राजपूतों की अग्नि कौन से उत्पत्ति का सिद्धांत किसने किया था? - raajapooton kee agni kaun se utpatti ka siddhaant kisane kiya tha?

हर्ष की मृत्यु (647 ई.) के पश्चात् राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में राजपूत की सत्ता स्थापित हुई। राजपूत शब्द की उत्पति राष्ट्रकूट से हुई। सातवीं सदी से बाहरवीं सदी इतिहास में राजपूत काल के नाम से जानी जाती है। राजपूतों की उत्पति के विषय में अनेक मत प्रचलित है। अतः यह प्रश्न विवादास्पद है। राजपूताना के इतिहास के सन्दर्भ में राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का अध्ययन बड़ा महत्त्व का है। राजपूतों की उत्पति से संबंधित प्रमुख रूप से चार सिद्धान्त प्रचलित है |

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अग्निकुण्ड से उत्पति:

राजपूतों का विशुद्ध जाति से उत्पन्न होने के मत को बल देने के लिए उनको अग्निवंशीय बताया गया है। इस मत का प्रथम सूत्रपात चन्दबरदाई के प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराजरासो’ से होता है। उसके अनुसार राजपूतों के चार बंश प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान ऋषि वशिष्ठ के यज्ञ कुण्ड से राक्षसों के संहार के लिए उत्पन्न किये गये। इस कथानक का प्रचार 16वीं से 18वीं सदी तक माटों द्वारा खूब होता रहा। मुँहणोत नैणसी और सूर्यमल्ल मिसण ने इस आधार को लेकर उसको और बढ़ावे के साथ लिखा । परन्तु वास्तव में ‘अग्निवंशीय सिद्धान्त पर विश्वास करना उचित नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण कथानक बनावटी व अव्यावहारिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्दबरदाई ऋषि वशिष्ठ द्वारा अग्नि से इन वंशों की उत्पत्ति से यह अभिव्यक्त करता है कि जब विदेशी सत्ता से संघर्ष करने की आवश्यकता हुई तो इन चार वंशों के राजपूतों ने शत्रुओं से मुकाबला हेतु स्वंय को सजग कर लिया। मुहणोत नैणसी व सूर्यमल्ल मिश्रण ने भी इस मत का समर्थन किया। गौरीशकर हीराचन्द ओझा, सी.वी.वैद्य, दशरथ शर्मा, ईश्वरी प्रसाद इत्यादि इतिहासकारों ने इस मत को निराधार बताया है।

विदेशी उत्पति सिद्धान्त:

कर्नल जेम्स टॉड, वी.ए. स्मिथ, विलियम क्रुक इसके समर्थक है। राजपूताना के प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों को शक और सीथियन बताया है। इसके प्रमाण में उनके बहुत से प्रचलित रीति-रिवाजों का, जो शक जाति के रिवाजों से समानता रखते थे, उल्लेख किया है। ऐसे रिवाजों में सूर्य पूजा, सती प्रथा प्रचलन, अश्वमेध यश, मद्यपान, शस्त्रों और घोड़ों की पूजा इत्यादि हैं। टॉड की पुस्तक के सम्पादक विलियम क्रुक ने भी इसी मत का समर्थन किया है परन्तु इस विदेशी वंशीय मत का गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने खण्डन किया है ।

प्राचीन क्षत्रियों से उत्पति:

ओझा का कहना है कि राजपूतों तथा विदेशियों के रस्मों-रिवाजों में जो समानता कर्नल टॉड ने बतायी है, वह समानता विदेशियों से राजपूतों ने प्राप्त नहीं की है, वरन् उनकी सात्यता वैदिक तथा पौराणिक समाज और संस्कृति से की जा सकती है। अतएव उनका सम्बन्ध इन विदेशी जातियों से जोड़ना निराधार है।

गौरीशंकर हीराचन्द ओझा राजपूतों को सूर्यवंशीय और चन्द्रवंशीय बताते हैं। अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होंने कई शिलालेखों और साहित्यिक ग्रंथों के प्रमाण दिये हैं, जिनके आधार पर उनकी मान्यता है कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों के वंशज हैं। राजपूतों की उत्पत्ति से सम्बनित यही मत सर्वाधिक लोकप्रिय है।

मिश्रित उत्पति सिद्धान्त:

डॉ. डी.पी. चटर्जी (चट्टोपाध्याय) इस मत के प्रमुख प्रतिपादक है। अनेक विद्वान, राजपूतों की उत्पति विदेशी जातियों से होने के साथ-साथ प्राचीन क्षत्रियों की संतान होना भी मानते है तथा ब्राह्मण वंश से भी इनकी उत्पति मानते है।

डॉ. डी. आर. भण्डारकर राजपूतों को गुर्जर मानकर उनका संबंध श्वेत-हूणों के स्थापित करके विदेशी वंशीय उत्पत्ति को और बल देते हैं। इसकी पुष्टि में वे बताते हैं कि पुराणों में गुर्जर और हणों का वर्णन विदेशियों के सन्दर्भ में मिलता है। इसी प्रकार उनका कहना है कि अग्निवंशीय प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान भी गुर्जर थे, क्योंकि राजोर अभिलेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। इनके अतिरिक्त भण्डारकर ने बिजौलिया शिलालेख के आधार पर कुछ राजपूत वंशों को ब्राह्मणों से उत्पन्न माना है। वे चौहानों को वत्स गोत्रीय ब्राह्मण बताते हैं और गुहिल राजपूतों की उत्पत्ति नागर ब्राह्मणों से मानते हैं।

डॉ. ओझा एवं वैद्य ने भण्डराकर की मान्यता को अस्वीकृत करते हुए लिखा है कि प्रतिहारों को गुर्जर कहा जाना जाति विशेष की संज्ञा नहीं है वरन् उनका प्रदेश विशेष गुजरात पर अधिकार होने के कारण है। जहाँ तक राजपूतों की ब्राह्मणों से उत्पत्ति का प्रश्न है, वह भी निराधार है क्योंकि इस मत के समर्थन में उनके साक्ष्य कतिपय शब्दों का प्रयोग राजपूतों के साथ होने मात्र से है।

इस प्रकार राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उपर्युक्त मतों में मतैक्य नहीं है। फिर भी डॉ. ओझा के मत को सामान्यतः मान्यता मिली हुई है। निःसन्देह राजपूतों को भारतीय मानना उचित है।

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Question

राजपूतों की उत्पत्ति से सम्बद्ध “अग्निकुल के सिद्धांत” का स्रोत ‘विक्रमांकदेवचरित्र’ को माना जाता है |

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Solution

The correct option is B गलतराजपूतों की उत्पत्ति से सम्बद्ध “अग्निकुल के सिद्धांत” का स्रोत ‘पृथ्वीराज रासों’ को माना जाता है |‘पृथ्वीराजरासों’ हिंदी भाषा में लिखा गया एक महाकाव्य है जिसकी रचना चंदबरदाई ने की थी | चंदबरदाई , पृथ्वीराज चौहान तृतीय के राजकवि थे |

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राजपूतों की अग्नि कौन से उत्पत्ति का सिद्धांत किसने दिया था?

अग्निकुला सिद्धांत: यह सिद्धांत चंदबरदाई के पृथ्वीराजरासो से आया है। इस सिद्धांत के अनुसार, राजपूत माउंट आबू में "गुरु शिखर" में ऋषि वशिष्ठ द्वारा किए गए यज्ञ का परिणाम थे। अग्निकुंड से निकले चार राजपूत वंश चौहान, चालुक्य, परमार और प्रतिहार हैं। मुहणोत नैणसी और सूर्यमल मिश्र भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं।

राजपूतों की उत्पत्ति का सिद्धांत क्या है?

श्री कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल की थी. उनके अनुसार राजपूत कुषाण,शक और हूणों के वंशज थे. उनके अनुसार चूँकि राजपूत अग्नि की पूजा किया करते थे और यही कार्य कुषाण और शक भी करते थे. इसी कारण से उनकी उत्पति शको और कुषाणों से लगायी जाती थी.

राजपूत कौन थे उनके विषय में बताइए?

8वीं से 14वीं सदी के बीच राजपूत नाम आमतौर पर योद्धाओं के उस समूह के लिए प्रयुक्त होता था जो क्षत्रिय वर्ण के होने का दावा करते थेराजपूत शब्द के अन्तर्गत केवल राजा और सामन्त वर्ग ही नहीं, बल्कि वे सेनापति और सैनिक भी आते थे जो पूरे उपमहाद्वीप में अलग अलग शासकों की सेनाओं में सेवारत थे