राष्ट्र भाषा पर गांधी के विचार क्या थे? - raashtr bhaasha par gaandhee ke vichaar kya the?

हिन्दी के प्रति महात्मा गांधी का प्रेम बड़ा गहरा था। आइए जानते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हिन्दी के प्रति विचार...

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।

हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है।


हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहां हो ही नहीं सकता।


हिन्दी भाषा के लिए मेरा प्रेम सब हिन्दी प्रेमी जानते हैं।

हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।

अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है। और हिन्दी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।

राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

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हिन्दी के प्रति महात्मा गांधी का प्रेम बड़ा गहरा था। वे ज्यादातर हिन्दी भाषा का प्रयोग करने के पक्षधर थे। जानिए हिन्दी के प्रति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार...

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।

हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है।

हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहां हो ही नहीं सकता।

हिन्दी भाषा के लिए मेरा प्रेम सब हिन्दी प्रेमी जानते हैं।

हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।

अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है। और हिन्दी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।

राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

गांधी जयंती विशेष: हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के बारे में क्या सोचते थे गांधी?

राष्ट्र भाषा पर गांधी के विचार क्या थे? - raashtr bhaasha par gaandhee ke vichaar kya the?
अर्पण जैन
Updated Wed, 02 Oct 2019 06:39 AM IST

राष्ट्र भाषा पर गांधी के विचार क्या थे? - raashtr bhaasha par gaandhee ke vichaar kya the?

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस बात का अत्यधिक सदमा था कि भारत जैसे बड़े और महान राष्ट्र की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। - फोटो : अमर उजाला

भारत विभिन्नताओं में एकता के सूत्र से संचालित एक ऐसा राष्ट्र है, जहां बोली, खानपान, संस्कृति, समाज एवं जातिगत व्यवस्थाओं का जो ताना-बाना बना हुआ है वह अनेकता में एकता के दर्शन करवाता हैं। ऐसे में हिंदी दिवस के दिन विज्ञान भवन से भारत के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह द्वारा एक राष्ट्र-एक भाषा के महत्व को दर्शाते हुए एक राय रखी जिसकी आज आवश्यकता भी है और अनिवार्यता भी।

क्योंकि आज विश्व में भारत एक ऐसा देश है जिसकी एक प्रतिनिधि भाषा नहीं हैं। और भाषा के रूप में हिंदी जनमानस की स्वीकार्य भाषा है, यह भी कटु सत्य है।  एक देश - एक भाषा की मांग एक लंबे समय से इस भारत भूमि पर उठाई जा रही है किन्तु तथाकथित राजनैतिक कारणों के चलते हमेशा ही इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। जबकि भाषा के समावेशी संघर्ष को अपना स्थान दिलाने के लिए प्रतिबद्धता से यदि किसी लड़ाई की शुरुआत हुई तो वह सन 1918 के मार्च की 28 तारीख थी जब मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी ने मध्यप्रदेश के इंदौर में हिंदी साहित्य समिति भवन की नींव रखते हुए इसे राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प लिया था।

स्वाधीनता संघर्ष के दौरान ही भारतीय जनता यह चाहने लगी थी कि हमारा राष्ट्र स्वतंत्र हो और हमारा अपना, खुद का शासन हो। तब उसके साथ-साथ अपनी भाषा को उचित स्थान देने के लिए भी वह जागृत होने लगी। उसे यह विदित होने लगा कि शारीरिक दासता की अपेक्षा मानसिक गुलामी अधिक भयंकर एवं घातक होती है। इस अनुभूति के कारण ही आधुनिक काल में अहिन्दी-भाषियों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित करने में अपना जीवन स्वाहाकर दिया।

आजाद हिंद फौज की राष्ट्रभाषा हिंदी थी
क्या इस बात का कोई महत्त्व नहीं है कि बह्म समाज के नेता बंगला-भाषी केशवचंद्र सेन से लेकर गुजराती भाषा-भाषी स्वामी दयानंद सरस्वती ने जनता के बीच जाने के लिए 'जन-भाषा', 'लोक- भाषा' हिंदी सीखने का आग्रह किया और गुजराती भाषा-भाषी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मराठी-भाषा-भाषी चाचा कालेलकर जी को सारे भारत में घूम-घूमकर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया।

सुभाषचंद्र बोस की 'आजाद हिंद फौज' की राष्ट्रभाषा हिंदी ही थी। श्री अरविंद घोष हिन्दी-प्रचार को स्वाधीनता-संग्राम का एक अंग मानते थे। नागरी लिपि के प्रबल समर्थक न्यायमूर्ति श्री शारदाचरण मित्र ने तो ई. सन् 1910 में यहां तक कहा था - यद्यपि मैं बंगाली हूं तथापि इस वृद्धावस्था में मेरे लिए वह गौरव का दिन होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ, 'साधु हिन्दी' में वार्तालाप करूंगा। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने भी हिंदी का समर्थन किया था। इन अहिन्दी-भाषी-मनीषियों में राष्ट्रभाषा के एक सच्चे एवं सबल समर्थक हमारे पोरबंदर के निवासी साबरमती के संत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे।

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस बात का अत्यधिक सदमा था कि भारत जैसे बड़े और महान राष्ट्र की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। अत: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विखंडित पड़े संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधने के लिए, उसे संगठित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का अहसास करते हुए कहा था – 'राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।' उन्होंने भारत वर्ष के इस गूंगेपन को दूर करने के लिए भारत के अधिकतम राज्यों में बोली एवं समझी जाने वाली हिन्दी भाषा को उपयुक्त पाकर संपूर्ण भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित, स्थापित किया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समान बंगाल के चिंतक आचार्य श्री केशवचंद्र सेन ने भी 'सुलभ-समाचार' पत्रिका में लिखा था- 'अगर हिन्दी को भारतवर्ष की एकमात्र भाषा स्वीकार कर लिया जाय तो सहज में ही यह एकता सम्पन्न हो सकती है।' अर्थात् हिन्दी ही खंड़ित भारत को अखंड़ित बना सकती है।

राष्ट्र भाषा पर गांधी जी के क्या विचार थे?

जानिए हिन्दी के प्रति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार... राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है। हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहां हो ही नहीं सकता।

गांधी के अनुसार राष्ट्र क्या है?

अतः गांधी जी का राष्ट्रवाद संकीर्ण न होकर व्यापक है, वे अपने राष्ट्र का विकास चाहते है लेकिन किसी दूसरे राष्ट्र को नुकसान पहुँचाकर नही, वे अपने राष्ट्र को भी इसलिए स्वतन्त्र कराना चाहते थे ताकि इसके संसाधनों का प्रयोग विश्व कल्याण के लिए हो सके।

गांधी ने हिंदी के बारे में क्या कहा?

गांधी जी ने सही कहा था कि हिन्दी वह भाषा है, जिसे उत्तर में हिन्दू और मुसलमान बोलते हैं और जो नागरी और अरबी लिपि में लिखी जाती हैं। वह हिन्दी एकदम संस्कृतनिष्ठ नहीं है, न वह एकदम फारसी शब्दों से लदी हुई है।

महात्मा गांधी को क्यों लगता था कि हिंदुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?

महात्मा गाँधी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संचार की आदर्श भाषा हो सकती है: वह हिंदुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है। इसलिए उन्हें हिंदुस्तानी भाषा में राष्ट्रिय भाषा होने के सभी गुण दिखाई देते थे।