इंदिरा गांधी ने पंजाब पर हमला क्यों किया? - indira gaandhee ne panjaab par hamala kyon kiya?

ऑपरेशन ब्लू स्टार के कई कारण थे। इंदिरा गांधी सरकार को उन कारणों के चलते ही इस ऑपरेशन को अंजाम देना पड़ा। इसमें 493 लोग मारे गए थे और 83 जवान शहीद हुए थे। इस घटना की दास्तान आज भी स्थानीय लोगों के पुराने जख्म जिंदा कर देती है। घटना 6 जून 1984 की है। 

मामला 1970 के दशक के अंत में अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों को लेकर शुरू हुआ था। 1978 में पंजाब की मांगों पर अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया।

इस प्रस्ताव में सुझाव दिया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, अन्य सब विषयों पर राज्यों के पास पूर्ण अधिकार हों। वे ये भी चाहते थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में उन्हें स्वायत्तता मिले। अकालियों की प्रमुख मांगें थीं- चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएं, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए।

इसके साथ वे यह भी चाहते थे कि 'नहरों के हेडवर्क्स' और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढांचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, फौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो, इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए और अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून बनाया जाए। विश्लेषकों के मुताबिक, इंदिरा गांधी की सरकार को यह सब मंजूर नहीं था। सरकार और अकालियों के बीच यह मसला सुलझाने के लिए तीन बार बात हुई थी।

Operation Blue star: ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद पंजाब में शांति के लिए लोगों को 10 सालों से ज्यादा वक्त तक इंतजार करना पड़ा था। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना में मौतों की संख्या 83 और आम नागरिक की मौतों की संख्या 492 बताई गई थी।

जून, 1984 का पहला हफ्ता भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश के तहत भारतीय सेना ने सिख चरमपंथी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सशस्त्र अनुयायियों को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए परिसर में धावा बोल दिया था। 1984 का ऑपरेशन ब्लूस्टार भारतीय सेना द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था। साल 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लूस्टार की आज 38वीं बरसीं है।

ब्लूस्टार का जन्म: भले ही खालिस्तान आंदोलन 1940 और 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, लेकिन 1970 और 1980 के दशक के बीच इसने लोकप्रियता हासिल की। भारत में खालिस्तान आंदोलन के उदय के बाद ऑपरेशन ब्लूस्टार ने जन्म लिया। खालिस्तान आंदोलन का उद्देश्य सिखों के लिए एक स्वतंत्र राज्य बनाना था। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हरमंदिर साहिब परिसर (स्वर्ण मंदिर) में जमे सिख आतंकवादियों को हटाने के लिए सैन्य अभियान का आदेश दिया था। यह ऑपरेशन 1 जून से 8 जून 1984 के बीच अमृतसर में चलाया गया था।

जरनैल सिंह भिंडरावाले: भिंडरावाले दमदमी टकसाल का नेता था और ऑपरेशन ब्लूस्टार के पीछे मुख्य कारणों में से एक थे। एक नेता के रूप में, भिंडरावाले का सिख युवाओं पर प्रभाव था। ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित अकाल तख्त परिसर को अपने कब्जे में ले लिया था। उस वक्त भिंडरावाले को खालिस्तान की मांग के एक बड़े समर्थक के रूप में देखा जाता था। देश की सरकार द्वारा इस ऑपरेशन को चलाए जाने का उद्देश्य स्वर्ण मंदिर से जरनैल सिंह भिंडरावाले को हटाकर हरमंदिर साहिब परिसर को मुक्त कराना था।

ऑपरेशन ब्लूस्टार: ऑपरेशन ब्लूस्टार के तहत 1 जून से 8 जून 1984 के बीच कार्रवाई शुरू की गई थी। इसमें 5 जून की शाम दोनों पक्षों के बीच मुख्य लड़ाई शुरू हुई, पहले आदेश थे कि स्वर्ण मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए; लेकिन इस संघर्ष में आतंकियों के पास आधुनिक हथियार थे। फिर सैन्य कार्रवाई में सेना ने भी टैंको का इस्तेमाल किया और आतंकियों पर गोले बरसाए। इस कार्रवाई में भिंडरावाले की मौत के साथ ऑपरेशन समाप्ति की ओर पहुंच चुका था, हालांकि पंजाब में शांति के लिए लोगों को 10 सालों से ज्यादा वक्त तक इंतजार करना पड़ा था। इस ऑपरेशन से पहले भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने ऑपरेशन सनडाउन को भी प्लान किया था, इसमें भिंडरावाले के अपहरण की योजना बनाई गई थी। जिसे बाद में कई कारणों के चलते टाल दिया गया था।

मीडिया में भी नाराजगी: साल 1984 में सरकार को जनता के साथ मीडिया की नाराजगी का भी काफी सामना करना पड़ा था। दरअसल, इस ऑपरेशन के दौरान मीडिया को पूरी तरह से पंजाब में प्रवेश करने से रोक दिया था। जो पहले पंजाब पहुंचे भी थे, उन मीडिया कर्मियों को एक बस में बिठाकर हरियाणा सीमा पर उतार दिया गया। चूंकि पंजाब में कर्फ्यू की स्थिति थी, इसलिए उनके यात्रा करने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था। इसके पीछे एक और कारण माना गया कि सरकार के ऑपेरशन की जानकारी उन कट्टरपंथियों तक न पहुंचे, जो स्वर्ण मंदिर में कब्जा जमाए हुए थे।

ऐसा था ऑपरेशन ब्लू स्टार का परिणाम: सिख समुदाय के सबसे पूजनीय स्थानों में से एक स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई ने दुनिया भर के सिख समुदाय के लोगों में तनाव पैदा कर दिया था। बाद में, इसी ऑपरेशन ब्लूस्टार को शुरू करने का आदेश देने वाली देश की ताकतवर महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। फिर इस हत्या ने सिख दंगों को हवा दी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।

जानें, ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद इंदिरा गांधी ने क्या कहा था

3 जून 1984 वो साल था जब भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए एक बड़े ऑपरेशन को चलाया था। लेकिन उसका असर ये हुआ कि देश की एक कद्दावर नेता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

नई दिल्ली। आज से ठीक 33 साल पहले वर्ष 1984 में दो घटनाओं की टीस आज भी लोगों के जेहन में है। उस साल जून और अक्टूबर के महीने में ऐसी घटनाएं हुईं जिससे देश स्तब्ध था। पंजाब में आतंकवाद अपने पांव पसार रहा था और उसकी अगुवाई करने का आरोप भिंडरावाले पर लगा। तत्कालीन कांग्रेस ने एक ऐसा फैसला किया जिसका भयावह अंत 31 अक्टूबर 1984 को हुआ। एक तरफ 3 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लूस्टार में भिंडरावाला मारा गया और ठीक उसके पांच महीने बाद अक्टूबर 1984 में ही इंदिरा गांधी अपने ही सुरक्षा दस्ते की ही शिकार हो गयीं।

6 जून को समाप्त हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार

तीन दिन तक चली कार्रवाई में स्वर्ण मंदिर में 492 लोगों की जान चली गयी थी। इसके अलावा सेना के चार अधिकारियों समेत 83 जवान शहीद हो गए थे। ऑपरेशन ब्लूस्टार की समाप्ति के बाद तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री के पी सिंह देव चाहते थे कि ये जानकारी पीएम इंदिरा गांधी तक पहुंचायी जाए। इंदिरा गांधी को जब उनके सचिव आर के धवन ने जानकारी दी तो उनका पहली प्रतिक्रिया ये थी कि, हे भगवान ये क्या हुआ उन लोगों ने बताया था कि इतनी मौतें नहीं होंगी। दरअसल ऑपरेशन ब्लूस्टार से पहले तत्कालीन सेना अध्यक्ष अरुण कुमार वैद्य ने बताया कि ऑपरेशन को शांतिपूर्ण ढंग से अंजाम दिया जाएगा।

देश के इतिहास के सबसे भयावह मिलिट्री ऑपरेशन्स में से एक ऑपरेशन ब्लूस्टार की बरसी पर अमृतसर में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। इतने वर्षों बाद भी उस ऑपरेशन को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग राय है। सिख धर्मावलंबियों के लिए यह उनकी आस्था पर हमला था। वहीं संविधान को मानने वालों के अनुसार यह ऑपरेशन स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त कराने की कोशिश थी।

ऑपरेशन ब्लूस्टार सोवियत संघ के दबाव में हुआ- स्वामी

अलग खालिस्तान की मांग से बढ़ा चरमपंथ

70 के दशक की शुरुआत के साथ ही पंजाब में खालिस्तान नाम से अलग राज्य की मांग और चरमपंथ बढ़ गया था। अकाली अलग राज्य की मांग कर रहे थे और कहा जाता है कि उन्हें रोकने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार तथा कांग्रेस पार्टी एक ऐसा धड़ा तैयार करना चाहती थी जो अकालियों की राजनीति खत्म कर सके। इसलिए भिंडरावाला को शह दी गई। तारीख को कुछ और ही मंजूर था और 1981 में अलग खलिस्तान का झंडा फहाराया गया।

क्यों हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार?

1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल ही हत्या से माहौल गर्मा गया। उसी साल जालंधर के पास बंदूकधारियों ने पंजाब रोडवेज की बस में चुन-चुनकर हिंदुओं की हत्या कर दी। इसके बाद विमान हाईजैक हुए। स्थिति काबू से बाहर हो गई और केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

अब तक स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना चुका भिंडरावाला सरकार के निशाने पर आ चुका था और स्वर्ण मंदिर को चरमपंथियों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार प्लान किया गया।

तस्वीरों में देखें आखिर क्या था ऑपरेशन ब्लूस्टार

3 जून की रात

केंद्र सरकार ने भारतीय थल सेना को स्वर्ण मंदिर को स्वतंत्र कराने का जिम्मा सौंपा। जनरल बरार को ऑपरेशन ब्लूस्टार की कमान सौंपी। 3 जून को सेना ने अमृतसर में प्रवेश किया। चार जून की सुबह गोलीबारी शुरू हो गई।

सेना को चरमपंथियों की ताकत का अहसास हुआ तो अगले ही दिन टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों का उपयोग किया गया। 6 जून की शाम तक स्वर्ण मंदिर में मौजूद भिंडरावाला व अन्य चरमपंथियों को मार गिराया गया। लेकिन तब तक मंदिर और जानमाल का काफी नुकसान हो चुका था।

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फैला आक्रोश

ऑपरेशन के बाद सरकार ने श्वेत पत्र जारी कर बताया कि ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 सैनिक मारे गए और 248 अन्य सैनिक घायल हुए। इसके अलावा 492 अन्य लोगों की मौत की पुष्टि हुई और 1,592 लोगों को हिरासत में लिया गया। 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई और दंगे भड़क गए।

कौन था भिंडरावाला ?

बंटवारे के दौरान पंजाब में कट्टरपंथी विचारधारा जन्म लेने लगी। इस दौरान भिंडरावाला जब आकली अलग सिख राज्य की मांग कर रहे थे तब दमदमी टकसाल में एक लड़का सिख धर्म की पढ़ाई करने आया। इसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाला। उसकी धर्म के प्रति कट्टर आस्था ने उसे सबका प्रिय बना दिया और जब टकसाल के गुरु का निधन हुआ तो भिंडरावाला को टकसाल प्रमुख का दर्जा मिल गया। इसके बाद भिंडरावाला का प्रभाव बढ़ने लगा और देश विदेश में उसे समर्थन मिला।

क्या हुआ खालिस्तान का ?

1990 के दशक में खालिस्तान की मांग कमजोर पड़ती गई। हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार की तारीख पर आज भी हर साल पंजाब में विरोध प्रदर्शन होता है। ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में रह रहे सिख समुदायों में अभी भी अलग खलिस्तान को लेकर मांग उठती रही है। समझा जाता है कि भारत से बाहर दो से तीन करोड़ सिख रहे हैं। उनमें से ज्यादातर का भारतीय पंजाब में कोई न कोई जुड़ाव है।

अभी भी जारी है आंदोलन

विदेशों में रहने वाले सिख अभी भी अपने आंदोलन के लिए सहयोग हासिल करने की कोशिश करते हैं। वे इसके लिए अलग से पैसे भी इकट्ठा करते हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर उनकी याद इतनी जबरदस्त है कि इसकी अगुवाई करने वाले कमांडर कुलदीप सिंह ब्रार पर लंदन की सड़कों पर 2012 में हमला किया गया। हालांकि इसमें कमांडर ब्रार बच गए।

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Edited By: Lalit Rai