ज्ञान क्या है इसकी विशेषता का वर्णन करें - gyaan kya hai isakee visheshata ka varnan karen

                                                         ज्ञान का संचयी चरित्र हमें ज्ञान की सीमा और असीम प्रकृति दोनों को सूचित करता है । मानवता के विकास में किसी विशेष स्तर पर , ज्ञान उपलब्ध अनुभव के सीमित चरित्र और ज्ञान प्राप्त करने के मौजूदा साधनों द्वारा निर्धारित सीमाओं के विपरीत आता है । इसलिए , ज्ञान हमेशा सीमित होता है , और एक ही समय में असीम है । दूसरे शब्दों में , ज्ञात हमेशा अज्ञात से घिरा होता है लेकिन अनजान नहीं है । 

इस तरह ज्ञान अनुभवो का संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक रूप होता है। उसकी परिभाषा ‘यथार्थनुभवम ज्ञानम’ कहकर की जाती है। यथाथनुभव प्राप्त करने के लिए भारतीय चिंतन में विभिन्न साधनों की चर्चा की गई है इनमें प्रमुख है- प्रत्यक्ष,अनुमान,उपमान एवं शब्द। इन साधनों से प्राप्त ज्ञान को ‘प्रमा’ कहा गया है। जबकि इनसे भिन्न साधनों से प्राप्त ज्ञान को ‘अप्रमा’ कहा गया है। स्मृति,संशय आदि से प्राप्त ज्ञान वास्तविक नही है।

डीवी के अनुसार-“केवल वही ज्ञान ही वास्तविक है जो हमारी प्रकृति में संगठित हो गया है,जिससे हम पर्यावरण को अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने में समर्थ हो सके और अपने आदर्शो तथा इच्छाओ को उस स्थिति के अनुकूल बना ले जिसमें की हम रहते है।”

निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय-अप्रिय, सुख-दु:ख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। इसका विभाजन विषयों के आधार पर होता है। विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श। [1]

ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज, संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अलावा समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है।[2] स्वाभाविक और सहज शब्दों में हम ज्ञान को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं "अनुभव की अनुभूति ही ज्ञान कहलाता है।"

ज्ञान से आशय वास्तविकता के किसी पझ के प्रति जागरूकता तथा समाज से है जो कि सत्य विश्वास पर आधारित हो ।

यह स्पष्ट सूचना या तथ्य के जो की तार्किक प्रक्रिया के प्रयोग के द्वारा वास्तविकता से प्राप्त किया जाता है ।
पारंपरिक दार्शनिक उपाग्रम के अंतर्गत ज्ञान के लिए 3 शब्दों का होना आवश्यक माना गया है ।

  1. सत्यता
  2. साक्ष्य
  3. विचार

इसके अनुसार ज्ञान को परिभाषित किया जा सकता है कि ज्ञान साक्ष्य पर आधारित सत्य विश्वास है ।

ज्ञान की अवधारणा (Concept of Knowledge ) — शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्रदान करना है सभी दार्शनिक। इस विचार से पूर्ण सहमत है यह ज्ञान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि सत्य की वास्तविकता ज्ञान से अलग नहीं किया जा सकता है ।
यदि सत्य का ज्ञान नहीं होगा तो अस्तित्व ही कहां रह जाएगा भारतीय दर्शन में ब्रह्म ( सत्य ) और ज्ञान में कोई भेद नहीं माना गया है ।

जैमिनी मीमांसा दर्शन में कहा गया है कि सत्य स्वयं प्रकाशित होता है इस दृष्टि से ज्ञान की उत्पत्ति अपने आप होती है । वह मनुष्य के मन में स्वयं उद्रभाषित होता है क्योंकि सत्य और ज्ञान एक ही है इस ज्ञान को ईश्वरीय ज्ञान अर्थात सत्य द्वारा प्रदत माना जाता है ।

सत्य =ज्ञान

ज्ञान संज्ञानात्मक स्तर पर दिया जाता है जैसे परिभाषाएं , सिद्धांत , नियम , पहचान , वर्गीकरण , प्रक्रिया , चरण , व्याख्या , विश्लेषण संश्लेषण मूल्यांकन आदि । संज्ञानात्मक स्तर पर विज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष को संप्रेषित किया जाता है इसका उद्देश्य बुद्धि को निश्चित दिशा में प्रयोग करने हेतु ज्ञानात्मक योग्यता करना होता है ।

मानवता स्तर पर भी ज्ञान का महत्व है । भावनात्मक क्रियाएं मनुष्य की वे प्रारंभिक प्रक्रिया है जो हमें पशुओं से अलग करती है । मनुष्यों को दूसरे मनुष्य के भावों को परखने समझने एवं अपने भाव को समझ कर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने संबंधीत ज्ञान प्रदान करना भी शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य है ।

मूल्य एवं नैतिकता से संबंधित भावो को विकसित करके मनुष्य को नियंत्रित व्यवहार के लिए तैयार करने में भावनात्मक ज्ञान उपयोगी है ।

क्रियात्मक अस्तर का ज्ञान भी क्रियाओं को कुशलता पूर्वक करने में उपयोगी है खेलकूद मशीन वस्तुओं के निर्माण जीवन के लिए उपयोगी क्रियाओं से संबंधित ज्ञान श्रेणी में आता है ।

Table of Contents

  • ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा
  • Types of knowledge in hindi
  • ज्ञान की विशेषताएं
  • ज्ञान की प्रकृति ( Nature of knowledge )
    • ज्ञान एक साधन के रूप में

ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

ज्ञान वह बौद्धिक अनुभव है जो ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त किया जाता है । ज्ञान शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ज्ञा धातु से हुई है जिसका अर्थ है ” जानना ” बौद्ध एवं अनुभव आदि । इससे स्पष्ट है कि ज्ञान वह माध्यम है जिसमें कोई तथ्य वस्तु एवं अवधारणा की उसी रूप में समझा जा सकता है जिस रूप में वह है ।

ज्ञान knowledge शब्द का हिंदी रूपांतरण है जिसका आशय जानने से है । ज्ञान प्राप्त करने हेतु बुद्धि का होना आवश्यक है ।

पृथ्वी पर मनुष्य ही एकमात्र ऐसा चेतन प्राणी है जो विचार चिंतन मनन एवं अनुभव प्राप्त करने में समर्थ है जिसके आधार पर वह नए तथ्य एवं तत्वों से अवगत है ।

Types of knowledge in hindi

ज्ञान की उत्पत्ति में दो प्रमुख पझ होते है ।

  • ज्ञाता
  • ज्ञय

ज्ञान ज्ञाता के ही आसपास घूमता है अतः ज्ञाता के अभाव में ज्ञान का अस्तित्व संभव नहीं है । जब मनुष्य किसी वस्तु या विचार को अनुभूति बोध विश्वास तर्क एवं अनुभव के आधार पर स्वीकार कर देता है । तभी ज्ञान का सृजन होता है । इस क्रम में निरंतर चलते रहने से ज्ञान में वृद्धि होती है ।
दूसरे शब्दों में ज्ञान का अर्थ उन सूचनाओं का संग्रह है जो किसी वस्तु परिस्थिति और अनुभव की समझ को विकसित करने में सहायक होते हैं ।

ज्ञान समस्त शिक्षा का आधार है शिक्षा किसी भी प्रकार का हो चाहे विद्यालय औपचारिक या अनौपचारिक ज्ञान साधन एवं साध्य दोनों ही रूपों में पाया जाता है।

ज्ञान की विशेषताएं

  • ज्ञान शक्ति होती है ।
  • ज्ञान समाप्त नहीं हो सकता है ।
  • सत्यता का नाम ही ज्ञान है ।
  • ज्ञान की सीमा नहीं होती है अतः ज्ञान जगत अत्यंत है इसमें ज्ञान एवं अज्ञात सभी ज्ञान समाहित रहता है ।
  • ज्ञान का स्रोत सूचना है ।
  • ज्ञान 3 तथ्यों पर आधारित है सत्ता साक्षी एवं विचार ।
  • ऐसा कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति जितना ज्ञान प्राप्त करेगा उनके ज्ञान की भूख और बढ़ती जाएगी ।
  • ज्ञान निरंतर रहता है अर्थात ज्ञान निरंतर होती रहती है ।
  • ज्ञान बहु आयामी है जिसमें चिंतन अध्ययन एवं अनुसंधान के द्वारा नवीन ज्ञान तथा नए विषय स्रोतों की उत्पत्ति निरंतर होती रहती है ।

ज्ञान सतत रूप से विकसित होता रहता है जिसके फलस्वरूप विषयों की निरंतरता बनी रहती है ।

उपर्युक्त वर्णित समस्त विशेषताओं के फल स्वरुप विज्ञान जगत कमी भी एक जैसा नहीं पाया जा सकता है जिसके कारण प्रकार एवं प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है ।

ज्ञान की प्रकृति ( Nature of knowledge )

ज्ञान को भली-भांति समझने के लिए इसकी प्रकृति का ज्ञान होना अति आवश्यक है ज्ञान की प्रकृति को हम तीन रूपों में समझ सकते हैं ।

  1. ज्ञान एक साधन के रूप में
  2. ज्ञान एक साध्य के रूप में
  3. ज्ञान एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के रूप में

ज्ञान एक साधन के रूप में

ज्ञान का सृजन इसी उद्देश्य के लिए होता है कि इसकी सहायता से सिद्धांतों और नियमों को आसानी से समझा जा सके ।

ज्ञान की विशेषताएँ क्या है?

ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं (1) ज्ञान धन की तरह है, जितना एक मनुष्य को प्राप्त होता है, वह उतना ही ज्यादा पाने की इच्छा करता है। (2) ज्ञान सत्य तक पहुँचने का साधन है। (3) धर्म की भाँति ज्ञान को भी जानने के लिए अनुभव करने चाहिए। (4) ज्ञान प्रेम तथा मानव स्वतंत्रता के सिद्धान्तों का ही आधार है।

ज्ञान की परिभाषा क्या है?

किसी की निश्चित समय में किसी भी व्यक्ति या सम्पर्क में आने वाली कोई भी वस्तु जो कि जीवन को चलाने के लिए उपयोग में आती है उसके प्रति जागरूकता तथा साझेदारी ही ज्ञान कहलाती है।

ज्ञान कितने प्रकार के होते हैं?

ज्ञान तीन प्रकार के मुख्यतः होते हैं प्रात्यक्षिक ज्ञान, अनुमानिक ज्ञान और शाब्दिक ज्ञान

ज्ञान से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए?

ज्ञान का अर्थ (gyan kya hai) gyan arth prakar srot;सामान्यतः ज्ञान का अर्थ जानना, ज्ञात होना, आदि के संबंध मे लिया जाता हैंज्ञान को प्रकाशमय माना गया है। ज्ञान का स्वरूप है किसी वस्तु को प्रकाशित करना। जिस प्रकार दीपक निकटस्थ वस्तु को प्रकाशित करता है उसी प्रकार ज्ञान भी वस्तु को प्रकाशित करता हैं