जीएसटी क्या है जीएसटी की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? - jeeesatee kya hai jeeesatee kee mukhy visheshataen kya hain?

जीएसटी की विशेषताएं या विशेषता क्या है जो मुख्य और जरुरी हो 

1 .  पहले हम डायरेक्ट टैक्स के लिए हम वैट का इस्तेमाल किया जाता था किन्तु इसके स्थान पर माल और सेवाओ का इस्तेमाल किया जाता है जिसे हम जीएसटी कहते है

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2.  जीएसटी के रूम केंद्र और राज्य को टैक्स को लोगु और उसे लेने की शक्तिया है जिसमे केंद्र CGST और राज्य के द्वारा SGST केंद्र शाशित प्रदेश यानी UT मैं UTGST लागू होगा

3 .  राज्य से बहार अगर  सप्लाई की जायेगी तो  उस पर IGST को लागू होगा जिससे क्रेडिट सिस्टम को कोई नुकसान नही हो

4 . अगर आप  माल को इम्पोर्ट यानी आयात करते है तो IGST के साथ सीमा शुल्क लगाया जाता है

5. जीएसटी मैं इन को जीएसटी से बहार रखा गया है  कच्चा तेल ,पेट्रोल ,डिजल ,ATF , और प्राकतिक गैस

6. तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों पर जीएसटी के साथ केंद्रय उत्पाद शुल्क भी लिया जाता है

7. और CGST और SGST दोनों के लिए शुरुआत टैक्स फ्री सीमा 40 लाख पुरे साल मैं बिक्री होने पर रखी गयी है अगर आप कम्पोजीशन स्कीम को चुनती है तो आप बीना ITC के 1.50 करोड़ तक पुरे साल मैं बिक्री वाले करदाता को उपलब्ध होताहै

8. एक्सपोर्ट पर टैक्स फ्री है

9. इनपुट जीएसटी का टैक्स से आउटपुट जीएसटी का टैक्स को सेट ऑफ किया जाता है

10.  रिटर्न की देय तारीख automatic कंप्यूटर द्वारा होता है

11.  करदाता खुद ही निर्धारित करते है इस कर सिस्टम को

12.  इसमें करो की दर इस प्रकार है 0%, 0.25% , 3% ,5%, 12% , 18% और 28 % और राज्य अपनी पूर्ति को पूरा करने के लिए इस पर CESS भी लगाया जाता है

13.  और प्रत्येक राज्य मैं एक regulatory authority कार्यरत होता है मतलब काम करता है

14. TDS और TCS  liability भी रखा गया है 

15. जीएसटी माल और सेवा कर की अपील के लिए न्यायाधिकरण की स्थापना

16. मुनाफा खोरी के लिए एंटी PROFITEERING अथॉरिटी को बनाना

17.  और जब बिल बनाया जाता है तो उसमे टैक्स को पूरी डिटेल देना जिससे इनपुट को उसमे आधार पर क्रेडिट करना

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GST, के नाम से तो आप परिचित हो ही गए होंगे। लेकिन, बहुत सारे लोगों को इसका Concept आसानी से समझ नहीं आता। इस लेख में हमने, जीएसटी के बारे में एक सामान्य व्यक्ति के सवालों के उत्तर दिए हैं। जैसे कि जीएसटी क्या है? इसकी विशेषताएं और महत्व क्या हैं? रजिस्ट्रेशन कैसे होता है? कौन-कौन से रिटर्न होते हैं, जीएसटी काउंसिल क्या होती है? वगैरह-वगैरह। अंत में, हम संक्षेप में, ​जीएसटी का इतिहास भी दिया है। इस लेख की पीडीएफ कापी कैसे मिलेगी हमने आगे उसका तरीका बताया है।  

भारत सरकार ने, जुलाई 2017 के पहले तक, भारतीय कारोबार जगत में, मौजूद तमाम तरह के 2 दर्जन से अधिक टैक्सों को हटाकर, उनकी जगह पर सिर्फ एक टैक्स GST शुरू किया है। (खत्म किए गए टैक्सों के नाम और उनके संक्षिप्त परिचय हमने इसी लेख में आगे दिए हैं।)

पूरा लेख एक नजर में

  • जीएसटी क्या है? What is GST
  • जीएसटी में शामिल किए गए पुराने टैक्सEarlier indirect taxes merged in GST
  • जीएसटी की वि​भिन्न दरें | GST Rates
  • इनपुट क्रेडिट सिस्टम | Input tax credit system
  • GST भुगतान का उदाहरण
  • जीएसटी रजिस्ट्रेशन | GST Registration
  • जीएसटी रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता वाले कारोबार
  • जीएसटी कंपोजिशन स्कीम
  • जीएसटी के रिटर्न
  • HSN और SAC कोड
  • E-Envoicing
  • EWAY bill
  • लेख की PDF Copy पाने का तरीका

जीएसटी क्या है? What is GST

जीएसटी का फुल फॉर्म होता है-Goods and Services tax (GST)।जिसका, हिंदी में मतलब होता है-माल एवं सेवा कर। इसके फुल फॉर्म में शामिल शब्दों से आप GST का मतलब भी समझ सकते हैं। यानी कि, जीएसटी का अर्थ होगा- सामान (goods) और सेवाओं (services) की सप्लाई पर लगने वाला टैक्स।

  • यहां माल या वस्तुओं (Goods) का मतलब तो स्पष्ट ही है। कोई सामान या पदार्थ, जैसे कि अनाज, मसाले, तेल, कुर्सी, फ्रिज, उपकरण वगैरह।
  • सेवा (Service) से मतलब, ऐसे कामों से है, जिनको कराने के बदले पैसों का भुगतान करना होता है। जैसे डॉक्टरी, बैंकिंग, वकालत, अकाउंटेंसी, ट्रांसपोर्ट वगैरह। 

जीएसटी में, सप्लाई (Supply) के तहत बिक्री (sale) या खरीद (purchase) दोनों आते हैं। जिन मामलों में किसी वस्तु या सेवा की बिक्री की जाती है, उसे GST में Outward Supply कहा गया है। इसी प्रकार, जिन मामलों में किसी वस्तु या सेवा की खरीद की जाती है, उसे GST में Inward Supply कहते हैं।

इस प्रकार जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है। यह Domestic Trades (देश की सीमाओं के भीतर होने वाले कारोबार) पर लगता है। वस्तुओं (goods) और सेवाओं (services) दोनों के कारोबारों पर। यह अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) की श्रेणी में, इसलिए आता है, क्योंकि, उपभोक्ता (Consumers) इसे सीधे सरकार को नहीं चुकाते, बल्कि वस्तु या सेवा के दाम के साथ, कारोबारी को चुकाते हैं और बाद में, कारोबारी सरकार के खाते में जमा कर देता है। 

जीएसटी क्या है जीएसटी की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? - jeeesatee kya hai jeeesatee kee mukhy visheshataen kya hain?

जीएसटिन नंबर

GST पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने वाले कारोबारियों को एक 15 अंकों का रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जाता है। इसे GST identification number (GSTIN) या GST number कहते हैं। यह 15 अंकों का PAN आधारित यूनिक नंबर होता है। यानी कि हर जीएसटी नंबर के अंदर, कारोबारी का 10 अंकों का पैन नंबर भी शामिल रहता है।

किसी 15 अंक के GSTIN नंबर में निम्नलिखित तथ्य शामिल होते हैं—

  • पहले 2 अंक: कारोबारी से संबंधित राज्य की कोड संख्या
  • अगले 10 अंक: कारोबारी का 10 कैरेक्टर वाला पैन नंबर
  • 13वां अंक: उस पैन नंबर से जुडी कंपनी या प्रतिष्ठान की क्रम संख्या, जैसे पहली कंपनी के लिए 1, दूसरी कंपनी के लिए 2
  • 14 वां अंक: ये हमेशा Z अक्षर ही रहता है।
  • 15वां अंक: आपके जीएसटी नंबर में शामिल सभी तथ्यों का विश्लेषण करके कंप्यूटर अपने आप एक अक्षर या संख्या (Check Sum Digit) देता है।

जीएसटी पोर्टल पर लॉगिन करने के लिए जीएसटिन नंबर की जरूरत होती है। किसी कारोबारी की जीएसटी संबंधी सारी प्रक्रियाएं, (E-Invoicing, जीएसटी भुगतान, जीएसटी रिटर्न दाखिल करना, रिफंड क्लेम करना वगैरह) उसके GSTIN नंबर के आधार पर होती हैं।

जीएसटी नेटवर्क (GSTN) और GST Portal 

जीएसटी से संबंधित सारी गतिविधियों के Online संचालन के लिए सरकार ने Goods and Services Network बनाया है। इसे संक्षेप में, GSTN कहा जाता है। GST की इंटरनेट आधारित सभी सेवाएं इसी नेटवर्क की ओर से संचालित की जाती हैं। इस जीएसटी नेटवर्क से कारोबारियों को जोड़ने के लिए GST Portal बनाया गया है।

जीएसटी रजिस्ट्रेशन से लेकर, E-Invoicing, जीएसटी भुगतान और जीएसटी रिटर्न दाखिल करने वगैरह के सभी काम GST Portal  के माध्यम से ही निपटाए जाते हैं। जीएसटी पोर्टल के, कम्प्यूटर तकनीक (IT system) से जुडे़ सारे मामले, GSTN ही संभालता या संचालित करता है। इसी पोर्टल के माध्यम से भारत सरकार, तमाम कारोबारी सौदों और उनसे जुड़े वित्तीय लेन-देन की निगरानी (track) करती है। 

जीएसटी के महत्व और फायदे

भारत में वस्तुओं और सेवाओं के कारोबार पर लगने वाले तमाम टैक्सों को खत्म करके, उनकी जगह पर सिर्फ एक टैक्स (Single Tax) के रूप में GST लागू किया गया है। इसके मुख्य उद्देश्य/फायदे निम्नलिखित हैं—

  • करदाताओं और सरकार को सहूलियत: कारोबारियों को अलग-अलग स्टेज पर लगने वाले विभिन्र करों के मकड़जाल से छुटकारा दिया गया है। सरकार को भी अलग-अलग कई टैक्स विभागों का संचालन नहीं करना पड़ता। इससे टैक्स मैनेजमेंट में सहूलियत हुई है।
  • टैक्सों के दोहराव से बचाव, कीमत पर लगाम: कई टैक्सों या शुल्कों से होकर गुजरने के कारण, कई बार अनावश्यक टैक्स दोहराव (cascading) भी हो जाता था। इससे, उस वस्तु के दाम अनावश्यक रूप से ज्यादा हो जाते थे। जीएसटी में इस समस्या को खत्म करने की कोशिश की गई है।
  • टैक्स चोरी पर लगाम और राजस्व में बढ़ोतरी: पूरा टैक्स सिस्टम Online होने से पारदर्शिता बढे़गी और हेरा-फेरी की गुंजाइश कम होगी। टैक्स चोरी कम होने से, सरकार की आमदनी बढे़गी, जिससे विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद मिलेगी।
  • आर्थिक गतिविधियों में तेजी व देश का विकास: उत्पादन से लेकर अंतिम बिक्री तक, अलग-अलग तरह के टैक्सों की वसूली खत्म होने से माल ट्रांसपोर्टेशन में समय की बचत होगी और, कारोबारी गतिविधियां तेज होंगी। इससे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का विकास भी तेज होगा।

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जीएसटी में शामिल किए गए पुराने टैक्सEarlier indirect taxes merged in GST

GST से पहले, कई टैक्स ऐसे थे, जिन्हें केंद्र सरकार की ओर से वसूला जाता था और कई टैक्स ऐसे थे, जिन्हें राज्य सरकारों की ओर से वसूला जाता था। यहां, हम उन सभी टैक्सों के नाम दे रहे हैं, जिन्हें जीएसटी में​ मिला दिया गया है—

जीएसटी में मिलाए गए केंद्रीय करों के नाम

  • Central Excise Duty (केंद्रीय उत्पाद शुल्क): – भारत में वस्तुओं के उत्पादन पर यह टैक्स लगाया जाता था। Central Board of Excise and Customs (केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड) की ओर से इसे वसूला जाता था।
  • Additional Excise Duties (अतिरिक्त उत्पाद शुल्क):  कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन पर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty) के अलावा, अलग से अतिरिक्त उत्पाद शुल्क भी लगता था। उन्हें भी हटाकर जीएसटी में मिला दिया गया है। इनके नाम हैं—
    • Additional Duties of Excise (Medicinal and Toilet Preparations):  चिकित्सा एवं टॉयलेट संबंधी पदार्थों के उत्पादन पर लगने वाला अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, जैसे कि अल्कोहल, क्रूड कोकीन, मेडिसनल अफीम वगैरह।
    • Additional Duties of Excise (Goods of Special Importance) :  रॉ शुगर, केन शुगर, तंबाकू, सिगरेट, शर्टिंग फैब्रिक्स, विमेन फैब्रिक्स जैसी स्पेशल महत्व वाली वस्तुओं पर लगने वाला अतिरिक्त उत्पाद शुल्क।
    • Additional Duties of Excise (Textiles and Textile Products): Wool, Cotton, बुने हुए ​फैब्रिक्स, मानव नि​​र्मित स्टेपल फाइबर्स, एंब्रायडरी वगैरह पर लगने वाला अतिरिक्त उत्पाद शुल्क।
  • Service Tax (सेवा कर): कुछ ऐसी सेवाएं चिह्नित की गई थीं, जिनको इस्तेमाल में लेने वाले को Service Tax चुकाना पडता था। जैसे कि, होटल रूम सर्विस, बैंकिंग, बीमा, एडवर्टाइजिंग, ट्रांसपोर्ट, एयर ट्रैवल एजेंट, सिक्योरिटी एजेंसी, क्लब, एसोसिएशन्स वगैरह। साल भर में 10 लाख रुपए से अधिक की कीमत की सेवाएं देने वालों पर, यह टैक्स लगता था।
  • Additional Customs Duty -CVD (अतिरिक्त सीमा शुल्क)): विदेश से मंगाई जाने वाले सामानों पर यह अतिरिक्त कस्टम शुल्क लगाया जाता था। ताकि उनका दाम, देश में बने सामानों के आसपास रहे। और, प्रतिस्पर्धा में, घरेलू उद्योगों को, नुकसान न हो। (ध्यान दें: anti-dumping duty और safeguarding duty इससे अलग होते हैं)
  • Special Additional Duty of Customs –(SAD-विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क)ः दूसरे देशों से आने वाली कुछ वस्तुओं पर 4% विशेष अतिरिक्त शुल्क (Special Additional Duty— SAD) अलग से लगाया जाता था। दरअसल,  अपने देश में बनने वाली वस्तुओं पर Sales Tax और Value Added Tax (VAT) लगते थे। उन्हीं को  बैलेंस करने के लिए बाहरी वस्तुओं पर SAD लगाया जाता था।
  • Central Surcharges and Cess (केंद्रीय सरचार्ज और सेस):  बहुत ज्यादा आमदनी (high income slabs) वाले लोगों और कंपनियों पर, उनके इनकम टैक्स की मात्रा के हिसाब से कुछ अतिरिक्त टैक्स (Surcharge) भी लगाया जाता था। इसी तरह, किसी विशेष उद्देश्यों के लिए सरकारें Cess लगाती थीं।  कई Surcharges और Cess को जीएसटी में मिला दिया गया है।
जीएसटी क्या है जीएसटी की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? - jeeesatee kya hai jeeesatee kee mukhy visheshataen kya hain?

जीएसटी में मिलाए गए राज्यों वाले करों के नाम

  1. VAT (Value Added Tax): वस्तुओं और सेवाओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले उत्पादन और बिक्री के कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। हर स्टेज में, उसके मूल्य में बढोतरी हो जाती है। ऐसी हर मूल्यवृद्धि पर Value Added Tax (VAT) लगाया जाता था। राज्य सरकारें इसे अपने हिसाब से लगाती थीं और वसूल करती थीं। सालाना, 5 लाख रुपए या इससे अधिक टर्नओवर वाले व्यवसा​इयों को VAT में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य था।
  2.  CST (Central Sales Tax): ,दो राज्यों के बीच व्यापार (inter-state trade) की स्थिति में, यह टैक्स लगता था। इसे उस राज्य की ओर से वसूला जाता था, जिस राज्य में संबंधित वस्तु या सेवा की बिक्री होती थी, लेकिन, जमा केंद्र सरकार के पास करना पडता था।
  3. Octroi & Entry Tax: इन दोनों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है—
    1. Octroi Tax: किसी शहर में, नगरनिगम की सीमा में बिक्री के लिए लाए गए सामान पर Octroi Tax लगाया जाता था। इसे स्थानीय स्तर पर, नगर निगम या नगर पालिका की ओर से लगाया और वसूला जाता था।
    2. Entry Tax कोई राज्य अपने यहां, किसी दूसरे राज्य से आने वाले सामान और वस्तुओं पर Entry tax लगा सकते थे। लेकिन, सिर्फ ऐसे सामान पर, जिसका उस राज्य में उपभोग (consumption) या वितरण (distribution) हो।
  4. Purchase Tax (क्रय कर) – राज्य सरकार की ओर से सामान की खरीदारी पर Purchase tax (क्रय कर) लगता था। इसे भी अब जीएसटी में मिला ​दिया गया है।
  5.  Luxury Tax (विलासिता कर) – अत्यंत महंगे और सामान्य लोगों की पहुंच से दूर की वस्तुओं की खरीद और उपभोग पर विलासिता कर (Luxury Tax) लगता था।
  6.  Taxes on lottery, betting and gambling – लॉटरी, जुआं (Gambling) और सट्टे (Betting) वगैरह में जीती रकम पर, टैक्स लगता ​था। इसे अब GST का हिस्सा बना दिया गया है।
  7. Entertainment Tax – फिल्म टिकट, खेल प्रतियोगिताओं, संगीत समारोह, प्रदर्शनी वगैरह पर राज्य सरकारों की ओर से लगने वाले मनोरंजन टैक्स को भी अब GST का हिस्सा बना दिया गया है।

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जीएसटी की वि​भिन्न दरें | GST Rates

वस्तुओं और सेवाओं के सामाजिक महत्व (Social importance) के हिसाब से उन पर अलग-अलग GST Rate तय किया गया है। किसी एक तरह के सामान या सेवा पर जीएसटी का रेट पूरे देश में एक (single rate) ही होगा। आवश्यकता पड़ने पर सरकार इन दरों को बदल भी सकती है, या फिर किसी वस्तु को दूसरे GST रेट वाले स्लैब में भी डाल सकती है।

विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर GST की दरें इस प्रकार हैं—

  • 0% जीएसटी: जीवन के लिए, अत्यंत अनिवार्य वस्तुओं पर:  जैसे कि, सब्जियां व फल, नमक, मैदा, दूध, दही, अंडा, मैदा, झाडू, बच्चों की पुस्तकें, न्यूज पेपर वगैरह।
  • 5% जीएसटी: सामान्य अनिवार्यता वाली वस्तुओं पर: जैसे कि, चीनी, चाय, कॉफी, दूध पाउडर, खाद्य तेल, कोयला, दरी, चटाई, जीवनरक्षक दवाएं वगैरह।
  • 12% जीएसटी: घरेलू इस्तेमाल वाली वस्तुओं पर: जैसे कि, घी, मक्खन, बादाम, फ्रूट जूस, जैम, जेली, मोबाइल, कंम्प्यूटर वगैरह।
  • 18% जीएसटी: सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर, जैसे कि हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, साबुन, और इंडस्ट्रियल इंटरमीडियरीज।
  • 28% जीएसटी विलासी व गैर जरूरी वस्तुओं पर: विलासी व हानिकारक प्रभाव वाली वस्तुएं:  जैसे कि सिगरेट, रेफ्रिजरेटर, सिरेमिक टाइल्स, कार, मोटरसाइकिल वगैरह।

जीएसटी से बाहर रखे गए आइटम्स

कुछ वस्तुओं और सेवाओं को अभी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। उन पर पहले की तरह लागू टैक्स लागू रहेंगे।

  • शराब (Alcohol for human consumption): उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए बनने वाली शराब पर टैक्स लगाने और वसूल करने का अधिकार, राज्यों के पास ही रहने दिया गया।
  • पेट्रोलियम (Petroleum products): पांच पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। ये हैं- कच्चा तेल (crude oil) डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और Aviation Turbine Fuel (ATF)। इन पर पहले की तरह ही उत्पाद शुल्क (Excise Duty) लगता रहेगा।
  • तंबाकू (Tobacco Products): तंबाकू उत्पादों पर GST भी लगेगा और केंद्र सरकार के पास इन पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (additional excise duty) लगाने का अधिकार भी बना रहेगा।
  • मनोरंजन (Entertainment): सिनेमा और अन्य मनोरंजक गतिविधियों पर जो मनोरंजन कर,  स्थानीय निकायों (नगर निगम, नगर पालिका वगैरह) की ओर से लगता था उसे राज्यों के पास बना रहने दिया गया है।.

जीएसटी के 4 प्रकार

भारत में दोहरे जीएसटी सिस्टम (Dual GST) को अपनाया गया है। वस्तुओं और सेवाओं की सप्लाई पर GST टैक्स,केंद्र और राज्य अलग-अलग वसूलते हैं। हालांकि राज्य और केंद्र, दोनों के जीएसटी का रेट एक समान होता है और दोनों का भुगतान भी एक साथ करना पड़ता है।जीएसटी टैक्स, कुल चार नामों से वसूला जाता है—

  • CGST: किसी राज्य के भीतर ही होने वाले सौदों पर केंद्र सरकार की ओर से वसूला जाने वाला जीएसटी टैक्स।
  • SGST: किसी राज्य के भीतर ही होने वाले सौदों पर, उस राज्य सरकार की ओर से वसूला जाने वाला जीएसटी टैक्स।
  • UGST: किसी केंद्रशासित राज्य के भीतर ही होने वाले सौदों पर, उस केंद्रशासित राज्य सरकार की ओर से वसूला जाने वाला जीएसटी टैक्स।
  • IGST: दो अलग-अलग राज्यों के व्यवसायों के बीच होने वाले सौदों पर, केंद्र सरकार की ओर से वसूला जाने वाला टैक्स। इसे बाद में केंद्र और खरीदार राज्य के बीच बराबर-बराबर बांट दिया जाता है।

इनपुट क्रेडिट सिस्टम | Input tax credit system

जीएसटी के नियम के हिसाब से हर खरीद-बिक्री में GST जरूर जुड़ेगा। इसलिए अगर कोई काराबारी भी कोई कच्चा माल या थोक में सामान खरीदता है तो उसे कीमत के साथ GST भी  देनी पड़ती है। इतना ही नहीं जब उसी सामान को वो फुटकर में बेचता है। या फिर कोई माल बनाकर बेचता है तो वो भी GST लगाने के बाद ही सामान बेच पाता है। इस तरह से एक ही माल पर दो बार GST लग जाता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। 

इसी दोहराव से बचने के लिए Input tax credit का सिस्टम अपनाया गया है। इसमें जब कोई कारोबारी माल खरीदते समय जो GST चुकाता है वो उसके ऑनलाइन जीएसटी खाते (GST Ledgers) में क्रेडिट हो जाता है। इसके बाद जब वो माल बेचता है तो उसे पूरा का पूरा GST जमा करने की जरूरत नहीं होती है। बल्कि जो GST उसके अकाउंट में क्रेडिट होगा उसे घटाने के बाद जितना टैक्स बचेगा उसे ही जमा करना होगा।

इस तरह से कारोबारी माल के पूरे कीमत पर GST नहीं भरता है बल्कि लागत घटाने के बाद जो रकम आती है सिर्फ उस पर ही GST भरता है। इस सिस्टम में सिर्फ आखिरी ग्राहक ही माल की पूरी कीमत पर GST भरता है। 

जैसे कि—

  • किसी कारोबारी ने अपनी किसी खरीद पर 300 रुपए GST चुकता किया है। इसके बदले में उसे 300 रुपए के बराबर Tax credit मिल जाएंगे।
  • अब मान लेते हैं कि उसे अपनी किसी बिक्री पर 500 रुपए GST चुकाना है।
  • कारोबारी इन 500 रुपए, में से 300 रुपए अपने Tax Credits से चुका सकेगा। सिर्फ बाकी के 200 रुपए उसे अलग से भुगतान करनें होंगे।

यहां इनपुट क्रेडिट के इस्तेमाल में कुछ शर्तों का पालन अ​निवार्य होता है—

  • CGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, सिर्फ CGST और IGST चुकाने के लिए किया जा सकता है। SGST चुकाने के लिए नहीं।
  • SGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, सिर्फ SGST और IGST चुकाने के लिए किया जा सकता है। CGST चुकाने के लिए नहीं।
  • IGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, CGST और SGST, दोनों के भुगतान के लिए कर सकते हैं।

जीएसटी के पहले, बहुत से टैक्स भुगतानों के बदले Input Credit की सुविधा नहीं मिलती थी। central sales tax, entry tax, luxury tax वगैरह चुकाने के बदले टैक्स भुगतान में किसी तरह की राहत नहीं थी। इसी तरह, service providers और manufacturers भी, अपनी खरीदारियों पर excise duty या service tax के बदले किसी तरह के प्वाइंट या राहत नहीं पाते थे।

विस्तार से जानें: इनपुट टैक्स क्रेडिट क्या है? कैसे क्लेम करते हैं

GST भुगतान का उदाहरण

मान लेते हैं कि, एक कंपनी, पॉलि​थीन बैग बनाती है। इसके लिए वह  raw materials (बनाने की सामग्री) मंगाती है। पॉलीथीन बैग्स पर 12% GST लागू है।

मान लिया कि कंपनी को एक पैकेट पॉलीबैग्स के  raw materials खरीदने के लिए 50 रुपए चुकाने पड़ते हैं। इसमें 12% GST भी शामिल था। यानी कि उसे एक पैकेट पॉलीबैग्स के raw materials पर 6 रुपए GST के रूप में चुकाने पडे़ हैं।

पॉलीबैग्स का पैकेट बनाने के बाद वह कंपनी हर पैकेट को 70 रुपए में बेचती है। इस पर वह होलसेलर से 12% GST (8.40 रुपए) वसूलेगी वसूलेगी। यानी कि हर पैकेट के लिए कुल 78.40 रुपए।

कंपनी ने जो 8.40 रुपए रुपए जीएसटी के रूप में वसूले है, उसमें से सिर्फ 2.40 रुपए ही सरकार के पास जमा करना होगा। क्योंकि, उसने 6 रुपए जीएसटी, पहले ही कच्चे माल के साथ भुगतान कर दिए हैं।  उस 6 रुपए भुगतान के बदले, उसे Tax Credits मिले होते हैं, जिन्हें वह GST भुगतान के लिए इस्तेमाल कर लेगा।

अब मान लिया कि होलसेलर, आगे जाकर दुकानदार को 90 रुपए में वह पॉलीबैग्स पैकेट बेचता है। तो वह भी 12% जीएसटी, यानी कि 10.80 रुपए GST वसूलेगा। लेकिन, होलसेलर जब सरकार को GST का भुगतान करेगा तो उसे सिर्फ 2.40 रुपए (10.08-8.40) अलग से चुकाने होंगे। बाकी के 8.40 रुपए वह पहले ही जमा कर चुका है। जिसके बदले में मिले Tax Credits का इस्तेमाल वह अपना GST चुकाने में कर सकेगा।

अब दुकानदार ने वह पॉलीबैग्स पैकेट ग्राहक को 120 रुपए में बेचा। तो वह भी ग्राहक से 12%, यानी कि 14.40 रुपए GST वसूलेगा। लेकिन दुकानदार जब सरकार के पास इसे जमा करेगा तो सिर्फ 3.6 रुपए (14.40-10.8)अलग से चुकाएगा। बाकी के 10.8 रुपए वह पहले ही जीएसटी भुगतान कर चुका है। उसके बदले में मिले Tax क्रेडिट का इस्तेमाल, जीएसटी भुगतान (इनपुट क्रेडिट) के लिए कर सकेगा।

जीएसटी रजिस्ट्रेशन | GST Registration

जीएसटी पोर्टल पर आनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा मौजूद है। और अब तो आधार नंबर के आधार पर सिर्फ 3 दिन में रजिस्ट्रेशन पाने की सुविधा सरकार ने शुरू कर दी है। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो भारत में निम्नलिखित प्रकार की कारोबारी गतिविधियां संचालित करता है, जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करा सकता है—

  • दुकानदार/बिजनेसमैन: जैसे कि, प्रोपराइटर डीलर, सप्लायर्स, ट्रेडर्स
  • सर्विस प्रोवाडर: जैसे कि, कंटेंट राइटर्स, ट्रांसपोर्टर, सिक्योरिटी एजेंसीज
  • कंपनी: जैसे कि प्राइवेट लिमिटेड, पार्टनरशिप फर्म, इंडिविजुअल

कितने टर्नओवर पर, GST रजिस्ट्रेशन अनिवार्य

सरकार ने सामान और सेवाओं से जुडे कारोबारियों को जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने की अनिवार्यता तय करने की अलग-अलग शर्तें तय की हैं। इस संबंध में नियम इस प्रकार हैं—

वस्तुओं के कारोबार के लिए: वस्तुओं के मामले में, 40 लाख रुपए से अधिक सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। उत्तर पूर्व के राज्यों, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कारोबारियों के लिए 10 लाख रुपए टर्नओवर पर ही रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।

सेवाओं के कारोबार के लिए: Service sector में काम कर रहे कारोबारियों या कंपनियों के लिए, जीएसटी में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर की लिमिट 20 लाख रुपए रखी गई है। स्पेशल कैटेगरी वाले राज्यों के लिए यह लिमिट 10 लाख रुपए है।  स्पेशल कैटेगरी वाले राज्यों के नाम नीचे दिए गए हैं।

जीएसटी कानून के तहत, विशेष दर्जे वाले राज्य

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. जम्मू एवं कश्मीर
  4. मणिपुर
  5. मेघालय
  6. मिजोरम
  7. नागालैंड
  8. सिक्किम
  9. त्रिपुरा
  10. हिमाचल प्रदेश
  11. उत्तराखण्ड

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जीएसटी रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता वाले कारोबार

इसके अलावा, कुछ ऐसे कारोबार भी हैं, जिन्हें हर हाल में जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। भले ही उनका टर्नओवर कितना ही कम हो। इनके नाम हैं—

  • Casual taxable person: ऐसे कारोबारी,  जिनका स्थायी पता किसी और राज्य में रहता है और वे किसी अन्य राज्य में अस्थायी रूप से कारोबार करते हैं। जिनका किसी फिक्स जगह पर आफिस, फैक्टरी या अस्थायी पता नहीं होता, उन्हें Casual taxable person कहते हैं। उन्हें, टैक्सेबल टेरेटरी में व्यापार करने के लिए जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। इन्हें एक बार में 90 दिनों के लिए रजिस्ट्रेशन मिलता है, जिसे आगे भी बढाया जा सकता है।
  • Non-Resident taxable person: किसी दूसरे देश का ऐसा कारोबारी, जिसका भारत में कोई स्थायी पता-ठिकाना नहीं होता और वह अस्थायी रूप में भारत में कारोबार करता है, तो उसे जीएसटी में non-resident taxable person के रूप में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य होता है।
  • Agents of a supplier: किसी कंपनी या कारोबारी की तरफ से, कमीशन एजेंट, ब्रोकर, आढ़तिया वगैरह के रूप में, बिक्री या खरीद करने वालें को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
  • Input service distributor: ऐसी कंपनी या कारोबारी, जो माल खरीदारी किसी एक मुख्य कार्यालय से करते हैं और फिर उन्हें कई बिक्री केंद्रों के माध्यम से बेचते हैं, उन्हें जीएसटी में, Input Service Distributors कहा जाता है। क्योंकि अपनी खरीदारियों पर चुकाए गए जीएसटी के बदले में, जो टैक्स क्रेडिट इन्हें मिलता है, उसे ये अपने बिक्री केंद्रों को जीएसटी चुकाने के लिए दे सकते हैं। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
  • E-commerce aggregator: आनलाइन शॉपिंग या सर्विस देने वाली कंपनियां, जैसे कि अमेजन, फ्लिपकार्ट, बिग बास्केट वगैरह। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
  • Supplier via e-commerce aggregator: ईकॉमर्स कंपनियों के माध्यम से अपना माल बेचने वाले कारोबारी। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
  • Reverse GST mechanism: जीएसटी के तहत टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी, सामान्यत: माल बेचने वाले की होती है। लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां भी तय की गई हैं, जिनमें जीएसटी वसूलने की जिम्मेदारी माल खरीदने वाले की होगी। इस उल्टे सिस्टम को  Reverse GST machanism का नाम दिया गया है। इस सिस्टम, वालों को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
  • OIDAR service providers:बाहरी देशों की ऐसी कंपनियां, जो , भारत के गैर जीएसटी रजिस्टर्ड लोगों को, इंटरनेट आधारित सेवाएं देती हैं। जैसे कि HotStar, Netflix, वगैरह। उन्हें Online Information and Database Access or Retrieval (OIDAR) service providers कहा जाता है। इन्हें भी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।

जीएसटी कंपोजिशन स्कीम

छोटे कारोबारियों को बार-बार रिटर्न दाखिल करने से मुक्त रखने के लिए और रसीदें इकट्ठा करने के झंझट से बचाने के लिए जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम अपनाने का विकल्प दिया गया है।  

फिलहाल (January 2021) 1.5 करोड रुपए तक सालाना टर्नओवर वाले कर्मचारियों को Composition scheme अपनाने की छूट है। उत्तर-पूर्व के विशेष दर्जे वाले राज्यों और हिमाचल प्रदेश के कारोबारियों के लिए कंपोजिशन स्कीम अपनाने के लिए टर्नओवर लिमिट 75 लाख रखी गई है।

इसमें उन्हें अपने टर्नओवर पर एक फिक्स रेट से जीएसटी चुकाने की सहूलियत दी गई है। ये​ फिक्स रेट, उनके कारोबार की कैटेगरी पर निर्भर करता है—

  • वस्तुओं के उत्पादक और व्यापारियों के लिए— 1% GST (0.5%CGST+0.5%SGST)
  • रेस्टोरेंट (शराब रहित) कारोबारियों के लिए— 5% GST (2.5 %CGST+2.5%SGST)
  • सर्विस सेक्टर के कारोबारियों के लिए— 6% GST (3 %CGST+3%SGST)

इन्हें बार-बार जीएसटी रिटर्न नहीं भरना पड़ेगा और कोई रसीद नहीं जमा करनी होगी। बस, हर तिमाही में एक रिटर्न ( CMP-08 ) दाखिल करेंगे जिसमें पूरे तीन महीने के कारोबार का एकमुश्त हिसाब देना पड़ेगा। और फिर साल के अंत में सालाना रिटर्न (GSTR-9A ) दाखिल करना है।

लेकिन, इन्हें अपनी खरीदारियों पर चुकाए गए जीएसटी के बदले input tax credit नहीं मिलते। ये राज्य के बाहर अपना माल नहीं भेज या बेच सकते।

निम्नलिखित कैटेगरी के कारोबारी, कंपोजिशन स्कीम नहीं अपना सकते—

  • —दूसरे राज्यों को माल सप्लाई करने वाले (Inter state suppliers)
  • —ई-कॉमर्स ऑपरेटर्स के माध्यम से माल सप्लाई करने वाले
  • —तंबाकू, पान मसाला और आइसक्रीम का उत्पादन करने वाले
  • —Casual Taxable Person या Non Resident taxable person की कैटेगरी में आने वाले

जीएसटी के रिटर्न

जीएसटी में रजिस्ट्रेशन और कारोबार की भिन्नता के अनुसार, अलग-अलग तरह के रिटर्न भरने का नियम है। कब कौन सा रिटर्न भरना है, इसकी संक्षेप में जानकारी नीचे दे रहे हैं

फॉर्म GSTR-1

सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: वस्तुओं या सेवाओं के कारोबार में, सभी बिक्रियों (Sales/outward supplies) का लेखा-जोखा, इस रिटर्न फॉर्म (GSTR 1) में भरकर सरकार के पास जमा करना पड़ता है। कंपोजिशन स्कीम अपनाने वाले कारोबारियों को छोड़कर, जीएसटी में रजिस्टर्ड सभी कारोबारियों को यह रिटर्न भरना पड़ता है। पिछले वर्ष के सालाना टर्नओवर के हिसाब से इसे जमा करने की अलग अलग समय सीमा होती है। जैसे कि—

  • तिमाही रिटर्न: 1.5 करोड रुपए से कम टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर तिमाही की बिक्री का लेखा जोखा, रिटर्न फॉर्म जीएसटीआर 1 में भरकर जमा करना पड़ता है। कोई तिमाही बीतने के तुरंत बाद वाले महीने की अंतिम तारीख तक इसे जमा करना पडता है।
  • मासिक रिटर्न: 1.5 करोड रुपए से अधिक, टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर महीने की बिक्री का लेखा जोखा, रिटर्न फॉर्म जीएसटीआर 1 में भरकर जमा करना पड़ता है। कोई महीना बीतने के तुरंत बाद वाले महीने की 11 तारीख तक इसे जमा करना पड़ता है।

फॉर्म GSTR-2: (फिलहाल स्थगित)

सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: हर महीने की खरीदारियों (Purchases/inward supplies) का लेखा-जोखा, जीएसटीआर 2 में भरकर जमा करना होता है। कारोबारियों की समस्या को देखते हुए, फिलहाल, सरकार ने इस फॉर्म को स्थगित कर रखा है।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के तुरंत बाद वाले महीने की 15 तारीख तक। 

फॉर्म GSTR-3 (फिलहाल स्थगित)

सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: GSTR-1 में दिए गए बिक्रियों के लेखा-जोखा, और GSTR-2 में दिए गए खरीदारियों के लेखा-जोखा को सम्मिलित डीटेल, GSTR- 3 में देने का नियम था। कारोबारियों की समस्या को देखते हुए, फिलहाल, सरकार ने इस फॉर्म को भी स्थगित कर रखा है।

अंतिम तिथि:  कारोबारी महीने के तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक। 

फॉर्म GSTR-3B

शुरुआती स्टेज पर जीएसटी-1, जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 की जटिलताओं को देखते हुए सरकार, एक सिंपल फॉर्म जीएसटीआर 3-बी भरने की छूट दी है। इसमें, हर महीने की बिक्रियों और खरीदारियों का मोटा-मोटा ब्योरा (summary) देना पड़ता है।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक।

फॉर्म CMP-08 (शुरुआती नाम GSTR-4) 

कंपोजिशन स्कीम वालों के लिए: जीएसटी के तहत, जिन कारोबारियों ने कंपोजिशन स्कीम ले रखी है, उन्हें हर तिमाही के बाद यह रिटर्न फॉर्म CMP-08 भरना पड़ता है। इसमें तिमाही के दौरान हुए कारोबार का ब्योरा देना पड़ता है। ​पहले इस फॉर्म का नाम GSTR-4 था, जिसे बदलकर CMP-09 कर दिया गया है।

अंतिम तिथि: हर तिमाही तुरंत बाद वाले महीने की 18 तारीख तक। 

फॉर्म GSTR-5 

Non-resident taxable person: इस श्रेणी में आने वाले कारोबारों का परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। उन्हें, अपने हर महीने के कारोबार का लेखा-जोखा, रिटर्न फॉर्म GSTR-5 में भरकर जमा करना पडता है।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक।

फॉर्म GSTR-5A

OIDAR service providers के लिए: इस श्रेणी में आने वाले कारोबारों का परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। इन्हें हर महीने के कारोबार का लेखा जोखा जीएसटी रिटर्न फॉर्म GSTR 5A जमा करना पडता है।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक।

फॉर्म GSTR-6

Input Service Distributors के लिए: इस श्रेणी में आने वाले कारोबारों का परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। इन्हें हर महीने के कारोबार का लेखा जोखा रिटर्न फॉर्म GSTR 6. में भरकर जमा करना पडता है।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 13 तारीख तक।

फॉर्म GSTR-7

TDS काटने वाले संस्थानों के लिए: सरकारी कंपनियों/ विभागों सोसाइटियों वगैरह को 2.5 लाख रुपए से ज्यादा के वस्तुओं या सेवाओं के लिए भुगतान करने पर, 2 % TDS काटने का अधिकार दिया गया है। इसके डिटेल इन्हें हर महीने रिटर्न फॉर्म GSTR-7 में भरकर जमा करने पडते हैं।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 10 तारीख तक।

फॉर्म GSTR-8

TCS इकट्ठा करने वाले संस्थानों के लिए: e-commerce operators (आनलाइन शॉपिंग की सुविधा देने वाली कंपनियों) को अपने प्लेटफॉर्म पर, किसी ​संस्था या कारोबारी का एक निश्चित मात्रा से अधिक goods, or services  बेचने पर, Tax Collected at Source (TCS) वसूलने और सरकार के पास जमा करने का अधिकार दिया गया है। इसके डिटेल इन्हें हर महीने रिटर्न फॉर्म GSTR-8 में भरकर जमा करने पड़ते हैं।

अंतिम तिथि: कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 10 तारीख तक।

फॉर्म GSTR-9 

सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए सालाना रिटर्न: जीएसटी में रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों (जीएसटीआर 1,2,3,3बी भरने वालों) को, हर साल एक वार्षिक रिटर्न GSTR-9 भी दाखिल करना पड़ता है। इसमें, साल भर की बिक्री, खरीद, इनपुट टैक्स क्रेडिट, क्लेम किए गए रिफंड वगैरह के डिटेल के अलावा demand created (बकाया टैक्स संबधी) देने होते हैं।

अंतिम तिथि: अंतिम तिथि: वित्तीय वर्ष पूरा होने के बाद (31 दिसंबर) तक

फॉर्म GSTR-9A

कंपोजिशन कारोबारियों के लिए सालाना रिटर्न: जीएसटी के तहत, कंपोजिशन स्कीम लेने वाले कारोबारियों को भी, अपने सालाना कारोबार का लेखा जोखा रिटर्न फॉर्म हर साल GSTR 9 A में, भरकर जमा करना पड़ता है। ​इसमें साल भर की बिक्रियों, खरीदारियों, चुकाये गए टैक्स, रिफंड क्लेम, टैक्स डिमांड, इनपुट टैक्स क्रेडिट वगैरह का लेखा जोखा देना पड़ता है।

अंतिम तिथि: अंतिम तिथि: वित्तीय वर्ष पूरा होने के बाद (31 दिसंबर) तक

फॉर्म GSTR 9C

आडिट अनिवार्यता वाले कारोबारियों के लिए सालाना रिटर्न: जीएसटी में रजिस्टर्ड, ऐसे कारोबारी जिनका सालाना टर्नओवर 2 करोड रुपए से अधिक है, उन्हें अपने अकाउंट का Audit करवाना अनिवार्य है। उस audited annual accounts की कॉपी, रिटर्न फॉर्म FORM GSTR-9C के साथ जमा करनी होती है। ऑडिट रिपोर्ट और जीएसटी रिटर्न में आपकी ओर से भरे गए आंकड़ो से ​मिलान (match) होना चाहिए।

अंतिम तिथि: वित्तीय वर्ष पूरा होने के बाद 31 दिसंबर तक।

फॉर्म GSTR-10 (Final Return)

रजिस्ट्रेशन कैंसल होने या खत्म करने पर: जीएसटी रजिस्ट्रेशन Cancel होने या surrender करने की स्थिति में, रिटर्न फॉर्म GSTR-10 भरकर जमा करना पड़ता है। इसे फाइनल रिटर्न कहा जाता है।

अंतिम तिथि: जीएसटी रजिस्ट्रेशन कैंसल होने की तारीख या फिर Cancellation Order की तारीख से 3 महीने के अंदर यह फॉर्म जमा करना आवश्यक है।

फॉर्म GSTR-11

Unique Identity Number (UIN) holders के लिए: भारत में स्थित, विदेशी दूतावासों embassies, उच्चायोगों missions , संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों, वगैरह यहां के टैक्स सिस्टम के दायरे में नहीं आतीं। इन्हें अपनी खरीदारियों पर चुकाए गए जीएसटी का रिफंड पाने का अधिकार होता है। इन्हें GSTIN की बजाय UIN नंबर दिया जाता है।

इन संस्थाओं को अपनी ली गई goods and services के डिटेल, हर तिमाही Quarterly, पर, रिटर्न फॉर्म GSTR-11 भरकर देने होते हैं। अगर उन्होंने खरीदारी की है और फिर उन्हें रिफंड चाहिए तो। खरीदारी नहीं की है तो रिटर्न भरना जरूरी नहीं है।

अंतिम तिथि: जिस तिमाही के लिए रिफंड क्लेम दाखिल किया है, उसके तुरंत बाद वाले महीने की 28 तारीख तक। 

HSN और SAC कोड

जीएसटी की रसीदें तैयार करने में इन कोड का इस्तेमाल किया जाता है। वस्तुओं के नाम की जगह, उनके HSN Codes और सेवाओं के नाम की जगह, उनके SAC codes का इस्तेमाल किया जाता है। 

HSN Code क्या होता है?: वस्तुओं के नाम, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अलग हो सकते हैं। इसलिए World Customs Organization (WCO) ने हर वस्तु को एक कोड नंबर दिया है। इसे HSN कोड (Harmonized System of Nomenclature) कहा जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर वस्तु का HSN Code 6 अंकों का बनाया गया। 5200 से ज्यादा प्रोडक्टस के HSN कोड तैयार किए गए हैं। व्यापार में, इन्हीं कोड के आधार पर वस्तु की पहचान की जाती है। टैक्स वगैरह का निर्धारण HSN कोड के आधार पर होता है। 

भारत भी World Customs Organization (WCO) का सदस्य है। शुरू में इसने भी 6 अंकों वाले HSN कोड को अपनाया था। बाद में यहां 8 अंकों के HSN कोड इस्तेमाल किए जाने लगे। जीएसटी रेट के लिए भी इन्हीं कोड को आधार बनाया गया है।

कैसे तैयार है HSN कोड: दरअसल वस्तुओं के कोड को एक क्रम में सेट करके, Section, Chapter, Heading, Subheading और Tarrif Items टैरिफ आइटम्स में रखा गया है। किसी वस्तु का नाम किस चैप्टर की किस हेडिंग में, किस सबहेडिंग के किस आइटम नंबर पर दर्ज है, इसी के आधार पर उसका HSN Code बनता है।

उदाहरण के लिए मानव निर्मित फाइबर से बने रुमाल का HSN code नंबर है- 62.13.90.10. जबकि सिल्क से बने रुमाल का HSN code नंबर है 62.13.90.90. इसका मतलब यह है कि इन वस्तुओं का कोड नाम, चैप्टर नंबर 62 के 13 वें हेडिंग के तहत 90वीं सबहेडिंग के तहत 10 और 90 नंबर पर दर्ज है।

कब कितने अंकों के HSN code का उल्लेख करना आवश्यक

  • 1.5 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाले कारोबारियों को अपने कारोबार में शामिल वस्तुओं के HSN codes का उल्लेख करना जरूरी नहीं है।
  • 1.5 से 5 करोड़ रुपए तक टर्नओवर वाले कारोबारियों को, वस्तुओं के शुरुआती 2 अंकों के HSN codes का उल्लेख करना अनिवार्य है।
  • 5 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले कारोबारियों को, वस्तुओं के शुरुआती 4 अंकों के HSN codes का उल्लेख करना अनिवार्य है।
  • विदेश व्यापार (Export-Import) करने वाले कारोबारियों को हर वस्तु के, पूरे 8 अंकों के HSN codes का उल्लेख करना अनिवार्य है।

 SAC code क्या होता है?.  जिस तरह वस्तुओं को HSN Code दिए गए हैं, उसी प्रकार GST के तहत शामिल की गई सेवाओं (Services) के लिए भी Services Accounting Code कोड ( SAC codes) तय किए गए हैं। जीएसटी की रसीदों, बिल, रिटर्न वगैरह में इनका उल्लेख करना होता है।

E-Envoicing

जीएसटी सिस्टम के तहत होने वाले सौदों की इलेक्ट्रॉनिक रसीदें जारी करने की व्यवस्था (Electronic Invoicing)  शुरू की है। इसके लिए बाकायदा अलग से common e-invoice portal पोर्टल बनाया गया है।

  • 1 अक्टूबर 2020 से, 500 करोड़ रुपए से ज्यादा टर्नओवर वाले कारोबारियों के लिए, e-invoice जारी करना अनिवार्य किया गया।
  • 1 जनवरी 2021 से 100 करोड़ रुपए से अधिक टर्नओवर वाले कारोबारियों को e-invoice जारी करना अनिवार्य किया गया।

किसी सौदे की रसीद प्रक्रिया पूरी होते ही, उसके लिए एक unique Invoice Reference Number (IRN) जारी होता है। हर रसीद पर digital signature होते हैं और उसका QR code भी तैयार हो जाता है।

इस पर बनने वाली रसीदों के डिटेल अपने आप GST portal और e-way bill portal पर ट्रांसफर हो जाती हैं। इससे जीएसटी रिटर्न GSTR-1 में बहुत सी सूचनाएं अपने आप अपलोड हो जाती हैं। इसी तरह E-Way Will जारी करने में भी, उस सौदे की ज्यादातर सूचनाएं अपने आप दर्ज हो जाती हैं।

EWAY bill

जीएसटी के तहत कारोबार में, सामान या खेप को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर, उसके साथ Electronic Bill ले जाना अनिवार्य है। इस इलेक्ट्रॉनिक बिल को ही eWay Bill नाम दिया गया है।

50 हजार रुपए से ज्यादा कीमत वाला माल ट्रांसपोर्ट से भेजने पर, उसके साथ eWay Bill होना अनिवार्य है।  कुछ विशेष मामलों में, 50 हजार ये कम कीमत की सप्लाई के साथ भी eWay Bill होना अनिवार्य किया गया है।

जैसे ही eway bill जारी किया जाता है, उसका एक unique Eway Bill Number (EBN) जारी होता है। यह माल भेजने वाले (Supplier) को, माल मंगाने वाले (Reciever) को और माल लादकर ले जाने वाले (Transporter) तीनों को उपलब्ध हो जाता है।

eWay Bill Portal पर जाकर इसे बनाया जा सकता है। इसे Android App के माध्यम से या फिर SMS के माध्यम से बनाया या कैंसिल किया जा सकता है। जीएसटी में रजिस्टर्ड कारोबारी के अलावा, ट्रांसपोर्टर या गैर रजिस्टर्ड व्यक्ति को भी eWay Bill जारी करने का अधिकार होता है।

विस्तार से जानें: ई-वे बिल क्या है? कब और कैसे बनता है?

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जीएसटी क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं बताइए?

जीएसटी की प्रमुख विशेषताएं (i) जीएसटी को वस्तुओं को विनिर्माण, या वस्तुओं की बिक्री या सेवाओं के प्रावधान पर, जो कर की वर्तमान अवधारणा है, उसके एवज में वस्तुओं और सेवाओं के आपूर्ति पर लगाया जाएगा। (ii) जीएसटी उत्पत्ति आधारित करारोपण के वर्तमान सिद्धांत के बदले गंतव्य आधारित उपभोग करारोपण के सिद्धांत पर आधारित होगा।

जीएसटी से आप क्या समझते हैं?

जीएसटी का Full Form होता है- Goods And Services Tax । हिन्दी में इसका अर्थ होता है- माल एवं सेवा कर। इसे, वस्तुओं की खरीदारी करने पर या सेवाओं का इस्तेमाल करने पर चुकाना पड़ता है। पहले मौजूद कई तरह के टैक्सों (Excise Duty, VAT, Entry Tax, Service Tax वगैरह ) को हटाकर, उनकी जगह पर एक टैक्स GST लाया गया है।

जीएसटी क्या है यह कब लागू हुआ?

ई-इनवॉइसिंग प्रणाली को 1 अक्टूबर 2020 से उन व्यवसायों के लिए लागू किया गया था, जिनका किसी भी पिछले वित्तीय वर्ष (2017-18 से) में 500 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक कुल कारोबार है। इसके अलावा, 1 जनवरी 2021 से, इस प्रणाली को उन लोगों के लिए बढ़ा दिया गया, जिनका वार्षिक कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक है।

जीएसटी से क्या फायदा होता है?

उपभोक्ताओं को जीएसटी के लाभ.
वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में कमी चूंकि आपूर्ति श्रृंखला के सभी स्तरों पर जीएसटी लगाया जाता है, इसलिए उत्पादों की कीमतों में काफी अंतर पाया जा सकता है। ... .
देश भर में समान कीमत ... .
सरलीकृत कर प्रणाली ... .
विदेशी निवेश ... .
आयात और निर्यात उद्योग में वृद्धि ... .
पारदर्शिता ... .
आसान उधारी ... .
बाजार में आसान प्रवेश.