पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है? - paathyakram mein parivartan kee aavashyakata kyon hai?

पाठ्यक्रम – शिक्षा एक व्यापक एवं गतिशील प्रक्रिया है। यह मानव विकास की आधारशिला है। यह एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में लगातार परिवर्तन होता रहता है। शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शन होता रहता है। इसे मनुष्य का तीसरा नेत्र भी कहा गया है जो मनुष्य को समस्त तत्वों के मूल को समझने की क्षमता प्रदान करता है तथा उसे उचित व्यवहार करने के लिए तैयार करता है।

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शिक्षा मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत की तरह विश्व की अन्य संस्थाओं में भी प्रारंभ से ही शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान मिला है। अरस्तू ने इस विषय में ठीक ही लिखा है-

शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्तियों से उतने ही श्रेष्ठ होते हैं, जितने जीवित मृतकों से।

शिक्षा आदि काल से ही किसी ना किसी रूप में दी जाती रही है। सर्वप्रथम शिक्षा बालक को उसके माता-पिता द्वारा दी जाती थी और वही बालक को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराते थे। परंतु धीरे-धीरे समाज में ज्ञानार्जन की भावना बढ़ी।

पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है? - paathyakram mein parivartan kee aavashyakata kyon hai?
पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है? - paathyakram mein parivartan kee aavashyakata kyon hai?
पाठ्यक्रम

समाज का स्थान गौण हो गया तथा समाज में शिक्षा का अनुभव किया जाने लगा। साथ ही इस बात की आवश्यकता अनुभव होने लगी कि शिक्षा विशेष व्यक्तियों द्वारा विशेष स्थानों पर ही प्रदान की जाए। इस प्रकार शिक्षक तथा विद्यालयों का विकास हुआ। इस प्रकार शिक्षक एवं विद्यालय शिक्षा के औपचारिक माध्यमों के अंतर्गत आते हैं, क्योंकि नियोजन कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यवस्थित ढंग से सन्स्थापित संस्थाओं में किया जाता है।

साथ ही इसके ठीक विपरीत ऐसी परिस्थितियां जो व्यक्ति को शिक्षित करती हैं तथा साथ ही व्यवहार परिवर्तन करने में सहायक होती हैं वह शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में गिनी जाती है।

विद्यालय में शिक्षा के कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए योजनाबद्ध व सुनियोजित ढंग से ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार परिवर्तन के ढंग, मात्रा, दिशा, साधनों आदि से संबंधित हो सकते हैं। यह सभी उद्देश्य किसी विशेष माध्यम से ही पूर्ण किए जा सकते हैं तथा इन माध्यमों में सर्वाधिक उपयुक्त व महत्वपूर्ण नाम पाठ्यक्रम आता है।

इस प्रकार कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यवस्थित ढंग से नियोजित किए जाने के कारण पाठ्यक्रम को शिक्षा के एक औपचारिक माध्यम के रूप में देखा गया है।

Contents

  • पाठ्यक्रम शाब्दिक अर्थ
  • पाठ्यक्रम की परिभाषाएं
  • पाठ्यक्रम आवश्यकता महत्व
    • 1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक
    • 2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक
    • 3. शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक
    • 4. विषय सामग्री के विभाजन में सहायक
    • 5. चरित्र निर्माण में सहायक
    • 6. व्यक्तित्व के विकास में सहायक
    • 7. अनुसंधान एवं आविष्कार में सहायक
    • 8. दर्शन और शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक
    • 9. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक

पाठ्यक्रम शाब्दिक अर्थ

पाठ्यक्रम शब्द आंग्ल भाषा के Curriculum शब्द का हिंदी रूपांतरण है तथा आंग्ल भाषा का Curriculum शब्द लैटिन भाषा के Currere शब्द से बना है, जिसका अर्थ है दौड़ का मैदान।

यदि हम पाठ्यक्रम के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो हमें ज्ञात होता है कि पाठ्यक्रम एक मार्ग है, जिस पर चलकर बालक अपने शिक्षा प्राप्त के लक्ष्य को पूर्ण करते हैं। दूसरे शब्दों में, शिक्षा एक गॉड है जो पाठ्यक्रम के मार्ग पर दौड़ी जाती है और इसके द्वारा बच्चे का सर्वांगीण विकास करने का लक्ष्य प्राप्त किया जाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम एक ऐसा दौड़ का मैदान है अथवा ऐसा साधन है जिसके द्वारा शिक्षक व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।

पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है? - paathyakram mein parivartan kee aavashyakata kyon hai?
पाठ्यक्रम में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है? - paathyakram mein parivartan kee aavashyakata kyon hai?
पाठ्यक्रम

पाठ्यक्रम की परिभाषाएं

प्राचीन काल में पाठ्यक्रम को पाठ्यवस्तु का पर्यायवाची माना जाता था। इस दृष्टिकोण से पाठ्यक्रम का क्षेत्र बहुत ही सीमित, संकुचित व मौखिक प्रकृति का होता था। प्राचीन समय में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान के कुछ क्षेत्रों व कुशलताओं पर अधिकार करा देना मात्र समझा जाता था। इस प्रकार पाठ्यक्रम के प्राचीन मतानुसार कुछ परिभाषाएं निम्न है-

पाठ्यक्रम शिक्षक के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री को अपने आदर्श के अनुसार अपनी चित्रशाला में ढाल सके।

कनिंघम

पाठ्यक्रम स्कूलों में निर्देशन के कार्य के लिए एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित किए गए विषयों के समूह अथवा अध्ययन की विषय वस्तु के रूप में जाना गया है।

डा. सफाया

पाठ्यक्रम को मानव जाति के संपूर्ण ज्ञान तथा अनुभव का सार समझना चाहिए।

फ्रोबेल

पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है।

मुनरो

पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियाएं आती हैं जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती हैं।

हेनरी

विद्यालय में बालकों के शैक्षिक अनुभव के लिए एक सामाजिक समूह की रूपरेखा पाठ्यक्रम कहलाता है।

व्यूसैम्प

पाठ्यक्रम की उपरोक्त सभी परिभाषाओं का विवेचन करने के बाद निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। यह छात्र के जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट करता है फिर चाहे वह शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय, बौद्धिक या नैतिक किसी से भी जुड़े हो। वर्तमान समय में पाठ्यक्रम शिक्षकों को गॉड स्थान देकर तथा विद्यार्थी की क्षमताओं एवं अभिरुचियों को केंद्र में रखकर बनाया जाता है।

इसका ध्येय बालक का सर्वांगीण विकास करना एवं बालक को इस योग्य बनाना होता है कि वह अपने साथ साथ अपने समाज समुदाय व देश का भी विकास व उद्धार कर सके।

प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विशेष साधनों का उपयोग किया जाता है। पाठ्यक्रम भी एक ऐसा ही साधन है जिसकी सहायता से प्रत्येक विद्यार्थी को उसके समय के सदुपयोग एवं ज्ञानार्जन की दिशा में सजग रखा जा सकता है। इसके साथ ही साथ शिक्षकों को भी उनके कर्तव्यों की पूर्ति हेतु सही दिशा मिलती रहती है।

इस प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का विशेष महत्व है। पाठ्यक्रम ही संपूर्ण शिक्षण क्रिया का आधार होता है। पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षण कार्य न तो सफलतापूर्वक संपन्न हो सकता है और न ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शैक्षिक प्रक्रिया में पाठ्यक्रम केंद्र बिंदु का कार्य करता है, जिसके चारों ओर शिक्षक एवं शिक्षार्थीगण अपने कर्तव्यों की पूर्ति व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।

पाठ्यक्रम आवश्यकता महत्व

पाठ्यक्रम के द्वारा ही विद्यालय का कार्य संगठित व संतुलित रूप से चल सकता है। पाठ्यक्रम का महत्व उसके द्वारा संपादित किए जाने वाले कार्यों के रूप में समझा जा सकता है। संक्षेप में पाठ्यक्रम की आवश्यकता महत्व इस प्रकार है-

  1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक
  2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक
  3. शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक
  4. विषय सामग्री के विभाजन में सहायक
  5. चरित्र निर्माण में सहायक
  6. व्यक्तित्व के विकास में सहायक
  7. अनुसंधान एवं अविष्कार में सहायक
  8. दर्शन एवं शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक
  9. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक

1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक

प्रत्येक अवधारणा का निर्माण कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। उद्देश्यों के अभाव में कोई भी प्रक्रिया सही मार्ग पर नहीं चल सकती है। शिक्षण प्रक्रिया के संबंध में भी यह बात सत्य सिद्ध होती है। बिना उद्देश्यों के चलने वाली शिक्षण प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार होती है जैसे पतवार के बिना नाव।

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में पाठ्यक्रम ही सहायता करता है। यह एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं तथा उपयुक्त पाठ्यक्रम के अभाव में हम शिक्षा के उद्देश्य प्राप्त करने के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक

प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए समय सारणी का निर्माण किया जाता है। जिसके अंतर्गत प्रत्येक विषय के लिए निश्चित समय का आवंटन किया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक विषय एवं विषय वस्तु का शिक्षा प्रक्रिया में विशेष महत्व है।

तक शिक्षक व शिक्षार्थी विषय वस्तु या अध्ययन वस्तु से अनभिज्ञ रहते हैं तथा इस बात का उन्हें ज्ञान नहीं होता कि उन्हें क्या पढ़ना है, तब तक वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा भी प्राप्त नहीं कर सकते। इस प्रकार पाठ्यक्रम ही शिक्षण सामग्री के निर्धारण में सहायक होता है।

3. शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक

सफल शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को उचित शिक्षण विधियों का ज्ञान हो। यह ज्ञान अध्यापक को पाठ्यक्रम ही प्रदान करता है। पाठ्यक्रम ही विभिन्न कक्षाओं के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्री ओं का निर्धारण करता है तथा उन विभिन्न प्रकार की शिक्षण सामग्रियों के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों का निरूपण करता है। प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए अलग-अलग प्रकार की शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षक को इस बात का ज्ञान नहीं हो सकता है कि किस कक्षा में किस प्रकार की विषय वस्तु को किस विधि से पढ़ाना है। इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायक होता है।

4. विषय सामग्री के विभाजन में सहायक

पाठ्यक्रम की विषय सामग्री का निर्धारण करता है तथा साथ ही साथ इस बात का भी निर्धारण करता है कि वह विषय वस्तु विभिन्न स्तरों के अनुरूप किस प्रकार की हो। पाठ्यक्रम छोटी कक्षाओं के लिए सरल व रोचक विषय वस्तु का सुझाव देता है। माध्यमिक कक्षाओं के लिए तर्कपूर्ण व ज्ञानवर्धक अध्ययन वस्तु का निर्देशन करता है तथा कुछ कक्षाओं के लिए गहन व चिंतनशील तथा प्रयोगात्मक अध्ययनक्रम की रूपरेखा रखता है।

विभिन्न स्तरों के अनुरूप विषय वस्तु का विभाजन वैज्ञानिक एवं उचित ढंग से करने में पाठ्यक्रम ही सहायता करता है। पाठ्यक्रम के अभाव में ऐसा तर्क सम्मत विभाजन होना संभव नहीं है।

5. चरित्र निर्माण में सहायक

जैसा कि हमें ज्ञात है कि पाठ्यक्रम एक व्यापक व वृहद अवधारणा है। इसके अंतर्गत केवल पाठ्य विषय ही नहीं बल्कि विभिन्न पाठ्य सहायक गतिविधियां व पाठ्येत्तर क्रियाकलाप भी सम्मिलित होते हैं। इसके अंतर्गत अनेक खेलों का आयोजन, एनसीसी व स्काउटिंग का निर्धारण तथा विभिन्न पर्वों का विशेष महत्व के दिवसों का आयोजन किया जाता है।

जिसका उद्देश्य बालकों का चरित्र निर्माण एवं उचित नागरिकता का विकास करना है। इस प्रकार उचित पाठ्यक्रम चरित्र विकास में सहायक होता है। दूसरे शब्दों में चरित्र निर्माण व नागरिकता के लिए उत्तम गुणों का विकास पाठ्यक्रम के द्वारा ही संभव है।

6. व्यक्तित्व के विकास में सहायक

बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने में पाठ्यक्रम अपना पूर्ण योगदान करता है। व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू होते हैं यथा शारीरिक मानसिक सामाजिक बौद्धिक नैतिक आध्यात्मिक व्यावसायिक तथा सांस्कृतिक आदि।

पाठ्यक्रम विभिन्न खेलकूद की प्रवृत्तियों द्वारा शारीरिक विकास करता है। विभिन्न पाठ्य सहायक गतिविधियों द्वारा नैतिक आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विकास करता है तथा आवश्यक विषयों के ज्ञान एवं सही दिशा निर्देशन के द्वारा व्यावसायिक विकास करता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायता करता है।

7. अनुसंधान एवं आविष्कार में सहायक

जैसा कि हमें पूर्वविदित है, पाठ्यक्रम केवल अध्ययन वस्तु तक ही सीमित न होकर एक व्यापक अवधारणा है। वर्तमान पाठ्यक्रम में बालक को केंद्र बनाकर भावी जीवन की तैयारी के उद्देश्य से सभी आवश्यक कार्यक्रमों को संगठित किया जाता है। यह जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करके उनके संतुलित विकास में सहायता करता है।

पाठ्यक्रम उन अनुभवों क्रियाओं तथा जीवन की उन परिस्थितियों का योग है जिनके माध्यम से बालक ज्ञान अर्जित करता है। पाठ्यक्रम उच्च स्तर पर छात्रों का अनुसंधान एवं नित्य नवीन खोज करने के लिए विषय वस्तु, क्षमता एवं पूर्ण सहयोग प्रदान करता है।

8. दर्शन और शिक्षा की प्रवृत्तियों को दर्शाने में सहायक

भारत देश में अनेकों दर्शन की धाराएं प्रचलन में रही है। अनेकों दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं। जिनमें महात्मा गांधी, अरविंदो, रविंद्र नाथ टैगोर आदि। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण दार्शनिक विचार रखे। इन्होंने अपने विचारों द्वारा बालकों के लिए पाठ्यक्रम की अवधारणा का निरूपण किया, जिसमें इनके दार्शनिक विचारों की झलक प्राप्त होती है।

इसी प्रकार वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक, गुलामी के समय तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा व्यवस्था विभिन्न परिवर्तनों से गुजरी है, उन सब की भी झलक हमें पाठ्यक्रम द्वारा प्राप्त होती है। इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षा की विभिन्न प्रवृत्तियों तथा विभिन्न दर्शनों के परिवर्तनों को दर्शाता है।

9. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक

वर्तमान युग में औद्योगिककरण का युग है। विज्ञान व तकनीकी अपने चरम पर है। देशों के मध्य की दूरियां घट रही हैं व उनके मध्य अनेकों संबंध व समझौते हो रहे हैं। विकसित व विकासशील दोनों ही प्रकार के देश अपने आप को सक्षम बनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में आज के युवक-युवतियों के लिए यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि उन्हें वर्तमान युग की तत्कालीन घटनाओं का पूर्ण व सटीक ज्ञान हो।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति वर्तमान पाठ्यक्रम के द्वारा की जा सकती है। अपने सामाजिक व भौतिक वातावरण की समझ प्रदान करने के लिए अनेकों विषयों व पाठ्येत्तर क्रियाओं का सहारा लिया जाता है, देश विदेश की विभिन्न घटनाओं से अवगत कराया जाता है, तथा पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें प्रत्येक भौतिक व सामाजिक परिस्थितियों से परिचित कराया जाता है। ताकि बालक अपने आप को तेजी से बदलते हुए भौतिक परिवेश में ढाल सके तथा भावी जीवन के लिए तैयार होकर अपने देश व समाज को सक्षम बना सके।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाठ्यक्रम अनेकों महत्वपूर्ण कार्य संपादित करता है। पाठ्यक्रम का संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया में अपना एक विशिष्ट महत्व है। उपरोक्त कार्यों को करने के कारण इसकी उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है। पाठ्यक्रम के द्वारा ही शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रहती है। इसके अभाव में ऐसा होना संभव नहीं है।

पाठ्यचर्या परिवर्तन का महत्व क्या है?

पाठ्यचर्या का उद्देश्य बाल-केन्द्रित शिक्षा प्रदान करना है। इसके अंतर्गत छात्रों की व्यक्तिगत एवं शैक्षिक रूचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है। इससे लाभ यह है कि सर्वप्रथम तो बालक विद्यालय आने मे रूचि लेने लगेगा एवं इस प्रकार वह अपनी रूचि अनुसार ज्ञान प्राप्त करेगा।

पाठ्यक्रम परिवर्तन से आप क्या समझते हैं?

मूल्यांकन प्रक्रिया में बदलाव: मूल्यांकन को और अधिक विश्वसनीय और मान्य बनाने के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया में नई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, इसलिए पाठ्यक्रम में परिवर्तन मूल्यांकन प्रक्रिया में बदलाव लाता है।

पाठ्यक्रम की आवश्यकता क्यों होती है?

पाठ्यक्रम की आवश्यकता छात्रों को उनके जीवन में विकसित करने के लिए भी होती है। छात्र जब विद्यालय में जाते हैं तो वे अपने आपको सामाजिक व आर्थिक जीवन के लिए तैयार करते हैं । पाठ्यक्रम निर्धारित करके विद्यालय छात्रों को सहायता प्रदान करता है। वे अपना पूर्ण विकास करके समाज में अच्छे नागरिक बनते हैं ।

पाठ्यक्रम क्या है इसकी आवश्यकता और महत्व को स्पष्ट करें?

पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है। पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियाएं आती हैं जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती हैं। विद्यालय में बालकों के शैक्षिक अनुभव के लिए एक सामाजिक समूह की रूपरेखा पाठ्यक्रम कहलाता है।