राष्ट्रीय एकता के मार्ग में मुख्य बाधाएं | शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता की बाधाओं को दूर करने के उपाय Show इस पोस्ट की PDF को नीचे दिये लिंक्स से download किया जा सकता है। राष्ट्रीय एकता अथवा भावात्मक एकता के मार्ग में मुख्य बाधाएं इस प्रकार है- (1) विभिन्न जातियाँ- वर्ण व्यवस्था, व्यवसाय और धर्म के आधार पर हमारे देश में अनेक जातियाँ पाई जाती हैं जैसे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, तेली, धोबी, लुहार, दर्जी आदि। इन जातियों के रहन-सहन और रीति-रिवाज में बड़ा अन्तर है जो राष्ट्रीय एकता में एक बड़ी रुकावट है। (2) धार्मिक विभिन्नता- हमारे देश में अनेक धर्म जैसे-हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी आदि हैं। इन धर्मों में बाह्य रूप से बड़ी भिन्नताएँ हैं। किसी में मूर्ति पूजा की जाती है, किसी में नहीं। धर्मान्धता भावात्मक एकता में बाधक है। भावात्मक अनेकता से सांप्रदायिक दंगे होते हैं जिससे राष्ट्रीय एकता में बाधा पड़ती है। (3) विभिन्न भाषाएँ- मनुष्य एक दूसरे के सम्पर्क में भाषा के माध्यम से आता है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। हिन्दी को राष्ट्र भाषा माना गया है किन्तु अंग्रेजी बोलने का मोह समाप्त नहीं हुआ है। अहिन्दी भाषा-भाषी हिन्दी की उन्नति पर बाधा डालते हैं। इससे भावात्मक एकता पर आघात होता है। (4) आर्थिक विषमता- भावात्मक एकता की प्राप्ति में सबसे बड़ा तत्व आर्थिक विषमता है। उच्च वर्ग आर्थिक शोषण करता है। निम्न वर्ग उससे घृणा करते हैं। मध्यम वर्ग भी इन्हीं बातों से पिस जाता है। उस आये दिन चंन्दा और करों का बोझ होता है जिससे एकता में बाथा पहुँचती है। (5) सामाजिक विषमता- जाति के नाम पर ऊँच-नीच, अर्थ के नाम पर ऊँच-नीच, व्यवसाय के नाम पर ऊँच-नीच जिधर देखो उधर दो वर्ग हैं। विपत्ति आने पर हम सब एक हो जाते हैं और स्वार्थ सिद्ध होने के बाद फिर अलग-अलग हो जाते हैं। यह स्थिति एकता के लिए घातक होती है। (6) संकीर्ण राजनैतिक दृष्टिकोण- हमारा देश अनेक प्रान्तों में बँटा है। ये राज्य उसके अंग है। आज क्षेत्रवाद ने भारतीय एकता पर कुठाराघात किया है। पंजाब में खालिस्तान की मांग क्षेत्रवाद की दृष्टि से उठी और इसमें संकीर्ण राजनैतिक दृष्टिकोण पूर्णतः जिम्मेदार हैं। यह स्थिति भी राष्ट्रीय एकता में बाधक है। शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता की बाधाओं को दूर करने के उपाय- राष्ट्रीय एकता अथवा भावात्मक एकता की बाधाओं को शिक्षा द्वारा निम्नलिखित कार्यों से दूर किया जा सकता है- (1) विद्यालयों की पाठ्यचर्या में परिवर्तन किया जाए और उसे देश की वर्तमान स्थिति एवं उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाये। (2) पाठ्य पुस्तकों में आवश्यक संशोधन किये जाएँ और उनकी सामग्री को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाये कि वे भावात्मक एकता के विकास में सहायक हों। (3) पाठ्यचर्या में सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीयमहत्व की पाठ्यचारी क्रियाओं को विशेष रूप से स्थान दिया जाये। वर्ष में कम से कम चार बार राष्ट्रीय भावना पर नाटक खेले जाने चाहिए। (4) विश्वविद्यालयो स्तर पर विभिन्न सामाजिक विज्ञान, भाषाएं, साहित्य, संस्कृति और कला के अध्ययन की व्यवस्था की जाये। (5) प्राथमिक स्तर की पाठ्यचर्या में कहानी, कविता और राष्ट्रीय गीतों को स्थान दिया जाये और सभी स्तरों पर सामाजिक विषयों के अध्ययन पर बल दिया जाये। (6) विद्यालयों का कार्य दैनिक एसेम्बली एवं प्रार्थनाओं से प्रारम्भ किया जाये और इस समय दस मिनट नैतिक शिक्षा अथवा राष्ट्रीय महत्व की चर्चा के लिए दिये जायें । वर्ष में दो बार सभी छात्र देश हित के लिए संकल्प को दोहराएं और देश सेवा की शपथ लें। (7) विद्यार्थियों में राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्र-भाषा के प्रति स्थाई भाव बनाया जाये और उन्हें उनका सम्मान करने को प्रेरित किया जाये। (8) एक विद्यालय के छात्रों का एक निश्चित ड्रेस हो जिससे जाति, धर्म और अर्थ के आधार पर व्याप्त भिन्नता समाप्त हो और वे अपने आपको विद्यालय के समान स्तर के सदस्य मझें। (9) अहिन्दी क्षेत्रों में हिन्दी को लोकप्रिय बनाया जाये और इसके लिए हिन्दी पुस्तकें क्षेत्रीय लिपियों में तैयार की जायें और समस्त भारतवर्ष में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग किया जाये। (10) छात्रों को देश-भ्रमण और अन्तर संस्कृति विकास के अवसर दिये जायें। (11) शिक्षकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर अन्य नगरों से ट्रांसफर किया जाये जिससे उनका ध्यान अपने अध्यापन कार्य और छात्रों के हित की ओर केन्द्रत हो जाये। (12) प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों के लिए समान देश में समान वेतन की व्यवस्था की जाये। (13) विद्यालयों में राष्ट्रीय पर्वों, 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर को बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाये। (14) युवक कार्यक्रमों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए अखिल भारतीय युवक समिति की स्थापना की जाये। (15) विद्यालयों में समय-समय पर भावात्मक एकता पर भाषणों का आयोजन किया जाये। (16) विश्वविद्यालयों में आपस में शिक्षकों का आदान-प्रदान किया जावे। For Download – Click Here यदि आपको शैक्षिक क्षेत्र में किसी पुस्तक या किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, तो कृपया हमें टिप्पणी बॉक्स में बताएं, हम जल्द ही उस समस्या को हल करने का प्रयास करेंगे और आपको बेहतर परिणाम देंगे। हम निश्चित रूप से आपकी मदद करेंगे। शिक्षाशस्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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राष्ट्रीय एकता के मार्ग में कौन कौन सी बाधाएं हैं?राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बाधाएं कौन कौन सी है?. सांप्रदायिकता – भारत एक बहु-धार्मिक राज्य है।. जातिवाद – भारतीय समाज जातिवाद का शिकार है।. भाषावाद – भारत एक बहुभाषी देश है।. क्षेत्रवाद – राष्ट्रीय एकता के मार्ग में क्षेत्रवाद भी एक प्रमुख बाधा है।. भारत में राष्ट्रीयता के मार्ग में कौन सी बाधाएँ है शिक्षा इन्हें दूर करने में किस सीमा तक सहायता कर सकती है?देश में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त किए हुए नवोदित विशिष्ट वर्ग ने ही राष्ट्रीयता का झण्डा उठाया। नाम है जिस प्रकार यूरोप या अफ्रीका ।" उपरोक्त विचारों से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास उन परिस्थितियों में हुआ जो राष्ट्रवाद के मार्ग में सहायता प्रदान करने के स्थान पर बाधाएँ पैदा करती है।
राष्ट्रीय एकता का अर्थ क्या है?राष्ट्रीय एकता का अर्थ है राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना जिसमें जाति, संप्रदाय, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि के अंतर को भूल कर अपने को एक समझा जाए. राष्ट्रीय एकता एक राष्ट्र के निवासियों को एकता के सूत्र में आबद्ध करती है, उनमें एकता की भावना पैदा करती है.
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