सूरज का सातवाँ घोड़ा Summary in Hindi - sooraj ka saatavaan ghoda summary in hindi

हिंदी की प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रमुख संपादक और हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार धर्मवीर भारती थे. धर्मवीर भारती एक लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे.

सूरज का सातवाँ घोड़ा Summary in Hindi - sooraj ka saatavaan ghoda summary in hindi
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वो धर्मवीर भारती जी ही थे, जिन्होंने उन लोगों को ‘कांव-कांव बेल्ट’ की संज्ञा दी थी, जो हिंदी क्षेत्र से आने वालों को ‘काऊ बेल्ट’ कहकर बुलाते थे. अपनी कहानियों, उपन्यासों और साहित्य में हिंदी का पुरज़ोर समर्थन करने वाले भारती जी ने न केवल कालजयी रचनाएं कीं, बल्कि हिंदी को एक पहचान भी दिलाई. गुनाहों का देवता, ठंडा लोहा, कनुप्रिया और सूरज का सातवाँ घोड़ा जैसी कालजयी रचनाओं को रचने वाले हिंदी के उत्कृष्ट लेखक थे धर्मवीर भारती और उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था. भारती जी ने उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, कविता सभी विधाओ में हिंदी साहित्य लिखा है.

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धर्मवीर भारती जी की इन्हीं उत्कृष रचनाओं में से एक है ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’. भारती जी के इस लोकप्रिय उपन्यास को हर साहित्य प्रेमी ने पढ़ा होगा. मैंने काफ़ी पहले ये उपन्यास पढ़ा था. इसकी ख़ासियत है कि इसे पढ़ते हुए आप कभी-कभी शब्दों के बिना ही किसी इंसान के हाव-भाव को पढ़ने में सक्षम हो जाते हैं. ऐसा लगने लगता है मानों आप उसी कहानी को जी रहे हों, इस कदर इसकी कहानी दिल में उतर जाती है.

12 भागों में विभाजित ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ के सात अध्याय उपन्यास के मुख्य पात्र माणिक मुल्ला के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं. इसके अलावा माणिक मुल्ला के जीवन सहित उनके संपर्क में आए प्रमुख चरित्रों- जमुना, लिली और सत्ती की ज़िन्दगी पर भी प्रकाश डालती है इसकी कहानी. इसलिए कहा भी जाता है कि ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ एक कहानी में कई अलग-अलग कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि अनेक कहानियों में एक कहानी है. उसमें पूरे समाज को बखूबी चित्रित किया गया है और उसका आलोचन भी है.

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इसमें कहानी का गठन बहुत सरल है और जैसे पुराने ज़माने में चौपाल लगती थी और रात को सोने से पहले दादा-दादी बच्चों को रोज़ एक नई कहानी सुनाते थे, ठीक उसी प्रकार ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ में सात दिनों की हर दोपहर मित्रों की एक मंडली बैठती है और कहानी के प्रमुख पात्र माणिक मुल्ला रोज़ सबको एक नई कहानी सुनाता है. हर नए दिन, एक नई कहानी.

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‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ की हर कहानी अपने आप में अद्भुत है, अगर आप इन कहानियों को पढ़ना चाहते हैं, तो इस उपन्यास को पढ़ सकते हैं.

फ़िलहाल हम आपके लिए इसकी पहली दोपहर की कहानी, जिसका शीर्षक है, ‘नमक की अदायगी’ के कुछ अंश लेकर आये हैं:

‘माणिक मुल्ला के घर के बगल में एक पुरानी कोठी थी जिसके पीछे छोटा अहाता था. अहाते में एक गाय रहती थी, कोठी में एक लड़की. लड़की का नाम जमुना था, गाय का नाम मालूम नहीं. गाय बूढ़ी थी, रंग लाल था, सींग नुकीले थे. लड़की की उम्र पंद्रह साल की थी, रंग गेहुँआ था (बढ़िया पंजाबी गेहूँ) और स्वभाव मीठा, हँसमुख और मस्त. माणिक, जिनकी उम्र सिर्फ दस बरस की थी, उसे जमुनियाँ कह कर भागा करते थे और वह बड़ी होने के नाते जब कभी माणिक को पकड़ पाती थी तो इनके दोनों कान उमेठती और मौके-बेमौके चुटकी काट कर इनका सारा बदन लाल कर देती. माणिक मुल्ला निस्तार की कोई राह न पा कर चीखते थे, माफी माँगते थे और भाग जाते थे.

लेकिन जमुना के दो काम माणिक मुल्ला के सिपुर्द थे. इलाहाबाद से निकलनेवाली जितनी सस्ते किस्म की प्रेम-कहानियों की पत्रिकाएँ होती थीं वे जमुना उन्हीं से मँगवाती थी और शहर के किसी भी सिनेमाघर में अगर नई तसवीर आई तो उसकी गाने की किताब भी माणिक को खरीद लानी पड़ती थी. इस तरह जमुना का घरेलू पुस्तकालय दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था.समय बीतते कितनी देर लगती है.

कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते और सिनेमा के गीत याद करते-करते जमुना बीस बरस की हो गई और माणिक पंद्रह बरस के, और भगवान की माया देखो कि जमुना का ब्याह ही कहीं तय नहीं हुआ. वैसे बात चली. पास ही रहनेवाले महेसर दलाल के लड़के तन्ना के बारे में सारा मुहल्ला कहा करता था कि जमुना का ब्याह इसी से होगा, क्योंकि तन्ना और जमुना में बहुत पटती थी, तन्ना जमुना की बिरादरी का भी था, हालाँकि कुछ नीचे गोत का था और सबसे बड़ी बात यह थी कि महेसर दलाल से सारा मुहल्ला डरता था. महेसर बहुत ही झगड़ालू, घमंडी और लंपट था, तन्ना उतना ही सीधा, विनम्र और सच्चरित्र; और सारा मुहल्ला उसकी तारीफ करता था.

लेकिन जैसा पहले कहा जा चुका है कि तन्ना थोड़े नीच गोत का था, और जमुना का खानदान सारी बिरादरी में खरे और ऊँचे होने के लिए प्रख्यात था, अत: जमुना की माँ की राय नहीं पड़ी. चूँकि जमुना के पिता बैंक में साधारण क्लर्क मात्र थे और तनख्वाह से क्या आता-जाता था, तीज-त्यौहार, मूड़न-देवकाज में हर साल जमा रकम खर्च करनी पड़ती थी अत: जैसा हर मध्यम श्रेणी के कुटुंब में पिछली लड़ाई में हुआ है, बहुत जल्दी सारा जमा रुपया खर्च हो गया और शादी के लिए कानी कौड़ी नहीं बची…’

‘नमक की अदायगी’ की पूरी कहानी आप सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में पढ़ सकते हैं.

आखिर में हम केवल इतना ही कहना चाहेंगे कि भारती जी अपनी हर कहानी को सरल शब्दों के साथ इस तरह से बुनते थे कि पढ़ते-पढ़ते आप कहानी और उसके पात्रों को देखने लगते. उनकी हर कहानी में प्रेम, मित्रता, समाज की पाबंदियां, समाज की जटिल सोच इत्यादि का अनूठा संगम देखने को मिलेगा.

सूरज का सातवाँ घोड़ा कौन सा है?

'सूरज का सातवाँ घोड़ा' की रचना इन्हीं उपकरणों के सहारे होती है। इसलिये यह कृति विराट सामाजिक प्रश्नों को नज़रअंदाज कर वैयक्तिक संदर्भों से रची जाती है। इसे महाकाव्यात्मक उपन्यास की श्रेणी में न रखकर लघु उपन्यास की श्रेणी में रखा गया है। आदर्श की स्थापना के बजाय यथार्थ का उदघाटन ही इसके केन्द्र में है

सूरज का सातवाँ घोड़ा के लेखक का नाम क्या है?

धर्मवीर भारतीसूरज का सातवाँ घोड़ा / लेखकnull

सूरज का सातवाँ घोडा और गुनाहों का देवता किसकी रचना है?

गुनाहों का देवता , सूरज का सातवाँ घोडा 'धर्मवीर भारती' की रचना है

सूरज का सातवाँ घोड़ा किसका निबंध संग्रह है?

डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा रचित लघु उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' में तीन कहानियाँ हैं- एक जमुना की, दूसरी लिली की, और तीसरी सत्ती की।