स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने -स्पष्ट करो। प्रात:कालीन आसमान काली स्लेट के समान लगता है। उस समय की सूर्य की लालिमा ऐसे लगती है जैसे काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। 1319 Views निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए- 1. इस काव्यांश में प्रात:कालीन नभ के सौंदर्य का प्रभावी चित्रण किया गया है। वह राख से लीपे हुए चौके के समान प्रतीत होता है।
उसमें ओस का गीलापन है तो क्षण- कम बदक्षणे रंग भी हैं। 172 Views ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए। ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता के लिए कवि ने उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके को राख से लीपकर पवित्र किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन उषा भी पवित्र है। आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ का प्रयोग किया है। जिस प्रकार काली सिल को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता है और वह स्वच्छ निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्ज्वलता के लिए कवि ने ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ कहा है। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीरी कांतिमान और सुंदर (उज्ज्वल) लगता है, उसी प्रकार भोर की लाली में (सूर्योदय में) आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुंदर लगती है। 4562 Views निम्नलिखित
काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए- 1. काव्यांश में प्रयुक्त उपमान 2. इस पद्यांश की दो भाषागत विशेषताएँ हैं:। 3. इन पंक्तियों में सूर्योदय की वेला के प्राकृतिक सौंदर्य की मनोहारी झलक प्रस्तुत की गई है। आकाश में क्षण- क्षण परिवर्तित होते सौंदर्य के रूप-चित्रण में कवि को सफलता प्राप्त हुई है। कभी लगता है कि नीले जल वाले सरोवर में किसी गोरी नायिका का शरीर झिलमिला रहा है। कवि की कल्पना अत्यंत नवीन है। सूर्योदय होने पर उषा का यह जादू टूटने लगता है। 265 Views दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और ......... जादू टूटता है इस उषा का अब: सूर्योदय हो रहा है। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेरबहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। यहाँ कवि प्रातःकालीन दृश्य का मनोहारी चित्रण कर रहा है। प्रातःकाल आकाश में जादू होता-सा प्रतीत होता है। जो पूर्ण सूर्योदय के पश्चात् टूट जाता है। व्याख्या: कवि सूर्योदय से पहले आकाश के सौंदर्य में पल-पल होते परिवर्तनों का सजीव अंकन करते हुए कहता है कि ऐसा लगता है कि मानो नीले जल में किसी गोरी नवयुवती का शरीर झिलमिला रहा है। नीला आकाश नीले जल के समान है और उसमे सफेद चमकता सूरज सुंदरी की गोरी देह प्रतीत होता है। हल्की हवा के प्रवाह के कारण यह प्रतिबिंब हिलता- सा प्रतीत होता है। इसके बाद उषा का जादू टूटता-सा लगने लगता है। उषा का जादू यह है कि वह अनेक रहस्यपूर्ण एवं विचित्र स्थितियाँ उत्पन करता है। कभी पुती स्लेट कभी गीला चौका, कभी शंख के समान आकाश तो कभी नीले जल में झिलमिलाती देह-ये सभी दृश्य जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय होते ही आकाश स्पष्ट हो जाता है और उसका जादू समाप्त हो जाता है। 777 Views दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें भोर का नभ, राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है।) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने। प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेरबहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसमें कवि सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक सौदंर्य का चित्र उकेरता है। इसमें पल-पल परिवर्तित होती प्रकृति का शब्द-चित्र है। व्याख्या: इस काव्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का सजीव चित्रण किया है। प्रात:कालीन आकाश गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। भोर (सूर्योदय) के समय आकाश में हल्की लालिमा बिखर गई है। आकाश की लालिमा अभी पूरी तरह छँट भी नहीं पाई है पर सूर्योदय की लालिमा फूट पड़ना चाह रही है। आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा हुआ गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। भोर का दृश्य काले और लाल रंग के अनोखे मिश्रण से भर गया है। ऐसा लगता है कि गहरी काली सिल को केसर से अभी-अभी धो दिया गया हो अथवा काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो। कवि ने सूर्योदय से पहले के आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिए बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके। राख से लीपे चौके में कालापन एवं सफेदी का मिश्रण होता है और सूर्योदय की लालिमा बिखरने से पूर्व आकाश ऐसा प्रतीत होता है। गीला चौका पवित्रता को दर्शाता है। विशेष: 1. इस काव्यांश में प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है। 2. ग्रामीण परिवेश साकार हो गया है। 3. कवि शमशेरबहादुर सिंह ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके के समान इसलिए कहा है क्योंकि सूर्योदय से पहले आकाश धुंध के कारण कुछ-कुछ मटमैला और नमी से भरा होता है। राख से लीपा हुआ गीला चौका भोर के इस प्राकृतिक रंग से अच्छा मेल खाता है। इस तरह यह आकाश लीपे हुए चौके की तरह पवित्र है। 4. कवि शमशेरबहादुर सिंह ने आकाश के रंग के बारे में ‘सिल’ का उदाहरण देते हुए कहा है कि यह आसमान ऐसे लगता है मानो मसाला आदि पीसने वाला बहुत ही काला और चपटा-सा पत्थर हो जो जरा से लाल केसर से धुल गया हो। ‘स्लेट’ का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आसमान ऐसे लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया चाक मल दी हो। सिल और स्लेट के उदाहरण के द्वारा कवि ने नीले आकाश में उषाकालीन लाल-लाल धब्बों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। 5. काली सिल पर लाल केसर पीसने से उसका रंग केसरिया हो जाता है, उसी प्रकार रात का काला आकाश उषा के आगमन के साथ लाल अथवा केसरिया रंग का दिखाई देने लगता है। 6. प्रयोगवादी शैली के अनुरूप नए बिंब, नए उपमान तथा नए प्रतीक प्रयुक्त हुए हैं। 3298 Views |