सरस्वती जी के हाथ में जो पुस्तक है उसमें ब्रह्म ज्ञान है, अतएव माँ सरस्वती मूल रूप से वेदज्ञान की देवी है। तो माँ सरस्वती वास्तव में वैदिक शिक्षा देने वाली देवी है। Show सरस्वती जी हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। सरस्वती जी भगवान की योग माया शक्ति है। जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। सरस्वती माँ के अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की प्रथा चली आ रही है क्योकिं इस दिन इनका जन्म (प्रकट) हुई थी। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं। सरस्वती जी को साहित्य, संगीत, कला की देवी है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। माँ सरस्वती का स्वरूपसरस्वती जी के एक मुख, चार हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान (माँ सरस्वती वास्तव में वैदिक शिक्षा देने वाली देवी है।) और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं। सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है। जिस तरह भगवान शंकर का वाहन नंदी, विष्णु का गरुड़, कार्तिकेय का मोर, दुर्गा का सिंह और श्रीगणेश का वाहन चूहा है, उसी तरह सरस्वती का वाहन हंस है। यहां जानिए देवी सरस्वती का वाहन हंस क्यों है? देवी की द्वादश नामावली में इस बात का उल्लेख मिलता है- प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥ अर्थात सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है। यानी हंस उनका वाहन है। सहज ही यह जिज्ञासा होती है कि आखिर हंस सरस्वती का वाहन क्यों है? सबसे पहले तो यह बात समझना होगी कि यहां वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं। यह एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात कर अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जा सकते हैं। हंस को विवेक का प्रतीक कहा गया है। संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है। इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना। यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है - नीरक्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्। - भामिनीविलास 1/13 हंस का रंग शुभ्र (सफेद) होता है। यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है। पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है। शिक्षा की परिणति ज्ञान है। ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है। यही विवेक कहलाता है। मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परम्परा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा गया है। जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी। सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत:करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है। हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते। सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो। सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं। मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हीं से हुआ है। सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणावस्था है। वीणावादन शरीर यंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है। इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है। साम-संगीत के सारे विधि-विधान एकमात्र वीणा में सन्निहित हैं। मार्कण्डेयपुराण में कहा गया है कि नागराज अश्वतारा और उसके भाई काम्बाल ने सरस्वती से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। वाक् (वाणी) सत्त्वगुणी सरस्वती के रूप में प्रस्फुटित हुआ। सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्त्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है। देवी भागवत् के अनुसार, सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा पूजा जाता है। जो सरस्वती की आराधना करता है, उसमें उनके वाहन हंस के नीर-क्षीर-विवेक गुण अपने आप ही आ जाते हैं। माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है, तब संपूर्ण विधि-विधान से मां सरस्वती का पूजन करने का विधान है। लेखक, कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होती है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होता है। इस प्रकार वीणाधारिणी, वीणावादिनी मां सरस्वती की पूजा-आराधना में मानव कल्याण का समग्र जीवनदर्शन निहित है। सतत् अध्ययन ही सरस्वती की सच्ची आराधना है। याज्ञवल्क्य वाणी स्तोत्र, वसिष्ठ स्तोत्र आदि में सरस्वती की पूजा उपासना का विस्तृत वर्णन है। एक समय ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा-“तुम किसी योग्य पुरुष के मुख में कवित्वशक्ति होकर निवास करो।’ उनकी आज्ञानुसार सरस्वती योग्य पात्र की तलाश में निकल पड़ी। पीड़ा से तड़प रहे एक पक्षी को देखकर जब महर्षि वाल्मीकि ने द्रवीभूत होकर यह श्लोक कहा मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। वाल्मीकि की असाधारण योग्यता और प्रतिभा का परिचय पाकर सरस्वती ने उन्हीं के मुख में सर्वप्रथम प्रवेश किया। सरस्वती के कृपापात्र होकर महर्षि वाल्मीकि ही ‘आदिकवि’ के नाम से संसार में विख्यात हुए। (और पढ़े –मंत्र होते है असीम शक्तियों के स्वामी अब विज्ञान भी है मानता) रामायण के एक प्रसंग के अनुसार जब कुंभकर्ण की तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मा उसे वरदान देने पहुंचे, तो उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कुछ भी न करे, केवल बैठकर भोजन ही करे, तो यह संसार उजड़ जाएगा। अतः उन्होंने सरस्वती को बुलाया और कहा कि इसकी बुद्धि को भ्रमित कर दो। सरस्वती ने कुंभकर्ण की बुद्धि विकृत कर दी। परिणाम यह हुआ कि वह छह माह की नींद मांग बैठा। इस प्रकार कुंभकर्ण में सरस्वती का प्रवेश उसकी मृत्यु का कारण बना। मार्कण्डेय पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार एक बार महर्षि जैमिनी विंध्य के जंगलों से गुजर रहे थे। वहां उन्होंने देखा कि कुछ पक्षी वेदपाठ कर रहे हैं। उनका उच्चारण शुद्ध और व्याकरण सम्मत था। शायद वे शापग्रस्त पक्षी थे, परंतु देवी सरस्वती की कृपा से वे वेदपाठ कर रहे थे। सरस्वती को विद्या की देवी क्यों माना जाता है?सरस्वती जी को विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी भी कहा गया है। कहा जाता है कि सरस्वती जी के आशीर्वाद से समस्त संशयों का निवारण हो जाता है। सरस्वती जी की आराधना करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माता सरस्वती को संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है।
विद्या की देवी को क्या कहते हैं?इतना ही नहीं विद्या की देवी मां सरस्वती सदैव उस व्यक्ति की सहायता करती हैं।
सरस्वती माता किसका अवतार है?प्रसंग के अनुसार सरस्वती जी ब्रह्मा जी की बेटी थीं। ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती जी को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इसीलिए यह कहा जाता है कि सरस्वती जी की कोई मां नहीं थी। सरस्वती जी को विद्या की देवी कहा जाता है।
विद्या और बुद्धि की देवी कौन है?सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है।
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