प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और काव्य pdf - pragativaad ke pramukh kavi aur kaavy pdf

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और काव्य pdf - pragativaad ke pramukh kavi aur kaavy pdf

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प्रगतिवाद

प्रगतिवाद एक राजनैतिक एवं सामाजिक शब्द है। ‘प्रगति शब्द का अर्थ है ‘आगे बढ़ना, उन्नति। प्रगतिवाद का अर्थ है ”समाज, साहित्य आदि की निरन्तर उन्नति पर जोर देने का सिद्धांत।’ प्रगतिवाद छायावादोत्तर युग के नवीन काव्यधारा का एक भाग हैं।

यह उन विचारधाराओं एवं आन्दोलनों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाता है जो आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों में परिवर्तन या सुधार के पक्षधर हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अमेरिका में प्रगतिवाद २०वीं शती के आरम्भ में अपने शीर्ष पर था जब गृह-युद्ध समाप्त हुआ और बहुत तेजी से औद्योगीकरण आरम्भ हुआ।

प्रगतिवाद का जन्म

प्रगतिवाद (1936 ई०से…): संगठित रूप में हिन्दी में प्रगतिवाद का आरंभ ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ द्वारा 1936 ई० में लखनऊ में आयोजित उस अधिवेशन से होता है जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी। इसमें उन्होंने कहा था, ‘साहित्य का उद्देश्य दबे-कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए।’

1935 ई० में इ० एम० फोस्टर ने प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन नामक एक संस्था की नींव पेरिस में रखी थी। इसी की देखा देखी सज्जाद जहीर और मुल्क राज आनंद ने भारत में 1936 ई० में प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की।

मुख्य तथ्य

  • एक साहित्यिक आंदोलन के रूप में प्रगतिवाद का इतिहास मोटे तौर पर 1936 ई० से लेकर 1956 ई० तक का इतिहास है,
  • जिसके प्रमुख कवि हैं—केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, राम विलास शर्मा, रांगेय राघव, शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, त्रिलोचन आदि।
  • किन्तु व्यापक अर्थ में प्रगतिवाद न तो स्थिर मतवाद है और न ही स्थिर काव्य रूप बल्कि यह निरंतर विकासशील साहित्य धारा है।
  • प्रगतिवाद के विकास में अपना योगदान देनेवाले परवर्ती कवियों में केदारनाथ सिंह, धूमिल, कुमार विमल, अरूण कमल, राजेश जोशी आदि के नाम उल्लेखनीय है।

प्रगतिवादी काव्य का मूलाधार मार्क्सवादी दर्शन है पर यह मार्क्सवाद का साहित्यिक रूपांतर मात्र नहीं है। प्रगतिवादी आंदोलन की पहचान जीवन और जगत के प्रति नये द्रष्टिकोण में निहित है। यह नया दृष्टिकोण था :-

  • पुराने रूढ़िबद्ध जीवन-मूल्यों का त्याग;
  • आध्यात्मिक व रहस्यात्मक अवधारणाओं के स्थान पर लोक आधारित अवधारणाओं को मानना;
  • हर तरह के शोषण और दमन का विरोध;
  • धर्म, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र पर आधृत गैर-बराबरी का विरोध;
  • स्वतंत्रता, समानता तथा लोकतंत्र में विश्वास;
  • परिवर्तन व प्रगति में विश्वास मेहनतकश लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति;
  • नारी पर हर तरह के अत्याचार का विरोध;
  • साहित्य का लक्ष्य सामाजिकता में मानना आदि।

प्रवृत्तियाँ

  • प्रगतिवाद वैसी साहित्यिक प्रवृत्ति है जिसमें एक प्रकार की इतिहास चेतना, सामाजिक यथार्थ दृष्टि, वर्ग चेतन विचारधारा, प्रतिबद्धता या पक्षधरता, गहरी जीवनासक्ति, परिवर्तन के लिए सजगता और एक प्रकार की भविष्योन्मुखी दृष्टि मौजूद हो।
  • प्रगतिवादी काव्य एक सीधी-सहज-तेज प्रखर, कभी व्यंग्यपूर्ण आक्रामक काव्य-शैली का वाचक है।

प्रगतिवाद साहित्य को सोद्देश्य मानता है और उसका उद्देश्य है ‘जनता के लिए जनता का चित्रण करना’ दूसरे शब्दो में, वह कला ‘कला के लिए’ के सिद्धांत में यकीन नहीं करता बल्कि उसका यकीन तो ‘कला जीवन के लिए’ के फलसफे में है। मतलब कि प्रगतिवाद आनंदवादी मूल्यों के बजाय भौतिक उपयोगितावादी मूल्यों में विश्वास करता है।

  • राजनीति में जो स्थान ‘समाजवाद’ का है वही स्थान साहित्य में ‘प्रगतिवाद’ का है।

प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएं

  • समाजवादी यथार्थवाद/सामाजिक यथार्थ का चित्रण,
  • प्रकृति के प्रति लगाव
  • नारी प्रेम
  • राष्ट्रीयता
  • सांप्रदायिकता का विरोध
  • बोधगम्य भाषा (जनता की भाषा में जनता की बातें) व व्यंग्यात्मकता
  • मुक्त छंद का प्रयोग (मुक्त छंद का आधार कजरी, लावनी, ठुमरी जैसे लोक गीत)
  • मुक्तक काव्य रूप का प्रयोग।

छायावाद व प्रगतिवाद में अंतर

  • छायावाद में कविता करने का उद्देश्य ‘स्वान्तः सुखाय’ है जबकि प्रगतिवाद में ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ है।
  • छायावाद में वैयक्तिक भावना प्रबल है जबकि प्रगतिवाद में सामाजिक भावना।
  • छायावाद में अतिशय कल्पनाशीलता है जबकि प्रगतिवाद में ठोस यथार्थ।

छायावादोत्तर युग की नवीन काव्यधारा

  • प्रगतिवादी काव्यधारा – केदारनाथ अग्रवाल, राम विलास शर्मा, नागार्जुन, रांगेय राघव, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, त्रिलोचन आदि।
  • प्रयोगवादी काव्य धारा – अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, मुक्तिबोध, भवानी प्रसाद मिश्र,
  • नयी कविता काव्य धारा – शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती आदि।
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  7. प्रगतिवाद – प्रगतिवादी काव्यधारा

  • Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद की विशेषताएं और प्रमुख कवि एवं रचनाएँ
  • Pragativad Ki Visheshtaye | प्रगतिवाद की प्रमुख विशेषताएं
    • प्रगतिवादी कविता के संदर्भ में प्रमुख विशेषताएं :
  • Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और रचनाएँ
    • नागार्जुन | Nagarjun
      • नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ :
      • नागार्जुन की चर्चित पंक्तियां :
    • केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal
      • केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ :
    • रामविलास शर्मा | Ram Vilas Sharma
      • रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ :
    • त्रिलोचन शास्त्री | Trilocana
      • त्रिलोचन की प्रमुख रचनाएँ :
      • त्रिलोचन की चर्चित पंक्ति :
    • शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ | Shivmangal Singh ‘Suman’
      • शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रमुख रचनाएँ :
    • रांगेय राघव | Rangeya Raghav
      • रांगेय राघव की प्रमुख रचनाएँ :
      • यह भी जरूर पढ़े :
      • एक गुजारिश :
  • Bihari Ratnakar बिहारी रत्नाकर के दोहे (7-12) व्याख्या सहित
  • Bihari Ratnakar Ke Dohe बिहारी रत्नाकर के दोहे (1-6) व्याख्या सहित
  • Vinay Patrika Pad 159-161 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 156-158 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 153-155 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 151-152 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 149-150 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 147-148 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 145-146 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
  • Vinay Patrika Pad 143-144 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या


नमस्कार दोस्तों ! आज के नोट्स में हम आपके लिए लेकर आये है : Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद की विशेषताएं और प्रमुख कवि एवं रचनाएँ । आज हम समझेंगे कि प्रगतिवाद क्या है ? प्रगतिवादी कविता की प्रमुख विशेषताएं क्या है ? तथा साथ ही Pragativad | प्रगतिवाद के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं का भी विस्तार से अध्ययन करने जा रहे है। तो आइए समझ लेते है :



आपको बता दे कि जर्मनी के विद्वान कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद में मनुष्य इतिहास के पांच सोपान माने हैं :

  1. दास प्रथा
  2. सामंतवाद
  3. पूंजीवाद
  4. समाजवाद
  5. साम्यवाद।

प्रगतिवादी कविता को मार्क्सवाद की काव्यात्मक अभिव्यक्ति कह सकते हैं। कार्ल मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद को प्रगतिवाद का प्रेरणास्रोत कहा जा सकता है। कार्ल मार्क्स के चारों सिद्धांतों से यह कविता प्रभावित है। ये चार सिद्धांत इस प्रकार है :

  1. ऐतिहासिक भौतिकवाद
  2. द्वंदात्मक भौतिकवाद
  3. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
  4. अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत

प्रगतिवादी काव्य में कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारधारा का स्वर महत्वपूर्ण रहा है।


Pragativad Ki Visheshtaye | प्रगतिवाद की प्रमुख विशेषताएं


Pragativad | प्रगतिवाद की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है :

  • प्रगतिवादी कविता में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता की भरमार नहीं है, अपनी राष्ट्रीय चेतना को सीधे-सीधे खुलकर प्रखर रूप में अभिव्यक्त किया है। साथ ही स्थान-स्थान पर जनवादी प्रतीक भी मिलते हैं।
  • प्रगतिवादी कविता में वैयक्तिकता के लिए कोई स्थान नहीं है। यहां सामाजिकता पर विशेष बल दिया गया है।
  • इस कविता में आत्मगत सौंदर्य के स्थान पर वस्तुगत सौंदर्य को स्वीकार किया गया है।
  • यह किसान और मजदूर की पक्षधर कविता है।
  • छायावादी कविता पर गांधीवादी प्रभाव दिखलाई देता है लेकिन प्रगतिवादी कविता पर मार्क्स का प्रभाव स्पष्ट है। इसलिए प्रगतिवादी कविता में हिंसा मूल्य का समर्थन किया गया है।
  • केदारनाथ अग्रवाल लिखते हैं :

मारो मारो मारो हँसिया,
हिंसा और अहिंसा क्या है ?”

प्रगतिवादी कविता के संदर्भ में प्रमुख विशेषताएं :

  • प्रगतिवादी कविता का मूल उद्देश्य है : वर्गविहीन शोषणविहीन समाज की स्थापना करना।
  • इसमें पूंजीवाद और शोषकों के प्रति व्यंग्य और आक्रोश की अभिव्यक्ति मिलती है। शोषित, पीड़ित मानवता के प्रति करुणा एवं सहानुभूति का भाव मिलता है।
  • धर्म और ईश्वर में विश्वास। मार्क्स धर्म को अफीम की गोली मानते हैं।
  • प्रगतिवादी कविता प्रगतिशील मूल्यों की पक्षधर है। सामाजिक-धार्मिक व राजनीतिक विडंबनाओं का अंत करने पर बल देती है।
  • वैज्ञानिकता के प्रति आग्रह मिलता है। यह कविता वैज्ञानिक समाजवाद को स्वीकारते हुए यथार्थवाद पर विशेष बल देती है।
  • प्रगतिवादी कविता किन्हीं भी भेदभावों को स्वीकार नहीं करती है। समतामूलक समाज इसका आदर्श है।
  • छायावादी कविता में स्त्री के आत्मिक सौंदर्य पर विशेष बल दिया गया है जबकि प्रगतिवादी कविता में तन और मन दोनों स्तरों पर नारी सहभागिता की अपेक्षा की गई है।
  • प्रगतिवादी कविता में प्रेम और रोमांस की अभिव्यक्ति भी देखी जा सकती है, किंतु इसका आधार सूक्ष्म वायवीय कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है।
  • यह कविता उपयोगितावादी दृष्टिकोण पर विशेष बल देती है। इसलिए नंददुलारे वाजपेई ने प्रगतिवादी कविता को उपयोगितावादी कविता कहा है।
  • प्रगतिवादी कविता सुंदरम से ज्यादा शिवम पर बल देती है।
  • यह “कला, कला के लिए है” सिद्धांत का विरोध करती है। यह “कला, जीवन के लिए है” सिद्धांत को स्वीकारती है। इसलिए इसमें लोकजीवन या जनजीवन की विस्तृत अभिव्यक्ति मिलती है।
  • प्रगतिवादी कविता मुक्त छंद की अवधारणा को लेकर चली है। प्रगतिवादी रचनाकार साहित्य और समाज के गत्यात्मक संबंधों को स्वीकारते हैं।
  • प्रगतिवादी कवि व्यवस्था परिवर्तन के लिए साम्यवादी क्रांति को आवश्यक मानते हैं।
  • ये मध्यवर्ग के अंतर्द्वंद का जीवंत चित्रण करते हैं। इस संदर्भ में मुक्तिबोध का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
  • सबसे प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक रामविलास शर्मा है।
  • हिंदी के पहले मार्क्सवादी आलोचक शिवदान सिंह चौहान माने जाते हैं। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है : “हिंदी साहित्य के अस्सी वर्ष”


Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और रचनाएँ


दोस्तों ! हम आपको Pragativad Ke Kavi Aur Rachnaye| प्रगतिवाद के कुछ प्रमुख कवियों और उनकी मुख्य रचनाओं के बारे में बता रहे है। जो निम्न प्रकार से है :

नागार्जुन | Nagarjun

इनका जन्म 30 जून 1911 ई. में हुआ। यह हिंदी के लेखक और कवि थे। इनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। ये मैथिली में “यात्री” उपनाम से लिखते थे। इनके घर का नाम ढक्कन था। यह बिहार के मधुबनी के रहने वाले थे।

नागार्जुन जनता के “चारण कवि” हैं। इनकी खड़ी बोली की पहली कविता “राम के प्रति” है। जो 1925 ई. में लाहौर से निकलने वाली “विश्वबंधु पत्रिका” में प्रकाशित हुई थी।

नागार्जुन “गरीबों के कवि” माने जाते हैं। इनका अंतिम उपन्यास “गरीबदास” है। ये प्रगतिशील काव्य आंदोलन की रीढ़ भी माने जाते हैं।इन्हें प्रगतिवाद का “शलाका पुरुष” भी कहा जाता है।

व्यंग्य और विद्रोह के संदर्भ में जो स्थान छायावाद में निराला का है, वही स्थान प्रगतिवाद में नागार्जुन का है। इनके “पत्रहीन नग्न गाछ” नामक काव्य संग्रह – मैथिली रचना को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ :

काव्य संग्रह :

सं.काव्य संग्रहवर्ष
01. युगधारा 1953
02. सतरंगे पंखों वाली 1959
03. प्यासी पथराई आँखें 1962
04. तालाब की मछलियां 1974
05. तुमने कहा था 1980
06. खिचड़ी विप्लव देखा हमने 1980
07. हजार-हजार बाँहों वाली 1981
08. पुरानी जूतियों का कोरस 1983
09. रतनगर्भ 1984
10. पका है यह कटहल 1995

खंडकाव्य :

सं.खंडकाव्यवर्ष
01. भस्मांकुर 1970
02. भूमिजा

उपन्यास :

सं.उपन्यासवर्ष
01. रतिनाथ की चाची 1948
02. बलचनमा 1952
03. नयी पौध 1953
04. बाबा बटेसरनाथ 1954
05. वरुण के बेटे 1956-57
06. दुखमोचन 1956-57
07. कुंभीपाक 1960
08. हीरक जयंती 1962
09. उग्रतारा 1963
10. जमनिया का बाबा 1968
11. गरीबदास 1990
  • कुंभीपाक 1972 में “चम्पा” नाम से तथा हीरक जयंती 1979 में “अभिनन्दन” नाम से भी प्रकाशित हुई।
  • जमनिया का बाबा उसी वर्ष 1968 में “इमरतिया”नाम से भी प्रकाशित हुई।

कविताएँ :

सं.चर्चित कविताएँ
01. इंदु जी क्या हुआ आपको
02. बादल को घिरते देखा है
03. पाषाणी
04. चंदना
05. मादा सूअर
06. नेवला
07. प्रतिहिंसा ही स्थायी भाव है
08. एक फाँक आँखि, एक फाँक नाक!
09. न आये रात भर मेल ट्रेन
10. तन गई रीढ़
11. यह तुम थी
12. जोत की फाँक
13. प्रेत का बयान
14. मास्टर

नागार्जुन की चर्चित पंक्तियां :

कालिदास सच-सच बताना इंदुमती की विरह व्यथा में
तुम रोए थे या अज रोया था।”

“गला है मीठा, मन है तीत, रेडियो के लिए लिखते हैं गीत
पढ़ते हैं एजरा पाउंड इलियट, बाकी सब को समझते हैं इडियट ।।”

“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।”
— (अकाल और उसके बाद)


केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

ये प्रमुख हिंदी कवियों में एक है । इनका जन्म 1911 ईस्वी में उत्तर प्रदेश में हुआ। इन्होंने मार्क्सवादी दर्शन के आधार पर जनसाधारण के जीवन की व्यापक अभिव्यक्ति की है। इनका पहला काव्य संग्रह “युग की गंगा” आजादी के पहले मार्च,1947 में रचित है।

केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ :

रचनाएँ :

सं.रचनाएँ
01. बंबई का रक्त स्नान
02. जो शिलाएं तोड़ते हैं
03. अनहारी हरियाली
04. जमुन जल तुम
05. पुष्पदीप
06. बसंत में हुई प्रसन्न पृथ्वी
07. खुली आँखें खुले डैने
08. देश-देश की कविताएँ
09. बोल-बोल अबोल
10. पंख और पतवार

काव्य संग्रह :

सं.काव्य संग्रह
01. युग की गंगा – 1947
02. नींद के बादल – 1947
03. फूल नहीं रंग बोलते हैं – 1965
04. आग का आईना – 1970
05. समय-समय पर
06. हे मेरी तुम
07. गुल मेहंदी
08. मार-प्यार की थापें
09. अपूर्वा
10. आत्मगंध
11. लोक तथा आलोक
  • अस्थि और अंकुर खंड में प्रगतिवादी रचनाएं हिंसा मूल्य का समर्थन करती है।


रामविलास शर्मा | Ram Vilas Sharma

ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 10 अक्टूबर 1912 में पैदा हुए। ये आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार और कवि थे।

रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ :

सं.रचनाएँवर्ष
01. रूप तरंग
02. निराला 1946
03. प्रगति और परंपरा 1949
04. साहित्य और संस्कृति 1949
05. प्रेमचंद और उनका युग 1952
06. प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ 1954
07. विराम चिह्न 1957
08. आस्था और सौंदर्य 1961
09. निराला की साहित्य साधना 1969
10. परंपरा का मूल्यांकन 1981

त्रिलोचन शास्त्री | Trilocana

हिंदी साहित्य में त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं। इनका वास्तविक नाम वासुदेव सिंह है।

त्रिलोचन की प्रमुख रचनाएँ :

सं.काव्य संग्रहवर्ष
01. धरती 1945
02. गुलाब और बुलबुल 1956
03. दिगंत 1957
04. ताप के ताए हुए दिन 1980
05. उस जनपद का कवि हूँ  1981
06. अरधान 1984
07. तुम्हें सौंपता हूँ 1985
  • “धरती” इनका पहला काव्य संग्रह है।
  • “दिगंत” काव्य संग्रह साॅनेट छंद में लिखा गया है। साॅनेट पश्चिम का एक शब्द है जिसमें शोक गीत लिखे जाते हैं।
  • “ताप के ताए हुए दिन” पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

त्रिलोचन की चर्चित पंक्ति :

“यह जीवन मिला है अकेला,
फूल में मिला है या धूल में मिला है,
अकेले जिया नहीं जाता।”


शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ | Shivmangal Singh ‘Suman’

इनका जन्म 5 अगस्त,1915 में उत्तर प्रदेश में हुआ। यह भी एक प्रसिद्ध हिंदी कवि रहे है।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रमुख रचनाएँ :

सं.काव्य संग्रहवर्ष
01. हिल्लोल 1939
02. जीवन के गान 1942
03. युग का मोल 1945
04. प्रलय सृजन 1950
05. मिट्टी की बारात 1972


रांगेय राघव | Rangeya Raghav

इनका जन्म 17 जनवरी, 1923 को आगरा में हुआ। ये एक कवि होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, कहानीकार एवं उपन्यासकार सभी कुछ है।

रांगेय राघव की प्रमुख रचनाएँ :

काव्य :

सं.काव्यवर्ष
01. अजेय खण्डहर 1944
02. मेधावी 1947
03. पांचाली 1955

उपन्यास :

सं.उपन्यास
01. घरौंदा
02. कब तक पुकारूँ
03. मुरदों का टीला
04. चीवर
05. लोई का ताना
06. लखिमा की आंखें
07. मेरी भव बाधा हरो
08. यशोधरा जीत गई।
09. देवकी का बेटा
10. सीधा-साधा रास्ता
  • रांगेय राघव और नागार्जुन ऐसे प्रगतिवादी रचनाकार हैं, जो प्रसिद्ध आंचलिक साहित्यकार भी रहे हैं। रांगेय राघव का पहला आंचलिक उपन्यास “घरौंदा” है।
  • “कब तक पुकारूँ” उपन्यास भरतपुर की सांसी जनजाति जयाराम पेशानट जाति पर लिखा गया प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है।
  • “मुरदों का टीला” उपन्यास मोहनजोदड़ो सभ्यता पर लिखा गया है।

कहानियाँ :

सं.कहानियाँ
01. गूंगे
02. मृगतृष्णा
03. कुत्ते की दुम शैतान
04. पंच परमेश्वर
05. गदल

इसप्रकार दोस्तों ! आज आपने जाना कि Pragativad | प्रगतिवाद क्या है ? तथा इसकी प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौनसी है ? इसके अलावा Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद के प्रमुख कवियों और उनकी मुख्य रचनाओं के बारे में भी आपको ज्ञात हो गया होगा। उम्मीद करते है कि आपको आज की जानकारी अच्छी और उपयोगी अवश्य लगी होगी।

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Pragativad Ke Kavi | प्रगतिवाद की विशेषताएं और प्रमुख कवि एवं रचनाएँ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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प्रगतिवाद के प्रमुख कवि कौन कौन है?

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:.
केदारनाथ अग्रवाल (1911-2000): केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1911 ई. ... .
राम विलास शर्मा (1912-2000): रामविलास शर्मा का जन्म 1912 ई. ... .
नागार्जुन (1910-1998): नागार्जुन का जन्म 1911 ई. ... .
रांगेय-राघव (1923-1962): ... .
शिव-मंगल सिंह 'सुमन' (1915-2002): ... .
त्रिलोचन (1917-2007):.

प्रगतिवाद के जनक कौन है?

प्रगतिवादी काव्य के प्रवर्तक हैं सुमित्रानंदन पंत : डॉ सिद्धेश्वर

प्रगतिवाद का प्रारंभ कब हुआ?

प्रगतिवाद (1936 ई०से…): संगठित रूप में हिन्दी में प्रगतिवाद का आरंभ 'प्रगतिशील लेखक संघ' द्वारा 1936 ई० में लखनऊ में आयोजित उस अधिवेशन से होता है जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी।

प्रगतिवादी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियां कौन सी है?

प्रगतिवादी कविता की प्रवृत्तियां.
सामाजिक यथार्थवाद : इस काव्यधारा के कवियों ने समाज और उसकी समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया है। ... .
मानवतावाद का प्रकाशन : वह मानवता की अपरिमित शक्ति में विश्वास प्रकट करता है और ईश्वर के प्रति अनास्था प्रकट करता है;धर्म उसके लिए अफीम का नशा है -.

प्रगतिवादी किसकी रचना है?

'प्रगतिवाद' शिवदान सिंह चौहान द्वारा रचित रचना है। अत: सही उत्तर विकल्प 1 शिवदान सिंह चौहान है। 'प्रगतिवाद' शिवदान सिंह चौहान द्वारा रचित रचना है। इसमें मार्क्सवाद और प्रगतिवादी चेतना के विवध आयामों को स्पष्ट किया गया है।