रंगून किस देश की राजधानी है - rangoon kis desh kee raajadhaanee hai

रंगून कहाँ है?...


रंगून किस देश की राजधानी है - rangoon kis desh kee raajadhaanee hai

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आपका क्वेश्चन पूछा रंगून कहां स्थित है तो रंगून में हमार में स्थित है और अब इसका नाम या गुम हो चुका है अंग्रेजी पीरियड में आजाद हिंद फौज ने कहा कि यहां से मूमेंट चलाए थे तो सही जवाब है रंगून या नहीं किया हूं मैं मार में स्थित है

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रंगून किस देश की राजधानी है - rangoon kis desh kee raajadhaanee hai

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यदि आप की जानकारी में म्यांमार की राजधानी यंगून या रंगून है तो माफ़ कीजिए आप गलत हैं। म्यांमार की राजधानी है– नैप्यीडॉ; जिसे 2005 में नई राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था। पर आप कहेंगे इसमें बड़ी बात क्या है- हमें नहीं पता था अब पता लग गया।

पर मुझे इसमें बड़ी बात नज़र आती है। आपकी अनभिज्ञता इतनी मासूम नहीं है जितनी दिखती है- इसके पीछे हमारे देश की सरकार, मीडिया और खुद हम सब की सामूहिक नासमझी और निकम्मापन झलकता है। मेरी बात को बेहतर समझना है तो चलिए आप खुद एक परीक्षण करके देखिएगा जैसा मैंने कई बार किया है।

मैंने अपने दस दोस्तों से भारत के किन्ही 3 पड़ोसी देशों का नाम एक पर्ची पर लिखने को कहा। दस के दस दोस्तों ने पाकिस्तान का नाम सबसे पहले लिया पांच ने नेपाल और चीन चार मित्रों ने बांग्लादेश और श्रीलंका का नाम भी लिया। भूटान का नाम 2 बार आया। क्या कारण था कि म्यांमार या बर्मा का नाम किसी ने नहीं लिया? दूसरे शब्दों में कहूं तो बर्मा का नाम हमारे माइंड-स्पेस से बाहर क्यों हो गया है ?

अपने आपको विश्व-गुरु और विश्व-शक्ति के रूप में परिकल्पित करने वाले देश की जनता द्वारा अपने एक पड़ोसी को लगभग भूल जाना कोई शुभ संकेत नहीं है। मुझे लगता है कि हमारे देश की सरकारें और मीडिया दोनों ही पाकिस्तान को कुछ ज्यादा ही तरजीह देते है। हम पाकिस्तान के तानाशाहों से बातचीत कर सकते है पर लोकतंत्र बचाने के नाम पर बर्मा के सैनिक शासकों से दूरी बना कर रखते है। पाकिस्तान जिसका भारत के प्रति रवैया हमेशा ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुश्मनी भरा रहा है, उससे हाथ मिलाने को तो बड़ी जल्दबाजी नज़र आती है पर बर्मा को नज़रंदाज़ करते-करते अब हालत इस कद्र हो गए हैं कि बर्मा पूरी तरह चीन की झोली में बैठ गया है और बर्मा पर भारत का प्रभाव नगण्य हो गया है। यह हमारी कूटनीतिक बेवकूफी नहीं तो और क्या है?

यहां इतना ज़रूर याद करवाना चाहूंगा कि यह वही बर्मा है जो 1937 तक यानी भारत की आज़ादी के दस साल पहले तक ब्रिटिश भारत का हिस्सा था और भारत की आज़ादी के चार महीने पहले तक भारत का रिज़र्व बैंक ही बर्मा का केन्द्रीय बैंक था। भारत के इतिहास को मुग़ल इतिहास के नज़रिये से देखने और दिल्ली-केंद्रित नीतियों के चलते रहने का प्रभाव यह हुआ कि 1937 से पहले भी भारत की मुख्य राजनीतिक पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भी कभी अपना वार्षिक अधिवेशन बर्मा में नहीं किया। आज़ादी से पहले भी कांग्रेस ने बर्मा से राजनीतिक एकीकरण के लिए कोई खास कदम क्यों नहीं उठाए इस सवाल का मुझे कोई जवाब नहीं मिल सका है। 1905 के बंग-भंग को तो बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया गया पर 1937 में बर्मा को भारत से अलग करने की ब्रिटिश नीति का कोई खास विरोध नहीं हुआ। आज़ादी के साथ ही हुए बटवारे की त्रासदी को फ़िल्मों, लेखों और कहानियों के ज़रिये लोगों के सामने रखा गया है, जो ठीक भी है। पर 1937 के बर्मा को अलग करने पर जो परिवार और जनजातियां दो देशों में बांट दी गईं उनकी ग़मगीन गाथा को कोई नहीं गाता।

मेरा यह कहना कतई नहीं है कि अखंड भारत का परचम ले कर हमें बर्मा पर चढ़ाई कर देनी चाहिए पर राजनयिक स्तर पर भारत अपना जो प्रभाव बर्मा पर बना सकता है उसकी और ध्यान देना परम आवश्यक है।

बर्मा कोई छोटा देश नहीं है , यह अफगानिस्तान से थोड़ा बड़ा है और हमारे पड़ोसी देशों में चीन और पाकिस्तान के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश है। आबादी के आधार पर भी बर्मा संसार का 24वां बड़ा देश है। हैरानी की बात है कि बर्मा अभी तक सार्क संगठन का विधिवत सदस्य नहीं है जबकि अफगानिस्तान को इसमें जगह मिल चुकी है। पाकिस्तान के इतने उकसावे के बावजूद हम सार्क संगठन को बचाए रखने के लिए पाकिस्तान को सार्क से बाहर का रास्ता नहीं दिखाते फिर बेचारे बर्मा ने क्या गुनाह किया है?

बर्मा के साथ दोस्ती दोनों ही देशों के फ़ायदे का सौदा है। जहां भारत बर्मा में चिकित्सा, स्थानीय व्यापार, सड़कों, रेलवे और बिजली उत्पादन के क्षेत्र में दोहरे लाभ के प्रोजेक्ट चला सकता है वहीं भारत को अपने उत्तर-पूर्व के राज्यों से जुड़ने में बर्मा से काफी लाभ हो सकता है। यदि आज चेन्नै से मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक सड़क मार्ग से कोई सामान भिजवाना हो तो कुल ३१०० कि.मी. का यह सफ़र ६०-७० घंटे से भी ज्यादा पड़ता है जबकि यदि यंगून से इम्फाल सामान भेजना हो तो महज १२०० कि.मी. का यह सफ़र १५-१६ घंटे में तय किया जा सकता है। चेन्नै से यंगून समुद्री रास्ते से सामान भेजना और आगे सड़क मार्ग से इम्फाल या कोहिमा तक सामान भेजना काफी किफायती पड़ेगा। उत्तर पूर्व को बाकी के भारत से छोटे सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए बांग्लादेश के सामने हाथ जोड़ने के बाद भी कोई खासी प्रगति नहीं हुई है पर एक बार बर्मा का रास्ता खुलते ही जब बांग्लादेश अपना एकाधिकार खोते हुए देखेगा तो तुरंत रास्ता देने को राज़ी हो जायेगा। बर्मा और उत्तर पूर्व राज्यों के बीच स्थानीय व्यापार के बढ़ने से इस क्षेत्र का विकास द्रुत गति से हो सकेगा। हमारा सारा उत्तर पूर्व बर्मा के रस्ते रेल तथा सड़क मार्ग से सीधे -सीधे अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह से जुड़ सकेगा और व्यापार के फलने फूलने से इस क्षेत्र में अपार सम्भावनायों का जन्म होगा।

मोदी जी 8 तारीख को इम्फाल रैली करने जा रहे हैं- वहां से बर्मा दूर नहीं होगा? क्या वहां से वे बर्मा की ओर मुखातिब हो कर दोस्ती की आवाज़ लगाएंगे?

रंगून कौन सा देश का नाम था?

नेपिडॉओ ये नाम है बर्मा की नई राजधानी का. नेपिडॉओ पुरानी राजधानी रंगून (जिसे हम यंगून के नाम से भी जानते हैं) से 460 किलोमीटर उत्तर में स्थित है.

म्यांमार की पुरानी राजधानी कहाँ थी?

यह भारत एवम चीन के बीच एक रोधक राज्य का भी काम करता है। इसकी राजधानी नाएप्यीडॉ और सबसे बड़ा शहर देश की पूर्व राजधानी यांगून है, जिसका पूर्व नाम रंगून था।

बर्मा देश का पुराना नाम क्या था?

म्यन्मा अथवा ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'म्यन्मा' है। बर्मी भाषा में र का उच्चारण य किया जाता है अतः सही उच्चारण म्यन्मा है। इसका पुराना अंग्रेज़ी नाम बर्मा था जो यहाँ के सर्वाधिक मात्रा में आबाद जाति बर्मी के नाम पर रखा गया था

ना पिता किसकी राजधानी है?

६ नवम्बर २००५ को नाएप्यीडॉ को बर्मा की प्रशासनिक राजधानी घोषित किया गया। राजधानी का नाम २७ मार्च २००६ को म्यान्मार के सशस्त्र बल दिवस के दिन घोषित किया गया।