रसखान की साधना स्थली या रचना स्थली कहाँ हैं? - rasakhaan kee saadhana sthalee ya rachana sthalee kahaan hain?

रसखान की साधना स्थली या रचना स्थली कहाँ हैं? - rasakhaan kee saadhana sthalee ya rachana sthalee kahaan hain?

रसखान (जन्म:1548 ई) कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। [1]उनका जन्म पिहानी, भारत में हुआ था। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे विट्ठलनाथ के शिष्य थे एवं वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं|

रसखान की साधना स्थली या रचना स्थली कहाँ हैं? - rasakhaan kee saadhana sthalee ya rachana sthalee kahaan hain?

महाकवि रसखान की महाबन (जिला मथुरा) में स्थित समाधि

रसखान की साधना स्थली या रचना स्थली कहाँ हैं? - rasakhaan kee saadhana sthalee ya rachana sthalee kahaan hain?

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें रसखान का नाम सर्वोपरि है। बोधा और आलम भी इसी परम्परा में आते हैं। सय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म अन्तर्जाल पर उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ था। कई विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सन् 1548 ई. में हुआ था। चूँकि अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। इनका जन्म स्थान पिहानी जो कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह पिहानी उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में है।माना जाता है की इनकी मृत्यु 1628 में वृन्दावन में हुई थी । यह भी बताया जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी और हिंदी में किया है।

परिचय[संपादित करें]

रसखान के जन्म के सम्बंध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। रसखान के अनुसार गदर के कारण दिल्ली शमशान बन चुकी थी, तब दिल्ली छोड़कर वह ब्रज (मथुरा) चले गए। ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर पता चलता है कि उपर्युक्त गदर सन् 1613 ई. में हुआ था। उनकी बात से ऐसा प्रतीत होता है कि वह उस समय वयस्क हो चुके थे।

रसखान का जन्म संवत् 1548 ई. मानना अधिक समीचीन प्रतीत होता है। भवानी शंकर याज्ञिक का भी यही मानना है। अनेक तथ्यों के आधार पर उन्होंने अपने मत की पुष्टि भी की है। ऐतिहासिक ग्रंथों के आधार पर भी यही तथ्य सामने आता है। यह मानना अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है कि रसखान का जन्म सन् 1548 ई. में हुआ था।

रसखान के जन्म स्थान के विषय में भी कई मतभेद है। कई विद्वान उनका जन्म स्थल पिहानी अथवा दिल्ली को मानते है। शिवसिंह सरोज तथा हिन्दी साहित्य के प्रथम इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रसखान का जन्म स्थान पिहानी जिला हरदोई माना जाए।

रसखान अर्थात् रस के खान, परंतु उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था और उन्होंने अपना नाम केवल इस कारण रखा ताकि वे इसका प्रयोग अपनी रचनाओं पर कर सकें।[2]सखान तो रसखान ही था जिसके नाम में भी रस की खान थी।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • रसखान की रचनाएँ कविताकोश में
  • रसखान रत्नावली (गूगल पुस्तक; सम्पादनकर्ता- राघव रघु)
  • कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि[मृत कड़ियाँ]
  • मुस्लिम रचनाकार और श्रीकृष्ण [मृत कड़ियाँ] (राँची एक्सप्रेस)
  1. "रसखान के इन सवैयों में झलक रही है". अमर उजाला. मूल से 21 मार्च 2019 को पुरालेखित.
  2. "ब्रज भाषा विशेष: रसखान के ये हैं प्रसिद्ध दोहे". अमर उजाला. मूल से 22 नवंबर 2018 को पुरालेखित.

रसखान कौन और कहां के थे?

रसखान का जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें ऐसा मुग्ध कर दिया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जा बसे। सन् 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई।

रसखान की प्रमुख रचना कौन सी है?

रसखान की प्रमुख रचनाएँ रसखान रचित तीन रचनाओं को सभी प्रामाणिक मानते हें- 'सुजान. रसखान', 'प्रेम. वाटिका' और 'दानलीला'।

रसखान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

सय्यद इब्राहिमरसखान / पूरा नामnull

रसखान का साहित्य में स्थान क्या है?

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। सैय्यद इब्राहिम रसखान के काव्य के आधार भगवान श्रीकृष्ण हैं। रसखान ने उनकी ही लीलाओं का गान किया है। उनके पूरे काव्य- रचना में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की गई है।