स्कूल की ताकत में सुधार कैसे करें? - skool kee taakat mein sudhaar kaise karen?

अगर किसी प्राथमिक स्कूल में पहली से पांचवीं तक के सभी बच्चों के लिए सिर्फ एक शिक्षक हो तो बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ाना उस शिक्षक के लिए बड़ी मुसीबत की वजह बन सकता है. लेकिन, ऐसी स्थिति में भी एक शिक्षक ने इस मुसीबत को अपनी ताकत में बदल दिया है. यह संभव हुआ है आधुनिक शिक्षण पद्धति के अंतर्गत अपनाई जाने वाली कोशिशों के कारण.

पश्चिमी महाराष्ट्र में जिला मुख्यालय सांगली से करीब सौ किलोमीटर दूर आटपाडी तहसील के अंतर्गत जिला परिषद मराठी प्राथमिक स्कूल तुलाराम बुआचा के शिक्षक सुनील गायकवाड़ कक्षा पहली से पांचवीं तक के कुल 30 बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ाने-सिखाने के लिए शिक्षण के रोजाना नए तरीके ईजाद कर रहे हैं. वह शिक्षण की नवीन पद्धति के सहारे बच्चों को भविष्य के लिए शिक्षक बना रहे हैं.

बता दें कि करीब ढाई सौ की जनसंख्या के तुलाराम बुआचा शेडफले गांव से करीब पांच किलोमीटर दूर छोटे किसान और मजदूर परिवारों की बस्ती है. यहां के इस स्कूल में जुलाई 2016 से शिक्षक सुनील गायकवाड़ आधुनिक शिक्षण पद्धति पर आधारित सत्र आयोजित कर रहे हैं.

सुनील गायकवाड़ बताते हैं, 'कुछ वर्ष पहले मेरे लिए यह एक बड़ी चुनौती थी कि मैं अकेले स्कूल के एक निर्धारित समय में पांच अलग-अलग स्तर की कक्षाओं के बच्चों को कैसे पढ़ा सकता हूं. हालांकि, मैं आज भी इस चुनौती से बाहर नहीं निकल सका हूं. लेकिन, पढ़ाई की प्रभावशाली और सहज विधा ने मेरी चुनौती को काफी हद तक कम कर दिया है.'

कैसे? यह पूछने पर सुनील गायकवाड़ बताते हैं कि कक्षा में बच्चों को पढ़ाते हुए किए जा रहे प्रयोगों से उनके मन में कुछ विचार आए. इसके तहत उन्होंने पांच कक्षाओं को दो कमरों में बांट दिया. कक्षा पहली व दूसरी के बच्चों के लिए एक कमरा और तीसरी, चौथी व पांचवीं के बच्चों के लिए दूसरे कमरे में साथ-साथ बैठने का मौका दिया.

कई महीनों तक लगातार किए गए इस अभ्यास का असर यह हुआ कि जब वे किसी एक कमरे में दो कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाते हैं तो दूसरे कमरे के बच्चे बिना शिक्षक के अनुशासित तरीके से पढ़ते हैं.

इस बारे में सुनील गायकवाड़ कहते हैं, 'बच्चों में यह अनुशासन धीरे-धीरे उनके द्वारा अपनाए गए शिक्षण के नए तौर-तरीकों से आया. क्योंकि, इसके माध्यम से उन्होंने हर एक विषय के लगभग सभी सत्रों में बच्चों को समूह में पढ़ने या सीखने के लिए प्रेरित किया. इसके कारण जब किसी विषय पर बच्चों को कोई कार्य पूरा करने के लिए कहा जाता है तो वे परस्पर एक-दूसरे के सहयोग से उसे करते हैं. इस दौरान मैंने अनुभव किया कि बच्चों में आ रही जिम्मेदारी की यही भावना उन्हें अनुशासित बनाने में मदद कर रही है.'

इसके बाद, सुनील गायकवाड़ अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि जब बच्चे अलग-अलग समूहों में सीखते हैं तो शिक्षक का काम बहुत आसान हो जाता है. इसलिए, उन्होंने शिक्षण की इस पद्धति को स्कूल की अन्य गतिविधियों और कार्यक्रमों में भी अपनाना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने पाया कि अक्सर बच्चे ज्यादातर प्रश्न के हल समूह में खुद ही मिलजुलकर निकालने लगे. ऐसी स्थिति कम ही आती, जब बच्चे शिक्षक से सही उत्तर बताने के लिए कहते.

कई बार ऐसा भी होता कि जब कक्षा में एक समूह कोई प्रश्न हल नहीं कर पाता तो उसी कक्षा का अन्य समूह सही उत्तर बताने के लिए उनकी मदद करता. इस तरह, बच्चे पढ़ाई के दौरान खुद व्यस्त रहने लगे. ऐसी स्थिति में कुछ बच्चे शिक्षक की जिम्मेदारी महसूस करने लगे और उन्हें परस्पर सीखने या सिखाने में मजा आने लगा. शिक्षक ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करने लगे.

सुनील गायकवाड़ कहते हैं, "पूरी कक्षा को सिर्फ बच्चों के भरोसे भी नहीं छोड़ा जा सकता है. इसलिए, मैंने एक कमरे में दो कक्षाओं के बच्चों को साथ-साथ बैठने के लिए कहा. क्योंकि, हमारे स्कूल में बच्चों की संख्या कम है. इसलिए, एक कमरे में दो कक्षाओं के बच्चों को एक साथ बैठने का अवसर देना और उन पर निगरानी रखना थोड़ा आसान है. इससे यह लाभ हुआ कि अब तो कमरों को ध्यान में रखते हुए मैं शिक्षण की योजना पहले के मुकाबले अच्छी तरह बना सकता था. अब मैं अलग-अलग सत्रों के आधार पर बारी-बारी से करीब आधा समय एक कमरे के बच्चों को और करीब आधा समय दूसरे कमरे के बच्चों को देने लगा."

इस दौरान सरकारी स्कूल के इस प्रतिभाशाली शिक्षक ने उनकी अपनी जिम्मेदारी को दो भागों में बांटा. पहले चरण में उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे किसी भी विषय का नया पाठ खुद बच्चों को अच्छी तरह से सिखाते हैं. फिर, वे ऐसे बच्चों की पहचान करते हैं जिन्हें वह पाठ समझ में आ गया है. इसके बाद, वे उस कमरे के बच्चों को समूह में स्वतंत्र रुप से पढ़ने का मौका देकर दूसरे कमरे की संयुक्त कक्षाओं को पढ़ाने के लिए चले जाते हैं.

सुनील गायकवाड़ स्पष्ट करते हैं, 'मेरा अनुभव है कि संयुक्त कक्षा के कुछ फायदे भी हैं. जैसे, कक्षा पहली के बच्चे जब कक्षा दूसरी के बच्चों के साथ पढ़ते हैं तो पढ़ाई के नजरिए से उनके स्तर में ज्यादा अंतर नहीं होता. इससे फायदा यह हुआ कि कई बार कक्षा पहली के बच्चे कक्षा दूसरी के पाठ पढ़ने की कोशिश भी करते. हालांकि, इस दौरान दोनों कक्षाओं के बच्चे एक-दूसरे की पढ़ाई में बाधा नहीं डालते हैं. पर, इस दौरान उन्हें चुपचाप एक-दूसरे के विषय सुनने और समझने के मौके मिलते हैं."

हालांकि, एक कुशल शिक्षक के बिना यह फायदा संभव नहीं था. लेकिन, इसे सुनील गायकवाड़ की मेहनत का नतीजा कहा जाएगा कि पढ़ाई के मामले में यह जिले की आदर्श शाला में गिनी जाती है.

कुछ वर्षों के परीक्षा परिणाम से हम अनुमान लगा सकते हैं कि कक्षा पहली से चौथी तक बच्चों के शिक्षण की गुणवत्ता में लगातार सुधार आ रहा है.

इस पूरी प्रक्रिया में सुनील गायकवाड़ को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि बच्चे शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं. वे स्पष्ट करते हैं, "कई बार मैं कक्षा तीसरी और कक्षा चौथी के बच्चे की एक जोड़ी बनाकर उन्हें पढ़ने को कहता हूं. इससे एक बच्चा जहां सीख रहा होता है, वहीं दूसरे बच्चे का रिवीजन हो रहा होता है. इससे सिखाने वाले बच्चे खुद को शिक्षक जैसा महसूस करते हैं." (यह लेखक के निजी विचार हैं.)

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

स्कूल की ताकत में सुधार कैसे करें? - skool kee taakat mein sudhaar kaise karen?

शिरीष खरेलेखक व पत्रकार

2002 में जनसंचार में स्नातक की डिग्री लेने के बाद पिछले अठारह वर्षों से ग्रामीण पत्रकारिता में सक्रिय. भारतीय प्रेस परिषद सहित पत्रकारिता से सबंधित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित. देश के सात राज्यों से एक हजार से ज्यादा स्टोरीज और सफरनामे. खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और प्राथमिक शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' पुस्तकें प्रकाशित.

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