पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

Puane samay mein shadiyan (Vivah) kaise hoti thi?

विवाह या शादी जीवन का सबसे अनिवार्य संस्कार माना गया है। प्राचीन काल से ही विवाह के संबंध में कई नियम और सावधानियां बनाई गई हैं। तरह तरह की परंपराएँ पुराने समय से ही चली आ रही है, जिन्हें हम आज भी निभाते हैं। परिवार की स्थिरता, सुख, शांति, कल्याण के लिये विवाह की अनिवार्यता मानी गई है।
महिलाओं के संबंध में कहा जाता था कि विवाह उनका दूसरा जन्म ही है। पुराने समय में शादी से पहले वर और वधू में परिचय या जान पहचान, मिलना जुलना नहीं होता था। कन्याओं को पति चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता नहीं थी। विवाह के लिए पिता की आज्ञा अनिवार्य होती थी। यहां तक कि पुत्रों के लिए भी पिता की आज्ञा मिलने के बाद ही विवाह करने का विधान था। इसका सटीक प्रमाण भगवान श्रीराम के जीवन में मिलता है। रामायण या राम चरित्र मानस के अनुसार महाराज जनक द्वारा सीता के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित किया गया था। स्वयंवर में केवल श्रीराम ने ही जनक द्वारा रखी शर्तों को पूरा किया था। इसके बाद श्रीराम को सीता से विवाह करने का अधिकार प्राप्त हो गया था, लेकिन श्रीराम ने अपने पिता महाराज दशरथ की आज्ञा ना मिलने तक सीता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। शायद इसी प्रथा की वजह से उस काल में होने वाले विवाह में दुख या पति पत्नी के बीच क्लेश आदि का उल्लेख नहीं मिलता है।
विवाह में कन्याओं को बहुत सा धन, उपहार देने की प्रथा काफी पुराने समय से चली आ रही है। पहले तलाक या विवाह विच्छेद जैसी कोई परंपरा नहीं थी। पिता द्वारा कन्या का विवाह जिस पुरूष से कर दिया जाता था, वह मृत्यु के बाद परलोक में भी उसी पुरूष की पत्नी होती थी। ऐसा माना जाता था। उस समय कन्याओं से घृणा, उपेक्षा या द्रोह का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। पिता द्वारा अपनी कन्या का पालन पोषण बहुत अच्छे से ही किया जाता था। विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के सुख दुख का पूरा ध्यान रखते थे।
रामायण में सभी स्त्री पात्रों की स्थिति को देखते हुए समझा जा सकता है कि उन्हें अपने पिता के घर से ही समुचित ज्ञान और शिक्षा प्राप्त हुई थी। तभी वे आज तक पतिव्रता स्त्रियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। विवाह के बाद कन्याओं को पति के घर में सास और ससुर सहित पूरे ससुराल पक्ष से असीम प्रेम और सम्मान प्राप्त होता था। इसके साथ ही पत्नी के लिए पति ही उसका देवता या भगवान माना जाता था। पत्नी अपने पति के सभी कार्यों में बराबरी से सहयोग प्रदान करती थी। पति की मृत्यु के बाद विधवा स्त्रियां अनादर का पात्र नहीं होती थीं। राजा दशरथ की मृत्यु के बाद उनकी विधवा रानियों के सम्मान में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई थी।

पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

हमारे हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार विवाह को बहुत जरूरी माना गया है। अगर हम हिंदू धर्म के 16 संस्कारों की बात करें तो विवाह उनमें से एक है

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हमारे हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार विवाह को बहुत जरूरी माना गया है। अगर हम हिंदू धर्म के 16 संस्कारों की बात करें तो विवाह उनमें से एक है जो महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। मनुस्मृति के अनुसार विवाह के 8 प्रकार बताए गए यानि कि प्राचीन समय में 8 तरह से विवाह होता था। आज हम आपको उन 8 प्रकार की शादियों के बारे में बताएंगे जिनमें से असुर, राक्षस व पैशाच विवाह को सही नहीं माना जाता था। तो चलिए जानते इनके बारे में- 

पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

ब्रह्म विवाहः जो शादी लड़का व लड़की के परिवार की सहमति से हो वो विवाह ब्रह्म विवाह कहलाता है। जिसे आज के समय में अरेंज मैरिज कहा जाता है। ये शादी परिवार वालों की मर्जी के साथ-साथ लड़का-लड़की की इच्छा से होती है।

देव विवाहः जिस शादी में विशेषतः धार्मिक अनुष्ठान के मूल्य के रूप में अपनी कन्या को दान में दे देना ही देव विवाह कहलाता है।

पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

आर्श विवाहः जिस लड़की की शादी में गौदान यानि गाय का दान करके विवाह हो उसे आर्श विवाह कहा जाता है। प्राचीन समय में पहले ब्राह्मण परिवारों में इस तरह शादी की जाती थी।

प्रजापत्य विवाहः किसी लड़की से बिना पूछे उसका विवाह किसी संपन्न परिवार के वर से कर देना प्रजापत्य विवाह कहलाता है। इसमें केवल लड़की के परिवार वालों की इच्छा होती है। 

पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

गंधर्व विवाहः बिना अपने परिवार वालों की सहमति के बिना किया गया विवाह गंधर्व विवाह कहलाता है। जिसे आज के समय में लव मैरिज कहा जाता है। इस तरह की शादी लड़का-लड़की भाग कर करते हैं या किसी को बिना बताए ही कर लेते हैं।

असुर विवाहः लड़की को खरीदकर कि गई शादी यानि पैसे, जमीन, गहने देकर विवाह करना असुर विवाह कहलाता है। 

पुराने समय में शादियां कैसे होती थी? - puraane samay mein shaadiyaan kaise hotee thee?

राक्षस विवाहः जो विवाह लड़की की सहमति के बिना उसका अपरहण करके जबरदस्ती हो उसे राक्षस विवाह कहा जाता है।

पैशाच विवाहः लड़की की बेहोशी या लाचारी की अवस्था में संबंध बनाना और बाद में उससे विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है।
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प्राचीन काल में विवाह कितने प्रकार के होते थे?

हिन्दू धर्मग्रंथ में उस समय प्रचलित विवाह विधियों के प्रकार धर्मवेत्ता ऋषि मनु के अनुसार आठ प्रकार का विवरण दिया गया हैं । नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है।.
ब्रह्म विवाह ... .
देव विवाह ... .
आर्ष विवाह ... .
प्राजापत्य विवाह ... .
आसुर विवाह ... .
गंधर्व विवाह ... .
राक्षस विवाह ... .
पैशाच विवाह.

शादी की शुरुआत कैसे हुई?

महाभारत (१। १२२। ३-३१) में पांडु ने अपनी पत्नी कुंती को नियोग के लिए प्रेरित करते हुए कहा था कि 'पुराने जमाने में विवाह की कोई प्रथा न थी, स्त्री पुरुषों को यौन संबंध करने की पूरी स्वतंत्रता थी। ' कहा जाता है, भारत में श्वेतकेतु ने सर्वप्रथम विवाह की मर्यादा स्थापित की।

हिन्दू विवाह कैसे होता है?

विवाह वेदी पर वर और कन्या दोनों को बुलाया जाए, प्रवेश के साथ मंगलाचरण 'भद्रं कणेर्भिः.......' मन्त्र बोलते हुए उन पर पुष्पाक्षत डाले जाएँ। कन्या दायीं ओर तथा वर बायीं ओर बैठे। कन्यादान करने वाले प्रतिनिधि कन्या के पिता, भाई जो भी हों, उन्हें पत्नी सहित कन्या की ओर बिठाया जाए। पत्नी दाहिने और पति बायीं ओर बैठें।

लड़कियों को शादी करना क्यों जरूरी है?

शादी करना इसलिए जरूरी है क्योंकि व्यक्ति जीवनभर लापरवाह न बना रहे और उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो सके। प्रकृति के बनाए नियम के अनुसार स्त्री को पुरुष के और पुरुष को स्त्री के प्यार की जरूरत होती है। बिना प्यार के वह कई बार मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है। इसलिए हेल्थ के लिहाज से भी शादी जरूरी है।