर ही सूरदास जी की भेंट वल्लभाचार्य जी से हो गई। वल्लभाचार्य सूरदास की प्रतिभा पर मुग्ध हो गए, और उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। गुरु वल्लभाचार्य ने सूरदास को पुष्टिमार्ग में शिक्षित कर दिया और कृष्ण लीला के पद गाने के लिए आदेश दिया। और महाकवि सूरदास कृष्ण लीला के पद गाते गए और एक विख्यात कवि के रूप में सबके सामने प्रकट हुए। बताया जाता है, कि सूरदास का विवाह भी हुआ था, और उनकी पत्नी का नाम रत्नावली था। अपनी मृत्यु के अंत तक वे अपने परिवार के साथ ही रहे थे किंतु बहुत से इतिहासकार और कवि एकमत नहीं है। महाकवि सूरदास की मृत्यु 1583 ईस्वी में हो गई थी। सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएँ compositions of Surdasमहाकवि सूरदास जन्म से अंधे थे। किंतु उनके काव्य की सजीवता देखकर बहुत से कवियों को उनके जन्मांध होने पर विश्वास ही नहीं होता है। महाकवि सूरदास की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार से हैं:- महाकवि सूरदास के प्रमुख पांच ग्रन्थ बताये जाते हैं, जिनमें से तीन रचनाएँ अति प्रसिद्ध है:-
इसके साथ ही सूरदास की अन्य रचनाओं में जैसे की नल दमयंती, ब्याहलो, नाग लीला, गोवर्धन लीला, सूरपच्चीसी कुल मिलाकर 16 ग्रंथ हैं। सूरदास का भाव पक्ष Surdas ka bhav pakshसूरदास जी की भक्ति सखा भाव की थी, इसके साथ ही उनकी भक्ति में वात्सल्य, विनय और मधुरता भी देखने को मिलती है। उन्होंने प्रभु श्री कृष्ण का चित्रण बाल रूप में किया है। सूर के पद वात्सल्य और प्रेम से ओतप्रोत देखने को मिलते हैं। महाकवि सूरदास प्रेम और सौंदर्य के बहुत बड़े गायक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने सबसे अधिक वात्सल्य और श्रृंगार रस का ही चित्रण किया है। महाकवि सूरदास ने बाल जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ा जिस पर उनकी दृष्टि ना गई हो। महाकवि सूरदास ने भगवान श्री कृष्ण तथा गोपियों के बिरह और प्रेम का वर्णन बड़े ही मनोहारी रूप में किया है। सूरदास के पदों में संयोग और वियोग दोनों प्रकार के रसों का ममस्पर्शी प्रयोग देखने को मिलता है। सूरदास का कला पक्ष Surdas ka kala pakshमहाकवि सूरदास ब्रज भाषा के कवि थे, क्योंकि महाकवि सूरदास ने जो भी रचनाएँ की हैं। वह ब्रजभाषा क्षेत्र में ही रहकर की है। महाकवि सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य और श्रृंगार की आलौकिक आभा झलकती रहती है। महाकवि सूरदास की रचनाओं में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक जैसे अलंकारों का भी प्रयोग हुआ है। महाकवि सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रजभाषा का इस प्रकार से प्रयोग किया है कि उनकी रचनाएँ और भाषा निखरती गई है। माधुर्य और श्रृंगार की प्रधानता होने के कारण उनकी भाषा भावपूर्ण हो गई है। महाकवि सूरदास का पूरा काव्य संगीत की रागरागिनियों से बना हुआ है। उनका काव्य अधिकतर प्रेम के जयगान का काव्य है। सूरदास की भाषा शैली Surdas ki Bhasha Shailiसूरदास जी ने अपने काव्य में मुख्य रूप से गेय पद शैली को प्रमुख रूप दिया है। उनकी गेय पद शैली कलात्मकता और प्रोढता से परिपूर्ण है। जबकि सूरदास जी की भाषा मुख्य रूप से ब्रजभाषा है। उन्होंने अपनी सभी रचनाएँ ब्रजभाषा में की हैं। ब्रज भाषा के साथ कहीं - कहीं अपभ्रंश के शब्दों का भी उपयोग दिखाई देता। सूरदास जी ने ब्रजभाषा के माध्यम से अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण और राधा के साथ ही गोपियों की विरह वेदना भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाएँ आदि का बड़ा ही मार्मिक, हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। सूरदास के काव्य की विशेषताएँ Surdas ke kavya ki visheshtayen
सूरदास का साहित्य में स्थान Surdas ka sahitya me sthanहिंदी साहित्य के सूर्य कहे जाने वाले महान भक्त तथा महाकवि सूरदास का हिंदी साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान है। उनके विषय में कहा गया है, कि सूर सूर तुलसी ससि, उड़गन केशवदास दोस्तों इस लेख में आपने सूरदास का साहित्यिक जीवन परिचय Class 10, सूरदास का जीवन परिचय Class 11th और 12 पड़ा। आशा करता हूँ, यह देख आपको अच्छा लगा होगा कृपया इसे शेयर जरूर करें। सूरदास की भक्ति का स्वरूप क्या था?Answer: सगुण भक्ति सूरदास की भक्ति का स्वरूप है।
सूरदास जी ने किसकी भक्ति की है?भगवद भक्ति में लीन रहने वाले सूरदास ने अपने को पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया था. मान्यता है कि कृष्णभक्ति के चलते उन्होंने महज 6 साल की उम्र में अपने पिता की आज्ञा लेकर घर छोड़ दिया था.
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