सुखिया के पिता को आसमान में जगमगाते तारे अंगारों से क्यों लग रहे थे? - sukhiya ke pita ko aasamaan mein jagamagaate taare angaaron se kyon lag rahe the?

निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए - 
सभी ओर दिखलाई दी बस,
अधंकार की ही छाया
छोटी-सी बच्ची को ग्रसने
कितना बड़ा तिमिर आया!
ऊपर विस्तृत महाकाश में
जलते-से अंगारों से,
झुलसी-सी जाती थी आँखें
जगमग जगते तारों से।


भाव पक्ष-सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई निराशा का वर्णन करता हुआ कहता है कि सुखिया की बीमारी के कारण मेरे मन में ऐसी घोर निराशा छा गई कि मुझे चारों ओर अंधेरे की ही छाया घिरी दिखाई देने लगी। मुझे लगा कि मेरी नन्हीं-सी बेटी को निगलने के लिए इतना बड़ा अंधेरा चला आ रहा छनिक प्रकार खुले आकाश से जलते हुए अंगारों के समान तारे जगमगाते रहते हैं उसी भाँति सुखिया की आँखे ज्वर के कारण जली जाती थी। वह बेहद बीमार थी।

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बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?


एक बच्ची थी सुखिया। उसे महामारी ने चपेट में ले लिया था। एक दिन उसे तेज ज्वर ने जकड़ लिया। जिसके कारण उसने मौन धारण कर लिया अर्थात् ज्वर की तीव्रता के कारण वह बेहोशी की हालत में चली गई। उसी अवस्था में वह अपने पिता से बोली मुझे माता के चरणों का एक फूल लाकर दे दो। यही उसकी अंतिम इच्छा थी।

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निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों/ बिंबों को. छाँटकर लिखिए-
उदाहरण: अंधकार की छाया
(i) .........................     (ii) ..........................
(iii) ........................      (iv)..........................
(v) .........................


(i) कितना बड़ा तिमिर आया        (ii) हुई राख की थी ढेरी        (iii) झुलसी-सी जाती थी आँखे
(iv) हाय! फूल-सी कोमल बच्ची    (v) स्वर्ण घनों मे कब रवि डूबा।

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निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?


जेल से छूटने के बाद उसने अपनी बच्ची को घर में नहीं पाया। लोगों के बताने के अनुसार वह शमशान भागते हुए गया पर वहाँ उसके सगे-सम्बन्धी पहले ही उस मृतक सुखिया का दाह-संस्कार कर चुके थे। वहाँ सुखिया की चिता बुझी पड़ी थी। उसकी फूल-सी कोमल बच्ची राख की ढेरी के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी।

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निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
इस कविता का केंद्रीय भाव शब्दों में लिखिए।


यह कविता छुआछूत की समस्या पर केन्द्रित है। एक मरणासन्न अछूत कन्या के मन में यह चाह उठती है कि कोई उसे देवी माता के चरणों में अर्पित किया हुआ एक फूल लाकर दे दे। बेटी की मनोकामना को पूरी करने के लिए मंदिर से पूजा का फूल लाने का उसके पिता ने निश्चय किया और मंदिर में जाकर देवी की पूजा और अराधना की जिससे उच्च वर्ग के लोगों को अपना और अपनी देवी का अपमान प्रतीत हुआ तथा इस अपराध में इन समाज के उच्च वर्गीय लोगों ने कन्या के पिता को सात दिन के लिए दंडित करके अपनी पुत्री के अंतिम दर्शन करने से भी दूर रखा। इस समाज में फैली छुआछूत की भावना किस प्रकार लोगों के मन में भेदभाव जगाती हैं और निर्धन वर्ग के प्रति अन्याय उत्पन्न करती है। किस तरह सुखिया के पिता को सामाजिक अन्याय का शिकार होना पड़ा। इसका वर्णन करते हुए कवि ने इस विषमता को मिटाने पर बल दिया है।

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सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?


सुखिया के पिता अछूत वर्ग के व्यक्ति थे। मंदिर जैसे पवित्र स्थानों पर उनका जाना निषेध था। अछूतों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। अछूत होकर भी सुखिया के पिता ने मन्दिर में प्रवेश पा लिया। लोगों के अनुसार उसने देवी माँ की पवित्रता नष्ट कर दी। एक प्रकार से यह देवी माँ का घोर अपमान था। इसलिए न्यायालय में आरोप लगाकर सात दिन का कारावास दे दिया।

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आसमान में जगमगाते तारे सुखिया के पिता को अंगारों से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

जगमग जगते तारों से। भाव पक्ष-सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई निराशा का वर्णन करता हुआ कहता है कि सुखिया की बीमारी के कारण मेरे मन में ऐसी घोर निराशा छा गई कि मुझे चारों ओर अंधेरे की ही छाया घिरी दिखाई देने लगी।

जगमग तारे पिता को कैसे प्रतीत हो रहे थे?

जगमग जगते तारों से। व्याख्या – कवि कहता है कि चारों ओर बस अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था जिसे देखकर ऐसा लगता था जैसे कि इतना बड़ा अंधकार उस मासूम बच्ची को निगलने चला आ रहा था। कवि कहता है कि बच्ची के पिता को ऊपर विशाल आकाश में चमकते तारे ऐसे लग रहे थे जैसे जलते हुए अंगारे हों। उनकी चमक से उसकी आँखें झुलस जाती थीं।

आकाश में तारे कैसे प्रतीत हो रहे थे?

➲ पक्षी को आकाश के तारे अनार के दाने की तरह प्रतीत होते हैं। पक्षी को आकाश के तारे अनार के दानों की तरह दिखाई पड़ते हैं और पक्षी अपनी सूरज रूपी लाल चोंच से तारों को अनार के दाने समझकर चुग लेना चाहते हैं।